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MHA में विश्वास नहीं है मणिपुर को, असम राइफल्स के खिलाफ दर्ज की FIR, IR बटालियन को निहत्था किया

स्वतंत्र भारत में पहली बार मणिपुर में एक निहत्थे और अज्ञात भीड़ ने एक पूरे शस्त्रागार को लूट लिया. नागालैंड, पंजाब और कश्मीर में कभी ऐसा नहीं हुआ.

ग्राम रक्षक कांगपोकपी जिले के मैतेई गांवों से आने वाले सभी वाहनों की निगरानी और जांच कर रहे हैं | प्रतिकात्मक तस्वीर: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट
ग्राम रक्षक कांगपोकपी जिले के मैतेई गांवों से आने वाले सभी वाहनों की निगरानी और जांच कर रहे हैं | प्रतिकात्मक तस्वीर: सूरज सिंह बिष्ट/दिप्रिंट

असम राइफल्स पर पक्षपातपूर्ण होने का आरोप लगाया गया है, वहीं भारतीय रिजर्व बटालियन ने मणिपुर में अपने सभी हथियार गंवा दिए हैं. राज्य सरकार और ‘भीड़’ ने साफगोई से गृह मंत्रालय में अविश्वास जताया है क्योंकि दोनों संस्थानों को बजट केंद्रीय मंत्रालय द्वारा दिया जाता है. दोनों घटनाएं आधुनिक भारत में पहली बार हुई हैं और मणिपुर में घटी इन दुस्साहसिक घटनाओं पर FIR को लेकर मणिपुर सरकार द्वारा दिया गया बयान अनोखा है. राज्य पुलिस निस्संदेह दोनों अविश्वसनीय घटनाओं में शामिल थी, लेकिन अंत में सभी गृह मंत्रालय के अंतर्गत आते हैं और मणिपुर में इसके अधिकार की अवहेलना हुई है.

बिष्णुपुर जिले के नारानसेना में मणिपुर पुलिस की दूसरी इंडिया रिजर्व (आईआर) बटालियन पर 3 अगस्त की सुबह एक भीड़ ने हमला कर दिया. लूटे गए हथियारों में सैकड़ों अत्याधुनिक राइफल्स, पिस्तौलें और यहां तक कि मोर्टार भी शामिल थे. जब राज्य में लगातार तीसरे महीने में भी इस तरह की घटना जारी है, तो संदेश और अधिक स्पष्ट है — राज्य की एजेंसियां उन कार्यों के लिए इच्छुक नहीं हैं और शायद अक्षम भी हैं जिनके लिए वे संवैधानिक शपथ के आधार पर वेतन प्राप्त करती हैं.


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बटालियन की हार का कोई सानी नहीं

परिचालनात्मक अर्थ में दूसरी आईआर बटालियन पर केवल छापा नहीं मारा गया था; उसका निशस्त्रीकरण हुआ है. यह उतना ही क्रूर तथ्य है जितना कि मणिपुर में आई अजीब परिस्थितियों में हो सकता है और सुरक्षा के लिहाज़ से इसे पूरे संदर्भ में समझने की ज़रूरत है. स्वतंत्र भारत में यह पहली बार हुआ है कि एक निहत्थे और अज्ञात भीड़ ने एक बटालियन के परिसर में घुसकर पूरे शस्त्रागार को साफ कर दिया और ना जाने कितने टन वजनी हथियार अपने साथ लेकर चल दिए. नागालैंड, पंजाब और कश्मीर के आतंकवादियों ने इतने दशकों में ऐसा नहीं किया.

इस शर्मनाक घटना के समानांतर एकमात्र, कुछ हद तक 2010 का दुखद दंतेवाड़ा नरसंहार है जिसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 82वीं बटालियन की लगभग एक पूरी कंपनी मारी गई थी. हमले में क्षेत्र से एक सब-यूनिट का सफाया हो गया था, लेकिन मणिपुर के मामले में एक भी गोली चलाए बिना पूरी यूनिट को निशस्त्र कर दिया गया है. सशस्त्र सैनिकों ने अपने शस्त्रागार और अपने सम्मान की रक्षा करने की भी ज़हमत नहीं उठाई, और अब ड्यूटी के लायक नहीं है. वे सीआरपीएफ के उन बहादुर जवानों से कोसों दूर हैं, जिन्होंने भारी बाधाओं के बावजूद लड़ाई लड़ी. इसलिए झटके की गंभीरता को समझने के लिए आईआर बटालियन की अवधारणा को समझना महत्वपूर्ण है.

1970-1971 में शुरू हुई, वर्तमान में देश भर के विभिन्न राज्यों में 155 से अधिक आईआर बटालियन मौजूद हैं. जबकि बलों की भर्ती और ट्रेनिंग संबंधित कार्य राज्य पुलिस द्वारा किए जाते हैं, इन बटालियनों के लिए धन गृह मंत्रालय के बजट से आता है. नॉर्थ ब्लॉक फंड सहायता के रूप में आईआर बटालियन को खड़ा करने के लिए 75 प्रतिशत धनराशि प्रदान करता है और बुनियादी ढांचे की लागत का 50 प्रतिशत प्रतिपूर्ति भी करता है. बेशक राज्य सरकार कैंपस निःशुल्क प्रदान करती है. परिष्कृत हथियारों की उपलब्धता को देखते हुए, एक आईआर बटालियन की स्थापना की कुल लागत 50 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है.

