होम राजनीति के चंद्रशेखर राव जीतेंगे या हारेंगे तेलंगाना के इतिहास का दूसरा मुकाबला?

के चंद्रशेखर राव जीतेंगे या हारेंगे तेलंगाना के इतिहास का दूसरा मुकाबला?

अलग राज्य बनने के बाद तेलंगाना में दूसरी बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. कांग्रेस ने तीन दलों से गठबंधन करके टीआरएस के सामने चुनौती पेश की है.

के चंद्रशेखर राव हैदराबाद में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए । फेसबुक

नई दिल्ली: तेलंगाना भारत के सभी राज्यों में सबसे कम उम्र का राज्य है जिसमें दूसरी बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. 2014 में राज्य के गठन के बाद हुए पहले चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने सरकार बनाई थी. इस बार उसके सामने अपना राजनीतिक साम्राज्य बचाने की चुनौती है.

119 विधानसभा सीटों वाले इस प्रदेश में एक चरण में मतदान हुआ. राज्य में करीब 2.61 करोड़ मतदाता हैं. सभी सीटों पर कुल मिलाकर 1821 प्रत्याशियों ने जोर आज़माइश की है. चुनाव संपन्न कराने के लिए राज्य में कुल 32,574 पोलिंग बूथ बनाए गए थे.

इससे पहले 2014 में विधानसभा चुनाव में तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति को 119 में 63, कांग्रेस को 21, तेलुगु देशम पार्टी को पंद्रह सीटें मिली थीं. एआईएमआईएम को 7 और भाजपा के हिस्से 5 सीटें आई थीं.

केसीआर के संक्षिप्त नाम से विख्यात मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने 6 सितंबर को समय से पहले विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दी थी, इसलिए राज्य में बाकी राज्यों के साथ ही चुनाव कराया गया. अगर केसीआर अपना कार्यकाल पूरा करते तो तेलंगाना में विधानसभा मई, 2019 में चुनाव होना था.

राज्य में सत्तारूढ़ टीआरएस टीआरएस के अलावा पीपुल्स एलायंस प्रमुख राजनीतिक ताकत है. पीपुल्स एलायंस नाम के इस गठबंधन में कांग्रेस के अलावा तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), तेलंगाना जन समिति और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी शामिल हैं.

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इसके अलावा भाजपा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आॅल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) भी राज्य में किंगमेकर बनने भर की हैसियत रखती हैं. राज्य की सात सीटों पर ओवैसी की पार्टी का खासा जनाधार है और उन्हें उम्मीद है कि वे इन सीटों पर अपनी पकड़ बनाए रखेंगे.

टीआरएस को उम्मीद है कि वह अपनी कल्याणकारी योजनाओं के दम पर चुनाव जीत लेगी. टीआरएस की योजनाएं किसान, महिला और युवाओं को केंद्र में थीं.

हालांकि कांग्रेस को आशा है कि राज्य में एक मजबूत गठबंधन के सहारे वह सत्ता में आ सकती है. कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने ही तेलंगाना राज्य का गठन किया था.

इन पार्टियों से अलग भाजपा ने राज्य में काफी आक्रामक प्रचार किया है. केंद्र के अलावा देश के 20 राज्यों में सरकार होने और मजबूत केंद्रीय नेतृत्व होने का फायदा भाजपा को राज्य में अपना पैर में हो सकता है. भाजपा कुछ सीटें हथियाने में कामयाब हो सकती है.

राज्य में विकास और भ्रष्टाचार मुख्य मुद्दा है. अब देखना है कि केसीआर अपना गढ़ बचा पाते हैं या गंवाते हैं.

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