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भारत में एक ओर तो इनोवेशन की अपेक्षा है लेकिन तत्काल टिकटों की तेज़ बुकिंग का एप बनाने वाले को गिरफ्तार कर लिया जाता है

भारत के नीति निर्माताओं को इनोवेशन पर बड़ी-बड़ी बातें करना तथा एआई, मशीन लर्निंग और ब्लॉकचेन जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना अच्छा लगता है. लेकिन इनोवेशन में जुटे लोगों को बिल्कुल अलग वास्तविकता का सामना करना पड़ता है.

प्रतीकात्मक तस्वीर | आईआईटी खड़गपुर | कॉमन्स

भारत के नीति निर्माता नवोन्मेष या इनोवेशन पर बड़ी-बड़ी बातें करना पसंद करते हैं. संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों और नौकरशाहों से लेकर विभिन्न राजनीतिक रुझानों वाले थिंक टैंक के विचारकों तक, हर कोई इस मुद्दे पर अत्यंत उत्साही दिखते हैं. सम्मेलनों के मुख्य भाषणों में ‘एआई’, ‘एमएल’ और ‘ब्लॉकचेन’ जैसे शब्दों की भरमार रहती है मानो भारत इनोवेशन के लिए तैयार बैठा है और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ कदम मिलाकर चल रहा है.

लेकिन उद्यमियों को जिन वास्तविकताओं का सामना करना पड़ता है वो इस बयानबाज़ी से मेल नहीं खाती. प्रक्रिया संबंधी व्यवधानों और कागजी कार्यों के अंबार (पूंजी जुटाने जैसे सामान्य प्रकार के काम के लिए भी) से लेकर उद्योग स्तर की पाबंदियां थोपे जाने तक (आरबीआई द्वारा डिजिटल परिसंपत्ति बिचौलियों को बैंकिंग सुविधाओं से वंचित करने किया जाना) नवोन्मेषकों को नियमित रूप से विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है. वित्तीय सेक्टर के लिए यह आम स्थिति रही है, जहां हमारी नियामक संस्थाओं ने हमेशा फूंक-फूंककर कदम उठाया है. इस संबंध में ये दलील दी जा सकती है कि इनोवेशन के वित्तीय स्थिरता, लोगों की बचत और पूंजी के दुरुपयोग के खतरों से जुड़े प्रभावों के कारण, सतर्कता बरतना उचित ही है. इस दलील को सटीक नहीं माना जा सकता, हालांकि इसमें थोड़ी सच्चाई है.

लेकिन यह देखकर निराशा होती है कि वित्त के मुकाबले कहीं कम नियामक संवेदनशीलता वाले सेक्टरों में भी यही असंवेदनशील रवैया व्याप्त है. उदाहरण के लिए आप आईआईटी-खड़गपुर से शिक्षित तमिलनाडु निवासी एस युवाराजा का मामला लें. युवाराजा ने इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज़्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी) की वेबसाइट पर रेल टिकट बुकिंग को आसान बनाने के लिए स्वत: ही फॉर्म भरने वाला एक मोबाइल एप्लिकेशन डिजाइन किया. आपको शायद लगे कि भारतीय रेल ने इस कार्य में समर्थन दिया होगा क्योंकि उपभोक्ता के स्तर पर प्रक्रिया में आसानी का परिणाम टिकटों की बढ़ी बुकिंग के रूप में सामने आएगा (और राजस्व बढ़ेगा). लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.


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इनोवेशन में बाधा

दक्षिण रेलवे के रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स ने युवाराजा को ढूंढकर गिरफ्तार कर लिया. युवाराजा ने कुछ नया ज़रूर किया होगा क्योंकि कुछ ही समय के भीतर उसके एप को एक लाख यूजर्स मिल चुके थे. विडंबना ये है कि रेलवे अधिनियम की धारा 143, जो कि युवाराजा पर लगाई गई है, के दायरे में न तो एंड्राइड एप ‘सुपर तत्काल’ और ‘सुपर तत्काल प्रो’ का उपयोग, न इनके डेवलपर और न ही टिकट बुकिंग के बेहतर अनुभव के लिए इनका इस्तेमाल करने वाले यूजर्स ही आते हैं.

धारा 143 में ‘रेलवे टिकटों की अनधिकृत खरीद-बिक्री’ के लिए जुर्माने की व्यवस्था है.

