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भारत जोड़ो से जुड़ने से कतरा रहे हैं अखिलेश? कांग्रेस से गठबंधन के सवाल से क्यों बचना चाहते हैं सपा प्रमुख

सपा सूत्रों के अनुसार पार्टी नेतृत्व मानता है कि बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन करने से उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ जबकि बड़े दलों को सपा के सपोर्ट बेस से काफी फायदा मिला.

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव, फाइल फोटो.

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के कई नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में सपा प्रमुख अखिलेश यादव नहीं दिखना चाहते हैं क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले वह कांग्रेस के साथ नहीं नजर आना चाहते.

कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में कई विपक्षी पार्टियों को आमंत्रित किया है जिनमें यादव के सहयोगी, राष्ट्रीय लोक दल के जयंत चौधरी भी शामिल हैं. राज्य में 3 जनवरी से यात्रा शुरू होगी. हालांकि आरएलडी ने स्पष्ट किया है कि चौधरी इस यात्रा में शामिल नहीं हो सकते क्योंकि उस दौरान वह राज्य में नहीं होंगे.

यात्रा में शामिल होने के सवाल पर सीधा जवाब देने से बचते हुए मंगलवार को यादव ने संवाददाताओं से कहा, ‘एक कहावत है, ‘चंदूखाने की गप्प’…भावनात्मक तौर पर हम भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन करते हैं लेकिन सवाल यह है कि भाजपा को कौन हटाएगा.’

सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के अनुसार, पार्टी के कई कार्यक्रम पहले से ही तय हैं और कार्यक्रम में किसी भी बदलाव के बारे में वे कुछ नहीं कह सकते. हालांकि उन्होंने सपा प्रमुख के यात्रा में शामिल होने की संभावनाओं पर बोलने से मना कर दिया.

दिप्रिंट से बात करते हुए सपा नेता ने कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर वह किसी भी बात को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं. उन्होंने कहा, ‘पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने पहले कहा था कि उनका दल सभी छोटी पार्टियों से गठबंधन करेगी क्योंकि बड़े दलों के साथ उनका अनुभव अच्छा नहीं रहा है.’

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सपा के अखिलेश और आरएलडी के जयंत के अलावा कांग्रेस ने कई प्रमुख विपक्षी पार्टियों के नेताओं को आमंत्रित किया है जिनमें अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव, बसपा प्रमुख मायावती और सतीश चंद्र मिश्रा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) प्रमुख ओपी राजभर और सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल कुमार अंजान समेत अन्य नेता शामिल हैं.


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‘बड़ी पार्टियों की बड़ी उम्मीदे हैं लेकिन उनकी डिलिवरी धीमी है’

सपा सूत्रों के अनुसार पार्टी नेतृत्व मानता है कि बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन करने से उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ जबकि बड़े दलों को सपा के सपोर्ट बेस से काफी फायदा मिला.

उक्त सपा नेता ने कहा, ‘अगर आप 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन को देखें तो आपको पता चलेगा कि कांग्रेस 105 सीटों में से सिर्फ सात सीटें ही जीत पाई.’

वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सपा ने बसपा को अपने वोट ट्रांसफर किए लेकिन बसपा का वोट उसे नहीं मिला. सपा ने पांच सीटें जीती थी लेकिन उसका वोट शेयर 2014 के मुकाबले घटा. जबकि बसपा ने 10 सीटें जीती, जिसे 2014 में एक भी सीट नहीं मिली थी. सपा-बसपा महागठबंधन में बसपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी.

वहीं कांग्रेस सिर्फ एक लोकसभा सीट ही जीत पाई.

सपा नेता ने कहा, ‘बड़ी पार्टियों की उम्मीदें बड़ी होती हैं लेकिन उनकी डिलिवरी धीमी है. कांग्रेस के साथ जाने से सपा इसलिए इस बार लोकसभा चुनाव में जाने से कतरा सकती है.’

आरएलडी के जयंत चौधरी के एक नजदीकी ने दिप्रिंट को बताया कि वह यूपी में 4 जनवरी को आएंगे, इसलिए वह राहुल की यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे.

आरएलडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मोहम्मद इस्लाम ने दिप्रिंट को बताया कि उनका कार्यक्रम पहले से ही तय है. उन्होंने कहा, ‘इसलिए उनका इसमें शामिल होना मुश्किल है. हालांकि हम कांग्रेस को यात्रा के लिए शुभकामनाएं देते हैं.’

(अनुवाद: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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