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26/11 के मास्टरमाइंड साजिद मीर की सजा से लश्कर के आतंक का खतरा खत्म नहीं हुआ

पाकिस्तानी हुक्मरानों ने एफएटीएफ प्रतिबंधों के खतरों से निपटने के लिए जेहादी मुहिम पर रोक जरूर लगा दी है लेकिन कश्मीर में उसके दूसरी पांत के कमांडरों की सक्रियता आसन्न खतरे से आगाह करती है.

तीन सौ नौ रन का पीछा करते 6 विकेट खोकर 94 रन. प्रार्थनाएं बेकार गईं तो हरियाली भरे दिल्ली के फिरोज शाह कोटला स्टेडियम के स्टैंड में भारतीय क्रिकेट के दीवानों की आहत भावनाएं फूट पड़ीं, चारों ओर से प्लास्टिक की बोतलों और निपट हिंदुस्तानी ‘विशेषणों’ की बौछार होने लगी.

मैच देखने आए सैकड़ों पाकिस्तानी यह सब कुछ बड़ी बेचैन नजरों से देख रहे थे. उनमें एक दुबला-पतला, करीने से संवारी दाढ़ी और बालों को बीच से दो फांक किए एक नौजवान भी था. वह शायद एक और जीत के बारे में सोच रहा था, जो अभी आनी थी, जिसका जिक्र मैंने पहले किया.

मार्च 2005 के उस दिन स्टैंड में वह नौजवान लश्कर-ए-तैयबा का 26/11 का ऑपरेशनल हेड साजिद मीर था, जिसे पिछले हफ्ते लाहौर की दहशतगर्दी विरोधी अदालत ने गोपनीय ढंग से मुकदमा चलाया और सजा दी. यह पाकिस्तान की उस प्रतिबद्धता का हिस्सा है, ताकि वह आतंक के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराने पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स या एफएटीएफ के प्रतिबंधों से देश को बचाया जा सके.

कथित तौर पर कराची के एक घर से मीर ने 26/11 की हत्यारी टोली को वायस ओवर इंटरनेट कनेक्शन के जरिए लगातार गाइड किया था और एक मौके पर एक बंधक रिवका होल्ट्जबर्ग की हत्या का ऑर्डर दिया. जांचकर्ताओं का मानना है कि मीर ने पाकिस्तानी-अमेरिकी जेहादी डेविड हेडली के रेकी ऑपरेशन का भी इंतजाम किया था, जिससे हमले की नींव रखी गई थी.

हालांकि मीर को 2011 से इंटर सविर्सेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) की हिरासत में रखा गया था, मगर इस्लामाबाद लंबे वक्त तक उसकी जानकारी से इनकार कर रहा था, जैसा कि मैं पहले लिख चुका हूं. 2019 में अमेरिकी सरकार ने दर्ज किया कि ‘सरकार के इनकारों के बावजूद बड़े पैमाने पर यही माना जाता है कि मीर सरकारी सुरक्षा में पाकिस्तान में ही है.’

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अब लश्कर कमांडर की सजा का मतलब यह दिखाना है कि इस्लामाबाद की राह बदल रही है. मीर की घुमावदार कहानी यह सवाल उठाती है कि यह नया रास्ता कितनी दूर तक कायम रहेगा.

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फ्रेंच कनेक्शन

साजिद मीर की जिंदगी के कुछ कतरे ही उपलब्ध हैं. पासपोर्ट के मुताबिक, मीर भारत आया करता था. उसका जन्म 1976 में बंटवारे के बाद पंजाबी शरणार्थी परिवार में हुआ था. मीर के अब्बा अब्दुल मजीद ने कुछ समय तक सऊदी अरब में काम किया और पाकिस्तान लौटकर छोटा-सा टेक्सटाइल का कारोबार शुरू किया. इस मामले से वाकिफ भारतीय खुफिया अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि लाहौर में कॉलेज की पढ़ाई के बाद मीर की शादी पाकिस्तानी फौज के रिटायर मौलवी की बेटी से हुई और उसके दो बच्चे हुए.

फिर, ऐसे सबूत मिलने लगे कि मीर दुनिया को जलाने की साजिश का केंद्रीय पात्र बना गया है.

9/11 की घटना के बाद ग्वाडेलोप में जन्मे फ्रांसीसी नौसेना का पूर्व कैडेट विली ब्रिगेट तालिबान के साथ लड़ने के लिए पाकिस्तान आया. धर्म परिवर्तन करके इस्लाम में दीक्षित हुआ ब्रिगेट, पेरिस में कॉर्नेस इलाके के मस्जिदों में नव-कट्टरवादी नेटवर्क से जुड़ गया. ये मस्जिद अल्जीरिया के जेहादी सलफी गुट का उपदेश और लड़ाई की शिक्षा देते थे. आज, इस्लामी दुनिया में इसे ही अल कायदा के नाम से जाना जाता है.

