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बिहारी मजदूरों पर हमले की अफवाह और फेक न्यूज से निपटने के तमिलनाडु मॉडल से क्या सीखें?

बिहारी मजदूरों पर हमले की फेक न्यूज पहले सोशल मीडिया से फैली और बाद में कई बड़े अखबार भी इसे सच मानकर फेक न्यूज को फैलाने लगे. अखबारों के छप जाने के बाद तो सोशल मीडिया में ऐसी चर्चाओं की बाढ़ ही आ गई.

तमिलनाडु पुलिस की प्रतिनिधि तस्वीर | फोटो: Twitter/@tnpoliceoffl

तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर तथाकथित हमले की अफवाहों और फेक न्यूज को लेकर मचा गुबार अब शांत हो गया है. इन अफवाहों के कारण, थोड़े समय के लिए दोनों राज्यों में चिंता का माहौल बन गया था और ऐसी आशंका पैदा हो गई थी कि तमिलनाडु से बिहारी मजदूरों का पलायन न शुरू हो जाए. लेकिन जिस तरह से तमिलनाडु पुलिस ने फेक न्यूज और अफवाहों से निपटा, वह एक मॉडल की तरह है, जिसका इस्तेमाल करके बाकी राज्य भी फेक न्यूज को समय रहते रोक सकते हैं.

बिहारी मजदूरों पर हमले की फेक न्यूज पहले सोशल मीडिया से फैली और बाद में कई बड़े अखबार भी इसे सच मानकर फेक न्यूज को फैलाने लगे. अखबारों के छप जाने के बाद तो सोशल मीडिया में ऐसी चर्चाओं की बाढ़ ही आ गई.

कैसे शुरू हुआ ये सब

इस साल फरवरी महीने के दूसरे पखवाड़े में इक्का-दुक्का सोशल मीडिया पोस्ट इस बारे में आए कि किस तरह तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ “जुल्म” हो रहा है. बताया गया कि किस तरह तिरुपुर में बिहारी मजदूरों पर “हमला” हुआ है. इन पोस्ट में बिहार के मीडिया और नेताओं को टैग किया गया था.

अधिकारियों ने शुरुआत में इसे बहुत गंभीर नहीं माना क्योंकि वे जानते थे कि ऐसा कुछ हुआ नहीं है और ये वीडियो पुराने, अन्य राज्यों के और आपसी कलह के थे. एक वीडियो में तमिल मजदूर आपस में लड़ रहे हैं और दूसरे मामले में बिहारी मजदूरों का झगड़ा चल रहा है. एक तस्वीर जोधपुर की थी.

चूंकि बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के जन्मदिन समारोह में हिस्सा लेने के लिए चेन्नई में थे इसलिए उन पर बीजेपी भी आरोप लगा रही थी.

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इस बीच सोशल मीडिया में फैली अफवाहों को बिहार के प्रिंट मीडिया और नेताओं ने वेरिफाई किए बिना सच मान लिया और इस बारे में वे लिखने-बोलने लगे. इससे चर्चा फैल गई. ये सारी खबरें बिहार के जिलों के स्तर से, फोन से मिली तथाकथित जानकारियों के आधार पर, लिखी जा रही थी. किसी भी अखबार ने ये जरूरी नहीं समझा कि अपना कोई संवाददाता तमिलनाडु भेज दें या तमिलनाडु में पुलिस या प्रशासन से इसकी पुष्टि कर लें. वैसे भी सोशल मीडिया की संरचना यानी बनावट ही ऐसी है कि शोर मचाती और तीखी बातें यहां तेजी से फैलती हैं.

तमिलनाडु पुलिस के सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल की नजर इन खबरों पर थी. जैसे ही उसे ये खबरें प्रिंट मीडिया से फैलती नज़र आई, अधिकारी चौकस हो गए. उन्हें एहसास हो गया कि अगर वे कार्रवाई नहीं करेंगे, तो हालात बिगड़ सकते हैं. फौरन चेन्नई में उच्चस्तरीय बैठक करके स्थिति पर विचार किया गया और मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी दी गई. प्रशासनिक स्तर पर ये निर्देश प्राप्त कर लिया गया कि अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए जो भी जरूरी हो, किया जाए.


