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तीन राज्य, तीन गुना मुसीबतें: पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में क्यों खत्म नहीं हो रहा कांग्रेस का संघर्ष

जहां पंजाब कांग्रेस में फूट पड़ती दिखाई पड़ रही है, वहीं 10 जून के राज्य सभा चुनाव से पहले हरियाणा और राजस्थान इकाइयों की तीव्र गुटबाजी भी सामने आई है.

प्रतीकात्मक तस्वीर । एएनआई

नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि कांग्रेस उन तीन राज्यों- पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में संकट में है, जहां उसकी दावेदारी को अभी भी मजबूत माना जा रहा है.

पंजाब में पार्टी के भीतर फूट पड़ती दिखाई पड़ रही है, जहां इस साल की शुरुआत में उसे सत्ता गंवानी पड़ी थी. तो वहीं दूसरी तरफ 10 जून के राज्य सभा चुनाव से पहले पार्टी की हरियाणा और राजस्थान इकाइयों में भी तीव्र गुटबाजी सामने आई है.

हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा के विरोधी कथित तौर पर पार्टी के प्रयासों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. तो उधर राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बारे में कहा जा रहा है कि वे खरीद-फरोख्त की आशंका से उदयपुर के एक रिसॉर्ट में कांग्रेस के नेताओं को एक साथ बनाए रखने के लिए पसीना बहा रहे हैं.

राज्य सभा चुनावों में पार्टी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करना हुड्डा और गहलोत दोनों के लिए महत्वपूर्ण है.

हुड्डा के लिए ये और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कांग्रेस आलाकमान ने उनके विश्वासपात्र उदय भान को राज्य प्रमुख बनाते हुए हरियाणा इकाई की बागडोर तकरीबन उनके हाथों में थमा दी है.

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इस बीच गहलोत भारी दबाव में हैं. पार्टी सूत्रों ने बताया कि उनके प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान पर 2023 के राज्य चुनावों से पहले उन्हें सीएम बनाने का दबाव बना रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक अगर गहलोत राज्य सभा चुनाव में सफल नहीं होते हैं तो पायलट खेमा इसका इस्तेमाल अपने अभियान को तेज करने के लिए कर सकता है.

चुनाव को लेकर पार्टी के भीतर और पार्टी के बाहर जो चीजे चल रही हैं उससे कांग्रेस के अंदरुनी लोग वाकिफ हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने राज्य सभा चुनाव को एक ‘सफल न होने वाली घटना’ बताया और कहा कि टिकट वितरण से पता चलता है कि पार्टी एक ‘जागीर’ के रूप में चलाई जा रही है. वह पार्टी के भीतर असंतुष्ट ‘जी-23’ ग्रुप के सदस्य भी हैं.

नेता ने कहा, ‘सभी राज्य इकाइयों में बेहद असंतोष है क्योंकि बाहरी लोगों को नामित किया गया है और ये सभी बाहरी लोग गांधी मंडली का हिस्सा हैं. इन राज्यों के मुख्यमंत्री कमजोर नजर आ रहे हैं जबकि क्षेत्रीय नेता पार्टी की रीढ़ की हड्डी के रूप में उभर कर सामने आए हैं. आप इस तरह पूरे राज्यों का अपमान नहीं कर सकते.’

उन्होंने आगे कहा कि हुड्डा अब एकमात्र क्षत्रप हैं. जिनके आगे गांधी परिवार को झुकना पड़ा और हरियाणा से उम्मीदवार के रूप में सुरजेवाला (रणदीप) को न रखने की उनकी मांग पर संज्ञान लिया गया. उन्होंने कहा, ‘गांधी परिवार के लिए अब कोई भी लोकसभा सीट सुरक्षित नहीं है. इसलिए, उन्हें राज्य सभा में शरण लेने की जरूरत है और वे सदन में अपने सभी विश्वासपात्रों को बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.’

कांग्रेस के मुताबिक, पंजाब में पार्टी की हालत भी नेताओं को चुनते समय ‘उचित प्रक्रिया’ का पालन नहीं करने का नतीजा थी. उन्होंने कहा, ‘युवा नेताओं को ऐसे पद नहीं दिए जा सकते जिनके लिए वे तैयार ही नहीं हैं. उन्हें तरीके से आगे लाना चाहिए.’

वह इस साल की शुरुआत में राज्य में संगठनात्मक बदलाव का जिक्र कर रहे थे, जिसके जरिए एक युवा नेतृत्व को जगह दी गई थी. 44 साल के अमरिंदर सिंह राजा वारिंग को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया.


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पंजाब में पार्टी छोड़ने का सिलसिला

4 जून को पंजाब में पार्टी के चार पूर्व मंत्री बलबीर सिद्धू, गुरप्रीत कांगर, सुंदर शाम अरोड़ा और राजकुमार वेरका भाजपा में शामिल हो गए. इससे दो सप्ताह पहले ही पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सुनील जाखड़ ने भाजपा का हाथ थामा था.

