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इतिहास के पन्नों में झांके विपक्ष, PM मोदी पर व्यक्तिगत निशाना साधकर कोई भला नहीं होने वाला

सत्‍ता से बेदखल होने के कारण कांग्रेस नेताओं की खीझ समझ में आती है लेकिन उन्‍हें इतिहास के पन्‍नों को पलटते रहना चाहिये ताकि वे अपने अतीत से सीखें और सत्‍ता से बेदखल होने वाली गलतियों को बार-बार न दोहरायें.

गुजरात में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी | एएनआई

इस बार भी गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के निशाने पर रहे. रावण और दुर्योधन से उनकी तुलना की गई. सब जानते हैं कि ये दोनों पात्र बुराई के प्रतीक थे. कांग्रेस की पूर्व अध्‍यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी को ‘मौत का सौदागर‘ कहा था जब वह गुजरात के मुख्‍यमंत्री थे. तब भी चुनाव प्रचार का दौर था और सोनिया गांधी ने गुजरात दंगों के लिये जिम्‍मेदार मानते हुए मोदी के खिलाफ ऐसी कठोर टिप्‍पणी की थी. लेकिन आगे चलकर क्‍या हुआ, मोदी दंगों को लेकर लगाये गये सारे आरोपों से बरी हो गये और उन्‍हें सुप्रीम कोर्ट ने भी पाक साफ करार दिया.

इस बार कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अहमदाबाद में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी की तुलना रावण से कर दी. उन्‍होंने कहा, ‘हर जगह मोदी जी वही कुश्ती खेल रहे हैं. नगर निगम के चुनाव आते हैं तो कहा जाता है कि मोदी को वोट दो. आपका कौन सा उम्मीदवार है, उसका प्रचार करो, उसके नाम से वोट मांगो, मोदी को वोट दो, क्या मोदी आकर यहां के नगर निगम के काम करने वाले हैं, क्या मोदी आकर आपके मुसीबत में काम आने वाले हैं, आप तो प्रधानमंत्री हो, आपको काम दिया गया है वो काम करो, वो छोड़कर नगर निगम के चुनाव, एमएलए (विधायक) का चुनाव, लोकसभा का चुनाव, खैर उनको प्रधानमंत्री बनना है तो फिरते रहते हैं लेकिन हर वक्त अपनी ही बात करते हैं, आप किसी को मत देखो, मोदी को देख के वोट दो, अब भई तुम्हारी सूरत कितनी बार देखना, नगर निगम के चुनाव में भी तुम्हारी सूरत देखना, विधानसभा के चुनाव में भी तुम्हारी सूरत देखना, लोकसभा के चुनाव में भी तुम्हारी सूरत देखना, हर जगह, कितने हैं भई, क्या आपके रावण के जैसे सौ मुख हैं, क्या हैं.’

रावण के बयान के बाद खड़गे सुर्खियों में आ गये. बाकी विपक्ष के लिये भी मोदी पर ऐसी और टिप्‍पणी करने का रास्‍ता खुल गया. फिर तृणमूल कांग्रेस की विधायक सावित्री मित्रा ने मोदी को दुर्योधन और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को दुशासन कह दिया. पश्चिम बंगाल विधानसभा में इस विवादास्‍पद टिप्‍पणी को लेकर हंगामा हो गया और अचानक से सावित्री मित्रा को पूरी दुनिया जान गई.

गुजरात में इस बार आम आदमी पार्टी भी चुनावी ताल ठोंक रही है. उसके प्रदेश अध्यक्ष गोपाल इटालिया का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्‍पणी करते दिख रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री के लिए इस वीडियो में नीच शब्द का इस्तेमाल किया.

इटालिया के पहले भी कई वीडियो आए हैं जिनमें आपत्तिजनक टिप्पणी करके वह विवादों को जन्म देते रहे हैं. गोपाल इटालिया ने प्रधानमंत्री मोदी की मां हीरा बेन के बारे में अपमानजनक टिप्पणी कर शालीनता की सारी हदें पार कर दी. हीरा बा राजनीति में नहीं हैं, वे सार्वजनिक जीवन में भी नहीं हैं. उन्होंने कभी किसी के बारे में कुछ नहीं कहा. लेकिन गोपाल इटालिया ने अपनी सियासत के लिए उनके बारे में अपमानजनक बातें कहीं.