आखिरकार ब्रिगेट कई दूसरे देशों के रंगरूटों के साथ मुजफ्फराबाद में लश्कर के ट्रेनिंग कैंप में पहुंचा. फ्रांसीसी जज ज्यां लुई ब्रुगीरी ने बाद में लिखा, ‘बिल’ के साथ लगातार दो बॉडीगार्ड थे. उसके शिष्यों में, ऐसा लगता है, ‘साजिद मीर पाकिस्तानी फौज में ऊंचे दर्जे का अफसर था और शायद आईएसआई में भी था.’

2003 में मीर के खरीदे टिकट पर ब्रिगेट ऑस्ट्रेलिया गया. उसे वहां पाकिस्तान में जन्मे आर्किटेक्ट फहीम लोधी के साथ संभावित निशानों की रेकी का ऑर्डर मिला था. इन निशानों में एक सिडनी के पास परमाणु रिएक्टर भी था. हालांकि फ्रांसीसी खुफिया सूत्रों ने ब्रिगेट पर नजर रखी और सिडनी में उसके साथियों को अपने हवाले लिया.

लोधी अब ऑस्ट्रेलिया में उम्रकैद काट रहा है. ब्रिगेट को फ्रांस में नौ साल की सजा मिली, रिहा हुआ और फिर चौथी पत्नी तथा बच्चे के साथ इस्लामिक स्टेट के साथ जुड़ गया. माना जाता है कि वहां वह लड़ाई में मारा गया.


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लश्कर का भूमंडलीकरण

खुफिया एजेंसियों ने जल्दी ही भनक पा ली कि 9/11 के बाद लश्कर के बनाए जेहादी नेटवर्क की शाखाएं दुनिया भर में पैदा हो गईं. अमेरिका में 2004-2005 में वर्जीनिया में जेहादी नेटवर्क चलाने के लिए ग्यारह लोगों को पकड़ा गया. यह भी खुलासा हुआ कि उनमें चार ने मीर के चलाए कैंप में ट्रेनिंग पाई थी. ब्रिटेन में बम धमाकों के दोषी उमर खय्याम और धीरेन बरोट को भी लश्कर से ट्रेनिंग मिली थी. 2004 में लश्कर जेहादी दानिश अहमद को इराक में पकड़ा गया था, जिसका संबंध कश्मीर से था.

मीर कैसे इन नेटवर्क का केंद्रीय पात्र बन गया यह साफ नहीं है. भारतीय खुफिया सूत्रों के पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि वह कश्मीर में भी था, जो लश्कर के जंगी मुहिम के फोकस में है.

विद्वान सी. क्रिश्चिन फेयर के लेखन से यह साफ है कि लश्कर की विश्व-दृष्टि भी अल कायदा जैसी है. लश्कर का काडर ताजिकिस्तान और चेचन्या से लेकर बोस्निया में अपनी करतूतें दिखा चुका है. दिसंबर 1998 में पाकिस्तानी अखबार जंग ने खबर दी कि लश्कर के पितृ-संगठन मरकज दावात उल-इरशाद के सम्मेलन में 50 से ज्यादा देशों के जेहादी शामिल हुए. संगठन ने ऐलान किया, ‘आप दुनिया में कहीं भी जेहादी मोर्चे पर जा सकते हो और आप पाओगे कि मरकज दावात उल-इरशाद के मुजाहिदीन काफिरों और शैतानों के किले ढहा रहे हैं.’

लश्कर की ट्रेनिंग पाए जेहादी वैश्विक आतंकवाद विरोधी जांच-पड़ताल में लगातार मिलने लगे. 2012 तक लंदन ओलंपिक के दौरान गिब्रालटर में हमले की साजिश के सिलसिले में पाए गए तीन में से एक के बारे में पता चला कि उसे लश्कर की ट्रेनिंग मिली थी.

9/11 की घटना के बाद पाकिस्तानी फौजी हुक्मरानों ने लश्कर के ट्रेनिंग कैंपों से विदेशियों को भगाना शुरू कर दिया और उसके ऑपरेशन कश्मीर तक सीमित कर दिया. हालांकि संगठन के इन्फ्रास्ट्रक्चर को यूं ही छोड़ दिया गया और कुछ समय तक निष्क्रिय रहने के बाद उसके अगुआ फिर सक्रिय हो गए.

लश्कर की सबसे बड़ी पूंजी शहरी पाकिस्तानी राजनयिक सैयद सलीम गिलानी का बेटा और फिलाडेल्फिया के सोशलाइट सेरिल हेडली थे, जो 9/11 के बाद लश्कर के कैंप में आने वाले कई विदेशियों में एक था. डेविड हेडली आखिरकार वहां कैसे पहुंचा, यह भी एक पहेली है. लंबे समय से ऐसे पुख्ता सबूत रहे हैं कि वह अमेरिका की ड्रग इन्फोर्समेंट एजेंसी के लिए जासूसी करता था. दिलचस्प यह भी है कि 2001 से 2008 तक अमेरिकी अधिकारियों ने उसके आतंकवाद से जुड़ाव की कम से कम छह चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया.

