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अगर एग्ज़िट पोल बढ़-चढ़कर नहीं बता रहे तो भाजपा के लिए नतीजे और बड़े हो सकते हैं

अगर आपकी रुचि खास राज्यों में है, तो 23 मई को आपके लिए कुछ रहस्य बचा हुआ है.

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उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करते नरेंद्र मोदी की फाइल फोटो | पीटीआई

क्या किस्सा तमाम मान लें? सोच लें कि जो सामने आना था सो आ चुका है? या फिर ऐसा कोई कारण बचा है कि एक ऐसे वक्त में जब सारे एग्ज़िट पोल मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में लौटने की भविष्यवाणी कर रहे हैं, हम इंतजार करें और देखें कि 23 मई के दिन मतगणना के बाद चुनाव के असल नतीजे क्या रहते हैं?

सवाल का कोई सीधा-सपाट जवाब नहीं है- बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपके मन में क्या सवाल चल रहे हैं. अगर आपकी दिलचस्पी बस ये जानने में है कि सरकार किस दल की बन रही है तो फिर आप दोपहर के वक्त टेलीविजन का स्विच ऑन कीजिए, देखिए कि नतीजे उसी तरफ बढ़ रहे हैं कि नहीं जिस तरफ एग्ज़िट पोल ने इशारा किया था, फिर टेलीविजन को 9 बजे रात में खोलिए और देखिए कि नतीजे अंतिम तौर पर क्या रहे. संभावना इसी बात की है कि बड़ी तस्वीर वैसी ही रहे जैसा कि एग्ज़िट पोल में इशारा किया गया है यानि एनडीए को आसान बहुमत, बीजेपी की जीत और नरेन्द्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री.


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कोई आपसे यह भी कह सकता है कि: एग्ज़िट पोल गलत साबित होते हैं, साल 2004 में कोई भी एक्जिट पोल वाजपेयी की हार का पूर्वानुमान नहीं लगा पाया था. बात ठीक है. एग्ज़िट पोल सीटों की संख्या का ठीक-ठीक अनुमान लगा पाने में गलत साबित होते हैं और उन्हें अंतिम फैसले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. लेकिन अलग-अलग एजेंसियों के कराये सभी एग्ज़िट पोल अगर एक ही दिशा में संकेत करें तो फिर बहुत कम संभावना बचती है कि असल मतगणना के वक्त बड़ी तस्वीर कुछ अलग निकलकर सामने आये.

2004 के पूर्वानुमान एक तरह से अपवाद कहे जायेंगे जब पोलस्टर (चुनाव-सर्वेक्षकों) ने छाछ को फूंक-फूंक कर पीने का अंदाज अपनाते हुए सत्ताधारी पार्टी के होने जा रहे सीटों के नुकसान को लगभग सभी राज्यों में कम करके आंका था. लेकिन इस बार दिशा कुछ अलग है- अगर सारे पोलस्टर्स ने इस बार छाछ को फूंक-फूंक कर पीने के अंदाज में पूर्वानुमान निकाला है तो फिर बीजेपी के सीटों का अंतिम आंकड़ा किन्हीं एग्ज़िट पोल में बताये जा रहे आंकड़े से कहीं और ज्यादा हो सकता है.

उभरकर सामने आने वाली बड़ी राष्ट्रीय तस्वीर का एक अहम पहलू अब भी स्पष्ट नहीं है. क्या बीजेपी को 2014 की ही तरह इस बार भी बहुमत मिलेगा? ये बात मायने रखती है क्योंकि इसी से तय होना है कि आगे बनने जा रही नई सरकार को किन्हीं बाध्यता के भीतर रहकर काम करना होगा या नहीं. बीजेपी को एक तरफ 240 सीटें मिलने की बात कही जा रही है तो दूसरी तरफ 290 सीटों का भी पूर्वानुमान है. सो, आपको लग सकता है कि बीजेपी को मिलने जा रही सीटों की संख्या पर कड़ी निगाह रखनी होगी कि वो 273 सीटों के आंकड़े तक पहुंचती है या नहीं.

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अगर आपकी नजर किसी खास राज्य के चुनावी नतीजों पर है तो फिर आपके लिए 23 मई यानी मतगणना के दिन तक दुविधा की स्थिति बरकरार रहने वाली है. मैं निम्नलिखित राज्यों के चुनाव परिणाम पर गहरी नजर रखूंगा:


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उत्तरप्रदेश: थोड़ी अनिश्चितता अब भी बरकरार है क्योंकि अलग-अलग एग्ज़िट पोल के पूर्वानुमान में बड़ा अंतर है. जो लोग चुनाव-सर्वेक्षणों पर विश्वास करते हैं उन्हें भी ये बात गले नहीं उतरेगी कि यूपी में बीजेपी को 60 सीटें मिलने जा रही हैं. लेकिन मुझे एबीपी-निल्सन के भी आंकड़े पर यकीन नहीं जिसने बीजेपी को यूपी में 22 सीटें (जिसे हड़बड़ी में बढ़ाकर 33 कर दिया गया) मिलती दिखायी हैं. यह बात तो साफ है कि महागठबंधन बीजेपी-विरोधी वोटों को एकमुश्त अपनी तरफ करने में नाकाम रहा और बीजेपी इस मजबूत जान पड़ते गठबंधन की काट कर सकती थी लेकिन मेरी नजर अब भी इस बात पर जरूर रहेगी कि बीजेपी को यूपी में 50 से ज्यादा सीटें मिलेंगी या नहीं.

