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मुख्यमंत्री फडनवीस का ‘वार रूम’ प्रोजेक्ट्स में आ रहे धीमापन के खिलाफ लड़ रहा जंग

अलग-अलग ऐजेंसियों को एक मंच पर लाकर मुख्यमंत्री फडनवीस इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर दे रहें विशेष ध्यान. परिणाम: परियोजनाओं के कार्यान्वयन में आई तेजी.

मुंबई: मुंबई मेट्रो परियोजना के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी लेने से लेकर जमीन के मुआवजों से जुड़े विवादों के निबटारे तक तमाम मामलों पर अहम फैसले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने अपने ‘वार रूम’ (रण कक्ष) के बंद दरवाजों के पीछे लिये हैं. इस वार रूम का गठन राज्य में बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं को आगे बढ़ाने और तय समयसीमा के भीतर पूरा करने के लिए किया गया था.

महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के तीन साल पूरे होने पर ‘दिप्रिंट’ ने इस कक्ष की बैठकों के ब्यौरों को सूचना के अधिकार के कानून के तहत हासिल किए और उनका विश्लेषण किया. अक्टूबर 2015 से अक्टूबर 2017 के बीच यहां हुई छह बैठकों में फडनवीस ने बुनियादी ढांचे की करीब 30 परियोजनाओं की समीक्षा की और उन्हें तेजी से आगे बढ़ाने के उपाय किए.

‘‘मुख्यमंत्री के ओएसडी कौस्तुभ धावसे ने ‘दिप्रिंट’ से कहा, ‘‘सभी फैसले महत्वपूर्ण पीरयोजनाओं के हित में किए गए हैं जिन्हें गति देने की जरूरत है.’’ धावसे मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव प्रवीण परदेसी के साथ वार रूम का कामकाज देखते हैं. उन्होंने कहा कि ये सभी परियोजनाएं बहुत खर्चीली हैं और इन पर फैसले करने की आंतरिक प्रक्रिया में समय लगता है. ‘‘वार रूम मुख्यमंत्री के लिए बड़ा प्रशासनिक प्लेटफॉर्म बन गया है. इसने किसी फैसले के लिए विभिन्न विभागो के बीच फाइलों के भटकाव को रोका है.’’

वार रूम

मुंबई में तमाम तरह की एजेंसियों की मौजूदगी बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर फैसले में देरी का कारण बनती हैं. इस कारण वार रूम की जरूरत इसलिए महसूस की गई ताकि उन सबको एक मंच पर लाया जा सके और जवाबदेही तय की जाए.

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मुख्यमंत्री का वार रूम निजी क्षेत्रों के व्यक्तियों के एक स्वयंसेवी संगठन ‘मुंबईफस्र्ट’ और अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंसी फर्म मॅकिंसे ने नवबंर 2014 में फडनवीस के विस्तार से एक प्रस्ताव दिया कि मुंबई में तमाम तरह की एजेंसियों को एक मंच पर लाया जाए. वार रूम की पहली बैठक मई 2015 में हुई. इन दोनों संगठनों ने इसका कामकाज आगे बढ़ाने में सरकार की मदद की और पहले छह महीने में प्रक्रियाओं को निश्चित कर दिया. मुख्यमंत्री कार्यालय ने पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई परिय¨जनाओं की समीक्षा की और तय किया कि किन्हें फास्ट ट्रैक पर डाला जाए. इनमें कुछ नई परियोजनाओं को जोड़कर ऐसी 30 परियोजनाओं को चुना गया जिन पर वार रूम को नजर रखनी है. मुख्यमंत्री के लिए एक नया मोबाइल एप विकसित किया गया जिसकी मदद से वे इन चालू परियोजनाओं पर करीबी नजर रख सकें. अगर किसी परियोजना पर लाल बत्ती जल रही है तो इसका मतलब है कि उसे कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में मुख्यमंत्री प्रभारी अधिकारी से सीधे बात कर सकते हैं या संदेश भेज सकते हैं. अगर हरी बत्ती जल रही है तो इसका अर्थ है कि उसका रास्ता साफ है.

दक्षिण मुंबई में राज्य सचिवालय के मंत्रालय भवन की सातवीं मंजिल पर स्थित वार रूम का प्रबंध धावसे तथा परदेसी के नेतृत्व में 10-12 युवा इंजीनियरों तथा एमबीए ग्रेजुएट्स की टीम करती है, जो मुख्यमंत्री के इंटर्नशिप प्रोग्राम के हिस्से हैं. धावसे कहते हैं, ‘‘शुरू में कुछ प्रतिरोध का सामना करना पड़ा लेकिन एक बार जब अधिकारियों को पता चल गया कि उनकी परियोजनाओं को मंजूरी मिलने में तेजी आ रही है तो उनमें से 80 प्रतिशत संतुष्ट हो गए.’’

