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कोविड से प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था से अगर पाकिस्तान को बाहर निकलना है तो उसे नेशनल सिक्योरिटी स्टेट की छवि तोड़नी होगी

कोविड-19 संकट से लड़ने के पाकिस्तान के प्रयासों से यही संकेत मिलता है कि वह अपनी आवाम और अर्थव्यवस्था से ज्यादा अपने रणनीतिक रिश्तों को तरजीह दे रहा है.

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पाकिस्तान प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल बाजवा । ट्विटर

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक मुल्क में कोरोनावायरस की कोई महामारी नहीं है इसलिए पाकिस्तानियों को हमेशा की तरह इस बार भी ईद मनाने की इजाजत दी जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रेनें और दूसरे सार्वजनिक वाहन चलाने, दुकानों तथा शॉपिंग सेंटरों को खोलने के भी आदेश जारी कर दिए. यह सब तब किया गया जब 19 मई को वहां कोविड-19 के मामलों की तादाद 43,000 और इससे मरने वालों की संख्या 924 पर पहुंच चुकी थी.

वैसे भी पाकिस्तान की कुल आबादी में कोविड-19 के मामलों का अनुपात दक्षिण एशिया के दूसरे देशों में इस अनुपात के मुक़ाबले कहीं ज्यादा है. 19 मई को बांग्लादेश में संक्रमित व्यक्तियों की संख्या 25,121 थी तो पाकिस्तान की आबादी से छह गुना ज्यादा आबादी वाले भारत में यह संख्या 106,475 थी.

इमरान खान के नेतृत्व वाली पाकिस्तान की असैनिक सरकार के सुस्त और अनमने उपायों तथा सुप्रीम कोर्ट की मनमानी दखलअंदाजी ने मुल्क में बचे-खुचे संवैधानिक शासन को भी नाकाम कर दिया है. इस महामारी के दौरान भी पाकिस्तानी सत्तातंत्र संविधान के उस 18वें संशोधन को रद्द करने की मुहिम में जुटा है, जिसके तहत सूबों को स्वायत्तता दी गई थी.

फौज पर खर्चों और कर्ज़ भुगतान के बोझ से उबरने के लिए पाकिस्तानी सत्तातंत्र चाहता है कि संसाधन को सूबों की सरकारों से केंद्र सरकार की ओर स्थानांतरित किया जाए. आगामी दिनों में यह महामारी पाकिस्तान को और कमजोर ही करने वाली है. इसकी विशाल और दखलअंदाज फौज, परमाणु हथियारों की ताकत आसन्न आर्थिक गिरावट को रोकने में शायद ही मददगार साबित होगी.

खराब प्रबंधन

अर्थव्यवस्था को सुधारने का एक उपाय यह है कि चीन से बाहर निकल रही पश्चिमी कंपनियों को लुभा कर अपने यहां बुला लिया जाए, मगर पाकिस्तान का जो रणनीतिक नज़रिया है उसमें यह मुश्किल लगता है. प्रधानमंत्री इमरान खान की संघीय सरकार इस महामारी से निपटने के लिए तैयार नहीं थी और शुरू में उसने यही दिखावा किया कि यह कोई ज्यादा फिक्र करने की बात नहीं है. पाकिस्तान ने अपने नागरिकों (मुख्यतः छात्रों) को वुहान से नहीं निकाला, चीन और ईरान जैसे हॉटस्पाट से विमानों और लोगों की अपने यहां आवाजाही जारी रखी जबकि बाकी दुनिया ने इसे बहुत पहले बंद कर दिया था.

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पाकिस्तान में पहला मामला सामने आने के कई सप्ताह बाद इमरान सरकार ने रोकथाम के उपाय शुरू किए, ईरान से आए 3000 यात्रियों को क्वारेंटाइन किया और पड़ोसी देशों के साथ अपनी सरहदों को बंद किया, सोशल डिस्टेन्सिंग के कदम लागू किए. अधिकतर सूबाई सरकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर पहल के अभाव में लॉकडाउन के अपने ही नियम लागू किए, जिससे कोरोनावायरस से पाकिस्तान की लड़ाई और कमजोर हुई.

सरकारी कदमों में मजहबी गुटों ने अड़ंगे लगाए, जो मजहबी आयोजनों और जमावड़ों पर कोई पाबंदी नहीं चाहते. इसके गंभीर नतीजे सामने आए. इस्लामी कट्टरपंथी गुट तबलीगी जमात ने कोविड-19 संकट के बीच ही अपना सालाना जमावड़ा किया, जिसके कारण उनके 20,000 लोगों को क्वारेंटाइन में जाना पड़ा.