यह देखते हुए कि पंजाब में भाजपा कोई बड़ी ताकत नहीं है, इन नेताओं के कांग्रेस छोड़कर उस पार्टी में शामिल होने का फैसला राज्य पार्टी नेतृत्व में बढ़ती निराशा को दर्शाता है.

नवंबर में पार्टी के दिग्गज कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाहर होने के बाद से कांग्रेस राज्य में बिना चप्पू वाली नाव के समान दिख रही है. ऊपर बताए गए चार पूर्व मंत्रियों में से तीन, सिद्धू, कांगड़ और अरोड़ा को अमरिंदर के निष्कासन के बाद राज्य मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई थी. पूर्व सीएम ने बाद में अपनी पार्टी बनाई और बीजेपी के साथ गठबंधन किया.

इससे पहले पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू को गांधी परिवार ने अमरिंदर को दरकिनार कर चुना था. उन्होंने पार्टी की गतिविधियों से खुद को दूर करना शुरू कर दिया और राज्य इकाई ने उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आह्वान किया था.

इसके बाद 2022 के चुनावों में अपनी पूर्वी अमृतसर सीट हारने वाले नेता सिद्धू को रोड रेज के 34 साल पुराने मामले में दोषी ठहराया गया और एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई.

कांग्रेस आलाकमान ने पिछले साल अमरिंदर की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का सीएम बनाया था लेकिन पार्टी इस साल राज्य के चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) से हार गई.

चन्नी, जिन्हें कभी कांग्रेस के दलित चेहरे के रूप में दिखाया गया था, को कोई अन्य कार्यभार नहीं सौंपा गया है. पंजाब कांग्रेस ने विफल संगठन को मजबूत करने के तरीके खोजने के लिए एक ‘चिंतन शिविर’ भी आयोजित किया.

इस मुद्दे पर बोलते हुए राजनीतिक विश्लेषक संजय झा ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व को सबक सीखना चाहिए और ‘राज्यों के स्थानीय मुद्दों में हस्तक्षेप करना बंद कर देना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘जब तक कैप्टन अमरिंदर को हटाया नहीं गया, वह मैदान में डटे हुए थे. हो सकता है कि उन्होंने पिछली बार की तुलना में कम सीटें मिलतीं लेकिन निश्चित तौर पर राज्य आम आदमी पार्टी के पास नहीं जाता. अब हरियाणा को देख लिजिए. अगर भूपेंद्र हुड्डा को पहले पूर्ण प्रभार मिला होता, तो कांग्रेस 2019 में राज्य जीत सकती थी.’

वह आगे कहते हैं, ‘यदि आप राजस्थान पर नजर घुमाएंगे तो पता चलेगा कि आपने एक बार फिर, सचिन पायलट को एक क्षेत्रीय नेता के रूप में प्रोत्साहित किया है. उन्होंने राज्य में भाजपा की लहर के खिलाफ पांच साल काम किया और उसके बाद क्या?’

दलबदल करने वाले पंजाब के चार पूर्व मंत्रियों को लेकर राज्य का नया कांग्रेस नेतृत्व यह दिखाने की कोशिश है जैसे वे उनके लिए कोई मायने नहीं रखते थे.

वारिंग ने कहा कि वह उनके जाने के लिए ‘आभारी’ है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘भाजपा में शामिल होने के लिए शुभकामनाएं. आभारी हूं कि पार्टी में सभी विशेषाधिकारों का आनंद लेने वाले ‘अभिजात वर्ग’ ने सामान्य पृष्ठभूमि वाले युवा नेतृत्व के लिए जगह खाली कर दी है.’


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हरियाणा में भी फूट पड़ी

कांग्रेस को लगता है कि राजस्थान और हरियाणा में एक राज्य सभा सीट के लिए उसकी तलाश दो मीडिया दिग्गजों– राजस्थान में सुभाष चंद्रा और हरियाणा में कार्तिकेय शर्मा- के आने से मुश्किल होती नजर आ रही है.

दोनों को भाजपा का समर्थन मिला हुआ है. इन सीटों के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार क्रमश: प्रमोद तिवारी और अजय माकन हैं.

इन चुनावों में क्रॉस वोटिंग से बचने के लिए पार्टी ने दोनों राज्यों के अपने सभी विधायकों को इकट्ठा किया और उन्हें लग्जरी रिसॉर्ट में भेज दिया है. वहां उन पर कड़ी नजर रखी जा रही है. राजस्थान के विधायकों को जहां उदयपुर में रखा गया है, वहीं हरियाणा के विधायकों को रायपुर के बाहरी इलाके के एक रिसॉर्ट में ठहराया हुआ है.