‘मुंबईफस्र्ट’ के पूर्व चीफ एक्जक्युटिव शिशिर जोशी ने, जो वार रूम की स्थापना में सक्रिय भागीदारी कर रहे थे, कहा, ‘‘कई फैसलों में विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों की भागीदारी आदर्श स्थिति मानी जाती है, ऐसे फैसले अब वार रूम में किए जाने लगे हैं. यह वार रूम अपने आप में एक सत्ता केंद्र, निर्णायक संस्था बन गया है.’’

कुछ साहसिक फैसले

विदर्भ क्षेत्र से आने वाले फडनवीस ने जब सत्ता संभाली थी तब उनके लिए महत्वपूर्ण था कि वे इस क्षेत्र की सिंचाई परियोजनाओ पर विशेष ध्यान दें. भाजपा इन परियजनां की सुस्त गति के लिए कांग्रेस- एनसीपी सरकार को कोसती रहती थी. मई 2017 की एक बैठक में फडनवीस ने अतिरिक्त मुख्य वित्त सचिव को निर्देश दिया कि जल संसाधन विभाग को अतिरिक्त 2000 करोड़ रुपये या तो पूरक बजट के तहत या सिंचाई बोंड के जरिए उपलब्ध कराए जाएं क्योंकि अधिकारियों ने इसकी जरूरत बताई थी.

इसी तरह, मुख्यमंत्री ने गोसीखुर्द और बेंबला सिंचाई परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त जमीन खरीदने के आदेश दिए. बेंबला के मामले में अक्टूबर 2015 में हुई बैठक के ब्यौरे बताते हैं कि ‘‘अमरावती में जमीन की सीधी खरीद के बकाया काम को रेडी रेकॉनर दर से 3.75 गुना ज्यादा देकर तेजी से पूरा किया जाए.’’ फरवरी 2016 की बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि जमीन के मुआवजों के अधिकतर मामलों को लोक अदालत आदि का सहारा लेकर अदालतों के बाहर निबटाया जाए. एक अन्य बैठक में उन्होंने लटकी पड़ी परियोजनाओ के लिए जमीन की सीधी खरीद की कसौटियों को आसान बनाने का फैसला किया. फैसला किया गया कि इसके लिए केवल पिछले 15 वर्ष के भूमि रेकॉर्ड के आधार पर ही जमीन की मिल्कियत तय की जाए, न कि 1950 के बाद के रेकॉर्डों के आधार पर जोकि अब तक होता रहा है.

मेट्रो परियोजना में 33.5 किमी कोलाबा-सीपेज भूमिगत लाइन को लेकर समस्याओं को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री ने कुछ फैसले फटाफट किए हैं. इस लाइन को लेकर राजनेताओं और आंदोलनकारियों की अोर से अड़ंगे लगाए जा रहे हैं, खासकर आरे के हरित क्षेत्रों में प्रस्तावित कार डिपो बनाए जाने को लेकर. इस लाइन के लिए सुरंग की खुदाई चल रही है और अधिकारियों को उम्मीद है कि 2021 की समयसीमा में परियोजना पूरी हो जाएगी.

फरवरी 2016 की बैठक के ब्यौरे के अनुसार परियोजना लागू करने वाली एजेंसी को निर्देश दिया गया है कि वह आरे के हरित क्षेत्रों में कार डिपो को रद्द करने और बोरिवली नेशनल पार्क में मेट्रो के लिए काम करने की अनुमति लेने के लिए का आवेदन करे. नवंबर 2016 की बैठक में फडनवीस ने महाराष्ट्र कोस्टल जोन ऑथरिटी को निर्देश दिया गया कि वह दो मेट्रो स्टेशनों के प्रस्ताव क¨ केंद्र के पास न भेजे और उसे ‘‘राज्य स्तर पर ही मंजूरी दे’’, जैसा कि केंद्र ने ऐसे ही एक मामले में पहल निर्देश दिया है.

मुख्यमंत्री ने दो परियोजनाओं- कोस्टल रोड और सी लिंक- के बीच के विवाद को भी निबटाया. इन परियोजनाअों को दो अलग-अलग एजेंसियां पूरी करने वाली हैं. मुख्यमंत्री ने दोनों की गुंजाइश बनाते हुए एक वित्तीय मॉडल भी तैयार करवाया.

‘मुंबईफस्र्ट’ के अध्यक्ष नरिंदर नैयर ने कहा, ‘‘पहले, परियोजना को लागू करने में ही बड़ी समस्या आती थी. सच कहूं तो, यह अच्छी बात है कि मुख्यमंत्री तेजी से फैसले कर रहे हैं. इन परियजनाओं को अभी भी अपेक्षित तेजी से लागू नही किया जा रहा है. बहरहाल, अच्छी बात यह है कि उन पर विचार किया जा रहा है और काम आगे बढ़ रहा है.’’

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