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100 सालों के सफर में ‘निष्ठा धृति: सत्यम्’ की भावना को दिल्ली विश्वविद्यालय ने कैसे सहेजे रखा

दिल्ली विश्वविद्यालय की कहानी आज से लगभग 111 वर्ष पूर्व आरंभ हुई थी जब भारत की राजधानी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से स्थानांतरित होकर दिल्ली बनी थी.

दिल्ली विश्वविद्यालय

निष्ठा धृति: सत्यम् ‘ इन शब्दों को, इसमें समाहित भावनाओं (निष्ठा, दृढ़ता और सत्य) को अपने अंदर सहेजने वाला दिल्ली विश्वविद्यालय, पिछले 100 वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में मजबूत भारत के निर्माण में अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहा है.

बीते 1 मई को विश्वविद्यालय ने अपना 100 वर्ष पूरा किया है. ऐसे में इस विश्वविद्यालय के विषय में बात करना, असल में देश के बाकी शिक्षा संस्थानों के सामने एक समर्थ व आदर्श विश्वविद्यालय की छवि प्रस्तुत करने जैसा है, जिससे प्रेरित होकर अन्य शिक्षा संस्थान भी राष्ट्र निर्माण पथ पर आगे बढ़ सकेंगे.

दिल्ली विश्वविद्यालय की कहानी आज से लगभग 111 वर्ष पूर्व आरंभ हुई थी जब भारत की राजधानी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से स्थानांतरित होकर दिल्ली बनी थी.

सत्ता का नया केंद्र दिल्ली हो जाने के बाद बुद्धिजीवियों के लिए भी यह शहर एक नए केंद्र के रूप में विकसित होने लगा था. एक-एक कर के शिक्षा संस्थानों की स्थापना होने लगी थी, विमर्शों का नया दौर आरंभ हो गया था. इसी क्रम में सन 1922 में हरि सिंह गौर के नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय की स्थापना की गई.

जैसा कि हम जानते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में निवेश करना तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता की एक आवश्यक मजबूरी थी. जिसे एक अवसर के रूप में परिवर्तित करते हुए ब्रिटिश सत्ता की छांव में दिल्ली विश्वविद्यालय ने न सिर्फ अपनी जड़ें मजबूत की बल्कि स्वतंत्रता के पश्चात भी वो समय के साथ लगातार छायादार ही होता गया. यही कारण है कि कभी तीन कॉलेज (रामजस, हिंदू और स्टीफंस कॉलेज) से आरंभ हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के पास आज 90 कॉलेज, 29 केंद्र और संस्थान, 20 हॉल और हॉस्टल और 86 से अधिक विभाग हैं.

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इसके अतिरिक्त यह विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान देते हुए स्टूडेंट ओपन लर्निंग (एसओएल) के माध्यम से भी शिक्षा प्रदान करता है.

इसी तरह विश्वविद्यालय महिलाओं के प्रति पूर्णतः समर्पित शिक्षा केंद्र एनसीडब्ल्यूईबी का भी संचालन करता है जिसने स्त्री शिक्षा के रेशियो को बढ़ाया है. वो महिलाएं जो किन्हीं कारणों से रेगुलर कॉलेज में नहीं पढ़ पाती हैं उनके लिए ये संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में वरदान साबित हुआ है.


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दिल्ली विश्वविद्यालय का विस्तार

दिल्ली विश्वविद्यालय का विस्तार यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वसुधैव कुटुंबकम् की नीति का पालन करते हुए समस्त विश्व फलक पर अपने पंख पसार रहा है. इसी क्रम में विश्वविद्यालय में पेटेंट फाइलिंग और उसके रखरखाव की सुविधा के लिए 2014 में बौद्धिक संपदा अधिकार सेल की स्थापना की गई थी. अंतर्राष्ट्रीय समझौता ज्ञापन, जहां विश्वविद्यालय ने बेहतर अध्ययन अवसरों के निर्माण के लिए छात्रों व शिक्षकों के समयबद्ध स्थानांतरण तथा शोध विद्वानों आदि की मेजबानी के लिए 90 से अधिक विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

स्पष्ट शब्दों में कहें तो दिल्ली विश्वविद्यालय विश्व के उस दुर्लभ शिक्षण संस्थानों में से एक है जिसने अपना दायरा न सिर्फ बड़ा किया है बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में एक मानक स्थापित किया है. यह विश्वविद्यालय देश के अन्य विश्वविद्यालयों के सामने यह उदाहरण भी पेश करता है कि यदि शिक्षा के क्षेत्र में मजबूत विजन के साथ ईमानदार प्रयास किया जाए तो न सिर्फ संस्थान का दायरा बढ़ाया जा सकता है बल्कि सीमित संसाधनों के साथ भी उच्च गुणवत्ता युक्त शिक्षा भी प्रदान की जा सकती है.