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आईआर बटालियनों को परिचालन और प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुसार राज्य के साथ-साथ देश में कहीं भी तैनात किया जाता है. ये तैनातियां गृह राज्य में या बाहर चुनाव कर्तव्यों के साथ-साथ कानून और व्यवस्था कार्यों तक हो सकती हैं. इसलिए देश के एक छोर से आईआर बटालियन को दूसरी ओर तैनात होना कोई अजीब बात नहीं, और कभी-कभी दुखद परिणामों के साथ भी. यह तैनाती गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित की जाती है, क्योंकि आधुनिक कॉर्पोरेट शब्दजाल को नियोजित कर्ते, देश भर में प्रत्येक आईआर बटालियन में बहुसंख्यक शेयरधारक है. भले ही वह निशस्त्र बटालियन ही क्यों न हो.


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असम राइफल्स के खिलाफ मामला

मणिपुर के बिष्णुपुर जिले के फौगाकचाओ इखाई थाने के एक सब-इंस्पेक्टर ने 9वीं बटालियन असम राइफल्स के कर्मियों के खिलाफ ‘लोक सेवक के काम में बाधा डालने’ के साथ-साथ दो अन्य आरोपों के लिए एफआईआर दर्ज की. इसके बाद मणिपुर पुलिस और असम राइफल्स के बीच सड़क किनारे सार्वजनिक रूप से विवाद हो गया. जिस बेशर्मी के साथ राज्य पुलिस ने असम राइफल्स के जवानों को संबोधित किया, उस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है.

शेष भारत की तरह, यह निश्चित है कि वह सब-इंस्पेक्टर ने मामला दर्ज करने से पहले अपने वरिष्ठों से अनुमति ली थी और उन्होंने बदले में मणिपुर गृह विभाग से मंजूरी मांगी थी. अगर अनुमति नहीं ली गई तो मामला उतना ही गंभीर बनता है क्योंकि थाने के प्रभंधक ने सांविधानिक ढाँचे को उल्टा कर दिया है

असम राइफल्स भारत का सबसे पुराना अर्धसैनिक बल है और अगले दशक में इसकी द्विशताब्दी पूरी होने वाली है. इस पर ज्यादतियों के आरोप लगने के बावजूद, यह भारत का सबसे अनुभवी उग्रवाद रोधी बल बना हुआ है, जो दशकों से उत्कृष्ट सेवा प्रदान कर रहा है. पूर्वोत्तर में तैनात, लेकिन पूरे भारत से भर्ती की जाने वाली असम राइफल्स वित्तीय और प्रशासनिक रूप से गृह मंत्रालय के अधीन है. असम राइफल्स में एकमात्र शेयरधारक और आईआर बटालियन में बहुसंख्यक हितधारक, गृह मंत्रालय के ऊपर मणिपुर में सुरक्षा और सामाजिक बिखराव के लिए जवाबदायी है.

पिछले दशकों में मणिपुर के सामाजिक बिखराव का निकटतम समानांतर यूगोस्लाविया के विघटन के साथ खींचा जा सकता है, जो किसी भी महासंघ की तुलना में अधिक एकीकृत था.

यूगोस्लाविया में अंतिम अमेरिकी राजदूत, वॉरेन ज़िम्मरमैन का सोशल मीडिया और फर्जी खबरों के समय से पहले का विवरण पढ़ने लायक है: “यूगोस्लाविया का टूटना ऊपर से नीचे तक राष्ट्रवाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है – एक हेराफेरी वाला राष्ट्रवाद…जोड़ तोड़ करने वालों ने इसे नज़रअंदाज कर दिया और यहां तक कि शत्रुता पैदा करने के लिए स्थानीय जातीय हिंसा को उकसाया, जिसे बाद में प्रेस द्वारा बढ़ाया जा सकता था, जिससे आगे की हिंसा हुई…ज्ञान विज्ञान की प्रतिष्ठित अकादमियों के आवरण में लिपटे राष्ट्रवादी “बुद्धिजीवियों” ने उत्पीड़न के अपने छद्म इतिहास को उजागर किया.”

मणिपुर और यूगोस्लाविया की घटनाओं में कोई भी समानता पूरी तरह से मानव निर्मित है और यह कोई संयोग नहीं है.

(मानवेंद्र सिंह कांग्रेस के नेता, डिफेंस एंड सिक्योरिटी अलर्ट एडिटर-इन-चीफ और सैनिक कल्याण सलाहकार समिति, राजस्थान के चेयरमैन हैं. उनका ट्विटर हैंडल @ManvendraJasol है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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