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गलौज वाली भाषा बोलने की बात की जाए तो गोपाल इटालिया सीरियल ऑफेंडर रहे हैं. गोपाल इटालिया के ऐसे वीडियो की लंबी लिस्ट रही है. भाजपा के सारे नेता उनके निशाने पर रहते हैं. एक वीडियो में उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह, गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जीतू वघाणी के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया.


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मोदी पर हुए लगातार सियासी हमले

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी गुजरात दंगों के बाद से कांग्रेस ही नहीं बल्कि तमाम विपक्ष के निशाने पर रहे. 2007 में गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्‍यमंत्री मोदी को घेरने की कोशिश हो रही थी. केंद्र में संयुक्‍त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार थी और गुजरात दंगों को लेकर मोदी संसद से लेकर सड़क तक निशाने पर थे. 2017 में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने पिछले चुनावों की पराजयों से कोई सीख नहीं ली और प्रधानमंत्री मोदी पर ‘नीच‘ का तंज कसा. इस बार भी यह बयान कांग्रेस पर भारी पड़ा. जब मतों की गिनती हो रही तो ये लगने लगा था कि इस बार गुजरात में कांग्रेस भाजपा को सत्‍ता से बेदखल कर देगी. कांग्रेस ने इस चुनाव में पाटीदार आंदोलन को भुनाती दिख रही थी लेकिन चुनाव के बीच में मोदी पर की गई इस टिप्‍पणी ने बाजी पलट दी.

पिछले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान पर निशाना साधते हुए तत्‍कालीन कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मोदी पर हमला किया और कटाक्ष किया कि सभी ‘चोरों’ का उपनाम मोदी (भगोड़े हीरा कारोबारी नीरव मोदी के संदर्भ में) क्यों है. उन्‍होंने राफेल लड़ाकू जेट विमान सौदे में कथित भ्रष्टाचार के मामले को भी मोदी से जोड़ा और कहा, ‘चौकीदार चोर है’. अंतत: यह मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा और राहुल गांधी को अपने बयान के लिए माफी भी मांगनी पड़ी. शीर्ष अदालत ने बाद में राहुल गांधी के खिलाफ दायर अवमानना ​​​​मामले को बंद कर दिया, क्योंकि उन्होंने गलत तरीके से राफेल मामले के आदेश को प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अपने ‘चौकीदार चोर है’ से जोड़ दिया था.

यह पहला मौका नहीं है जब विपक्ष ने प्रधानमंत्री के सर्वोच्‍च पद पर बैठे व्‍यक्ति के खिलाफ अपमानजनक टिप्‍पणी की है. इतिहास गवाह है कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को विपक्ष के नेताओं ने मोम की गुड़िया, गूंगी गुड़िया कहा (राम मनोहर लोहिया ने इंदिरा को गूंगी गुड़िया कहा था.) था. विपक्ष ने  कोई कसर नहीं छोड़ी थी और एक महिला पर जो भी लांछन लगाये जा सकते हैं वो इंदिरा गांधी पर भी लगाये गये. उन भद्दी गालियों का जिक्र तक नहीं किया जा सकता. लेकिन इस दुर्व्‍यवहार की कीमत उनके विरोधियों और विपक्ष को भलीभांति चुकानी पड़ी और इंदिरा गांधी का कद दिनोंदिन मजबूत होता गया.

यहां तक कि इमरजेंसी के बाद जब इंदिरा गांधी की पराजय हुई तो उनके खिलाफ शाह जांच आयोग बैठी. तीन अक्‍टूबर 1977 के दिन शाम के वक्त केंद्रीय जांच ब्‍यूरो (सीबीआई) की टीम इंदिरा गांधी के आवास पर पहुंची. गिरफ्तारी के लिए घंटे भर का वक्त दिया गया. इंदिरा गांधी बाहर आईं और हथकड़ी लगाने के लिए कहा. इस पर खूब हंगामा हुआ और रातभर उनको फरीदाबाद के एक गेस्ट हाउस में रखा गया. अगले दिन चार अक्टूबर को उनको मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया. पुलिस के पास पर्याप्‍त सबूत नहीं थे और उनको रिहा कर दिया गया. कांग्रेस ने अपनी नेता के साथ हुये इन तमाम दुर्व्‍यवहार से सबक नहीं सीखा.


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मोदी ने विपक्ष की टिप्पणियों को अपने पक्ष में किया

प्रधानमंत्री मोदी पर होने वाली निजी टिप्पणी और अपमान कांग्रेस की काफी पुरानी ही नहीं बल्कि विफल रणनीति रही है. मोदी ने चुनावों से पहले व्यक्तिगत टिप्पणी सुनने और उन्हें अपने पक्ष में करने में महारत हासिल कर ली है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब कांग्रेस ने सीधे तौर पर मोदी पर हमला किया लेकिन हर बार उन्होंने सफलतापूर्वक बाजी पलट दी और विजयी हुए.

