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राजीव गांधी से सलाह लेकर टीएन शेषन बने थे देश के मुख्य चुनाव आयुक्त

नेताओं के साथ राजनैतिक दलों को चुनाव आयोग को दंतविहीन समझने की गलती न करने का संदेश देने वाले शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की कहानी भी दिलचस्प है.

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पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन, जो नहीं रहे | youtube screengrab

देश के निर्वाचन आयोग के सर्वोच्च अधिकारी मुख्य चुनाव आयुक्त देश में राजनैतिक दलों पर नकेल डालने और साफ-सुथरा चुनाव कराने की इच्छा रखते थे तो देश का कानून उनको इस बात की इजाजत देता था कि कोई भी बड़ा नेता और प्रभावशाली दल चुनाव आयोग को रोक नहीं सकता. देश का मुख्य चुनाव आयुक्त बनकर देश के मतदाताओं में चुनाव आयोग के प्रति सम्मान उत्पन्न करने में और नेताओं के साथ राजनैतिक दलों में चुनाव आयोग को दंतविहीन समझने की गलती न करने का संदेश देने वाले टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की कहानी भी दिलचस्प है. रविवार को शेषन का निधन हो गया. पेश है, शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की कहानी.

रात साढ़े 12 बजे का वक्त होगा. ऐसे वक्त भला कौन केन्द्रीय मंत्री अपने मित्र के घर जाने का मन बना सकता है. जबकि वह दोस्त सरकारी तंत्र में उससे नीचे के पायदान को हो. हम बात कर रहे हैं 1990-91 में केन्द्र में वाणिज्य मंत्री रहे सुब्रमण्यम स्वामी और उस समय योजना आयोग के सदस्य रहे टीएन शेषन की.

स्वामी और शेषन की दोस्ती कई दशकों पुरानी थी. दोनों जब युवा थे तो दोनों की मुलाकात हावर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी जहां स्वामी पढ़ाने गए थे और शेषन एक साल के अध्ययन के लिए. जल्द ही गुरू-शिष्य के संबंध बेहद घनिष्ठ हो गए. शेषन अक्सर मेजबान की भूमिका निभाते और मेहमान होते स्वामी. दोनों साथ में बैठकर दही चावल और अचार खाते थे.


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भारत लौटने पर स्वामी ने राजनीति का रुख किया और विभिन्न दलों से गुजरते हुए अपने दोस्त प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के मंत्रिमंडल में वाणिज्य मंत्री बने और शेषन भी विभिन्न पदों पर रहते हुए राजीव गांधी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के आखरी दिनों में कैबिनेट सचिव के पद तक पहुंचे और जब स्वामी जब देर रात उनके घर पहुंचे तब शेषन योजना आयोग के सदस्य के रूप में गुमनामी की जिंदगी जी रहे थे और योजना आयोग में उनको एक एक दिन काटना भारी हो रहा था.

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9 दिसंबर की रात को स्वामी की पत्नी रुखसाना कार चलाकर जब स्वामी को शेषन के घर लेकर जा रही थी उस समय शेषन को एक महत्वपूर्ण पद का प्रस्ताव लेकर स्वामी शेषन के घर, जो उस समय पंढारा पार्क में था पहुंच गए थे.

9 दिसंबर की रात एक महत्वपूर्ण पद का प्रस्ताव लेकर स्वामी शेषन के उनके पंढारा पार्क घर पहुंचे. घर में घुसते ही बिना किसी औपचारिकता के उन्होंने शेषन से कहा कि वह इस समय दोस्त की हैसियत से कम और प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के दूत के रूप में आए हैं.

शेषन ने भी बिना समय गंवाए पूछ लिया बताए प्रधानमंत्री का क्या प्रस्ताव है? स्वामी ने मुस्कुराकर कहा कि प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर आपको मुख्य चुनाव आयुक्त बनाना चाहते हैं और आपकी हां लेने और तुम्हारा मन टटोलने के लिए मुझे भेजा है. स्वामी को लगा कि प्रधानमंत्री का यह प्रस्ताव सुनकर शेषन खुश होंगे लेकिन उन्होंने जरा भी उत्सुकता नहीं दिखाई और बडे़ ही बेढंगे तरीके से कहा कि यह प्रस्ताव कुछ दिन पहले कैबिनेट सचिव विनोद पांडे भी लेकर उनके पास आए थे लेकिन उन्होंने पांडे को साफ मना कर दिया था. विनोद पांडे, शेषन के बाद कैबिनेट सचिव बने थे.

लेकिन इस बार शेषन के पास प्रस्ताव कोई सरकारी कर्मचारी नहीं, खुद विधि मंत्री और प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी लोगों में शामिल और शेषन के दोस्त स्वामी खुद लेकर पहुंचे थे. उस समय शेषन योजना आयोग के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे जो एक तरह से शेषन जैसे अधिकारी के लिए बनवास से कम नहीं था.

