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मोदी की भाजपा वाले भारत में सब ‘चंगा’ है, कोरोना संकट मानो देश में हो ही ना

नौ मिनट के एक नये वीडियो में भाजपा ने मोदी सरकार के छह साल की एक ऐसी खुशनुमा तस्वीर पेश की है कि आपको यह अंदाजा ही नहीं लग पाएगा कि भारत संकट के दौर से गुजर रहा है.

फाइल फोटो: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह/ ट्विटर

राहुल गांधी ने दलितों को कभी सफलता का एक मंत्र दिया था— बृहस्पति ग्रह वाली गति पकड़िए. लगता है भाजपा ने इस मंत्र को अपना लिया है. उसने हकीकत की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के दायरे से दूर रहने की गति हासिल कर ली है. भारत की हकीकत— जनजीवन और आजीविका के संकट की हकीकत से !

भाजपा ने नरेंद्र मोदी सरकार की छठी वर्षगांठ पर शनिवार को जो 9 मिनट का वीडियो जारी किया है उसे देखने के बाद आप यही सोचने लगेंगे कि देश में न तो कोई कोरोनावायरस का संकट है, न सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर कोई समस्या है औए न कोई आर्थिक संकट है. इस वीडियो में कारों से भरे चमकते राजमार्गों, शहरों के तमाम कोनों के बीच दौड़ते शानदार मेट्रो के दृश्य आपको एक अलग ही दुनिया में पहुंचा देते हैं. कहीं कोई प्रवासी मजदूर नहीं है, सड़क पर बच्चे जनने को मजबूर कोई महिला नहीं है, न ही फफोलों से भरे पांवों से पैदल चलते थके-हारे बच्चे हैं. इस वीडियो में चारों तरफ खुशी से दमकते चेहरे हैं— ‘स्किल इंडिया’ कार्यक्रम के तहत रोजगार पाए 70 लाख युवा हैं, ‘मुद्रा’ योजना के कारण स्वरोजगार में लगे 24 करोड़ लोग हैं जो दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं, आदि-आदि.

रोजगार खत्म होने, कारोबार बरबाद होने की बातें करने वालों की परवाह कौन करे? मोदी के भारत में इस तरह की अपशकुनी आवाजें बेमानी हैं.

खंडन

पूरे 9.01 के मिनट के वीडियो क्लिप को देख जाइए, आपको लगेगा कि आप एच.जी. वेल्स के मशहूर विज्ञान उपन्यास ‘द टाइम मशीन’ के एक पात्र हैं और भारत के वर्तमान को छोड़ अतीत से लेकर भविष्य तक हर काल में सफर कर रहे हैं. आप कोरोनावायरस से यानी वर्तमान से बचे हुए हैं. ‘मोदी सरकार के 6 साल… बेमिसाल’ नामक यह वीडियो भाजपा की काल्पनिक दुनिया की झांकी प्रस्तुत करता है.

इस दुनिया में, प्रधानमंत्री अगर 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा करते हैं तो आपको इस पर विश्वास करना ही होगा, और यह बुदबुदाने की जरूरत नहीं है कि सरकारी आंकड़ों का कुल जोड़ इस राशि का छोटा-सा हिस्सा भर है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने डिप्टी अनुराग ठाकुर के साथ अपने उबाऊ प्रेस कॉन्फरेंस में इस पैकेज पर कोई सवाल पूछने की इजाजत नहीं देंगी, हिन्दी पट्टी के अपने मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए बेशक हिन्दी बोलते हुए वे और ऊब पैदा करेंगी.

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आपको यकीन करना ही होगा कि रेलवे ने मजदूरों की यात्रा का 85 प्रतिशत खर्च उठाया, भले ही खुद मजदूरों ने या राज्य सरकारों ने उनके टिकट का भुगतान क्यों न किया हो. अगर आप तथ्यों के लिए रेल मंत्री पीयूष गोयल के ट्वीटर टाइमलाइन को देखेंगे तो भारत के चार्टर्ड एकाउंटेंटों के बारे में आपका ज्ञान और बढ़ेगा. गोयल ने पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, और झारखंड में विपक्षी दलों की सरकारों पर आरोप लगाया कि वे केंद्र सरकार को प्रवासी मजदूरों के लिए अपने यहां ट्रेन ले जाने की इजाजत नहीं दे रही हैं. इन राज्य के मुख्यमंत्रियों ने इसका जोरदार खंडन किया. गोयल ने आरोपों के पक्ष में तथ्य पेश करने की जहमत नहीं उठाई.

केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह ने, जिन्होंने पहले तो यह कहा कि शहरों से मजदूरों का पलायन लॉकडाउन का उल्लंघन है और राज्यों को इस रोकना चाहिए, लेकिन बाद में उनका विचार बदल गया. पिछले सप्ताह उन्होंने अपनी पार्टी को हाइवे और रेल पटरियों के किनारे तम्बू लगाकर मजदूरों के बीच चप्पल, खाना, पानी बांटने का निर्देश जारी किया. घर लौट रहे इन मजदूरों को शायद स्पोर्टस शू की जरूरत थी लेकिन भाजपा ने तय किया होगा कि लंबी पदयात्रा में चप्पल ज्यादा आरामदेह होगी. और सड़कों व रेल पटरियों पर पैदल चलते हुए स्नान करने के लिए शायद साबुन ज्यादा सुविधाजनक होगा.

तो और बुरा हो सकता था

क्या यह वही भाजपा है जिसने भारतीय राजनीति के नियम-कायदे बदल दिए? हकीकत से यह इतनी कट भी सकती है! यही वजह है कि 26 मई को जब मोदी की सरकार अपने छह वर्ष पूरे करने जा रही है तब हर कोई इस सत्ताधारी पार्टी को गहरी नज़र से देख रहा है. 2014 की 26 मई को ही मोदी ने शपथ ली थी. क्या उनकी सरकार जमीनी हकीकत से कट रही है, या ‘शाइनिंग इंडिया’ वाली रणनीति कोई सोची-समझी चाल है?

ऊपर से तो यही लगता है कि मोदी और शाह रास्ता भटक चुके हैं, वरना वे लाखों प्रवासी मजदूरों की बदहाली की ओर से आंख कैसे मूंद सकते हैं, या यह कैसे भूल सकते हैं कि इस आशावादी भारत ने उन्हें जबरदस्त समर्थन दिया था? ऐसा नहीं है कि वे अपनी मुसीबतों के लिए प्रधानमंत्री से किसी क्षमायाचना की अपेक्षा कर रहे थे. आखिर इस बात का क्या जवाब हो सकता है कि जब देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर इमरजेंसी के हालात बने हों, अर्थव्यवस्था तबाह हो रही हो और इन सबका मुक़ाबला करने के लिए एकदम नये उपायों की खोज में जुट जाने की जरूरत हो, तब सरकार अपने प्रचार, जनमत नियंत्रण और विपक्ष पर हमले करने पर ज़ोर दे रही है?


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हालांकि वह कृषि उत्पाद मार्केटिंग कमिटियों को निष्प्रभावी करने और भाजपा शासित राज्यों को श्रम क़ानूनों में सुधार करने के निर्देश देने जैसे कुछ साहसिक कदम भी उठा रही है मगर ऐसा लगता है कि वह वैचारिक संकट से ग्रस्त है. जरा देखिए कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने काम के घंटों को 8 से बढ़ाकर 12 करने के आदेश को किस तरह वापस ले लिया. संभावित निवेशक ऐसी ढुलमुल सरकारों पर कैसे भरोसा करेंगे? प्रधानमंत्री मोदी भूमि सुधारों की बातें तो करते हैं लेकिन भूमि अधिग्रहण विधेयक को आगे बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. कोरोना संकट पर दुराव-छिपाव करने का राजनीतिक रूप से आत्मघाती कदम उठाने वाली ममता बनर्जी पर तो शाह की नज़र कड़ी हो जाती है मगर भाजपा शासित गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बेकाबू होते इस संकट पर वे और मोदी कुछ नहीं कहते.

राजनीतिक संदेश देने में तो मोदी-शाह सरकार को माहिर माना जाता रहा है मगर ऐसे कई उदाहरण हैं कि वह इस मोर्चे पर लड़खड़ाती दिखी है. क्या सचमुच वह इस मामले में माहिर थी? कई कारणों से वे यह सोच सकते हैं कि सब कुछ उनके काबू में है. आखिर, विपक्ष का कोई नेता तो मुक़ाबले में कहीं है नहीं. मोदी प्रवासी मजदूरों या और किसी को ‘सौरी’ कह नहीं सकते, क्योंकि यह अपनी गलती को कबूल करना होगा. एक शक्तिशाली, निर्णायक नेता तथा विश्व मसीहा मोदी भला गलती कैसे कर सकते हैं. यही वजह है कि उन्होंने कभी यह कबूल नहीं किया कि नोटबंदी भारी भूल थी, कि जीएसटी को गलत तरीके से लागू किया गया. जैसा कि भाजपा का उक्त वीडियो दावा करता है, जनता के सौभाग्य से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी गलती कर ही नहीं सकते.