हम जानते हैं कि पूरा देश पिछले 2 वर्षों से कोविड-19 महामारी से जूझ रहा था. सारा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो चुका था. वर्षों से चली आ रही जीवन परिपाटी एक ही झटके में पटरी से उतर चुकी थी. ऐसी परिस्थिति में देश की शिक्षा व्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई थी. सभी स्कूल कॉलेज तत्काल प्रभाव से बंद करने पड़े थे. इस भयावह स्थिति में भी दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने छात्रों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझते हुए वैकल्पिक ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की. इसके लिए इसने तकनीकी रूप से अपने आपको मजबूत बनाते हुए, न सिर्फ ऑनलाइन शिक्षण को जारी रखा, बल्कि उसकी गुणवत्ता का भी पूरा ख्याल रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय का यह प्रयास अपने आप में और विशिष्ट तब हो जाता है जब हम देखते हैं कि भारत के अधिकांश विश्वविद्यालय इस दौरान तकनीकी रूप से कमजोर अथवा निष्क्रिय पड़े हुए थे.

लेकिन यहां यह भी बात उल्लेखनीय है कि कोविड काल में इस विश्वविद्यालय का सारा ध्यान सिर्फ शिक्षण पर नहीं था बल्कि इसे अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का भी बोध था. कोविड-19 महामारी के दौरान, विश्वविद्यालय ने सभी संबद्ध जनों के हितों की रक्षा के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया और लॉकडाउन अवधि के दौरान राशन प्रदान करने के लिए ‘Care for the Neighbour’s के नाम से एक सहृदय पहल की.


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100 वर्षों का प्रभावशाली इतिहास

दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने इन 100 वर्षों में देश के 100 वर्षों का इतिहास भी समेट रखा है. विशेष रूप से यदि इसके आरंभिक 25 वर्षों की बात करें तो इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को बहुत करीब से देखा है. आज़ादी की लड़ाई में ब्रिटिश सत्ता से बेखौफ भिड़ जाने वाले कई क्रांतिकारी विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों के छात्र रहे थे.

अंग्रेजों के खिलाफ छात्रों द्वारा किए गए कई विरोध और हड़तालों के आयोजन का यह विश्वविद्यालय साक्षी रहा है. राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक बहुत ही महत्वपूर्ण नेता लाला हरदयाल, जिन्होंने गदर पार्टी की स्थापना में केंद्रीय भूमिका निभाई थी, वे स्टीफन कॉलेज के छात्र थे. होमरूल आंदोलन के दौरान भी यहां छात्रों ने सक्रियता दिखाई थी और बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन और हड़तालें आयोजित कीं. दिल्ली षड्यंत्र मामले की सुनवाई कर रही अदालत वाइसरीगल लॉज (वर्तमान कुलपति कार्यालय) में आयोजित की गई थी.

सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान, सेंट स्टीफंस कॉलेज के छात्रों ने कॉलेज की मुख्य इमारत के ऊपर राष्ट्रीय ध्वज फहराया, जो वहां 3-4 दिनों तक रहा, इसी क्रम में 26 जनवरी 1936 को दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संघ ने ‘स्वतंत्रता दिवस’ भी मनाया.

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब दिल्ली के कश्मीरी गेट के पास सेंट स्टीफंस और हिंदू कॉलेजों के सामने त्रिकोणीय पार्क में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया, तो इस विश्वविद्यालय के छात्र भी प्रदर्शन में शामिल हुए थे. यहां तक कि महात्मा गांधी ने भी स्टीफेंस कॉलेज का दौरा किया और उसे संबोधित किया और वहां ‘असहयोग प्रस्ताव’ का मसौदा तैयार किया गया.

दिल्ली विश्वविद्यालय, राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से तैयार की गई हर शैक्षणिक नीति को पूरी ऊर्जा के साथ, समय पर स्वीकार करता है और पूरी निष्ठा के साथ उसका पालन भी करता है. उदाहरण के लिए, हाल ही में इसने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को अपनाया है और चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम रूपरेखा भी पेश की है. दिल्ली विश्वविद्यालय इसे शुरू करने वाला पहला विश्वविद्यालय है. इसी तरह विश्वविद्यालय ने प्रवेश परीक्षा के आधार पर यूजी कार्यक्रम में प्रवेश शुरू कर दिया है, जिसका नाम कॉमन यूनिवर्सिटीज एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) है.