भारतीय और अमेरिकी जांचकर्ताओं के मुताबिक, 2005 में आईएसआई ने मुंबई में एक कारोबार शुरू करने को पैसा मुहैया कराया, ताकि वह संभावित निशानों की रेकी कर सके. उसी साल मीर दिल्ली आया, जिससे पता चलता है कि एक जैसी कई मुहिम जारी थी. मीर की देखरेख में हेडली ने भारत के नौ दौरों में ऐसी तस्वीरें जुटाई, जिसकी 26/11 की हत्यारी टोली को ट्रेनिंग देने के लिए लश्कर को जरूरत थी.


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क्या पाकिस्तान गंभीर है?

पाकिस्तान 2018 में एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में रखे जाने के बाद से ऐसा दिखाता रहा है कि वह लश्कर के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है. फरवरी 2020 में लश्कर के प्रमुख हाफिज सईद को आतंकवाद का वित्त पोषण करने के लिए पांच साल की दो सजा साथ-साथ सुनाई गई और फिर अप्रैल में 31 साल की सजा भी सुनाई गई. उसके दूसरे नंबर के साथी जकी-उर-रहमान लखवी और अब्दुल रहमान मकी को दूसरी पांत का होने की वजह से जेल की सजा मिली. हालांकि कोई भी मामला 26/11 से सीधे जुड़ा नहीं था.

2009 में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत अन्ने पीटरसन ने राजनियक संवाद में लिखा, ‘भले सईद तकनीकी तौर पर सड़कों पर नहीं घूम रहा है, लेकिन उसके खिलाफ मुकदमा जीतने की पाकिस्तान सरकार की नाकामी परेशान करने वाली है.’ पाकिस्तान का दावा है कि अब उस परेशानी को ठीक कर दिया गया है.

हालांकि शक की कुछ वजहें हैं, जिससे इन कार्रवाइयों पर नजर थोड़ी कम टिकती है. जैसा कि मैं पहले लिख चुका हूं, 2020 में सजा के बाद सईद को लाहौर के कोट लखपत जेल से हटाकर सफेद रंग के 116ई जोहर टाउन के उसके तीन मंजिला मकान में पहुंचा दिया गया, जहां पिछले साल कथित तौर पर उसे मारने के लिए बम धमाके हुए. पाकिस्तान का आरोप है कि ये धमाके भारतीय खुफिया एजेंसियों ने करवाए. 9/11 के बाद से सईद को कम से कम नौ बार जेल हुई और हर बार कुछ हफ्तों में रिहा हो गया.

उधर, लखवी को जेल में इंटरनेट और मिलने वालों की खुली छूट है. अटकलें तो ये भी हैं कि उसकी बीवी को बच्चा भी होने वाला है.

भारत के नजरिए से इससे भी परेशान करने वाली खबर यह है कि लश्कर के दूसरी पांत के कमांडर, 26/11 के आरोपी मिलिट्री ट्रेनर मुजामिल भट और साजिद सैफुल्लाह जट्ट सक्रिय हैं और नियंत्रण रेखा के पार कश्मीर में हथियार और काडर भेज रहे हैं. हेडली की गवाही में उजागर हुए आईएसआई के अधिकरियों की इसी तरह जांच हुई, लेकिन किसी पर मुकदमा नहीं चला.

लश्कर के असर के स्रोत को जानना मुश्किल नहीं है. नील पादुकोण के मुताबिक, संगठन के मदरसों और धर्मार्थ संस्थाओं के फैलते नेटवर्क का मतलब है कि ‘उसने जमात-ए-इस्लामी की जगह ले ली है, जो ‘पाकिस्तान को राजनैतिक इस्लाम को केंद्र बनाने के लिए बुनियादी इस्लामी क्रांति का हरावल दस्ता था.’ जेहादी विचारों की राजनैतिक पार्टियों और फौज दोनों में काफी समर्थन है.

वैश्विक कार्रवाई की डर से पाकिस्तानी हुक्मरानों ने जेहादी मुहिम पर निर्णायक रोक लगा दी है. लश्कर के जेहादी तब तक जेल में रहेंगे, जब तक एफएटीएफ प्रतिबंधों का खतरा हटा नहीं लेता लेकिन कहानी का अंत शायद यह नहीं है. हाथी घर में ही मौजूद है, बस परदे के पीछे छुपा है.

(लेखक दिप्रिंट के नेशनल सेक्यूरिटी एडिटर हैं. उनका ट्विटर हैंडल @praveenswami है. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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