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तुर्की में NDRF की मौजूदगी भारत के सॉफ्ट पावर को दिखाता है, यह NATO के लिए एक संदेश भी है

तुर्की और सीरिया में आए भूकंप के बाद भारत द्वारा दी गई सहायता, मानवीय मदद प्रदाने करने की देश की परंपरा का हिस्सा है.

(भारतीय सेना की एक महिला अधिकारी तुर्की महिला के गले लगती हुई | फोटो: ट्विटर/@adgpi)

“ऑपरेशन दोस्त” की छठी उड़ान आपातकालीन आपूर्ति, बचाव कर्मियों, स्निफर डॉग स्क्वॉड, दवा और चिकित्सा उपकरण और अन्य राहत सामग्री लेकर तुर्की में उतर चुकी है. विनाशकारी भूकंप जिसने जीवन और संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचाया है, ने तुर्की और सीरिया दोनों में सामान्य जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है. घंटों के भीतर, भारत ने आपदा राहत सामग्री की पेशकश की, जिसे तुर्की ने यह कहते हुए स्वीकार किया, “जब हमने चिकित्सा सहायता मांगी तो भारत प्रतिक्रिया देने वाले पहले देशों में से एक था”. कई अन्य देशों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों ने अभी तक आपदा पर प्रतिक्रिया नहीं दी है.

इस बीच, तुर्की के साथ एकजुटता दिखाने के लिए नाटो मुख्यालय में मंगलवार को सभी झंडे आधे झुके रहे. विडंबना यह है कि ट्वीट में तुर्की को ‘सहयोगी’ के रूप में संदर्भित किया गया है न कि सदस्य के रूप में. तुर्की 1952 में शीत युद्ध के चरम पर नाटो का सदस्य बन गया और तत्कालीन सोवियत संघ के बजाय पश्चिम में अपने दोस्तों का पक्ष लेने का विकल्प चुना. नाटो से मानवीय सहायता अभी तक तुर्की में नहीं पहुंची है और संभवत: सीरिया तक भी नहीं पहुंचेगी.

भारत ने स्थानीय प्रशासन और पर्यावरण उप मंत्री के माध्यम से सीरिया को पोर्टेबल ईसीजी मशीन, पेशेंट मॉनिटर और अन्य आवश्यक चिकित्सा वस्तुओं सहित दवाओं और उपकरणों से युक्त आपातकालीन राहत खेप भेजी है. चल रहे संघर्ष और भू-राजनीतिक बाधाएं सीरिया में जरूरतमंदों तक राहत सामग्री पहुंचाना मुश्किल बना रही हैं. नई दिल्ली के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है कि वह सुदूर इलाकों में भी जरूरतमंदों की मदद करने के लिए सीरियाई और अन्य अंतरराष्ट्रीय आपदा राहत एजेंसियों के साथ संपर्क स्थापित करे.

इतने तीव्र प्राकृतिक आपदा के बीच तुर्की और सीरिया को भारत की सहायता, वापसी की उम्मीद किए बिना, मानवीय सहायता प्रदान करने की देश की परंपरा का हिस्सा है. भारत ने यूएनजीए में यहां तक घोषणा की थी कि “आपदाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली चुनौतियों का सामूहिक और सहकारी समाधान खोजने के लिए राष्ट्र सहयोग कर सकते हैं और वास्तव में उन्हें सहयोग करना चाहिए”.

तुर्की के लिए आपदा ऐसे समय में आई है जब देश की अर्थव्यवस्था प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रही है. ब्याज नहीं वसूलने के इस्लामिक बैंकिंग विचारों वाली सरकार ने ब्याज दरों को 19 प्रतिशत से घटाकर 9 प्रतिशत कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप देश की मुद्रा 2021 में गिर गई और फिर पिछले 30 प्रतिशत की और भी गिरावट देखी गई. महंगाई 85 प्रतिशत तक है और ईंधन, भोजन और दैनिक आवश्यकता की अन्य वस्तुओं की कीमतें आसमान छू गई हैं. आर्थिक समस्याओं के बीच, एर्दोगन की विदेश नीति में सीरिया में असद की सरकार को गिराने के असफल प्रयास और लगभग साढ़े तीन मिलियन सीरियाई शरणार्थियों की मदद करना, सामाजिक तौर पर मुश्किल खड़े कर रहा है और संसाधनों पर दबाव डाल रहा है.