स्वामी का प्रस्ताव सुनने के बाद शेषन ने उनसे इस पर निर्णय करने का वक्त मांगा. जब शेषन के पास स्वामी प्रस्ताव लेकर गए थे तब उनके सेवानिवृत्त होने में एक माह से भी कम समय बचा था और शेषन ने दिल्ली छोड़कर अपने गृह प्रदेश लौटने का पूरा मन बना लिया था. वह और उनकी पत्नी ने मद्रास के सेंट मेरी रोड पर एक घर बना लिया था. किराए पर दिया गया यह मकान शेषन ने खाली करा लिया था और इस मकान में शेषन और उनकी पत्नी की रहने की तैयारी की जा रही थी. राजीव गांधी की सरकार में कैबिनेट सचिव रहनें के बाद उन्हे किसी और पद की लालसा नहीं थी. जहां शेषन को जल्दी नहीं थी, वहीं प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर मुख्य चुनाव आयुक्त पद पर किसी न किसी की नियुक्ति जल्द से जल्द करने को आतुर थे, क्योंकि विधि सचिव वीएस रमादेवी को कार्यवाहक मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाकर उन्होंने सरदर्द मोल ले लिया था.

चन्द्रशेखर को उस समय यह बताने वाला कोई नहीं था कि विधि सचिव को मुख्य निर्वाचन आयुक्त का अतिरिक्त कार्यभार सौंपना एक संवैधानिक भूल है. संविधान में यह व्यवस्था है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त कार्यपालिका से एकदम स्वतंत्र होगा ताकि निष्पक्ष चुनाव की गांरटी बनी रहे. विधि सचिव को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की अतिरिक्त जिम्मेदारी देना एक संवैधानिक भूल थी.

चन्द्रशेखर ने सोचा कि शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाकर भूल भी सुधर जाएगी और शेषन के लिए भी अच्छा रहेगा. चन्द्रशेखर का प्रस्ताव लेकर आए कैबिनेट सचिव भी शेषन से हां नहीं करा पाए, और शेषन के घर से कुछ दिनों पहले ही निराश होकर जा चुके थे. प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को उनके मंत्री और शेषन के दोस्त स्वामी यह भरोसा देकर आए थे कि वे पूरी कोशिश करेंगे और हो सकता है वह शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने की सहमति ले ले. लेकिन अपने दोस्त स्वामी को शेषन ने यह भरोसा जरूर दिया कि 24 घंटे से भी कम समय में वे अपना फैसला स्वामी को बता देंगे, जिससे वह प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को बता सकें.

स्वामी को विदा कर शेषन अपने ड्राइंगरूम में बैठकर प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के भेजे प्रस्ताव पर विचार करने लगे. शेषन प्रस्ताव पर कुछ लोगों से राय लेना चाहते थे. शेषन को जिस व्यक्ति से रात को ही सलाह लेनी थी वह व्यक्ति शेषन के घर से कुछ ही दूरी पर था और वे थे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी. देर रात तक जागकर काम निपटाने वाले राजीव गांधी उस रात जल्दी सोने चले गए थे.

लगभग रात को डेढ़ बजे शेषन के फोन ने राजीव गांधी को नींद से जगा दिया. शेषन के उसी समय मिलने और सलाह लेने की बात सुनकर राजीव गांधी ने कहा कि अभी संभव नहीं है और अगले दो दिन उनकी व्यस्तता बहुत ज्यादा होने से वह कुछ दिनों बाद मिल सकेंगे. राजीव के तुरंत मिलने के इंकार के बाद भी शेषन ने धीरे से कहा सर मिलना जरूरी है. शेषन के दोबारा आग्रह पर राजीव ने कुछ देर सोचा और कहा कि तुम बडे़ बदमाश हो शेषन. शेषन ने कहा यस सर. राजीव गांधी के तौर-तरीकों को जानने वाले और उनके साथ करीबी से काम कर चुके शेषन जानते थे कि पहले दृढ रहने वाले राजीव का मन बाद में पिघल ही जाता है.

शेषन अपने पुराने बॉस के आदेश का इंतजार करने के लिए फोन के रिसीवर को कान से लगाए रहे. कुछ ही देर में राजीव गांधी ने उन्हे तुरंत घर आने को कहा. उस समय रात के 2 बजने वाले थे. शेषन ने फोन पर बातचीत के अंत में कहे जाने वाले सामान्य और औपचारिक शब्द भी नहीं कहे और तुरंत राजीव गांधी के निवास 10 जनपथ पर निकल पडे़. जब शेषन राजीव गांधी के घर पहुंचे उस समय वह ड्राइंग रूम में उनका इंतजार कर रहे थे. राजीव ने शेषन से साफ कह दिया था कि बातचीत 5 मिनिट से ज्यादा नहीं होगी. लेकिन शेषन और राजीव गांधी के बीच बातचीत 25 मिनट तक चली. जब शेषन ने उन्हें बताया कि सरकार उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाना चाहती है तो राजीव गांधी भी सोच में पड़ गए.


