होम राजनीति शिवपाल यादव की सदस्यता रद्द करने की याचिका सपा ने ली वापस,...

शिवपाल यादव की सदस्यता रद्द करने की याचिका सपा ने ली वापस, क्या फिर साथ आ सकते हैं ‘चाचा-भतीजे’

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने शुक्रवार को इसके संकेत भी दिए हैं. उन्होंने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में कहा, 'समाजवादी पार्टी किसी से गठबंधन तो नहीं करेगी लेकिन छोटी पार्टियों को 'एडजस्ट' कर सकती है.

news on politics
प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, फाइल फोटो । दिप्रिंट

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के परिवार में राजनीतिक सुगबुगाहट फिर से तेज हो गई है. दरअसल समाजवादी पार्टी की ओर से शिवपाल यादव की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की याचिका वापस लेने पर विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने मुहर लगा दी है.

सपा द्वारा याचिका वापस लेने के फैसले पर शिवपाल यादव ने कहा है कि वह फैसले का स्वागत करते हैं. वहीं आगे की रणनीति आने वाले समय में तय की जाएगी.

इसी के साथ अब ‘चाचा’ शिवपाल यादव की विधायकी सुरक्षित रहेगी लेकिन इस बीच राज्य में चर्चा तेज हो गई है कि क्या अखिलेश व शिवपाल फिर से साथ आ सकते हैं.

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने शुक्रवार को इसके संकेत भी दिए हैं. उन्होंने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में कहा, ‘समाजवादी पार्टी किसी से गठबंधन तो नहीं करेगी लेकिन छोटी पार्टियों को ‘एडजस्ट’ कर सकती है.

इसके आगे अखिलेश बोले कि ‘चाचा’ के साथ ‘लोकल एडजस्टमेंट’ किया जा सकता है. जसवंतनगर सीट पर उनकी पार्टी से एडजेस्टमेंट किया जा सकता है लेकिन इस बारे में निर्णय 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले लिया जाएगा.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई हैं. उन्होंने 2018 में सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाई थी. 2019 लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.

एकजुट हो सकता है यादव कुनबा

पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो नेताजी (मुलायम सिंह यादव) की इच्छा है कि फिर से अखिलेश-शिवपाल एक साथ होकर चुनाव लड़ें. वहीं पार्टी के रणनीतिकार भी ‘यादव’ वोट का बंटवारा नहीं होने देना चाहते. इसके अलावा शिवपाल को जमीनी राजनीति का काफी अनुभव भी है जिसका लाभ सपा को हो सकता है.


यह भी पढ़ें: ‘छत्तीसगढ़ के विकास की जब-जब चर्चा होगी अजीत जोगी का नाम पहले लिया जाएगा’


अखिलेश के बयान के बाद चाचा शिवपाल की ‘घर वापसी’ के कयास लगने लगे हैं. परिवार के एक सूत्र का कहना है कि अभी कुछ महीने और इंतजार करना पड़ेगा उसके बाद ही तस्वीर साफ होगी.

सत्ता के रहते ही बढ़ गई कलह

अखिलेश व शिवपाल के रिश्तों में कलह 2016 से बढ़ी. तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने उस दौर के चीफ सेक्रेट्री दीपक सिंघल को पद से हटा दिया जो कि शिवपाल व अमर सिंह के करीबी माने जाते थे. उसके बाद शिवपाल व उनके करीबियों से मंत्रालय छीन लिए गए. इसके बाद कलह इतना बढ़ गया कि एक दूसरे को हटाने की जोरआजमाइश चलती रही.

मुलायम सिंह यादव की ओर से रामगोपाल यादव को पहले हटाया गया, उसके अलावा अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाकर शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. एक दूसरे पर एक्शन लेने का ये सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. यहां तक पार्टी के सिंबल पर हक जमाने के लिए दोनों गुट (अखिलेश व शिवपाल) चुनाव आयोग चले गए. वहां से अखिलेश यादव को कामयाबी मिली. इधर कुछ हफ्तों बाद मुलायम सिंह की ओर से कहा गया कि पार्टी में अब सब ठीक है. वहीं 2017 में राज्य विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी हार गई. सत्ता जाने की वजह परिवार की आपसी कलह बताई गई.

2018 में शिवपाल यादव ने अलग होकर अपनी पार्टी बना ली. 2019 लोकसभा चुनाव में उन्होंने यूपी की लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक भी सीट हासिल नहीं कर पाए. इसके बाद नवंबर 2019 में मुलायम सिंह के जन्मदिन के मौके पर शिवपाल यादव ने अखिलेश के साथ वापस आने के संकेत दिए. उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि 2022 में अखिलेश मुख्यमंत्री बनें. दोनों पार्टियां साथ में चुनाव लड़ें.

सपा का संभावित प्लान

पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो समाजवादी पार्टी की ओर से भले ही कांग्रेस, बसपा से गठबंधन की बात नहीं की जा रही है लेकिन अजीत सिंह की आरएलडी, ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा के साथ गठबंधन संभव है. वहीं चाचा शिवपाल की पार्टी प्रसपा को भी इससे जोड़ा जा सकता है.


यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी का 74 वर्ष की उम्र में हुआ निधन


लखनऊ यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर कविराज की मानें तो राजनीति में सारी संभावनाएं खुल रहती हैं. छोटे दलों को साथ जोड़कर अगर सपा चलती है तो ये बेहतर रणनीति भी साबित हो सकती है.

उन्होंने कहा, ‘शिवपाल, अजीत सिंह, व राजभर के राजनीतिक एक्सपीरियंस का लाभ सपा को हो सकता है लेकिन अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. 2021 के अंतिम महीनों तक का इंतजार करना पड़ेगा तभी सभी राजनीतिक दल अपने पत्ते खोलेंगे.’

Exit mobile version