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चुनावी राजनीति जारी है

यहां तक कि मुद्रास्फीति और आर्थिक संकट आबादी को परेशान कर रहे हैं, तुर्की में राजनीतिक वर्ग चुनावी गणित में फंसी हुई है. तुर्की में इस साल जून में राष्ट्रपति और संसदीय चुनाव होने थे लेकिन राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने अचानक और आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए घोषणा की कि चुनाव निर्धारित समय से एक महीने पहले मई में होंगे. इसने विपक्ष को आश्चर्यचकित कर दिया, जिनके बारे में कहा जाता था कि वे मतदाताओं के सबसे बड़े वर्ग, पहली बार मतदान करने वाले युवाओं से संपर्क करने के लिए एक बड़ा गठबंधन बना रहे थे. ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्ष को एक मजबूत नेता के खिलाफ खुद को मजबूत करने में कठिन समय लग रहा है, जो पिछले दो दशकों से सत्ता में है और जिसकी जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (एके पार्टी) कट्टरपंथी इस्लामी विचारों की ओर मजबूत झुकाव रखती है और कथित रूप से केमल अतातुर्क के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार से दूर हो रही है.

जबकि प्राकृतिक आपदाएं अप्रत्याशित होती हैं और देश के आर्थिक और सामाजिक जीवन को बहुत प्रभावित करती हैं. इसलिए राजनीतिक सत्ता के सामने तत्काल प्रतिक्रिया दिखाने और अधिकतम लोगों की संतुष्टि के लिए स्थिति को संभालने की बड़ी जिम्मेदारी होती है. यदि राजनीतिक प्रतिष्ठान विफल हो जाता है या उनकी विफलता की धारणा बनाने की अनुमति देता है, तो उनका राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ जाता है.

नेपाल में 2015 में आए भीषण भूकंप में 8,000 से अधिक लोग मारे गए थे और छह लाख से अधिक घर नष्ट हो गए थे. यद्यपि मानवीय सहायता लगभग तुरंत आ गई लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक पीड़ित लोगों को राहत नहीं मिल पाई. बड़े पैमाने पर भूकंप आए जिससे लोग खुले में रहने को मजबूर हो गए. इन कारकों ने आपदा से निपटने के सरकार के तरीके की व्यापक आलोचना हुई. इसके बाद हुए चुनावों में, नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों चुनाव में जीत मिली.

लेकिन राजनीति ने आपदा से प्रभावित लोगों की दुर्दशा को और भी बढ़ा दिया. 2010 के चिली भूकंप के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक झटकों पर कई रिपोर्टें हमारी बीच मौजूद हैं.

एर्दोगन मीडिया के एक बड़े हिस्से पर कड़ा नियंत्रण स्थापित करने में कामयाब रहे हैं और अपने “अमीर व्यापारिक मित्रों” के माध्यम से कुछ अन्य लोगों को भी खरीद लिया है. वह राष्ट्रपति के रूप में चुनावी मैदान में उतरेंगे और इससे उन्हें फिर से अपने विरोधियों पर बढ़त मिलेगी, जो भारी वित्तीय संकट का सामना कर सकते हैं. उनके चुनावी कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिए उनके पास एक मजबूत पार्टी कैडर भी है, जबकि उनके विरोधी अभी तक एक आम उम्मीदवार और आम आर्थिक कार्यक्रम भी सामने नहीं रख पाए हैं.

चुनावी परिणाम चाहे जो भी हों, चाहे जब भी चुनाव हो, नई दिल्ली को अपने दम पर तुर्की की व्यापक आबादी तक पहुंचना होगा और लोगों के बीच एक जीवंत और स्वस्थ संपर्क स्थापित करना होगा. लोगों और देशों तक पहुंचने के लिए सॉफ्ट पावर अप्रोच महत्वपूर्ण है. और अब मानवीय सहायता सॉफ्ट पावर का एक और जरिया है.

(शेषाद्री चारी ‘ऑर्गेनाइज़र’ के संपादक रह चुके हैं. वह @seshadrichari पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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