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उम्मीदवारों के चयन को लेकर ओवैसी से सीख सकते हैं अमित शाह

भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अभी विधायकों और 2019 में सांसदों पर दोष मढ़ेगा लेकिन वे सत्ता विरोधी लहर के लिए ज़िम्मेदार नहीं है.

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असदुद्दीन ओवैसी, फाइल फोटो। पीटीआई

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी से कम से कम एक दो चीज़े सीखने की ज़रूरत है. मुख्यरूप से ये सीखें कि विधायकों के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर से कैसे निपटा जाये.

भाजपा रणनीतिकार बहुत ही घबराये हुए हैं क्योंकि बागी विधायकों ने मध्यप्रदेश और राजस्थान में पार्टी की संभावनाओं को नुक़सान पहुंचाने की धमकी दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में अलोकप्रिय विधायकों के टिकटों को काट कर एंटी-इनकंबेंसी को हराने की एक सफल रणनीति तैयार की थी. अमित शाह इस रणनीति का क्रियान्वयन दोनों राज्यों में कर रहे हैं. बागियों को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं.

शुक्रवार को राजस्थान की भाजपा इकाई ने 4 पूर्व मंत्री समेत 11 बागियों को बाहर कर दिया. भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई ने पूर्व मंत्री और विधायकों समेत 53 बागियों को बाहर का रास्ता दिखाया. कांग्रेस भी इसी तरह की लड़ाई लड़ रही है. लेकिन बीजेपी में बगावत सुर्खियां बन रही हैं क्योंकि शाह के कार्यकाल के दौरान ये अभूतपूर्व पैमाने पर हुए हैं.

एआईएमआईएम, एक छोटी सी पार्टी है जिसका एक सांसद है और हैदराबाद में सात विधायक हैं. इस साल तेलंगाना विधानसभा चुनावों में इसने अपने सभी विधायकों को उतारा था. उनमें से ज़्यादातर पिछले चार-चार चुनावों में एआईएमआईएम उम्मीदवार रहे हैं.

कुछ लोग इन निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिमों की आबादी की सघनता और एआईएमआईएम नेताओं की छवि और अपने समुदाय से जुड़े मुद्दों पर अक्सर ध्रुवीकरण के लिए ज़िम्मेदार ठहरा सकते हैं. लेकिन, भाजपा और एआईएमआईएम की तुलना चाहे कितनी ही विचित्र लगे, यह समझना महत्वपूर्ण हैं कि एआईएमआईएम अपने विधायकों के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर को कैसे हराती है.

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असदुद्दीन ओवैसी ने निर्वाचित प्रतिनिधियों पर जवाबदेही तय करके इसको लागू किया. शुक्रवार को छोड़कर किसी भी दिन 10:30 से 2:30 के बीच दारुस्सलाम हैदराबाद स्थित एआईएमआईएम के कार्यकाल पर जाने के बाद ये देखने को मिलता हैं कि एआईएमआईएम के विधायक और पार्षद पंक्ति में बैठकर लोगों की समस्याओं को तुरंत वही सुनकर उसका निवारण करते हैं. इस समय में विधायक काफी व्यस्त रहते हैं. अनुशंसा पत्रों पर हस्ताक्षर करते हैं, अधिकारियों से बात हैं और लोगों के लिए सड़क, पानी का काम करते हैं. ये सब ओवैसी की निगरानी में होता हैं.

अक्टूबर में हैदराबाद के टोली चौकी इलाके में बुर्क़ा पहने महिलाओं ने एआईएमआईएम के लोकल विधायक कौसर मुहियुद्दीन के ऊपर आक्रोश प्रकट किया. उन्होंने एक-एक करके माइक्रोफोन पर बोला और उनसे स्पष्टीकरण मांगा कि उन्हें पेंशन, सरकारी योजना के तहत दो बेडरूम का घर, पानी, सड़कों, दवाओं समेत अन्य सुविधाएं क्यों नहीं मिल रही हैं. विधायक ने रुके हुए कार्य को पूरा करने के लिए एक निश्चित समय दिया. ओवैसी ने हस्तक्षेप करते हुए विधायक को फटकार लगाई.

