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जब तक एलएसी पर गतिरोध जारी रहेगा, तब तक पाकिस्तानियों को चीनी हित में राष्ट्रीय हित नजर आएगा

फिलहाल पाकिस्तानी लोग खुश हैं कि भारत कूटनीतिक रूप से अलग थलग पड़ गया है. अब उनसे यह मत पूछिए कि यह कैसे हुआ.

अमेरिका में पाकिस्तान के पीएम इमरान खान | PTIofficial/Twitter

लगता है, पूरब के दो झगड़ालू पड़ोसियों के रिश्ते इस बीच और खराब हो गए हैं. भारत ने दिल्ली में पाकिस्तानी हाई
कमीशन के 50 फीसदी कर्मचारियों को ‘पाकिस्तान जाओ’ का फरमान सुना दिया है. इससे पहले दोनों मुल्कों के बीच कई हफ्तों तक कूटनीतिक तनातनी और धमकियों का दौर चला. पहले, दो पाकिस्तानी राजनयिकों पर जासूसी करने के आरोप लगाए गए और उन्हें वापस भेज दिया गया. इसके बाद इस्लामाबाद में भारतीय हाई कमीशन के दो भारतीय अधिकारियों पर हादसा करके भागने का मामला दायर किया और फिर उन्हें रिहा कर दिया गया.

दो अधिकारियों के साथ बुरा बर्ताव कूटनीतिक रिश्ते का स्तर घटाने का बहाना बन गया. इससे पहले यह 2001 में हुआ था, भारतीय संसद पर हमले के बाद. फिर, 2019 में भारत ने अनुच्छेद 370 को रद्द किया तो पाकिस्तान ने यह कदम उठाया और अपने दोनों हाई कमिश्नरों को नई दिल्ली से वापस बुला लिया था.

चीन के साथ एलएसी पर टक्कर से खुश

ताज़ा फैसले को पाकिस्तान, एलएसी पर चीन के साथ फौजी टक्कर से परेशान नरेंद्र मोदी सरकार का फरेब मानता है. चीन-भारत के बीच इस विवाद से पाकिस्तान वाले बहुत खुश हैं. लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि चीन ने लद्दाख में जिस इलाके को अपने कब्जे में होने का दावा किया है, उसके बारे में कई पाकिस्तानियों को यकीन है कि एक दिन वह उनका अपना इलाका बनेगा. इससे क्या फर्क पड़ता है कि यह इलाका कभी पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बन सकता, हम चीन का एहसान मानें कि अब वह इलाका भारत का नहीं रहेगा. लेकिन फिलहाल तो वह यह मान कर चल रहा है कि दुश्मन का दुश्मन अफ्ना पक्का दोस्त है, अपना देशहित चीन का हित. और पाकिस्तानी यही सोचकर खुश हैं.

शायद इस रुख को मजबूती प्रदान करने के लिए विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने हाल में यह कहा कि चीन ने कार्रवाई करके ठीक ही किया क्योंकि भारत ने विवादित इलाके में निर्माण शुरू कर दिया था.

संयुक्त राष्ट्र में दुविधा

यह सब फरवरी 2019 में पुलवामा हमले और बालाकोट पर हवाई हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच शुरू हुए तनाव को और बढ़ाता ही है. यह उम्मीद करना कि यह तनाव जल्दी दूर होगा, इसी तरह की उम्मीद करने जैसा है कि हमारी ज़िंदगी कोरोनावायरस से आज़ाद हो गई.

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वैसे, फिलहाल पाकिस्तानी लोग खुश हैं कि भारत कूटनीतिक रूप से अलग थलग पड़ गया है. अब उनसे यह मत पूछिए कि यह कैसे हुआ. 18 जून को भारत 184 देशों के वोट के बूते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बन गया.

याद रहे कि पाकिस्तान ने उसकी इस उम्मीदवारी का पिछले साल समर्थन किया था. तब इसके विदेश मंत्री ने कहा था कि भारत अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बन भी गया तो कौन-सी कयामत आ जाएगी. अब यह तो वैसा ही हुआ कि आप ‘कश्मीर मसले’ से हाथ धो लें, जिसने पाकिस्तानी सियासी माहौल को हमेशा गरम किए रखा है.


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इसलिए, यह इमरान खान सरकार के लिए आसान मामला नहीं था. कुरेशी के साथी मानवाधिकार मंत्री शीरीं का मानना था कि भारत के लिए मैदान इस तरह खुला नहीं छोड़ देना चाहिए था. लेकिन कुरेशी का कहना था कि पाकिस्तान ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने से रोकने की कोशिश की होती, तो 2026 में खुद उसके लिए सुरक्षा परिषद का सदस्य बनना मुश्किल हो जाता. अब चूंकि कुछ किया नहीं जा सकता था इसलिए बेहतर यही था कि पाकिस्तान अपनी नज़रें फेर लेता और भारत की सदस्यता पर मुहर लगने देता. अब आगे कभी भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन जाए तो हम यही सोचकर खुद को तसल्ली दे सकते हैं कि इससे कोई कयामत नहीं आ जाएगी.

ट्वीटर बनी पीएमओ की ढाल

संयुक्त राष्ट्र में किसी भी मसले पर अपने लिए वोट जुटाने के मामले में पाकिस्तान की हाल की कोशिशें हास्यास्पद ही रही हैं. आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने किस तरह बड़बोला दावा किया था कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल में 58 देशों ने कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का समर्थन किया था. यह और बात है कि इस काउंसिल में केवल 47 देश शामिल हैं और इस पर उनका क्या रुख रहा या उन्होंने समर्थन में क्या कहा था, यह सब वर्षों बाद भी एक रहस्य बना हुआ है.

कश्मीर में भारत की कार्रवाइयों पर संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव लाने का वादा अभी तक सिर्फ वादा ही बना हुआ है, क्योंकि इमरान और उनकी टीम उस प्रस्ताव के पक्ष में 15 वोट भी नहीं जुटा पाई. पाकिस्तान के कूटनीतिक रूप से अलग थलग न पड़ने के दावे के बारे में यही घटना बहुत कुछ कह डालती है. पाकिस्तान ने हाल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 ‘सैंक्सन लिस्ट’ के तहत एक भारतीय नागरिक को आतंकवादी घोषित करवाने की पहल की, जिसे खारिज कर दिया गया. विदेश विभाग इस पर निराशा जता कर रह गया.


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इन झटकों के लिए सत्तातंत्र को दोषी ठहराया जा सकता है, क्योंकि हमारा मानना है कि पाकिस्तान की विदेश नीति उसी के हाथ में है. लेकिन कुरेशी वादा कर चुके हैं कि विदेश नीति यहीं, पाकिस्तान के विदेश विभाग के दफ्तर में तय होगी. तब, भला हो भारत के खिलाफ वजीरे आजम इमरान खान और उनके वजीरों के ट्विटर गेम का, यह तमाम तरह की चुनौतियों का जवाब देने के लिए काफी है.

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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