हरियाणा में कांग्रेस के भीतर अंदरूनी लड़ाई चल रही है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुलदीप बिश्नोई रिकॉर्ड पर यह कहते हुए पार्टी के रुख से खुद को दूर कर रहे हैं कि जब राज्य सभा चुनावों में मतदान करने की बात आएगी तो वह ‘अपनी आंतरिक आवाज का पालन करेंगे.’

बिश्नोई दो अन्य विधायकों किरण चौधरी और चिरंजीव राव के साथ हरियाणा के अन्य विधायकों के साथ रायपुर रिसॉर्ट में नहीं गए हैं.

जबकि चौधरी ने कथित तौर पर कहा है कि वह एक वरिष्ठ नेता हैं. उन्हें यहां से वहां ले जाने की जरूरत नहीं है. पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, राव अपना जन्मदिन मना रहे थे और जल्द ही ग्रुप में शामिल हों जाएंगे.

हरियाणा से राज्य सभा की दो सीटों पर मतदान होने जा रहा है, जिसमें से कांग्रेस के पास सिर्फ एक जीतने की संभावना है. पार्टी को अपने पक्ष में वोट करने के लिए 31 विधायकों की जरूरत है. और 90 सदस्यीय सदन में उसके पास 31 विधायक मौजूद हैं.

रायपुर में पत्रकारों से बात करते हुए सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि कांग्रेस के जितने विधायक हैं, उससे ज्यादा वोट मिलेंगे. वह बताते हैं, ‘सभी विधायक हमारे साथ हैं. कांग्रेस की ओर से नहीं बल्कि बीजेपी और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) की तरफ से क्रॉस वोटिंग होगी.

यह पता चला है कि कार्तिकेय शर्मा के पिता पूर्व कांग्रेसी विनोद शर्मा और कुलदीप बिश्नोई के बीच पुराने संबंध हैं.

2014 में कांग्रेस छोड़ने के बाद विनोद शर्मा ने जन चेतना पार्टी (जेसीपी) का गठन किया था. उस साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले बिश्नोई ने शर्मा और जेसीपी से हाथ मिलाने के लिए भाजपा से नाता तोड़ लिया था. बिश्नोई उस समय हरियाणा जनहित कांग्रेस (एचजेसी) के संस्थापक-प्रमुख थे.

कहा जा रहा है कि हरियाणा कांग्रेस के भीतर शर्मा का पुराना दबदबा और हुड्डा खेमे के करीबी नेताओं, बिश्नोई खेमे और सुरजेवाला, कुमारी शैलजा आदि के नेतृत्व में पार्टी के अन्य खेमों के नेताओं के साथ करीबी संबंधों के चलते कांग्रेस चिंतित है.


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राजस्थान में असंतोष के बीच नजरें ‘निर्दलीय उम्मीदवारों’ पर

राजस्थान में 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 108 विधायक हैं. राज्य सभा की प्रत्येक सीट जीतने के लिए 41 वोटों की जरूरत है. इसका मतलब यह है कि कांग्रेस के पास राज्य सभा की चार में से दो सीटें जीतने के लिए पूर्ण संख्या है, जबकि 71 विधायकों के साथ भाजपा एक सीट के लिए आश्वस्त है.

चूंकि बीजेपी और कांग्रेस के पास क्रमश: 30 और 26 वोट बचे हैं, सभी की निगाहें चौथी सीट पर हैं क्योंकि एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन और ज़ी टीवी के संस्थापक सुभाष चंद्रा कांग्रेस के प्रमोद तिवारी को कमजोर कर सकते हैं. मीडिया दिग्गज जिनका हरियाणा से राज्य सभा सांसद के रूप में कार्यकाल अगस्त में खत्म होने वाला है, भाजपा की मदद से निर्दलीय के रूप में एक और कार्यकाल की मांग कर रहे हैं.

इसका मतलब है कि 13 निर्दलीय विधायक चौथी सीट के भाग्य का निर्धारण करने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे. साथ ही राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी), राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी, सीपीआई-एम) जैसे छोटे दलों के अन्य आठ विधायक की भूमिका भी कम नहीं होगी. मतलब साफ है कि विधायक का हर वोट राजस्थान में कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण होगा.

पार्टी के सूत्रों ने बताया कि चुनाव से पहले 108 विधायकों के अलावा, पार्टी 17 और विधायकों को- कुल 125 में से- उदयपुर के ताज अरावली रिज़ॉर्ट में इकट्ठा करने की योजना बना रही है.

हालांकि राज्य सभा चुनाव कांग्रेस के लिए ऐसे उथल-पुथल भरे समय में आया है, जहां पिछले कुछ हफ्तों में कम से कम चार पार्टी विधायकों और एक निर्दलीय ने राजस्थान में गहलोत सरकार के खिलाफ आवाज उठाई है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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