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मोदी या राहुल को नहीं, तो फिर 2019 में आप किसको वोट देंगे?

ट्रेन में अजनबियों से बातचीत के ज़रिए 2019 के आम चुनाव पर एक नज़र.

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प्रधानमंत्री मोदी, सुषमा स्वराज, राहुल गांधी और लालकृष्ण आडवाणी संसद भवन में ,नई दिल्ली | गेटी

शुक्रवार को उदयपुर से इंदौर की एक ट्रेन में मैं मंदसौर के एक सेवानिवृत बैंक मैनेजर, उनकी पत्नी जिनकी राजनीति में रुचि नहीं थी लेकिन जो हमारी बातचीत में दिलचस्पी ले रही थी, और 20-25 साल के एक युवक के साथ था. उदयपुर में रहने वाला युवक काम के सिलसिले में नियमित रूप से उज्जैन और इंदौर जाया करता है. एक फाइनेंस कंपनी के क्रेडिट रिस्क विश्लेषक के रूप में आवेदनकर्ताओं से मिलकर उनकी ऋण हासिल करने की क्षमता की छानबीन के लिए उसे यात्राएं करनी होती है.

राजनीति पर सामान्य चर्चा से शुरुआत हुई: दोनों ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वोटर और मोदी समर्थक थे लेकिन दोनों ही मध्य प्रदेश और राजस्थान में पार्टी के हारने की उम्मीद कर रहे थे. इस बात को लेकर दोनों ही संतुष्ट थे. राजस्थान में वसुंधरा को हटाया जाना था, और मध्य प्रदेश में समस्या भाजपा विधायकों और कार्यकर्ताओं की थी.

पर मोदी के बारे में क्या कहेंगे? युवक ने कहा ‘मोदी ठीक हैं’, बैंक मैनेजर ने भी यही कहा. 2014 के ‘ज़बरदस्त’ मोदी 2018 में ‘ठीक’ हो गए हैं, इस बात पर गौर करते हुए मैंने पूछा कि वे मोदी को क्यों पसंद करते हैं.

क्रेडिट रिस्ट विश्लेषक ने कहा, ‘ऐसा है कि आप यदि उनकी राहुल से तुलना करें…’

मैं: ‘एक मिनट के लिए, तुलना नहीं करें तो…’

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उसने कहा, ‘लेकिन हमें तुलना करनी होगी. यह बहुविकल्प वाले सवाल की तरह है. सिर्फ चार विकल्प हैं.’

मैंने पूछा, ‘मान लें कि यह एक बहुविकल्प वाला सवाल नहीं है. यह निबंध का विषय है. मोदी के कामकाज़ का आकलन करें. उन्होंने क्या हासिल किया?’

वह एक क्षण के लिए रुका, और फिर बोला, ‘ऐसा है कि अर्थव्यवस्था के मामले में उनका प्रदर्शन बहुत खराब रहा है. नोटबंदी उनका सबसे बुरा फैसला था. उसके कारण आई मंदी से हम आज तक उबर नहीं पाए हैं.’

मैंने उपलब्धियां जाननी चाही थी, गिनाई गईं कमियां.

मैंने थोड़ा और कुरेदा, ‘तो फिर आप मोदी को ठीक क्यों बताते हैं?’

‘बातों का बाज़ीगर

ऋण ज़ोख़िम का विश्लेषण करने वाले ने कहा, ‘देखिए, उन्होंने दुनिया में भारत का कद ऊंचा किया है. हर देश में जाकर उन्होंने सुनिश्चित किया कि दुनिया भारतीयों की इज़्ज़त करे. विदेशों में मेरे रिश्तेदार हैं और वे बताते हैं कि कैसे उन्हें ब्राउनी और क्या-क्या नहीं कहा जाता था, पर मोदी ने उन्हें गौरवान्वित महसूस कराया.’

‘वह जहां भी जाते हैं, प्रवासी भारतीयों से मिलते हैं… मुझे खुशी होती है कि वे एनआरआई भारतीयों से जाकर मिलते हैं. इससे ज़ाहिर होता है कि वह हर जगह रह रहे भारतीयों की सोचते हैं.’

मैंने उनकी विदेश नीति संबंधी नाकामियों और नीतियों में उलटफेर की चर्चा करते हुए कहा, ‘ठीक है, पर क्या मोदी ने अन्य देशों से रिश्तों को बेहतर बनाया?’

‘हां, हां,’ युवक ने मुझसे सहमति जताकर मुझे चौंका दिया. ‘विदेशी नीति के मामले में भी वे खराब रहे हैं.’

