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22 साल के लंबे इंतजार के बाद भारत को मिला समुद्री सुरक्षा को-ऑर्डिनेटर, पर यह कई फ्रंट्स पर खरा उतरा

कारगिल युद्ध खत्म होने के बाद, पहली बार साल 2000 में मंत्रियों के एक समूह ने ‘समुद्री मामलों के प्रबंधन के लिए एक शीर्ष निकाय’ के गठन का सुझाव दिया था.’

वाइस एडमिरल जी अशोक कुमार/ फोटो: विकीमीडिया कॉमंस

मोदी सरकार ने इस दिशा में सही कदम उठाते हुए बुधवार को नौसेना के पूर्व उप-प्रमुख वाइस एडमिरल जी अशोक कुमार को पहला राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा समन्वयक (NMSC) नियुक्त किया. वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को रिपोर्ट करेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय में काम करेंगे. वह पिछले साल ही सेवानिवृत हुए थे.

वाइस एडमिरल कुमार की जिम्मेदारी समुद्री सुरक्षा और समुद्री सिविल मामलों से जुड़ी सरकार की सभी एजेंसियों के बीच तालमेल बिठाने की होगी. इसके साथ ही, वे सरकार और सुरक्षा क्षेत्र के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ इन मामलों से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी साझा करेंगे. सरकार के इस फैसले से सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र में नौसेना के बढ़ते महत्व का पता चलता है. भविष्य में होने वाले युद् में नौसेना के महत्व को देखते हुए यह फैसला लिया गया है.

यह फैसला तब आया है, जब इस साल केन्द्रीय बजट में नौसेना के लिए आवंटन में बड़ी बढ़ोतरी हुई है. पिछले कई सालों तक नौसेना को नजरअंदाज किया जाता रहा. मैंने अपने लेख में नौसेना पर ध्यान दिए जाने की आज की ज़रूरत का जिक्र किया था. यह कड़वा सच है कि चीन की नौसेना आगे है.

भारत की तटीय सीमा 7,500 किलोमीटर लंबी है. इसके बावजूद, भारत की नौसेना ने न तो समुद्र की सतह पर और न ही समुद्र के अंदर (पनडुब्बी वगैरह) चीन की तरह तैयारी कर रखी है.

नियुक्ति के लिए 22 सालों का इंतजार

सरकार के इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए. कारगिल युद्ध खत्म होने के बाद, पहली बार 2000 में मंत्रियों के एक समूह ने ‘समुद्री मामलों के प्रबंधन के लिए एक शीर्ष निकाय’ के गठन का सुझाव दिया था. सुझाव को अमलीजामा पहनाने में 22 साल लग गए.

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उस समय मंत्री समूह की ओर से एक ऐसे संस्थान की ज़रूरत पर जोर दिया गया था जो नौसेना, तटीय बलों के साथ ही राज्य और केन्द्र के संबंधित मंत्रालयों या विभागों के बीच तालमेल बिठाने के लिए आधिकारिक रूप से काम करे.

सुझाव में कहा गया था, ‘एक शीर्ष निकाय के गठन के लिए रक्षा मंत्रालय को ठोस कदम उठाने की जरूरत है.’

26/11 हमले के बाद, रक्षा मंत्रालय ने समुद्री सुरक्षा सलाहकार बोर्ड गठित करने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि, यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया.

साल 2014 और 2015 में इस मुद्दे पर विचार करने के लिए, रक्षा मामलों पर बनी स्थायी कमिटी की रिपोर्ट को लोकसभा में पेश किया गया. इसके बाद, साल 2020 में लोक लेखा समिति (पीएसी) की ओर से जारी रिपोर्ट में एजेंसियों के बीच तालमेल बिठाने की ज़रूरत पर जोर दिया गया.

आखिरकार 22 साल पहले प्रस्तावित इस विचार को बुधवार को अमलीजामा पहना दिया गया.


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रक्षा और सुरक्षा से जुड़े सुधारों का हिस्सा

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, समुद्री सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति सैन्य और सुरक्षा सुधारों का हिस्सा है. इनमें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति भी शामिल है.

सूत्रों के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर सुरक्षा की संरचना में हो रहे बदलावों के मद्देनजर नौसेना का महत्व बढ़ गया है. अब सबका ध्यान इस ओर है. पूरी दुनिया में नौसेना को मजबूत किया जा रहा है. यह सब चीन की आक्रामक नीतियों वजह से हो रहा है. अपनी नौसेना को मजबूत करने के मामले में चीन दुनिया भर में अव्वल है.

भारत के लिए समुद्री क्षेत्र का सामरिक महत्व

भारत के लिए समुद्री क्षेत्र का सामरिक महत्व है. जहाजरानी मंत्रालय के मुताबिक, भारत का लगभग 95 फीसदी व्यापार समुद्री मार्ग से ही होता है. यह भारत के कुल व्यापारिक मूल्य का 70 फीसदी हिस्सा है. भारत में समुद्र के रास्ते व्यापार का इतिहास 3,000 ईसा पूर्व पुराना है. सिंधु घाटी सभ्यता में समुद्र के रास्ते मेसोपोटामिया से व्यापार होने के प्रमाण मिलते हैं. भारत में समुद्री रास्तों से व्यापार का समृद्ध इतिहास रहा है जो समय के साथ धुंधला होता गया.

रक्षा क्षेत्र में भी कम बजट जारी करने को लेकर भारतीय नौसेना की शिकायत रही है. इसकी वजह से नौसेना के आधुनिकीकरण पर असर पड़ा है और चीन इस मामले में आगे निकल गया. हालांकि, आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि नौसेना पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है. वित्त-वर्ष 2022-23 के लिए भारतीय नौसेना के बजट को 44.53 फीसदी बढ़ाकर 46,323 करोड़ कर दिया गया है.

नौसेना को पिछले पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में 33, 253 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी. वहीं, नौसेना जारी बजट के अतिरिक्त 12,767.99 करोड़ रुपये ज़्यादा खर्च कर चुकी है. खर्च की गई राशि में, ज़्यादातर पहले किए गए अनुबंधों के लिए देनदारियां शामिल है.

कम बजट आवंटित होने के बावजूद नौसेना उससे कहीं ज्यादा खर्च कर रही है. इसमें करोड़ों रुपये की लागत वाले कई जरूरी प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं. इनमें पारंपरिक और परमाणु पनडुब्बी निर्माण के साथ ही, जहाजी बेड़ों के लिए दो अलग-अलग तरह के 200 से ज़्यादा हेलीकॉप्टर, सुरंग भेदी पोत सहित नए तरह के जहाज, लैंडिंग प्लैटफॉर्म डॉक और संभावित तीसरा एयरक्राफ्ट कैरियर शामिल हैं.

नौसेना के सूत्रों ने राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा समन्वयक बनने पर खुशी जाहिर की. उन्हें उम्मीद है कि इससे भारतीय समुद्री क्षेत्रों की जरूरतों और महत्व पर ध्यान दिया जाएगा. साथ ही, समुद्री क्षेत्रों में मजबूत सामरिक शक्ति बनने की ज़रूरत को समझा जाएगा. सूत्रों का मानना है कि यह सिर्फ़ भारत के व्यापारिक हितों के लिए ही ज़रूरी नहीं है बल्कि देश की रक्षा, सुरक्षा और कूटनीतिक ज़रूरत भी है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

यहां व्यक्त विचार निजी है


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