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राजीव के मन में एक सवाल था कि आखिर सरकार शेषन को ही यह जिम्मेदारी क्यों देना चाहती है? क्या चन्द्रशेखर सरकार शेषन से इससे बेहतर काम नहीं करा सकती? राजीव गांधी यह समझ रहे थे कि उनका भूतपूर्व कैबिनेट सचिव इस समय योजना आयोग में सजा काट रहा है और शेषन जैसे अधिकारी को जल्द ही अच्छी और योग्य नियुक्ति मिलनी चाहिए. काफी सोचने समझने के बाद उन्होंने शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त का पद स्वीकार करने की सलाह दे दी. शेषन को मालूम था कि चन्द्रशेखर की सरकार अपने अस्तित्व के लिए राजीव गांधी के समर्थन पर पूरी तरह निर्भर थी. राजीव गांधी के समर्थन वापस लेते ही चन्द्रशेखर सरकार ताश के पत्तों के तरह ढह जाती. इस कारण जिस व्यक्ति के कारण सरकार अस्तित्व में थी, उस व्यक्ति से सलाह लेना शेषन को जरूरी लगा.

जब राजीव गांधी से मिलकर शेषन जाने लगे तो राजीव गांधी शेषन को दरवाजे तक छोड़ने आए और मुस्कुराकर बोले यह दाढ़ी वाला आदमी तुमको मुख्य चुनाव आयुक्त बनाकर पछताएगा. राजीव गांधी की भविष्यवाणी सही थी, लेकिन जो व्यक्ति पछताया वह कोई और था.

राजीव गांधी से सलाह लेने के बाद शेषन ने राष्ट्रपति वेंकटरमन से राय लेने का मन बनाया. शेषन और वह एक दूसरे को मद्रास के समय से जानते थे. शेषन जब मद्रास में कनिष्क अधिकारी थे उस समय वेंकटरमन उनके मंत्री हुआ करते थे. 10 दिसंबर 1990 की सुबह शेषन वेंकटरमन से मिलने पहुंचे. उन्होंने भी वही सलाह दी जो राजीव गांधी ने दी थी. शेषन तय नहीं कर पा रहे थे कि क्या करें. वह दुविधा में थे. दो करीबी लोगों से राय लेने के बाद शेषन ने तीसरी राय जानने के लिए अपने बडे़ भाई और मद्रास में रह रहे टीएल लक्ष्मीनारायण को फोन किया. वे भी आईएएस थे और रिटायर्ड हो चुके थे. कुछ समय वे केरल के राज्यपाल के सलाहकार भी रह चुके थे. शेषन के बडे़ भाई ने साफ और दो टूक कहा इस प्रस्ताव को ठुकराओ और दिल्ली की सत्ता के राजनीतिक के प्रंपचों से दूर एक शांत जीवन जीने के लिए मद्रास आ जाओ.

भाई की सलाह लेने के बाद शेषन ने अपने ससुर आरएस कृष्णन को फोन किया. कृष्णन बेंगलुरू में इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ साइस में भौतिक विज्ञान के एक सम्मानित प्रोफेसर थे और अब सेवानिवृत्त हो गए थे. कुछ समय बाद वे केरल विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने. शेषन के फोन के बाद उनके ससुर ने मलेश्वर में शिव मंदिर में अपने पारिवारिक ज्योतिष से सलाह लेने चल दिए. ज्योतिष ने सलाह दी कि शेषन चाहें तो भी इस पद को ठुकरा नहीं सकते. और इस पद को स्वीकार करने के बाद से इस पर विवाद शुरू हो जाएगा, और इस पद पर शेषन का कार्यकाल विवादित रहेगा. ग्रह नक्षत्रों का योग ही ऐसा है. इससे बचना मुश्किल है.


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इसके बाद शेषन ने अपनी बात अपने अराध्य काची कामकोटी के स्वर्गीय परमाचार्य के पास पहुंचाने का मन बनाया. उनकी बात अटल नियम की तरह थी. उनकी राय के सामने न कोई तर्क चल सकता था और न ही उसके अच्छे बुरे पहलुओं पर विचार हो सकता था. शेषन ने परमाचार्य की राय लेने के लिए काची में मित्र से बात की. वह तुरंत काम पर लग गया क्योंकि समय बहुत कम था. परमाचार्य बहुत बीमार थे और सुन भी नहीं पा रहे थे. उनकी राय जानने के लिए शेषन का सवाल एक बड़ी तख्ती पर बडे़ बडे़ अक्षरों मे लिखना पड़ा ताकि परमाचार्य उसे पढ़ सकें. उन्होंने गौर से उन अक्षरों को देखा और तमिल में बुदबुदाए, रोम्पागोरवमान वेल्लई. यह दो टूक सलाह थी. और अकेली सकारात्मक सलाह भी यही थी. हिंदी में अर्थ था यह एक महत्वपूर्ण कार्य है और उसे यह स्वीकार करना चाहिए.

असमंज का कोहरा शेषन के दिमाग से हट गया. शेषन ने मन बना लिया कि अब दिल्ली में रहना है और जिम्मेदारी निभाना है. शेषन ने फोन कर स्वामी से नियुक्ति का आदेश भेजने के लिए कहा. और दो दिन बाद 12 दिसंबर 1990 को टीएन शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में निर्वाचन सदन में प्रवेश किया.

(समीर चौगांवकर वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

1 टिप्पणी

  1. इस बेमिसाल लेख के लिए आपका शुक्रिया।

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