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एक ‘घृणास्पद साजिश’ जो लम्बे समय से कर रही है बाबा रामदेव की नाक में दम

बाबा रामदेव
बाबा रामदेव का फाइल फोटो| फेसबुक

“गॉडमैन से टाइकून” पुस्तक से – प्रियंका पाठक-नारायण बाबा रामदेव के सहयोगियों में से एक सहयोगी की संदिग्ध मौत के बारे में लिखती हैं, यह अनकही कहानी आज भी योग गुरू बाबा रामदेव का पीछा कर रही है।

बाबा रामदेव के साथ में हमेशा एक आदमी खड़ा रहा, राजीव दीक्षित नाम का यह व्यक्ति भारत स्वाभिमान आंदोलन का राष्ट्रीय सचिव था। जैसा कि पहले बताया गया था, रामदेव को भारत स्वाभिमान आंदोलन को एक पूर्ण राजनीतिक दल में बदलने की उम्मीद थी, जो कि (भारत स्वाभिमान आंदोलन) तकनीकि रूप से एक ट्रस्ट है। रामदेव की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के साथ, राजीव दीक्षित का महत्व और भी बढ़ गया। दीक्षित रामदेव के सामाजिक राजनीतिक संदेशों के सलाहकार और वास्तुकार के रूप में सभी कार्यवाहियों के प्रमुख व्यक्ति थे। बालकृष्ण और राम भरत को राजीव दीक्षित से परेशानी होने लगी, जो एक काफी शिष्ट और दूसरों से भी बेहतर, शिक्षित लेकिन बाहरी था। इन लोगों ने सलाहकारों के रूप में अपनी स्थिति का उपयोग किया और रामदेव के भरोसेमंद राजनीतिक सलाहकार बन गए।

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पार्टी की स्थापना के कुछ समय बाद ही, सितंबर 2010 में, पार्टी की सदस्यता बढ़ाने के लिए रामदेव और दीक्षित ने भारत स्वाभिमान यात्रा की योजना बनाई, इसमें दोनों नेता देश के विभिन्न जिलों में अपने आंदोलन और उसके लक्ष्यों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार हो गए।

लेकिन दीक्षित इस बात से अनजान नहीं थे कि हरिद्वार में उनकी उपस्थिति और रामदेव से निकटता अप्रियता उत्पन्न कर रही थी। राजीव दीक्षित के लंबे समय से सहयोगी रहे मदन दुबे, जो आजादी बचाओ आंदोलन को बढ़ावा दे रहे थे, कहते हैं कि “उसको जरूर परेशान होना चाहिए…क्योंकि जब जुलाई 2010 में मैंने उससे भारत स्वाभिमान आंदोलन का सदस्य बनने के लिए कहा था तो उसने मुझे इंतजार करने के लिए कहा था। उसने मुझे बताया कि वह इस बात को लेकर निश्चित नहीं था….इससे मुझसे लगा कि जरूर कुछ तो चल रहा है।“

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रामदेव और राजीव दीक्षित द्वारा अपनी पार्टी को समर्थन देने के लिए देश भर में चलाई गई भारत स्वाभियान यात्रा के दो महीने बाद, 30 नवंबर 2010 राजीव दीक्षित की मौत हो गई। उनकी मौत उनके तैंतालीस वें जन्म दिन पर हुई थी। छत्तीसगढ़ से दूर स्थित शहर बेमेतरा में बने आर्य समाज गेस्ट हाउस के बंद बाथरूम में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हुई थी, वहाँ वह एक भाषण देने के लिए गए हुए थे। हालांकि उनको जल्द ही पास के अस्पताल में ले जाया गया, जहाँ उनकी रात को मौत हो गई। रामदेव के अनुसार, दीक्षित ने स्थानीय चिकित्सक द्वारा निर्धारित दवाएं लेने से इंकार कर दिया था।

प्रदीप दीक्षित कहते हैं कि, “जब भारत स्वाभिमान आंदोलन के कार्यकर्ताओं, जो राजीव के साथ थे, ने राजीव को अस्पताल ले जाते समय मुझे बुलाया। लेकिन मैं राजीव से बात न कर सका क्योंकि वहां लोगो ने बताया कि वह बात करने की स्थिति में नहीं थे। अगली सुबह जब जल्द ही मैं वहाँ पहुँचा, तब तक मेरा भाई मर गया था।“