प्रधानमंत्री मोदी ने 12 नवंबर को हैदराबाद में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा, था कि उन्हें रोजाना 2-3 किलो गाली मिलती हैं, लेकिन उनका शरीर उन गालियों को पोषण में बदल देता है. उन्होंने कहा कि लोग मुझसे पूछते हैं कि मोदी जी आप थकते नहीं है क्या, तो मैं उनसे कहता हूं कि भगवान ने मेरे शरीर में कुछ ऐसा मैकेनिज्म बनाया है कि गालियां प्रोसेस होकर न्यूट्रिशन (पोषण) बन जाती हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष की गालियों को पोषण का जरिया बताया था. उन्‍होंने कहा, ‘पिछले दो दशकों से, हमने देखा है कि विकृत मानसिकता वाले लोग इसे पसंद नहीं करते हैं. जब भी गुजरात के लिए कुछ अच्छा होता है या गुजराती कुछ हासिल करता है, वे गुजरात का अपमान करते हैं और गुजराती लोगों को गाली देते हैं. कुछ राजनीतिक दलों का मानना है कि उनकी विचारधारा अधूरी है अगर वे गुजरात और गुजराती लोगों को गाली नहीं देते. क्या आपको नहीं लगता कि गुजरात और उसके लोगों को दिन-रात गाली देने और उनका अपमान करने वालों को सबक सिखाने का समय आ गया है.’

हैदराबाद में विपक्ष के कड़वे बोल से निपटने के गुर बताते हुए मोदी ने व्‍यंगात्‍मक लहजे में कहा ‘वो लोग मेरे खिलाफ बोलने के लिए गालियों की डिक्शनरी प्रकाशित करते हैं. मैं बीजेपी कार्यकर्ताओं से अनुरोध करता हूं कि ऐसे बयानों से दुखी या नाराज़ ना हों. बस उनका मज़ा उठाएं, अच्छी चाय पीएं और इस उम्मीद के साथ सोएं कि अगले दिन अंधेरा छंट जाएगा और कमल खिल जाएगा.’

अब गुजरात में मोदी ने कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री के औकात वाले बयान पर तंज कसा. मोदी ने चुनावी सभा में कहा, ‘मैं तो जनता का सेवक हूं, मेरी औकात ही क्या है.’

लोकतंत्र में हर राजनीतिक दल को सत्‍ता की चाहत रखने का अधिकार है और इसे जनता भी भलीभांति समझती है लेकिन दुर्भाग्‍य से हर चुनाव में जनहित से जुड़े मुद्दे इस तरह की अपमानजनक टिप्‍पणियों के आगे गौण हो जाते हैं. आरोप लगाने वाले को लगता है कि उसने कुछ गलत नहीं किया और ऐसे में आरोप झेलने वाले को अपना बचाव करना होता है. लेकिन जनता अक्‍सर उसी के साथ खड़ी दिखी है जो इन आरोपों का करारा जवाब देने में सक्षम होता है. इसका मतलब यह नहीं है कि वह भी आरोप लगाने वाले के स्‍तर पर उतर जाये.

मोदी जिस तरह से अपने पर लगने वाले आरोपों को राष्‍ट्र गौरव और गुजरात गौरव के अपमान से जोड़ते रहे हैं फिलहाल उसकी कोई काट नहीं दिखी है. सत्‍ता से बेदखल होने के कारण कांग्रेस नेताओं की खीझ समझ में आती है लेकिन उन्‍हें इतिहास के पन्‍नों को पलटते रहना चाहिये ताकि वे अपने अतीत से सीखें और सत्‍ता से बेदखल होने वाली गलतियों को बार-बार न दोहरायें. इसी तरह सत्‍ता की चाहत रखने वाले बाकी विपक्ष को भी समझना होगा कि व्‍यक्तिगत आरोपों से उनका भला नहीं होने वाला है. सत्‍ता पक्ष की कमजोरियों को भुनाने की कोशिश करके ही वे अपनी किस्‍मत का खेल, खेल सकते हैं.

(लेखक अशोक उपाध्‍याय वरिष्‍ठ पत्रकार हैं. वह @aupadhyay24 पर ट्वीट करते हैं . व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: कृष्ण मुरारी)


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