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हालात बिगड़ने से पहले कार्रवाई

– 2 मार्च को तमिलनाडु पुलिस के महानिदेशक खुद सोशल मीडिया पर आए और एक वीडियो अपलोड करके बताया कि बिहारी मजदूरों पर हमले की बात गलत है. जो वीडियो वायरल हुए हैं, वे इससे जुड़े हुए नहीं है. किसी भी वीडियो में तमिल लोगों द्वारा बिहारी मजदूरों पर हमले की बात नहीं है. उन्होंने लोगों से अपील की कि वे इन अफवाहों के चक्कर में न पड़ें. साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि जो लोग फेक न्यूज फैला रहे हैं, उन पर पुलिस की नजर हैं और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

इसके बाद मुख्यमंत्री स्टालिन ने भी लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की और कहा कि तमिलनाडु में अन्य राज्यों से आए मजदूर पूरी तरह सुरक्षित हैं और प्रशासन उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा.

– उच्च स्तर से हरी झंडी मिलते ही पूरा पुलिस प्रशासन हरकत में आ गया. पुलिस, सोशल मीडिया में उन हैंडल और अकाउंट की पहचान करने में जुट गई जहां से फेक न्यूज फैलाई जा रही थी. कई ऐसे अकाउंट को रिप्लाई किया गया कि वीडियो और सूचना गलत है और तमिलनाडु पुलिस कार्रवाई करेगी. जिला स्तर पर भी पुलिस ने ये काम किया. नतीजा ये हुआ कि फेक न्यूज फैलाने वाले सहम गए और ज्यादातर ऐसी पोस्ट और ट्वीट डिलीट कर दिए गए. तमिलनाडु पुलिस का सोशल मीडिया मॉनिटरिंग सेल इस मौके पर खूब काम आया और उसने फेक न्यूज फैलाने वालों को दहशत में डाल दिया.

– तमिलनाडु में भाषा का मुद्दा संवेदनशील है. खासकर 1960 के दशक में जब केंद्र सरकार ने हिंदी थोपने की कोशिश की थी तो द्रविड़ संगठनों ने विरोध कर दिया. केंद्र सरकार ने तब अपने कदम वापस खींच लिए. वहां भाषा को लेकर अविश्वास बना हुआ है. लेकिन फेक न्यूज मामले में प्रशासनिक जरूरत को देखते हुए तमिलनाडु पुलिस ने बिहारी मजदूरों और बिहारी पत्रकारों तक पहुंचने के लिए हिंदी का खूब इस्तेमाल किए. डीजीपी का बयान हिंदी में अनुवाद करके सोशल मीडिया पर डाला गया. हिंदी जानने वाले कई पुलिस अफसरों ने हिंदी में बयान जारी करके बताया कि बिहारी मजदूर पूरी तरह सुरक्षित हैं. मजदूरों के लिए हेल्पलाइन नंबर और कंट्रोल रूम खोले गए, जहां हिंदी में जवाब देने वाले नियुक्त किए गए. 

– सोशल मीडिया पर सख्ती के साथ ही तमिलनाडु पुलिस ने फेक न्यूज फैलाने वाले प्रिंट मीडिया को भी निशाने पर लिया. फेक न्यूज फैलाने वाले अखबारों से पुलिस अफसरों ने बात की और पूरी जानकारी दी. अखबारों के खिलाफ केस भी किए गए. उन्हें तमिलनाडु पुलिस के फोन नंबर दिए गए कि ऐसी कोई खबर छापने से पहले पुलिस का पक्ष जान लें. इससे प्रिंट मीडिया में फेक न्यूज का छपना बंद हो गया. अखबारों ने पुलिस के हवाले ये खबरें भी छापीं कि तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के लेकर फैली अफवाहें निराधार हैं. इससे माहौल ठंडा करने में मदद मिली. इसी दौरान तमिलनाडु के दो प्रमुख नेताओं पर भी मुकदमे कायम किए गए, जिन्होंने इस बारे में ऐसे बयान दिए थे, जिससे कटुता या भ्रम फैलने की आशंका थी.

