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अमेरिका में सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने का खतरा, भारतीय बैंकों और लोगों पर पड़ सकता है इसका असर

घबराये हुए निवेशकों ने दूसरे बैंकों से भी अपने पैसे निकालने शुरू कर दिये. एक दिन में निवेशकों ने बाज़ारों से 197 अरब डॉलर निकाल लिये थे.

सिलिकॉन वैली बैंक/ ani

सिलिकॉन वैली-नाम ही काफी है. आईटी या मॉडर्न टेक्नोलॉजी का केन्द्र है अमेरिका का यह शहर. यहां से इनोवेशन की तरह-तरह की खबरें आती रहती हैं लेकिन आईटी के इस शहर से इस बार ऐसी खबर आई है जिससे सारी दुनिया के वित्तीय हलकों में सनसनी फैल गई है. यहां का सबसे बड़ा बैंक जिसका नाम है सिलिकॉन वैली बैंक अचानक ही अमेरिकी अधिकारियों ने 10 मार्च को बंद कर दिया.

यह अमेरिका का 16 वां सबसे बड़ा बैंक है और इनोवेशन या टेक्नोलॉजी से जुड़ी कंपनियों, स्टार्ट अप और ऐसे ही लोगों के काम आता था. इस बैंक के अचानक डूबने की खबर से वित्तीय दुनिया में चिंता की लहर फैल गई है और लोगों को 2008 याद आने लगा है जब लेहमन ब्रदर्स के डूबने के बाद एक-एक करके कई वित्तीय संस्थाएं डूब गईं.

जिसके नतीजे में यूरोप और अमेरिका में मंदी फैल गई थी और भारत पर भी बड़ा खतरा मंडराने लगा है. इस बार भी वही चिंता है कि कहीं इसका झ़टका भारत तक न पहुंच जाये और हमारा वित्तीय सेक्टर जो अब धीरे-धीरे मजबूत होता जा रहा है, फिर लड़खड़ा न जाये.


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निवेशकों में बढ़ा डर

दरअसल हमारे यहां की कई टेक्नोलॉजी कंपनियों के खाते इस अमेरिकी बैंक में है और अंदाजा है कि ढाई लाख डॉलर से भी ज्यादा पैसा यहां जमा है. ये कंपनियां वो हैं जिनका सिलिकॉन वैली की टेक कंपनियों से करार है और वहां उनके साथ मिलकर काम कर रही हैं.

और इस कारण से यहां की टेक कंपनियों में चिंता फैल गई है. हालांकि अमेरिकी केन्द्रिय बैंक के अधिकारियों ने कहा है कि जिन कंपनियों का ढाई लाख डॉलर से अधिक जमा है उन्हें उनके बीमाकृत धन को निकालने का अधिकार होगा. लेकिन अभी तक वे ऐसा नहीं कर पा रहे हैं.

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अमेरिकी अधिकारियों ने उन्हें जो टेलीफोन नंबर दिया था उस पर फोन करने पर उन्हें कोई जवाब नहीं मिल रहा है. अब यहां पर एक समस्या है और वह कि अमेरिकी नियमों के अनुसार ऐसी विपरीत परिस्थितियों में उन्हीं पैसों को निवेशकों द्वारा निकाला जा सकता है जिनका बीमा किया गया हो. समस्या है कि इस बड़े बैंक में कुल जमा 175 अरब डॉलर मे से लगभग 90 फीसदी का कोई बीमा नहीं है और इस विशाल राशि के डूबने की संभावना है पैदा हो गई है.

अब यह अमेरिकी फेडरल बैंक के अधिकारियों की बुद्धिमता पर निर्भर करेगा कि वे इस संकट को कैसे हल करते हैं और कैसे निवेशकों की जमा राशि को उन्हें लौटा पाते हैं. 2008 का सबक हमारे सामने हैं जब निवेशकों के खरबों डॉलर डूब गये थे. अमेरिकी सरकार इन निवेशकों की मदद को तैयार नहीं थी क्योंकि इतना पैसा जुटाना संभव नहीं था और न ही कोई कंपनी उसके पीछे खड़ा था. इसका नतीजा हुआ कि घबराये हुए निवेशकों ने दूसरे बैंकों से भी अपने पैसे निकालने शुरू कर दिये. एक दिन में निवेशकों ने बाज़ारों से 197 अरब डॉलर निकाल लिये थे.

इससे अमेरिकी सरकार तक हिल गई थी और उसने कार्रवाई की लेकिन लेहमन बैंक को तो डूबना ही था सो वह डूब गई. लेकिन समस्या यह खड़ी हो गई कि लोग हर रोज पैसे निकाल रहे थे और अर्थव्यवस्था के डूबने का खतरा पैदा हो गया था. इसके असर से अमेरिका में बेरोजगारी भी बढ़ गई तथा और भी कई समस्याएं खड़ी हो गईं.