सुप्रीम कोर्ट के दखल से पहले ही पाकिस्तान ने रमज़ान पर सामूहिक नमाज की इजाजत दे दी थी, हालांकि कई मुस्लिम मुल्कों ने तथा इस्लाम के सबसे पाक स्थानों पर भी इसे स्थगित कर दिया गया था. इमरान सरकार ने मौलवियों के आगे झुकते हुए जो कदम उठाए उनके कारण रमज़ान के दौरान ही वायरस के फैलने का खतरा बढ़ गया. इस संकट ने मुल्लों को ताकत देने के अलावा पाकिस्तान में असैनिक शासन को और कमजोर किया. इमरान चूंकि फौज के बस में रहे हैं इसलिए उनके राज में सिविल-मिलिटरी संबंध अब तक अच्छे रहे हैं. लेकिन फौज खुल कर ऐसे बड़े फैसले कर रही है, जो संवैधानिक तौर पर सिविल सरकार के दायरे में आते हैं, और सिविल सरकार फैसले करने का दिखावा भी नहीं कर रही है.

अर्थव्यवस्था में गिरावट

इस बीच, पाकिस्तान की बदहाल अर्थव्यवस्था और गर्त में जाती दिख रही है. आईएमएफ का अनुमान है कि यह 2020 में और सिकुड़ेगी, इसकी वृद्धि दर शून्य से 1.5 प्रतिशत नीची रहेगी. खाड़ी देशों से आने वाले पैसे में भारी कमी आएगी और निवेश में जल्दी उछाल आने की कोई उम्मीद नहीं दिखती. मार्च के अंत में इमरान सरकार ने नीची आय वाले परिवारों और बिजली के भुगतान में राहत देने के लिए 1200 अरब रुपये (5.5 अरब डॉलर) के राहत पैकेज की घोषणा की थी. लेकिन इससे अर्थव्यवस्था की आंतरिक कमजोरी, निर्यातों तथा आमदनी में कमी और भारी कर्ज आदि का कोई समाधान नहीं हुआ.

कोविड-19 संकट से पार पाने के लिए अप्रैल 2020 में पाकिस्तान ने आईएमएफ से ‘रैपिड फाइनान्सिंग इन्स्ट्रुमेंट’ के तहत 1.4 अरब डॉलर का कर्ज लिया. लेकिन उत्पादकता में बढ़ोतरी हुए बिना आगे और कर्ज़ लेना पाकिस्तान की आर्थिक दुर्दशा को और गहरा ही करेगा. टैक्स से आमदनी पहले ही घट चुकी है और लॉकडाउन के कारण लोगों की आमदनी घटने के कारण टैक्स से आमदनी में और गिरावट आएगी.

 नेशनल सिक्यूरिटी स्टेट की छवि को तोड़ना होगा

पाकिस्तान अगर अपनी रणनीति बदल दे तो इनमें से कुछ मुसीबतों से बच सकता है. कर्ज हासिल करने की बाजीगरी पर ज़ोर देने की जगह पाकिस्तान सरकार चीन से बाहर निकल रहीं अमेरिकी तथा जापानी कंपनियों को लुभाने की साहसिक योजना लागू कर सकती है. जापान ने अपनी उत्पादन यूनिटों को चीन से बाहर ले जाने वाली कंपनियों को प्रोत्साहनों की पेशकश की है. पाकिस्तान इस स्थानांतरण के लिए प्रोत्साहनों की घोषणा कर सकता है. इसके लिए उसे भारत और अफगानिस्तान से दोस्ती करनी होगी और अपनी इस छवि को तोड़ना होगा कि वह एक ऐसा नेशनल सिक्यूरिटी स्टेट है.


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लेकिन पाकिस्तान ने कोविड-19 से लड़ने के जो कदम उठाए हैं वे यही स्पष्ट करते हैं कि उसका सत्तातंत्र अपनी आवाम की फिक्र करने या कोरोनावायरस से लड़ने से ज्यादा चीन के साथ अपने रणनीतिक रिश्ते को तरजीह देता है. पाकिस्तान साज़िशों की उन कहानियों का केंद्र बन गया है जिनमें अमेरिका और ब्रिटेन पर जैविक तथा रासायनिक युद्ध की रणनीति के तहत कोरोनावायरस को ‘जन्म’ देने के आरोप लगाए जा रहे हैं.

महामारी खत्म हो जाएगी तब भी इस प्रोपगैंडा के असर बने रहेंगे और पाकिस्तान की आवाम इस्लामी जज्बे के प्रति हमदर्द होने के साथ-साथ पश्चिम विरोधी और चीन समर्थक बनी रहेगी. यही फॉर्मूला है एक नेशनल सिक्यूरिटी स्टेट बने रहने का, जो विदेशी कर्ज़ और बार-बार संकट से उबारे जाने वाले हाथों का मोहताज बना रहता है.

(लेखक वाशिंगटन डीसी के हडसन इंस्टीट्यूट में साउथ ऐंड सेंट्रल एशिया मामलों के डाइरेक्टर हैं, 2008-11 में अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत थे. उनकी पुस्तकों में ‘पाकिस्तान बिटवीन मोस्क ऐंड मिलिटरी’, ‘इंडिया वर्सेस पाकिस्तान: व्हाइ कांट वी बी फ्रेंड्स’ और ‘रीइमेजिंग पाकिस्तान’ शामिल हैं. ये उनके निजी विचार हैं) 

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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