‘तो फिर वे ठीक कहां से हुए?’

उसने कहा, ‘देखिए, वह बहुत स्मार्ट नेता हैं जो हमेशा दुश्मनों को पराजित करता है. जैसा कि शतरंज में होता है, आपका उद्देश्य अपने शत्रु को पराजित करना होता है…’

‘पर राजनीति में ये कोई अच्छी बात नहीं है. लोकतंत्र में एक विपक्ष की दरकार होती है,’ मैंने टिप्पणी की.

‘हां, पर मुझे मोदी का एक स्मार्ट नेता होना पसंद है. जनता स्मार्ट लोगों को पसंद करती है.’

मैने कहा कि मेरी समझ से जनता मोदी को एक अच्छा वक़्ता होने के कारण पसंद करती है. दोनों इस बात से सहमत थे. बैंक मैनेजर ने कहा, ‘बोल-बोल के घुमाता रहता है.’ चुप बैठी उनकी पत्नी भी बोली, ‘उसके मुंह से जादू निकलता है.’

क्रेडिट रिस्क विश्लेषक की राय थी, ‘वह एक परिपक्व व्यक्ति की तरह बोलते हैं, राहुल की तरह नहीं…’

मैंने पूछा, ‘तो आपमें से कोई भी मोदी की उपलब्धियां नहीं गिना सकता?’

इस पर क्रेडिट रिस्क विश्लेषक अपना बहुकिल्पों वाला सिद्धांत लेकर आ गया, ‘वही बात है ना. और है कौन? ये राहुल गांधी…’

नेहरु के बाद कौन?

मैंने पूछा, ‘ये जानना जरूरी क्यों है कि अगला प्रधानमंत्री कौन होगा?’

‘इंदिरा गांधी के समय में एक सवाल बार-बार उठाया जाता था: इंदिरा के बाद कौन?’

मैंने उसकी बात को ठीक किया. यह सवाल नेहरु के बारे में था. और ज़ाहिर है कि नेहरु के बाद भारत की स्थिति अच्छी ही रही, लोकतंत्र ज़िंदा रहा, और हम अराजकता या तानाशाही की भेंट नहीं चढ़ गए जैसाकि बहुतों को डर था.

उस पर इस दलील का जैसे असर नहीं हुआ. इसलिए मैंने पूछा, ‘आपके हिसाब से मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री कौन हो सकता है?’

‘ये तो सोचना पड़ेगा. मैं एक दिन बाद बता सकता हूं…’

युवक ने कहा कि उदयपुर में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में कुछ समय गंवाने के बाद वह अपनी राजनीतिक पसंदों को बदलने के लिए तैयार रहता है. पर मोदी से बेहतर कोई विकल्प हो तब तो…

मैंने पूछा कि रघुराम राजन के बारे में उसकी क्या राय है. युवक ने कहा, ‘वह शानदार हैं.’ बैंक मैनेजर ने कहा, ‘फर्स्ट क्लास.’

उर्जित पटेल का नाम तक याद नहीं कर पा रहे युवक ने कहा, ‘मौजूदा आरबीआई गवर्नर तो रघुराम राजन का नौकर बनने के काबिल भी नहीं है.’

अब मैंने विषय को स्पष्ट बनाने की कोशिश में कहा, ‘तो मान लें कि यदि रघुराम राजन कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हुए तो आप दोनों खुशी-खुशी ईवीएम पर कमल की जगह हाथ के निशान का बटन दबा देंगे?’

इस पर युवक का जवाब था, ‘अवश्य.’ और बैंक मैनेजर ने कहा, ‘बिल्कुल.’

मेरा अगला सवाल था, ‘प्रिंयका गांधी के बारे में क्या कहेंगे?’

युवक ने कहा, ‘वह अच्छी रहेगी.’

‘दादी पर गई है’

सेवानिवृत बैंक मैनेजर का जवाब आया, ‘बहुत तेज़ है. मोदी टिक नहीं पाएगा प्रियंका के सामने.’

बैंक मैनेजर की पत्नी ने कहा, ‘दादी पर गई है.’

दिल्ली के राजनीतिक पंडितों के जटिल विश्लेषण से इतर यह आम वोटरों का सहज ज्ञान है. वे मोदी को अलविदा कहने के लिए तैयार हैं, पर राहुल गांधी के लिए नहीं.

विपक्ष प्रयास कर सकता है और आगामी आम चुनाव को व्यक्ति-केंद्रित होने से रोक सकता है, पर शायद वह मतदाताओं को यह सवाल करने से नहीं रोक पाए: मोदी के बाद कौन?

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