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अब बिल्कुल शाब्दिक अर्थों को देखें, जैसा कि कानूनों को देखा जाना चाहिए, तो एप डेवलपर रेलवे टिकटों की खरीद या बिक्री के धंधे में नहीं था. यूजर्स इन-एप भुगतान के बाद गूगल प्ले स्टोर से एप को डाउनलोड कर तत्काल टिकट संबंधी औपचारिकताओं को शीघ्रता से पूरा करने के लिए उसका उपयोग कर रहे थे. यानि युवाराजा सिर्फ उपभोक्ताओं के अनुभव को आसान बनाने वाले सॉफ्टवेयर की बिक्री कर रहा था.

जबकि ‘रेलवे टिकटों की अनधिकृत खरीद-बिक्री’ से मतलब रेलवे टिकटों के अवैध धंधे से है, यानि टिकटों को खरीदना (आमतौर पर थोक में) और फिर उसे दूसरों को बेचना. दरअसल कानून की यह धारा रेलवे टिकटों के अवैध धंधे में लिप्त बिचौलियों पर केंद्रित है. फॉर्म को स्वत: ही भरने वाला बी2सी (बिज़नेस-टू-कंज्यूमर) सॉफ्टवेयर का व्यवसाय करने वाला एप डेवलपर इस कानून के दायरे में नहीं आता है.

रेलवे अधिकारी इस दावे पर भी यकीन करते दिखे कि युवाराजा के एप ने इसके यूजर्स को सामान्य आईआरसीटीसी वेबसाइट के ज़रिए टिकट बुक करने वाले लोगों की कतार में आगे बिठाने (फ्रंट-रनिंग) और इस तरह रेलवे की वेबसाइट के यूजर्स की टिकट खरीदने की संभावना को खत्म करने का काम किया है. यह दलील भी आधारहीन है. फ्रंट-रनिंग के दुरुपयोग की बात तब उठती जब फ्रंट-रनिंग वाले पक्ष और फ्रंट-रनिंग का दुष्परिणाम झेलने वाले पक्ष के बीच परस्पर विश्वास का कोई संबंध होता. इस मामले में विभिन्न स्थानों से एक साथ टिकट बुक करने की कोशिश कर रहे लोगों के बीच विश्वास आधारित संबंधों जैसी कोई स्थिति नहीं है. वास्तव में, विश्वास आधारित संबंधों की बात तो दूर, उन्हें तो एक-दूसरे की उपस्थिति का अंदाजा तक नहीं होता. साथ ही, एप के गूगल प्ले स्टोर पर सबके लिए उपलब्ध होने के कारण इसमें चुनिंदा लोगों को विशेष सुविधा दिए जाने का मामला भी नहीं बनता.


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इनोवेशन संबंधी दावे और असल स्थिति

इस मामले में एप डेवलपर की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति भारत में इनोवेशन को लेकर की जाने वाली बयानबाज़ी और असल स्थिति के बीच भारी अंतर को उजागर करती है. मेरा एक निराशावादी नज़रिए के साथ इस लेख को समाप्त करना उचित नहीं होगा. इसलिए, नौकरशाही की असंवेदनशीलता से इनोवेशन करने वालों और डेवलपरों को बचाने के लिए मैं एक सुझाव देना चाहूंगा.

डिजिटल इनोवेशन संबंधी प्रधान मंत्रालय के रूप में इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को अन्य मंत्रालयों और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के समन्वय से एक इनोवेशन कार्यालय स्थापित करने पर विचार करना चाहिए. अन्य बातों के साथ-साथ, इनोवेशन कार्यालय ज़रूरी सुरक्षा पड़ताल और ऑडिट के बाद लोगों के लिए रेल समेत विभिन्न सरकारी सेवाओं के उपयोग को सरल बनाने वाले एप को सत्यापित करने का काम करे. नियामक परीक्षण व्यवस्था के प्रावधानों की तर्ज पर इनोवेशन कार्यालय ‘नो-एक्शन लेटर’ जारी करे जो कि नवोन्मेषकों को संभावित एकतरफा कार्रवाइयों से सुरक्षा प्रदान कर सके, जैसी कार्रवाई युवाराजा के मामले में देखने को मिली है.

एक इनोवेशन कार्यालय स्थापित करने और उसे नो-एक्शन लेटर (एनएएल) जारी करने का अधिकार देने की कानूनी प्रक्रिया ज्यादा जटिल नहीं है, साथ ही नया कार्यालय एनएएल के लिए प्राप्त आवेदनों के मूल्यांकन के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और अन्य संबंधित मंत्रालयों के अधिकारियों और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की मदद ले सकता है. शासन के स्तर पर इतना मात्र इनोवेशन भारत में इनोवेशन को लेकर बयानबाज़ी और वास्तविकता के बीच की बड़ी खाई को पाटने में बड़ी भूमिका निभा सकता है.

(मंदर कागड़े सार्वजनिक वित्त नीति मामलों के स्वतंत्र सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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