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जिस देश में हर 10 में 4 बच्चा कुपोषित, उस देश में योग का मतलब

योग उपयोगी है. लेकिन उसके साथ ही असमानता के कारण होने वाले कुपोषण का समाधान जरूरी है. ये आवश्यक है कि हर वर्ग के लोगों का हेल्थ चेकअप और इलाज हो सके, जिसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी निवेश बढ़ाना होगा.

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बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स का जवान बीएसएफ कैंप में योग करता हुआ- एएनआई

21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी झारखंड की राजधानी रांची आये और प्रभात तारा मैदान में लगभग 40 हजार लोगों के साथ 45 मिनट योगाभ्यास किया. योग मुद्रा में उनकी तस्वीरों के साथ बने पोस्टरों से रांची के चौक-चौराहों को सजाया गया था. प्रधानमंत्री की योग करती तस्वीरों को पूरे देश ने देखा. स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूकता फैलाने में इस कार्यक्रम की उपयोगिता है.

लेकिन विडंबना यह कि इस दौरान उन्होंने अपने संक्षिप्त भाषण में स्वस्थ जीवन के लिए योग के अलावा जिन तीन तत्वों को आवश्यक बताया, उनका अपने देश में घोर अभाव होता जा रहा है. प्रधानमंत्री मोदी का कहना था कि स्वस्थ जीवन के लिए पानी, पोषण और अच्छा वातावरण जरूरी है.

पानी के अभाव और जल तथा नदी प्रदूषण की तो देश में इस समय खूब चर्चा हो रही है. कई शहर अभूतपूर्व जल संकट से गुजर रहे हैं और करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद नदियां साफ होने का नाम नहीं ले रही हैं. हर घर तक साफ पानी पहुंचना एक दीर्घकालिक प्रोजेक्ट है.

प्रदूषण का यह हाल है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 2016 में जारी दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 30 शहरों की लिस्ट में दिल्ली सहित 22 शहर भारत के हैं. खराब आबोहवा और प्रदूषण का स्वास्थ्य पर पड़ने वाला बुरा असर किसी से छिपा नहीं है. इससे न सिर्फ तमाम तरह की बीमारियां होती हैं, बल्कि इंसान जल्दी मर भी जाता है.

इस रंगारंग योगाभ्यास के बीच जो बात सबसे ज्यादा अखर रही थी. वह है बिहार के मुजफ्फरपुर में बच्चों की इनसेफेलाइटिस से होने वाली मौतें, जिन्हें टाला जा सकता था.

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इन सबके बीच, रांची शहर में मोदी की योगरत मुद्रा वाले पोस्टरों को देख कर सहज जिज्ञासा होती है कि क्या भूख और कुपोषण का इलाज योग से हो सकता है? अस्पतालों के अभाव का जवाब क्या योग में है? योग का प्रचार हाल के दिनों में कुछ इस तरह से हो रहा है, जैसे हर रोग का उपाय योग ही है. जीवन शैली के कारण होने वाली बीमारियों की रोकथाम में योग की भूमिका है. खासकर शहरी और निष्क्रिय जीवन जीने वालों के लिए इसकी उपयोगिता है. लेकिन भूख, कुपोषण, प्रदूषण तथा गंदगी के कारण होने वाली बीमारियों की रोकथाम में योग की कोई भूमिका नहीं हो सकती.


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जो लोग शारीरिक श्रम करते हैं और रोजगार के लिए मेहनत करते हैं, उनके लिए योग की जरूरत बहुत कम है. दिहाड़ी पर खटने वाला मजदूर, एक घड़ा पानी के लिए या फिर जलावन की लकड़ी के लिए कई-कई किलोमीटर का चक्कर लगाने वाली औरतों के लिए योग का कोई मतलब नहीं है.

उनकी समस्या ये है कि उनके श्रम की इतनी कीमत नहीं है कि इस श्रम की भरपायी करने वाला भोजन वह खरीद और खा सके. उसकी समस्या कैलरी को जलाना नहीं, कैलरी की कमी है. ऐसे लोग चर्बी या मोटापे या जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों से नहीं, कुपोषण और अतिरिक्त श्रम और समानुपातिक आराम न मिल पाने के कारण असमय मर जाते हैं.

नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे राउंड-4 की रिपोर्ट के मुताबिक 5 साल से कम उम्र के देश के 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के यानी अंडरवेट हैं. इस उम्र के 38.4 बच्चे अपने स्वाभाविक कद से छोटे हैं. 6 साल से कम उम्र के लगभग 60 फीसदी बच्चों में खून की कमी है.

जिस झारखंड में प्रधानमंत्री का योग का कार्यक्रम हुआ वहां हालात और बुरे हैं. लोकसभा के मौजूद सत्र में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पेश आंकड़ों के मुताबिक, झारखंड में 47.8 फीसदी यानी लगभग हर दूसरा बच्चा अंडरवेट है. और 45.3 फीसदी बच्चे अपनी स्वाभाविक वजन से कम कद के हैं.

जाहिर है कि इन बच्चों की स्वास्थ्य समस्या का समाधान योग में नहीं है. इन बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है. इनके बीमार होने की आशंका ज्यादा होती है और ये आसानी से मर भी जाते हैं. देश में जन्म लेने वाले हर 1000 बच्चों में से 33 बच्चे अपना पहला जन्म दिन नहीं मना पाते (लोकसभा में स्वास्थ्य मंत्रालय के जवाब से). इस मामले में असम, मध्य प्रदेश और ओडिसा जैसे राज्यों की हालत ज्यादा खराब है. बच्चों के इतनी कम उम्र में मरने की प्रमुख वजहें बच्चों का समय से पहले पैदा होना और उनका कम वजन का होना (35.9 प्रतिशत ), न्यूमोनिया (16.9 प्रतिशत ), मस्तिष्क में कम ऑक्सीजन का जाना तथा ट्रॉमा (9.9 प्रतिशत), अन्य असंक्रामक बीमारियां (7.9 प्रतिशत) और दस्त होना (6.7 प्रतिशत) है.

किसी भी देश को, जो विकसित देशों की लिस्ट में अपना नाम दर्ज कराना चाहता है, उसे सबसे पहली प्राथमिकता के तौर पर इन समस्याओं का समाधान करना चाहिए.

जिस रिपोर्ट के हवाले से बच्चों के कुपोषित होने के आंकड़े आएं हैं. उसी रिपोर्ट के मुताबिक देश की 21 प्रतिशत महिलाएं और 19 प्रतिशत पुरुष मोटापे के शिकार हैं. ये लोग भी तमाम तरह की स्वास्थ्य समस्याओं के शिकार हैं, जिनमें डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल की अधिकता, हायपर टेंशन, दम फूलना, ब्लड प्रेशर में अनियमितता समेत सैकड़ों किस्म की बीमारियां शामिल हैं. मानवीय श्रम का अभाव इसकी एक प्रमुख वजह है. हालांकि, इसकी कई और वजहें भी हो सकतीं हैं, जिनमें अनुवांशिक कारण भी शामिल है.


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इनके लिए योग और कसरत का महत्व है और उन्हें निश्चित रूप से प्रेरित किया जाना चाहिए. लेकिन जिन लोगों के वजन बढ़ने का कारण खान-पान और जीवन शैली है. उनको सिर्फ योग से मोटापे से मुक्ति नहीं मिलने वाली. उन्हें अपने खान-पान का तरीका बदलना होगा. देश में समस्या ये हो गई है कि कुछ लोग ज्यादा खाने की वजह से परेशान हैं और ढेर सारे लोग अच्छा खाना न मिल पाने के कारण परेशान हैं. खाने में कार्बोहाइड्रेट की अधिकता गरीबों की एक और समस्या है. इस वजह से उनका पेट तो भर जाता है, लेकिन सही पोषण नहीं मिल पाता.

दरअसल भारत की स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज सिर्फ योग या योग पर ज्यादा जोर देना नहीं है. योग उपयोगी है लेकिन उसके साथ ही असमानता के कारण होने वाले कुपोषण का समाधान जरूरी है. ये आवश्यक है कि हर वर्ग के लोगों का हेल्थ चेकअप हो सके, जिसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी निवेश बढ़ाना होगा. बीमारियों का इलाज हो सके, इसके लिए भी सरकार को बुनियादी ढांचा मजबूत करना होगा.

(लेखक जयप्रकाश आंदोलन से जुड़े रहे. समर शेष है उनका चर्चित उपन्यास है)

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