मोदी ने देश में लॉकडाउन लगाने और फिर उसे आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्र के नाम सम्बोधन किया. सख्त वक़्त आता है तो सख्त शख्स सक्रिय हो जाता है. लॉकडाउन का फैसला कठिन था और मोदी सरीखा सख्त तथा निर्णायक नेता ही ऐसा फैसला कर सकता था. लेकिन जब कोरोनावायरस के मामले बढ़ते गए और बदकिस्मत गरीबों तथा मजदूरों की तबाही की तस्वीरें सामने आने लगीं तो प्रधानमंत्री ने तीसरा लॉकडाउन घोषित करने की ज़िम्मेदारी अपने बहुख्यात नंबर दो अमित शाह के मातहत गृह मंत्रालय के कंधे पर डाल दी. और चौथा लॉकडाउन घोषित करने का जिम्मा गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ऑथरिटी (एनडीएमए) को सौंप दिया.

जहां तक भारत के प्रवासी मजदूरों की बात है, उन्हें माफ करो और भूल जाओ का मंत्र सीखना पड़ेगा. आखिर उनके पास उपाय भी क्या है. विपक्ष तो नाम के लिए भी नहीं रह गया है. और जहां तक आगामी महीनों या सालों में वैक्सीन के अभाव में होने वाली मौतों और आर्थिक तबाही की बात है, तो लोग अगर इसके लिए जवाहरलाल नेहरू और मनमोहन सिंह को जिम्मेदार बताए जाने पर विश्वास करना छोड़ भी देंगे तो कोरोनावायरस पर तो दोष मढ़ा ही जा सकता है.

आखिर, प्रधानमंत्री मोदी ने हर चीज़ और हर शख्स पर लॉकडाउन लगाने से लेकर तमाम उपाय तो किए ही! क्या नहीं किए? बुरे से भी बुरा हो जाए तब भी मोदी सरकार के बचाव में यह तो कहा ही जा सकता है कि वह न होती तो और बुरा हो सकता था.

सब ठीक हो जाएगा

भाजपा सरकार का वर्षगांठ वीडियो— जिसे उस दिन जारी किया गया जिस दिन 2014 में चुनाव परिणाम आए थे— पुराने सपनों को नये मुलम्मे चढ़ाकर बेचने की ही एक और कोशिश है. जो फिर भी नाखुश हैं वे राजस्थान काडर के आइएएस अधिकारी संजय दीक्षित के इस खुलासे से संतोष हासिल कर सकते हैं, जो उन्होंने 12 मई को प्रधानमंत्री द्वारा राहत पैकेज की घोषणा के बाद किया था— ‘भारत की आबादी : 133 करोड़; पैकेज : 20 लाख करोड़ रुपये का; हिसाब लगाइए, प्रति व्यक्ति 15 लाख रु. 2014 में किया गया वादा पूरा हुआ !’ मुमकिन है न भाई!


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काल्पनिक दुनिया गढ़ने के मोदी-शाह मॉडल के साथ एक ही दिक्कत यह है कि यह दुनिया अस्थायी है. ऐसा लगता नहीं कि कोरोनावायरस जल्दी जाने वाला है इसलिए बेरोजगार होने वालों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ने की ही आशंका है. जल्दी ही लाखों लोग 1974 की फिल्म ‘रोटी, कपड़ा, मकान’ के मनोज कुमार की तरह शायद अपनी डिग्रियों को जलाने पर उतारू हो जाएं. ऐसे लोगों के लिए मोदी शायद यह पुराना अंग्रेजी गाना बजा सकते हैं, जो यह संदेश देता है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा, किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है, किसी को हताशा में कोई कदम उठाने की जरूरत नहीं है, हालात उतने बुरे नहीं हैं जितना तुम सोच रहे हो

लेकिन मुझे लगता है कि बेबे रेक्षा का 2018 का यह हिट गाना शायद उनके लिए ज्यादा उपयुक्त होगा, जिसमें यह कहा गया है कि ‘मैं परेशान हूं, वह मुझे प्यार नहीं करता, नहीं प्यार करता है वो मुझे, लेकिन कोई बात नहीं, मुझे खुद से प्यार है, हां मैं खुद को प्यार करती हूं, सब ठीक हो जाएगा, सब सही हो जाएगा… ‘

(इस लेख को अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं,यहां क्लिक करें)

(यहां प्रस्तुत विचार निज़ हैं)

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