कोई भी उम्मीद नहीं कर सकता हैं कि अमित शाह, शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे एआईएमआईएम के मॉडल का क्रियान्वयन कर सांसदों, विधायकों की जवाबदेही तय करेंगे. लेकिन काम न करने वाले विधायकों का टिकट काटकर चुनाव जीतने की रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करना वोटरों के साथ छलावा है.

सुषमा स्वराज अपने निर्वाचन क्षेत्र में दो साल से दिखी नहीं हैं. पिछले सप्ताह सुषमा स्वराज ने घोषणा कि वह अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी. लोगों से उम्मीद है कि निर्वाचित प्रतिनिधि की उदासीनता और उपेक्षा के बावजूद विदिशा में नए भाजपा उम्मीदवार को वोट देंगे. भरोसा है कि 2019 में बहुत से लोग ऐसा ही करेंगे.

लोकप्रिय नेता चाहे वह राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी हों या राज्यों में चौहान, राजे और रमन सिंह हों- या शाह की अध्यक्षता में भाजपा का मज़बूत संगठन- पार्टी की चुनावी सफलता के लिए अनिवार्य है. लेकिन यही कारण विधायकों की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर रहा है.

‘मोदीजी जिता देंगे’ पर विश्वास या फिर केंद्रीकृत सत्ता में उनके काम न कर पाने के कारण लोगों के साथ उनके संबंधों को तोड़ देता है. वे लोगों के हितों पर भी समझौता करते हैं जो लोग मोदी या मामा, या ‘महारानी’ के व्यक्तित्व के लिए वोट देते हैं. लेकिन वे अपना आक्रोश स्थानीय सांसदों और विधायकों पर निकालते हैं. जो या तो निर्दयी है या अक्षम हैं या करिश्माई नेताओं द्वारा संचालित सरकारों में जिनकी न के बराबर पहुंच हो.

भाजपा ने अपने सांसदों को पिछले साढ़े चार सालों में एक पैर पर खड़ा करके रखा था. उन्हें नियमित रूप से अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जाना पड़ा. मोदी सरकार के कार्यक्रमों और उपलब्धियों के बारे में बात करनी पड़ी या विपक्ष के नैरेटिव का मुकाबला करने के लिए जाना पड़ा. लेकिन ये सांसद और विधायक जब राशन की दुकान से मालिक के ख़िलाफ़ शिकायत या थानेदार के ख़िलाफ़ शिकायत, भूमि राजस्व मामले के अधिकारी के ख़िलाफ़ शिकायत थी तब कही नहीं दिखे.

जिन पार्टियों में लोकप्रिय नेता होते हैं उसमें यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों और निर्वाचित प्रतिनिधियों में विश्वसनीयता की कमी होती है.

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सरकार को लोगों के दरवाज़े तक पहुंचाने के लिए अधिकारियों के साथ विभागीय मुख्यालयों का दौरा करके इसे संबोधित किया. उन्हें कई हज़ार शिकायतें मिलीं. उनमें से ज़्यादातर फाइलें धूल खा रही हैं. यह उनकी प्रमुख गलती में से एक थी जिसने उनके खिलाफ आक्रोश उत्पन्न कर दिया. कोई भी प्रतिनिधि लोगों की मदद करने के लिए नहीं था क्योंकि उनकी प्रशासन में कोई पहुंच ही नहीं थी.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर को नए राज्य बनने के लिए और उनकी सरकार की प्रचलित योजनाओं के लिए श्रेय दिया गया. वह अपनी लोकप्रियता को लेकर आत्मविश्वास से भरे हुए थे वे जल्द चुनाव कराने के लिए तैयार हुए. लेकिन अब रिपोर्टों से पता चला है कि केसीआर अचानक परेशान हो गए हैं उनके विधायकों के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर है. दोबारा उनको खुद पर ही दोष देना होगा. क्योंकि राजस्थान सरकार की तरह विधायकों और यहां तक की मंत्रियों के पास प्रशासन में कोई पहुंच नहीं थी.

भाजपा और केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस ) के निर्णय लेने वाले नेता अब विधायकों और सांसदों पर दोष मढ़ रहे हैं. लेकिन वे इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है.

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