– पुलिस ने ये भी तय किया कि तमिलनाडु में काम कर रहे मजदूरों को आश्वस्त किया जाए कि वे पूरी तरह सुरक्षित हैं. इसके लिए पुलिस अफसर खुद मजदूरों की कॉलोनियों में गए और उनसे बात की. यहां भी हिंदी जानने वाले अफसर काम आए. चूंकि ये सब जिस दौरान हुआ, तब होली का त्योहार आने वाला था, जब बड़ी संख्या में मजदूर गांव की तरफ लौटते हैं. इसलिए तमिलनाडु पुलिस ने रेलवे स्टेशनों पर बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किए. कई उद्योग और व्यापार संगठनों ने ऐसे बयान दिए कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है. तमिलनाडु में शांति का माहौल है और सब लोग सुरक्षित हैं. इस बीच, जब बिहारी मजदूरों पर कुछ उपद्रवी लोगों ने हमला किया तो पुलिस ने फौरन चार लोगों को गिरफ्तार कर लिया और इसकी जानकारी भी सोशल मीडिया दी. इससे तमिलनाडु पुलिस की ये छवि बनी कि वह छिपा नहीं रही है और अगर सचमुच कोई छिटपुट घटना हुई है तो सख्ती से कार्रवाई की जा रही है.

 ये तो पुलिस की बात है. जहां तक राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व की बात है, उसने भी अपनी भूमिका निभाई. मुख्यमंत्री स्टालिन ने लगातार सीनियर अफसरों के साथ बैठकें की. उन्होंने बिहार में मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री से संपर्क बनाए रखा. दोनों राज्यों के बीच तालमेल बनाए रखने के लिए उन्होंने डीएमके के सबसे वरिष्ठ नेताओं में एक पूर्व केंद्रीय मंत्री टी.आर. बालू को पटना भेजा, जहां रहकर उन्होंने नेताओं और अधिकारियों के साथ सामंजस्य स्थापित किया. बिहार पुलिस ने भी इस बीच अफवाहों का खंडन किया और कई लोगों पर केस किए तथा गिरफ्तारियां भी कीं.

इन प्रयासों का नतीजा ये हुआ कि लगभग 5 दिन में ही पूरा मामला ठंडा पड़ गया.

सीखने की जरूरत

फेक न्यूज को अब सारी दुनिया में शांति और व्यवस्था के लिए बड़े खतरे के तौर पर देखा जा रहा है. खासकर सोशल मीडिया के कारण फेक न्यूज फैलने की गति तेज हो गई और इसका असर भी बढ़ा है. कई देश इस समस्या के कारण हिंसा के लंबे दौर में फंस चुके हैं. पड़ोसी देश म्यांमार में फेसबुक और व्हाट्सएप के सहारे ऐसी फेक न्यूज फैलाई गई कि दो समुदाय आपस में भिड़ पड़े. सैकड़ों जानें गईं और हजारों लोग विस्थापित हुए. वहां तनाव के बीज पहले से थे, जिसे फेक न्यूज नें भड़का दिया.

इस बार तो तमिलनाडु और बिहार के मामले में संकट टल गया है. लेकिन ऐसे मामले आगे भी आते रहेंगे. इसलिए तमिलनाडु के अनुभवों से सीखने की जरूरत है. फेक न्यूज से निपटने के मुख्य सूत्र ये हैं- किसी भी अफवाह या फेक न्यूज को हल्के में न लें. की-वर्ड से पता करें कि क्या ढेर सारे हैंडल और आईडी से एक समान फेक न्यूज फैलाई जा रही है, क्या कोई ग्रुप इसके पीछे हैं, मुख्य अपराधियों की पहचान करें, उनके खिलाफ कार्रवाई करें और कार्रवाई होने की बात सोशल मीडिया के जरिए फैलाएं, ताकि बाकि लोग सहम जाए, सही जानकारियां दें, छिपाएं नहीं. हर स्थिति में अलग अलग रणनीति की जरूरत पड़ सकती है. इसलिए रणनीति बनाने में लचीलापन रखें.

ये ध्यान रखें कि फेक न्यूज का हमला हमेशा राजनीतिक दल नहीं करते. कई बार व्यूज के लिए भी ये हरकतें होती हैं, क्योंकि ज्यादा व्यूज का मतलब ज्यादा आमदनी है. इस पहलू को नजरअंदाज न करें और सारा ध्यान राजनीतिक शक्तियों पर न लगाएं.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख़ को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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