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फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन से क्या सीख सकते हैं नरेंद्र मोदी

पियालीडिज़ाइन के द्वारा चित्रण

‘सूट बूट की सरकार’ से तुलना किये जाने के बावजूद मैक्रॉन ने फ्रांस की आर्थिक प्रगति को तेज करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में दिए गए अपने लंबे भाषण में प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की कई उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि वे बदलाव लाने को आतुर हैं। साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि अपने चार वर्ष से थोड़ा अधिक के कार्यकाल में उन्होंने पर्याप्त कठिन फैसले भी लिए। यह सब सच है, भले ही उनमें से सबसे कठिन फैसला (नोटबन्दी) उल्टा पड़ गया। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि नरेंद्र मोदी ने एक उद्देश्यपूर्ण एवं ऊर्जावान सरकार का नेतृत्व किया है जो महत्वाकांक्षी लक्ष्य बनाने से नहीं डरती और उन्हें प्राप्त करने की पुरजोर कोशिश भी करती है।

इसके बावजूद, यह सरकार अपनी उपलब्धियों को काफी बढ़ा-चढ़ाकर प्रदर्शित करती है। विकास दर में वृद्धि तो नहीं ही हुई है, निवेश दर में भी कमी आयी है। वहीं अन्य प्रमुख मैक्रो-इकोनिमिक वेरिएबल्स (राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति और चालू खाते के घाटे वगैरह) में हुआ सुधार निर्विवाद है लेकिन इसका एक बड़ा कारण है तेल की कीमतों में आई कमी। जहां तक कार्यक्रमों की बात है तो मोदी ने उनके नाम और मानदंड बदलकर उनके बारे में लंबी चौड़ी हाँकी है। हालांकि यह एक अंतर्निहित निरंतरता की ओर इशारा करता है लेकिन मोदी सरकार का प्रदर्शन पूर्ववर्ती सरकारों से निश्चित रूप से बेहतर रहा है। खेदजनक बात यह है कि यह 1991 से चली आ रही सुरक्षावाद पर ज़ोर देने की नीति का उलट है, मानो यह निर्यात गति और बढ़ते व्यापार अंतर के नुकसान का समाधान है।


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इस सप्ताह जब अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु हो चुकी है, ऐसे में उनकी सरकार की आर्थिक पहलों को याद करने का अच्छा समय है। इसका उद्देश्य एक या दूसरे प्रधान मंत्री की तुलना कर उन्हें अंक देना नहीं बल्कि कुछ यादें ताज़ा करना है , खासकर यह कि उस समय भाजपा ने सदन में केवल एक तिहाई सीटें होने के बावजूद कितना कुछ कर लिया था। (भाजपा गठबंधन के पास बाहरी समर्थन था जिसके फलस्वरूप वे बहुमत में आये थे) । अप्रत्यक्ष करों में सुधार की शुरुआत हुई थी , जिसका परिणाम आज जीएसटी के रूप में हमारे सामने है। सिर्फ विनिवेश के बजाय निजीकरण था, वित्तीय जिम्मेदारी की शुरुआत , पिछले दशक के आर्थिक उछाल को आगे ले जाने के लिए ब्याज दरों में कमी, दूरसंचार सुधार, एक महत्वाकांक्षी राजमार्ग कार्यक्रम, नए निजी बैंक लाइसेंस जारी करना, और, ज़ाहिर है, एक प्रमुख स्कूल कार्यक्रम।

संकट प्रबंधन के मामले में, 1998 के परमाणु परीक्षणों के चलते लगाए गए प्रतिबंधों का प्रबंधन किया गया था, और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया था कि भारतीय अर्थव्यवस्था एशियाई संकट के चक्कर में न फंस जाए। विकास दर कुछ खास नहीं थी क्योंकि व्यवस्था 1994-97 के दौरान हुई आर्थिक वृद्धि के परिणामों से जूझ रही थी (बैंकिंग संकट तब आज से भी बदतर था)। इसके अलावा अन्य परेशानियां भी थीं, जैसे डॉट कॉम बस्ट, सामान्य से कम कृषि पैदावार एवं दो सूखे के और कम बारिश के तीन साल।

यहां यह कहना सही होगा कि दोनों ही प्रधानमंत्रियों में और भी बहुत कुछ करने की क्षमता थी। आइये देखें कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुअल मैक्रॉन ने केवल 15 महीनों में क्या किया है: उन्होंने फ्रांस की कर प्रणाली को ओवरहाल कर दिया है, राजकोषीय घाटे को एक दशक में अपने सबसे निचले स्तर पर घटा दिया है, सकल घरेलू उत्पाद से संबंधित सार्वजनिक ऋण का आकार कम कर दिया है , श्रम बाजार को और अधिक लचीला बनाया है, छोटे और मध्यम उद्यमों की राह आसान की है और एक निजीकरण कार्यक्रम शुरू किया जिसकी आय एक इनोवेशन फंड में जाएगी। इसके बाद वे पेंशन सुधार लाने का इरादा कर चुके हैं(कुछ रेलवे कर्मचारी 52 की उम्र में ही मोटी पेंशन पर सेवानिवृत्त हो जाते हैं)। इसके अलावा उन्होंने मेरिट-आधारित वेतन और सरकार में अधिक निश्चित अवधि के अनुबंध पेश करने का भी मन बनाया है। नौकरशाही के आकार को कम करने और शिक्षा एवं कौशल विकास के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने की भी बात है।


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इन कदमों में से कुछ की आलोचना वामदलों ने की है और कुछ की दक्षिणपंथियों ने। और रही बात परिणाम नापने की तो उसमें अभी देर है – विकास अभी भी धीमा है, और बेरोजगारी ऊँचे स्तर पर। इसके नतीजतन मैक्रॉन की लोकप्रियता में कमी आयी है। उन्हें ‘सूट-बूट सरकार’ का समकक्ष कहा जाता है, लेकिन वह देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े आकार को कम करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं (सार्वजनिक क्षेत्र में दी जानेवाली मजदूरी सकल घरेलू उत्पाद का 13 प्रतिशत हिस्सा है) । इसके अलावा वे अर्थव्यवस्था को और अधिक कुशल बनाने, विदेशों से अधिक निवेश आकर्षित करने के लिए कर परिवर्तनों का इस्तेमाल करके तीव्र परिवर्तन की नींव रख रहे हैं। मोदी की तरह ही उन्हें उद्दम और अभिमानी माना जाता है, और वे भी काफी कम साक्षात्कार देते हैं लेकिन यह स्पष्ट है कि वे देश के मालिक हैं जो दूसरों की तुलना में कहीं अधिक और महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं।

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Read in English : What Modi can learn from French President Macron

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