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क्या वजह है कि योगी आदित्यनाथ भाजपा के बाकी मुख्यमंत्रियों के लिए रोल मॉडल बन गए हैं

यूपी में भाजपा को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर ले जाने का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को जाता है. लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने आप में एक जननायक बन गए हैं, और अपनी 'मोदी नंबर 2' की छवि गढ़ने में जुटे हुए हैं.

चित्रण: रमनदीप कौर/दिप्रिंट

कर्नाटक विधानसभा द्वारा पिछले हफ्ते विवादास्पद मवेशी वध रोकथाम विधेयक पारित किए जाने से कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने अपने पशुपालन मंत्री प्रभु चव्हाण को लखनऊ भेजा था. चव्हाण ने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर यह जानने की कोशिश की कि उन्होंने 1955 के गोहत्या विरोधी कानून को और अधिक कठोर कैसे बनाया.

उत्तरप्रदेश अवैध धर्मांतरण निषेध अध्यादेश 2020, जिसे आमतौर पर ‘लव जिहाद’ कानून के नाम से जाना जाता है, 28 नवंबर को लागू हुआ. नौ दिन बाद 7 दिसंबर को मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा लखनऊ में थे, ताकि वे आदित्यनाथ से मिलकर अंतरधार्मिक विवाह विरोधी कानून की जानकारी हासिल कर सकें. यूपी के लिए रवाना होने से पहले उन्होंने भोपाल में टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘जिस तरह से योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तरप्रदेश सरकार ने लव जिहाद के खिलाफ अध्यादेश को मंजूरी दी और तत्परता के साथ कार्रवाई करते हुए इसके तहत पहला मामला दर्ज किया, उससे मैं बेहद प्रभावित हूं. मैं लखनऊ जा रहा हूं… इस कानून पर चर्चा करने के लिए.’

यूपी के मुख्यमंत्री के ‘लव जिहाद’ पर कानून लाने का इरादा जताने के एक दिन बाद 1 नवंबर को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने घोषणा की कि उनकी सरकार भी इस विषय में ‘कानूनी प्रावधानों’ पर विचार कर रही है. बाद में उन्होंने इस संबंध में यूपी और अन्य राज्यों में लागू कानूनों का अध्ययन करने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया.

यह पहली बार नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अन्य मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीख ले रहे हैं. इससे पहले इसी साल, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया था कि वे नागरिकता संशोधन कानून विरोधी प्रदर्शनकारियों से सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को हुए नुकसान का हर्जाना वसूलने की संभावनाओं पर विचार करें.


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नया मंथन

आखिर, भाजपा में चल क्या रहा है? योगी आदित्यनाथ अपने पार्टी सहयोगियों के लिए प्रेरणास्रोत और भाजपा के मुख्यमंत्रियों के लिए एक अनुकरणीय व्यक्तित्व या रोल मॉडल कैसे बन गए? उनका प्रभाव इतना बढ़ चुका है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी, जो इस्लामी टोपी पहनकर अपने घर पर इफ्तार पार्टियों का आयोजन किया करते थे, आज खुद को आदित्यनाथ की तर्ज पर ढालने की कोशिश कर रहे हैं.

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चार बार के मुख्यमंत्री चौहान अपने शासन मॉडल के लिए जाने जाते थे. उन्हें यूपी के अपने समकक्ष, जो पहली बार मुख्यमंत्री बने हैं, का अनुसरण करने और कानून बनाने के गुर सीखने के लिए उनके पास रामेश्वर शर्मा को दूत बनाकर भेजने की ज़रूरत क्यों आन पड़ी?

इसके कई कारण हैं. सबसे पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदित्यनाथ के किए कमाल का जिक्र करते हुए अघाते नहीं हैं, बात विकास कार्यों में तेजी की हो या कोविड-19 प्रबंधन की या फिर कानून-व्यवस्था की स्थिति में सुधार की.

आपको 1980 के दशक में प्रचलित ओनिडा टीवी की टैगलाइन याद है न? ‘आपकी शान, पड़ोसी की जले जान’. लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्रियों द्वारा आदित्यनाथ के अनुकरण की वजह ईर्ष्या नहीं है. उनके लिए आदित्यनाथ एक ऐसे रोल मॉडल हैं जिन्हें अपनी शान बढ़ाना आता है. आदित्यनाथ के समकक्ष उन्हें प्रधानमंत्री से मिलने वाली तारीफ को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते.