पश्चिम बंगाल: हम एग्ज़िट पोल से इतना तो जान गये हैं कि आम सियासी समझ से पश्चिम बंगाल में बीजेपी को 4-6 सीटें मिलने की बात कही जा रही थी लेकिन बीजेपी को इससे ज्यादा सीटें मिलेंगी लेकिन हम अब भी ये बात नहीं जानते कि पश्चिम बंगाल की सियासी सरजमीं के लिहाज से नवागंतुक मानी जा रही बीजेपी की झोली में 10 के आसपास सीटें जायेंगी या फिर आंकड़ा 20 सीटों तक चला जायेगा. अगर आंकड़ा 20 सीटों तक जाता है तो फिर यह 23 मई के बड़े समाचारों में एक होगा और 2021 में होने वाले सूबे के विधानसभाई चुनावों पर इसका असर पड़ेगा.

ओडिशा: यहां भी, एग्ज़िट पोल से हमें इतना तो पता चल ही गया है कि बीजेपी सूबे में बहुत अच्छा कर रही है और कम से कम आधी सीटें जीत सकती है. लेकिन बीजेपी की झोली में किस हद तक सीटों की संख्या बढ़ने जा रही हैं- यह अभी साफ नहीं है. एक सवाल ये भी है कि क्या बीजेडी अब भी विधानसभा का चुनाव जीत सकती है? राजनीतिक तेवर के लिहाज से सुस्त माने जाने वाले इस राज्य में क्या मतदाता ने इस बार खूब सोच-समझकर लोकसभा और विधानसभा के चुनावों के लिए अलग-अलग मन बनाकर वोट डाला है?

कर्नाटक: कांग्रेस-जेडीएस के जबर्दस्त गठबंधन के बावजूद एग्ज़िट पोल कह रहे हैं कि इस सूबे में बीजेपी की सीटों की संख्या बढ़ेगी. अगर ऐसा होता है तो फिर ये इस बात का संकेत होगा कि पूरे देश में बीजेपी के पक्ष में हवा बह रही है, साथ ही सूबे में कुमारस्वामी की सरकार के भविष्य पर भी इसका साया मंडरायेगा.

दूसरे शब्दों में कहें तो मैं देखना चाहूंगा कि एग्ज़िट पोल से जो बड़ी तस्वीर उभरी है, उसमें महीन नुक्ते क्या नजर आते हैं:

महाराष्ट्र, झारखंड और बिहार: क्या इन राज्यों में बीजेपी मजबूत जान पड़ते गठबंधन के बरक्स 2014 के समान ही प्रदर्शन कर पायेगी, क्या उसका प्रदर्शन सीटों के मामले में 2014 से भी बेहतर होगा? अगर ऐसा होता है तो फिर महागठबंधन की रणनीति पर सवालिया निशान लगेंगे.

दक्षिण भारत: हम मान सकते हैं कि यहां चुनाव परिणाम एकतरफा रहेंगे- केरल में यूडीएफ, तेलंगाना में टीआरएस, आंध्र प्रदेश में वायएसआरसी और तमिलनाडु में डीएमके के पक्ष में ज्यादातर सीटें जायेंगी. देखना बस इतना भर शेष रहता है कि इन सूबों में ये पार्टियां कितने भारी अन्तर से जीतती हैं.

गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड: इन तमाम राज्यों में मेरी नजर इस बात पर होगी कि बीजेपी कुछ सीटों पर हारती है या नहीं अन्यथा इन राज्यों के बारे में यही मानकर चलना ठीक होगा कि यहां बीजेपी की एकतरफा जीत होगी और कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो जायेगा.


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कुछ सीटों और उम्मीदवारों को लेकर मुझे खास उत्सुकता रहेगी कि वहां चुनाव परिणाम क्या रहता है (खासकर वैसी जगहों के लिए जहां मैंने चुनाव प्रचार किया) हालांकि वैकल्पिक राजनीति की इन पहलों से मैंने खास उम्मीद नहीं लगा रखी. चुनाव परिणामों के एतबार से मेरी नजर सिक्किम के हरमरो सिक्किम पार्टी, तमिलनाडु के एमएनएम और साथ ही आंदोलनी पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों पर रहगी. इसी तरह, अगर आप राजनीति-प्रेमी हैं और आपकी रुचि तकरीबन हर सीट के चुनाव परिणाम जानने में हैं तो फिर आप टेलीविजन सेट्स के सामने लंबे समय तक आंखें टिकाकर बैठेंगे.

अगर आप मेरी ही तरह चुनावों को देश में लोकतंत्र की दशा-दिशा के संकेतक के रूप में देखते हैं तो फिर आपको सिर्फ सीटों के गणित पर ही नहीं उससे परे भी देखना होगा ताकि आपके सामने वो जटिल ताना-बाना स्पष्ट हो कि किसने किस पार्टी को वोट दिया और क्यों दिया. इस बात की विस्तृत जानकारी के लिए मैं सीएसडीएस के नेशनल इलेक्शन स्टडी के तथ्यों की प्रतीक्षा करूंगा.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(योगेंद्र यादव राजनीतिक दल, स्वराज इंडिया के अध्यक्ष हैं.)

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