दिल्ली विश्वविद्यालय का अपना एक शिक्षक संघ है जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के नाम से जाना जाता है. डूटा की स्थापना वर्ष 1957 में हुई थी, जबकि इसके अध्यक्ष पद का चुनाव 1967 से शुरू हुआ था. देशभर के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में जब भी शिक्षक हितों की बात आती है, सभी जगह के शिक्षक डूटा की तरफ देखते हैं. केवल शिक्षकों और छात्रों के हित के लिए ही नहीं बल्कि देशहित के लिए भी यहां के शिक्षक नेता कई बार जेल गए हैं. दरअसल शिक्षक संघ, विश्वविद्यालय और सत्ता के बीच एक सेतु का कार्य करता है, जिसका होना किसी भी विश्वविद्यालय के लिए बहुत ही आवश्यक होता है. दिल्ली विश्वविद्यालय इस दृष्टि में भी देश के अन्य विश्वविद्यालयों के सामने एक मानक स्थापित करता है.

यदि शिक्षा के वैश्विक मापदंडों के आधार पर दिल्ली विश्वविद्यालय का आकलन किया जाए तो निश्चित रूप से कहा जाएगा कि शिक्षा के क्षेत्र में यह विश्वविद्यालय भारत का प्रतीक चिन्ह बन चुका है. दिल्ली विश्वविद्यालय भारत का एकमात्र संस्थान है जिसके क्यूएस रैंकिंग में 20 विषय शामिल है. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भारतीय शिक्षा संस्थानों के बीच दिल्ली विश्वविद्यालय का प्रदर्शन बहुत ही बेहतर रहा है. विश्वविद्यालय को रैंकिंग में 50वीं रैंक मिली है. वहीं कला और मानविकी, जीवन विज्ञान और मेडिसीन विषयों की रैंकिंग में भारतीय संस्थानों में यह विश्वविद्यालय दूसरे स्थान पर है. जबकि प्राकृतिक विज्ञान विषय में इसका स्थान सातवां है.

अंत में कहा जाए तो, एक संस्थान के लिए 100 वर्ष उसका बाल्य काल ही होता है. समय के साथ जब हजारों छात्र और शिक्षक अपने-अपने हिस्से की ईंटें जोड़ते हैं, नींव तैयार करते हैं और तब जाकर शिक्षा के क्षेत्र में एक समर्थ संस्थान तैयार होता है. दिल्ली विश्वविद्यालय ऐसे ही संस्थान का प्रतीक है जिससे प्रेरणा लेकर विश्व के बहुत से विश्वविद्यालय अपने पथ का निर्धारण कर, शिक्षा को एक नया अर्थ दे सकते हैं.

साथ ही यह दिल्ली विश्वविद्यालय के लिए गर्व की बात होगी कि जब देश 2047 में आजादी की सौवीं वर्षगांठ मना रहा होगा तो विश्वविद्यालय भी अपने अंदर कई नई उपलब्धियों को समाहित कर 125 वर्ष का हो चुका होगा. उस समय तक निश्चित रूप से इसकी ख्याति और प्रासंगिकता और ज्यादा होगी.

अंतमें, जिस शिक्षा संस्थान का इतना गौरवशाली और प्रभावशाली इतिहास रहा है, तब स्वाभाविक है कि इस संस्थान ने राष्ट्र के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी दिया है. शिक्षा राष्ट्र के हर हिस्से को विकसित करती है. दिल्ली विश्वविद्यालय ऐसे विद्यार्थियों, बुद्धिजीवियों के समूह का निर्माण निरंतर करता आया है जिन्होंने देश, समाज, राष्ट्र के निर्माण में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है.

वर्तमान समय बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण है. आज देश गरीबी, भुखमरी, महामारी जैसे अनेक समस्यायों का सामना कर रहा है वहीं दूसरी तरफ देश का युवा शिक्षा, रोजगार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों से भटक कर मानसिक संकीर्णता, धर्मांधता के गर्त में जा रहा है. भारत का भविष्य युवाओं के हाथ में है और ऐसे समय में दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे उच्च मानवीय मूल्यों, उच्च नैतिक मूल्यों वाले इस शैक्षिक संस्थान को अपनी सक्रियता दिखाने की जरूरत है.

ठीक ऐसे समय में यह संस्थान प्राचीन संस्कृति को संजोकर रखते हुए आधुनिक शिक्षा का प्रसार करते हुए अपने विद्यार्थियों को देश के युवाओं को उत्तम गुणों, ऊंचे मूल्यों से संपन्न करे जिससे सामाजिक न्याय, बंधुत्व की भावना विकसित हो सके. यही मूल्य, यही भावना लोकतंत्र और राष्ट्र के निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वहन करेगी.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के कार्यकारिणी सदस्य और राजधानी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(कृष्ण मुरारी द्वारा संपादित)


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