अब यही चिंता सभी को खाये जा रही है. भारत में कई स्टार्ट अप ऐसे हैं जिनके पैसे इस बैंक में जमा हैं और अब उनके सामने अंधेरा छा गया है. बताया जा रहा है कि देश के कम से कम 60 स्टार्ट अप ऐसे हैं जिनका पैसा इस बैंक में है. ये सभी अमेरिकी कंपनियों से जुड़े हुए हैं. इनके सामने बड़ी समस्या आ खड़ी हुई है. बताया जा रहा है कि भारत के आईटी राज्य मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने कहा है कि वह इन सभी स्टार्ट अप से मिलेंगे ताकि इनकी समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने की कोशिश की जा सके. उन्होंने कहा कि स्टार्ट अप भारत की नई इकोनॉमी के लिए जरूरी हैं. सरकार यह समझना चाहती है कि इन स्टार्ट अप को अब किस तरह की समस्याएं आ रही हैं और वह किस तरह से उनका मुकाबला कर सकती है.

भारत सरकार के लिए स्टार्ट अप बेहद जरूरी हैं क्योंकि ये हमारी इकोनॉमी को गति दे रहे हैं और देश में यूनिकॉर्न्स की बढ़ती हुई संख्या आर्थिक संपन्नता ला रही है.

बैंकों पर असर नहीं होगा

सिलिकॉन वैली बैंक के धराशायी हो जाने का असर अमेरिकी बैंकों पर तो पड़ने की संभावना है ही, लेकिन समझा जा रहा है कि भारतीय बैंकों पर इसका असर नहीं के बराबर पड़ेगा और अगर शेयर बाज़ार के रुझान को देखें तो कुछ ऐसा ही लगता है. बैंकर और एक्सपर्ट यह मानकर चल रहे हैं कि इस बैंक के डूबने का कोई बड़ा असर भारतीय बैंकों पर नहीं पड़ेगा. भारत के सबसे बड़े बैंक स्टेट ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन रजनीश कुमार का मानना है कि सिलिकॉन वैली बैंक संकट का भारतीय बैंकिंग व्यवस्था पर इसका कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा.

ऐसा ही विश्वास व्यक्त किया बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकोनॉमिस्ट मदन सबनवीस ने. उनका मानना है कि यह इतना छोटा बैंक है कि इसका असर अमेरिकी बैंकिंग सिस्टम पर भी नहीं पड़ेगा, भारत की तो बात ही अलग है. हमारे लोगों का वहां एक्सपोजर भी नहीं है. ज्यादातर एक्सपर्ट मानते हैं कि इस बैंक के धराशायी होने का असर यहां नहीं होगा. लेकिन यह तो मानना ही पड़ेगा कि इसका असर उन भारतीय स्टार्ट अप पर पड़ेगा जिनका पैसा यहां जमा है या फिर जिन्हें अमेरिकी वेंचर कैपिटलिस्ट इस बैंक के जरिये पैसा देते हैं. ऐसे में भारत सरकार की भूमिका बड़ी हो जाती है. उसे ही इन स्टार्ट अप को सहारा देना होगा. इंटरनेट और सभी के साथ कारोबारी संबंधों के कारण दुनिया अब बहुत छोटी हो गई है और उसके एक हिस्से में अगर कुछ हलचल होती है तो उसका असर दूसरे हिस्से पर पड़ता है बेशक वह बहुत कम ही क्यों न हो.

इस बारे में एक एनालिस्ट ने मजाकिया तरीके से कहा कि हिंडनबर्ग को अडाणी तो दिख गये लेकिन इस बैंक की गड़बड़ियां नहीं दिखीं. अगर पहले दिख जाती तो शायद यह बच ही जाता. यही बात रेटिंग एजेंसियों पर भी लागू होती है जो अब इसके गिरने के बाद इसकी रेटिंग गिरा रहे हैं. अगर उन्होंने पहले ही चेतावनी जारी कर दी होती और रेटिंग गिरा दी होती तो निवेशकों को चूना नहीं लगता, न ही मार्केट में सनसनी फैलती. निवेशकों को आने वाले कुछ दिनों तक स्थिति पर नज़र रखनी होगी. वैसे जिनके पैसों का बीमा नहीं हुआ है उनके पैसे तो डूब ही गये समझो. अमेरिकी फेडरल बैंक उनके पैसे दिलवाएगी या नहीं, अभी कुछ भी कहना मुश्किल है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. विचार निजी हैं.)


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