दरअसल, यूपी के मुख्यमंत्री ने अपने समकक्षों का एजेंडा तय करना शुरू कर दिया है. जब 24 नवंबर को मोदी ने एक लंबे अंतराल के बाद कोविड-19 प्रबंधन पर मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल बैठक की, तो आदित्यनाथ मंत्रिमंडल ने अंतरधार्मिक विवाह संबंधी अध्यादेश के मसौदे को मंज़ूरी देकर सुर्खियों में कोविड बैठक को पीछे धकेल दिया. भाजपा और सरकार के बीच एक अलिखित सहमति रही है कि जब भी प्रधानमंत्री का कोई बड़ा कार्यक्रम होता है, तो मीडिया के राजनीतिक विमर्श में उसी को हावी होने दिया जाए. इसके अलावा, जब मोदी मुख्यमंत्रियों से किसी किस्म की कोताही नहीं बरतने और कोविड प्रबंधन में अधिक तत्परता दिखाने के लिए कह रहे हों, तो आमतौर पर किसी राज्य सरकार, विशेष रूप से भाजपा नेतृत्व वाली, से ‘लव जिहाद’ को प्राथमिकता देने की अपेक्षा नहीं की जाती है.

लेकिन बड़ा सवाल यह था कि क्या मोदी की सहमति के बिना योगी आदित्यनाथ ने ऐसा किया? क्या वह ऐसा कर सकते थे? ज़ाहिर है भाजपा के अन्य मुख्यमंत्री पूरी तरह आश्वस्त थे कि आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री का समर्थन है और इसलिए वे उनके कदमों का अनुकरण करने की आपाधापी में लग गए. हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था. अप्रैल में, जब केंद्र के लॉकडाउन संबंधी दिशानिर्देशों के कारण राज्यों के भीतर या बाहर लोगों की आवाजाही पर रोक लग गई, तो आदित्यनाथ सरकार ने दूसरे राज्यों से प्रवासी मजदूरों को वापस लाने के लिए सैकड़ों बसें भेजने का फैसला किया था.

वास्तव में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनावी वर्ष में अपनी अच्छी-खासी राजनीतिक पूंजी सिर्फ इसलिए गंवा दी कि वे केंद्र के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए बिहारी छात्रों को कोटा से वापस लाने के लिए तैयार नहीं हुए थे, जबकि यूपी यही काम कर रहा था. लॉकडाउन संबंधी दिशानिर्देश अमित शाह के नेतृत्व वाले केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए थे, लेकिन पहले कौन उनके खिलाफ जाता? यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की राजनीतिक हैसियत अब कमज़ोर नहीं रह गई थी; वह अपनी मर्ज़ी से चल सकते थे.


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मोदी नंबर 2

वामपंथी और उदारवादी भले ही यूपी में नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता को कुचलने वाले ‘पुलिस राज’ तथा सांप्रदायिक राजनीति का रोना रोएं, लेकिन योगी आदित्यनाथ मोदी के बाद दूसरे सर्वाधिक लोकप्रिय भाजपा प्रचारक बन गए हैं – महाराष्ट्र से लेकर हैदराबाद, पश्चिम बंगाल, केरल समेत हर जगह. चुनावों के दौरान मोदी के गृहराज्य गुजरात में भी उनकी बहुत मांग रहती है. पार्टी का वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) भी मोदी के अलावा हिंदुत्व का एक और शक्तिशाली प्रतीक ढूंढने और तैयार करने को लेकर खुश है. उत्तरप्रदेश में भाजपा को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर ले जाने का श्रेय प्रधानमंत्री को जाता है, लेकिन मुख्यमंत्री बनने के चार साल के भीतर आदित्यनाथ अपने आप में एक बड़े नेता बन गए हैं. वह मोदी नंबर 2, हिंदू हृदय सम्राट और विकास पुरुष के रूप में अपनी छवि बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.

योगी आदित्यनाथ यूपी को एक खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं ताकि मोदी भारत को 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बना सकें. मोदी आजकल इसकी ज्यादा चर्चा नहीं करते लेकिन योगी को तो ऐसा करके दिखाना है. आप उनके शीर्ष अधिकारियों को सुनकर देखें जो निवेश का नंबर 1 गंतव्य बनने में यूपी की सफलता का बखान करते अघाते नहीं.

आदित्यनाथ हाल में इसी सिलसिले में मुंबई गए थे— बॉलीवुड को लुभाने और नामी-गिरामी कारोबारियों को यूपी में निवेश पर राज़ी करने. वैसे, मज़ा खराब करने के लिए संदेह करने वाले और राजनीतिक आलोचक हमेशा ही मौजूद होते हैं, जो असुविधाजनक सवाल पूछते हैं कि 2018 के निवेशक शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापनों में से कितने वास्तविकता के धरातल पर उतर पाए हैं.

हालांकि धारणाओं और छवि प्रबंधन के इस दौर में ये सवाल अप्रासंगिक हो गए हैं. लखनऊ में आदित्यनाथ प्रशासन के जनसंपर्क का काम देखने वाले हमें यही यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि यूपी में – और एक हद तक बाहर भी – मोदी और योगी एक-दूसरे के पर्यायवाची बनते जा रहे हैं. इसमें सच्चाई हो या नहीं, लेकिन जाहिर तौर पर भाजपा के मुख्यमंत्री कोई जोखिम नहीं लेना चाहते.

(व्यक्त विचार निजी हैं)


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