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#मीटू के आलोचकों से बरखा दत्त का सवाल, तवलीन सिंह का जवाब

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चित्रण: मानस गुरुंग

बरखा ने पूछा, मर्दों को जवाबदेह बनाने की जगह महिलाओं पर सवाल क्यों? तवलीन ने कहा, अधिकार पीड़ित बनकर नहीं, लड़कर मिलते हैं.

नई दिल्ली: भारत में चल रहे #मीटू आंदोलन को लेकर वरिष्ठ महिला पत्रकारों में मतभेद सामने आया है. हाल ही में मशहूर पत्रकार बरखा दत्त ने दिप्रिंट में अपने वीडियो कॉलम में #मीटू आंदोलन के आलोचकों पर सवाल उठाए. उन्होंने पूछा कि तवलीन सिंह, सीमा मुस्तफा और मंजीत कृपलानी जैसी महिलाएं इस आंदोलन के विरोध में क्यों हैं? इसके जवाब में वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने लेख लिख कर कहा कि हमने विरोध किया क्योंकि हम जैसी महिलाएं बेचारी नहीं,  बहादुर हैं.

बरखा दत्त ने तवलीन सिंह, सीमा मुस्तफा और मंजीत कृपलानी के नाम एक खुला खत लिखकर पूछा था कि ‘लाखों महिलाओं को हमने पीड़ा, गुस्से और बेचैनी में देखा है. लेकिन आपके इसके महत्व को कमतर किया. आपके समय में आप लोगों ने खेल के नियम तय करने और पहले से चले आ रहे नियमों को तोड़ने का काम किया है. जब महिला पत्रकारों को फूल-पत्ती और फैशन शो कवर करने को कहा जाता था, आप लोगों ने लड़ाई लड़ी और अपनी पहचान बनाई. लेकिन आज जब दूसरी महिलाएं अपनी लड़ाई लड़ रही हैं तो आप उनका उपहास उड़ा रही हैं. प्रिय तवलीन, मंजीत और सीमा, आखिर क्यों?

आपने आंदोलन का मज़ाक उड़ाया है

बरखा ने इन पत्रकारों की कुछ लाइनों और टिप्पणियों का हवाला देते हुए पूछा, ‘आपने मर्दों को जवाबदेह बनाने की जगह महिलाओं पर यह भार डाल दिया कि वे शिकारियों से खुद को बचा कर रखें. यह विचित्र नहीं है? एमजे अकबर के बारे में मंजीत आपने लिखा कि ‘महिलाओं ने खुद को उन्हें सौंप दिया था.’ तवलीन आपने एक लड़की से पूछा कि ‘तुम सुहैल सेठ के घर क्यों गई थीं? तरुण तेजपाल केस में सीमा ने लिखा था कि लड़की ने सामने आकर विरोध नहीं किया.’


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बरखा ने आगे लिखा, ‘यह पूछताछ की भाषा है. यह स्त्रीद्वेषी भाषा है. उनकी तरह जो बलात्कार को तार्किक ठहराने के लिए महिलाओं के कपड़ों, लैंगिक चुनाव, घर देर से आने को ज़िम्मेदार बताते हैं. किसी के साथ डेट करना, किसी के साथ शराब पीना, किसी के साथ काम करना, यहां तक कि किसी के साथ शादी कर लेना हमारी अपनी सहमति का आत्मसमर्पण नहीं है.’

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बरखा ने आगे पूछा है, ‘आपने इस आंदोलन को अभिजात्य आंदोलन कहकर इसका मजाक उड़ाया है. आपने इसे एकपक्षीय कहा है. बहादुर महिलाओं को ‘मीटू वाली’ कहकर मज़ाक उड़ाया है. 2004 से 2012 के बीच 2 करोड़ महिलाओं ने काम छोड़ दिया. अब तक 70 प्रतिशत महिलाएं काम करने की जगह पर यौन उत्पीड़न की शिकायत नहीं करतीं. यह आंदोलन महिलाओं के अधिकार को लेकर है. आप महिलाओं को हतोत्साहित न करें.’

हमने पीड़ित नहीं, बहादुर बनकर जगह बनाई

इस पत्र का जवा​ब देते हुए तवलीन सिंह ने ​दिप्रिंट वेबसाइट पर लिखा है, ‘प्रिय बरखा, आपके बहुत सारे क्यों ​का यह जवाब है. मुझे क्यों सोचना चाहिए कि #मीटू एक सही-समुचित आंदोलन है? मैं इस बात में विश्वास नहीं करती कि एक पुरुष पर अपराध की कल्पना के आधार पर आरोप लगाया जाए. मैं विश्वास करती हूं कि प्रत्येक पुरुष और स्त्री के पास यह ​अधिकार होना चाहिए कि जब तक अपराध साबित न हो जाए तब तक वह निर्दोष है.’


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तवलीन सिंह ने आगे लिखा, ‘मेरा दूसरा पीड़ित बनने को लेकर है जो इस आंदोलन में निहित है. हमारी पीढ़ी की महिलाओं ने दफ्तरों में अपनी जगह बनाने के लिए लड़ाई लड़ी. हमसे पहले थोड़ा योगदान आपकी मां का भी है. हमने यह पीड़ित बनकर नहीं, बहादुर बनकर हासिल किया. अधिकार पीड़ितों को नहीं दिये जाते, उनको दिए जाते हैं जो इसके लिए लड़ते हैं.’

अकबर खुद कर्मचारी थे, शिकायत क्यों नहीं हुई

तवलीन ने बलात्कार को तार्किक बनाने के आरोप पर लिखा, ‘आपका आरोप है कि हमने बलात्कार को तार्किकता दी है, यह बकवास है. मीडिया में किसी भी महिला ने जिस भी संपादक या लेखक पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है किसी ने नहीं कहा है कि उसका बलात्कार हुआ. कुछ उत्पीड़न जब हुए, तभी एक साधारण आवाज़ उठाकर रोके जा सकते थे. एमजे अकबर खुद एक कर्मचारी थे, अगर तमाम महिलाएं रोज़ाना उनसे पीड़ित थीं तो वे एक साथ आकर मालिक से उनकी शिकायत कर सकती थीं. अगर वे यौन उत्पीड़क थे तो यह रहस्य है कि महिलाओं ने शिकायत तक नहीं की.’


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तवलीन ने महिलाओं की आर्थिक ज़रूरतों को महत्व देते हुए कहा है, ‘मैं 19 साल की थी तबसे काम कर रही हूं. मैं सिंगल मदर बनी, मुझे नौकरी की जरूरत थी. मैं महिलाओं की आर्थिक ज़रूरतों को समझ सकती हूं. मैंने मीटू आंदोलन का विरोध किया क्योंकि भारत की सबसे सशक्त तबके की महिलाएं आरोप लगा रही हैं. अगर इसमें वे महिलाएं भी शामिल हो जाएं जो वास्तव में कमजोर हैं तो इसे मेरा पूरा समर्थन होगा.’

तवलीन ने लिखा, हम पर स्त्रीद्वेष का आरोप लगाना बकवास है. जहां तक लड़की के सुहैल सेठ के घर जाने का सवाल है, मेरा पक्ष था कि अगर सुहेल उस पर हमला कर रहे थे तो एक दोबारा उनके घर क्यों गई? उसने 10 साल तक इंतज़ार करने की जगह पलटवार क्यों नहीं किया? हमारी पीढ़ी की महिलाओं और मीटू आंदोलन की महिलाओं में यह अंतर है कि हम पीड़ित नहीं थे. हमने लड़ाई लड़ी.

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