लेकिन आस्था चैनल पर संबोधित करते हुए बाबा रामदेव ने कहा कि जब दीक्षित के साथ बेमेतरा में मौजूद नहीं थे, तब उन्होंने दीक्षित से फोन पर बात की थी। इतना ही नहीं उन्होंने दीक्षित की खराब तबीयत के बावजूद और उपचार के दौरान एक घंटे तक दीक्षित से बात की, “मैं करीब एक घंटे इनको समझाता रहा, एक घंटे तक! भाई राजीव अब शरीर में दिक्कत आ रही है तो…उनको शायद यह जेनेरिक बीमारी थी…बीपी की, शुगर की, दिल की….तीनों।“

प्रदीप दीक्षित अब आश्चर्यचकित होने के बजाय कुछ नहीं कर सकते हैं- रामदेव के लोगों ने बताया था कि वह फोन पर बात करने की स्थिति में नहीं हैं, तो वे रामदेव के साथ उपचार के दौरान करीब एक घंटे तक बातचीत करने में कैसे सफल रहे? उन्होंने बताया कि उनका भाई किसी भी बीमारी से पीड़ित नहीं था, और उसने शुगर, रक्तचाप या दिल की समस्याओं के लिए कभी भी दवा नहीं ली थी।

दीक्षित की मौत के बाद रामदेव ने उनके परिवार से फोन पर बात की और अनुरोध किया कि वह दीक्षित को सम्मानित करने के उन्हें गंगा के तट पर अंतिम संस्कार की व्यवस्था करने दें। परेशान परिवार ने रामदेव की योजना पर हामी भर दी। इसलिए, दीक्षित के मृत शरीर को वापस वर्धा लाने के बजाय एक और उड़ान भर के चार्टर्ड विमान से सीधे हरिद्वार पहुँचा दिया गया।

दुबे याद दिलाते हैं कि दीक्षित का मृत शरीर देखने वालों को कुछ परेशान कर रहा थाः दीक्षित का चेहरा कुछ बदला-बदला या अपरिचित लग रहा था…एक अजीब बैंगनी और नीला रंग। त्वचा कुछ उधड़ी सी लग रही थी। उनकी नाक के आस-पास नीले या काले रंग का खून लगा था। दीक्षित की अचानक मौत और शरीर के अजीब रंग को लेकर लोगों में अफरा तफरी मच गई। जैसे-जैसे लोग बढ़ते गए, दीक्षित की अचानक मौत पर साजिशों की बात होने लगी। जल्द ही लोगों ने पोस्टमार्टम की जरूरत पर चर्चा शुरू कर दी।

आखिरकार दुबे ने जोर से कहा कि लोग चुपके-चुपके क्या बात कर रहे थेः“क्या यहाँ पर कोई धोखा हुआ है…..मैं जानना चाहता हूँ कि यदि किसी को कुछ गलत लगता है तो पोस्टमार्टम किया जाना चाहिए।“

उन्होंने अंतिम संस्कार से पहले पोस्टमार्टम की माँग करने वालों से, रामदेव को संबोधित याचिका पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा। रात भर में करीब पचास लोगों के इस पर हस्ताक्षर हो गए थे।

अगली सुबह छः बजे, कोहरे में नौ लोगों का समूह रामदेव के पास याचिका लेकर गया, जहाँ एक सुरक्षाकर्मी द्वारा उनको अंदर जाने से रोक दिया गया, उस दो मंजिला इमारत मेंजिसमें रामदेव रहते थे। दुबे ने गार्ड से कहा, “ठीक है अंदर जाइये और बाबा जी को बता दीजिए कि अगर वह हम लोगों से नहीं मिलते हैं तो दीक्षित के मृत शरीर का अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।“

अंत में, रामदेव 7.30 बजे एक बैठक करने के लिए मान गए और उन्होंने दुबे तथा उनके सहयोगियों को अन्दर बुलाया लेकिन ‘उनके सेलफोन उनके पास से ले लिये गए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि उन्होंने अपने फोन में कुछ भी रिकॉर्ड नहीं किया है, दुबे याद करते हैं एक डर को, जिसको किरीत मेहता द्वारा बाबा रामदेव के साथ एक निर्णायक बातचीत के दौरान उल्लिखित किया गया था।

दुबे रामदेव के सबसे करीब बैठे–उन्हें अपनी पार्टी का वक्ता बनाया गया। दुबे कहते हैं कि मैंने पोस्टमॉर्टम के लिए पचास लोगों द्वारा हस्ताक्षरित याचिका को उन्हें सौंप दिया।दुबे के अनुसार, इस तरह की बैठक की सच्चाई सामने आई
रामदेव ने दुबे से कहा, ‘तो तुम क्या चाहते हो?’

दुबे ने जबाब दिया,’हम सभी आजादी बचाओ आंदोलन के संरक्षक हैं और हम पोस्टमॉर्टम चाहते हैं।’

‘यह मौत तो प्राकृतिक है, इसके लिए पोस्टमार्टम की क्या जरूरत?‘

‘हमें अपने कुछ संदेह हैं। इसलिए, पोस्टमॉर्टम हो जाने दीजिये। यह बहुत स्पष्ट है।’

‘लेकिन मैंने स्वयं डॉक्टरों से बात की है। मेरे पास डॉक्टरों की रिपोर्ट है, जिसमें वह सब कुछ है जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट में

होना चाहिए, इस रिपोर्ट के अनुसार दिल का दौरा पड़ जाने से दीक्षित की मौत हुई है।’

‘हमें इस रिपोर्ट पर विश्वास नहीं है। हम पोस्टमॉर्टम चाहते हैं।‘

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उस समय दुबे की बातें सुनकर रामदेव का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उन्होंने यह कहते हुए कि पोस्टमॉर्टम ‘हिंदू धर्म‘ के खिलाफ है, उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की। लेकिन दुबे ने इस बात को नकारते हुए कहा कि क्या [राजीव दीक्षित] का कोई धर्म नहीं था। उनका धर्म देश के प्रति उनकी सेवा थी। उन्होंने कभी भी खुद को किसी भी धर्म का व्यक्ति नहीं कहा। इसलिए आप हिंदू धर्म के बारे में चिंता न करिए और पोस्टमॉर्टम करवाइए। इससे सब कुछ पानी की तरह साफ हो जाएगा जो मेरे लिए भी अच्छा है और आपके लिए भी। अन्यथा, उँगलियाँ उठती रहेंगी…….‘

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यह दुबे के इस तर्क के साथ था कि वह अब उनका भंड़ा फोड़ देंगे –‘आपके कुछ लोगों के साथ राजीव दीक्षित का झगड़ा हुआ था,सच है ना? आपके लोग उसके साथ भेद-भाव करते थे, यह भी सच है या नहीं? मुझे पता है कि वे परेशान थे कि राजीव दीक्षित जैसे कुछ बाहरी लोग कहीं से आकर भारत स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय सचिव बन गए। उन्हें इस बात की ईर्ष्या थी कि हजारों लोग राजीव से मिलने आते थे।’

दुबे कहते हैं कि इसके बाद करीब एक घंटे तक बातचीत चली। आखिरकार, रामदेव ने कहा ठीक है हम सब हॉल में चलें जहाँ दीक्षित का शव रखा है और वहाँ चलकर उन लोगों से और दीक्षित परिवार से तथा उनके संबंधियों से बात करते हैं। यह विचार तर्कसंगत लग रह था।

लेकिन रामदेव अपनी कार में अपने लोगों के साथ बैठे और चले गए, दुबे और उनकी पार्टी के अन्य लोग हॉल तक पैदल चल कर गए, जो कि बीस मिनट की पैदल दूरी पर था।दुबे और कंपनी के वहाँ पहुंचने से पहले, नाराज रामदेव हॉल में गए, माइक्रोफोन को पकड़ते हुए उन्होंने कहा कि ‘कुछ लोग मुंबई से आए हैं। वे मुझसे दीक्षित का पोस्टमॉर्टम कराने के लिए कह रहे हैं…. मृत शरीर के साथ छेड़-छाड़ करने की अनुमति हिन्दू धर्म में नहीं है फिर भी।’

हॉल में मौजूद शोक करने वालों में से एक, हरियाणा के डॉ. सुमन जो भारत स्वाभिमान आंदोलन और राजीव दीक्षित के काम से निकटता से जुड़े थे, ने खड़े होकर कहा, ‘तो आप इस शव का [पोस्टमॉर्टम] क्यों नहीं करवा देते ? ‘खुले तौर पर सवाल पूछने के दौरान रामदेव बहुत नाराज थे और कोई भी जवाब देने के मूड़ में नहीं थे।

अपने लोगों की ओर मुड़ते हुए, उन्होंने आदेश दिया, कि ‘शव के अंतिम यात्रा की तैयारी की जाए।’ श्मशान घाट पर जाने का समय मूल रूप से सुबह 11 बजे निर्धारित किया गया था, अभी नौ ही बजे थे।रामदेव के लोगों ने शव को अंतिम संस्कार के लिए तैयार कर लिया, शव को जल्दी ही एम्बुलेंस पर लदवा लिया गया और श्मशान घाट पर जाने के लिए तैयार हो गए।’हम अपने घर से निकलने के बाद हॉल में बस पहुंचे ही थे, जब हमने राजीव भाई के शव को एम्बुलेंस पर लदे हुए देखा, तो हमने दुबे को याद किया। ‘हमने घबराते हुए एम्बुलेंस को रोकने की कोशिश की क्योंकि हम जानते थे कि एक बार शरीर का अंतिम संस्कार हो जाने के बाद पोस्टमॉर्टम नहीं हो सकता, हमारे सवालों का कोई भी जवाव नहीं दिया गया, दीक्षित की आवाज अभी भी न्याय की माँग कर रही है।

जैसा कि काफिला शव को शम्शान घाट तक ले गया, जहाँ हजारों लोग पहले से ही इकट्ठा थे, रामदेव अचानक प्रदीप दीक्षित की तरफ मुड़े और कहा, ‘देखो, अगर आप चाहें, तो हम पोस्टमॉर्टम करवा सकते हैं।’

दीक्षित ने अचंभित होकर कहा, ‘स्वामीजी, ये सभी लोग पहले से ही यहाँ पर मौजूद हैं। आपने हम सभी लोगों से पोस्टमॉर्टम ना कराने के लिए कहा था। अब इस बारे में बात करने का कोई मतलब ही नहीं है, है ना?

जब पूछा गया कि मैंने उससे ऐसा क्यों कहा, तो प्रदीप दीक्षित ने बताया, ‘मुझे क्या कहना चाहिए था मैं नहीं समझ पाया? हर कोई शम्शान घाट पहुंचा था। मुझे नहीं पता था कि कहना क्या है… लोग मेरे लिए कई प्रकार की बातों की कानाफूसी कर रहे थे।अगर वे सच कह रहे थे तो क्या गारंटी है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को खरीदा नहीं जाएगा?…… मैं उन्हें अपमानित करने के मूड में नहीं था।’

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उस दिन से शुरू हुई अफवाहें तब से आज भी बाबा राम देव का पीछा कर रही हैं। कई अवसरों और प्रेस कॉन्फ्रेसों पर, आस्था चैनल में लोगों के सामने उन्हें गैर जिम्मेदार, बुरा षड्यंत्रकारी कहा जा रहा है।

राजीव दीक्षित के अजीज दोस्त और सलाहकार दुबे कहते हैं कि वह अपनी आखिरी सांस तक अपने श्मशान वाली बात को लेकर पछतावा करेंगे। ‘अंतिम संस्कार के बाद,जब राजीव भाई के लैपटॉप और उनके दो फोन को उनके परिवार को वापस लौटाया गया, तो उन्होंने पाया कि सभी तीन उपकरणों के डेटा को पूरी तरह से डिलीट कर दिया गया था। तीन उपकरणों का सारा डेटा मिटा दिया गया था। मैंने हरिद्वार में राजीव जी के कमरे को एक लुटी हुई बर्बाद स्थिति में देखा जैसे उनकी मृत्यु के बाद उनके कमरे से गायब चीजें और दस्तावेज…. मुझे पूरी तरह से यकीन है कि राजीवभाई की मौत के पीछे जरूर किसी न किसी का हाथ है….. मुझे यह पता है। मैंने शव को देखा। ‘उन्होंने जोर देकर कहा, मैं यह कहने से कभी नहीं रुकूंगा।

यह लेख गॉडमैन टू टाइकून: द अनकॉल्ड स्टोरी ऑफ बाबा रामदेव पुस्तक से लिया गया था। यह प्रियंका पाठक-नारायण द्वारा लिखी गई थी और जुगर्नॉट किताबों द्वारा प्रकाशित की गई था।

1 टिप्पणी

  1. Ramdev jo baba hone ka dhong krta h dusro ke gyan ko churata h ka ek na ek din bhanda fod hona chahiye . dekhna ek din aisa jaroor aayga ki rajiv dixit bhai ko justice jaroor milaga….
    Rajiv bhai❤?

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