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हेयर ट्रांसप्लांट, वैम्पायर फेशियल— भारत नए जमाने में हो रहे अनियमित ट्रीटमेंट पर आंखें नहीं मूंद सकता

ख़राब ट्रीटमेंट के चलते मौतें, जलन और त्वचा की स्थायी क्षति के मामले देखने को मिले हैं. और इस समस्या का एक बड़ा कारण है—अनियमित क्लीनिक.

प्रतीकात्मक तस्वीर: वीकेयर का हेयर ट्रांसप्लांटेशन गंजेपन को पूरी तरह से खत्म करने का दावा करता है | फोटो: ANI

दिल्ली में एक 30 वर्षीय व्यक्ति की पिछले साल गलत हेयर ट्रांसप्लांट के बाद जान चली गई. यह घटना 2019 के बाद से देश में दर्ज किया गया ऐसा तीसरा मामला था. ऐसा कैसे हो सकता है कि भारत में इस प्रक्रिया के दौरान कई मौतें हो गई, क्योंकि भारत दुनिया में इस मामले सबसे कम मृत्यु दर में से एक का दावा करता है. इसका उत्तर गलत तरीके और अनियमित तरीके से हो रहे हेयर ट्रांसप्लांट में छुपा हुआ है.

हाल ही में मुंबई में एक महिला ने हाइड्राफेशियल के बाद एक ब्यूटी पार्लर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई. महिला का आरोप था कि यह करवाने के बाद उनके स्किन पर तेज जलन हुई और उनके स्किन को भारी नुकसान पहुंचा. उन्होंने आरोप लगाया कि पार्लर में ऐसे प्रोडक्ट का इस्तेमाल किया गया जो मानकीकृत नहीं थे.

यह समझने के लिए कि भारत ने इन बेतुकी मौतों और ज़ख्मों पर आंखें क्यों मूंद ली हैं, हमें नए जमाने के ट्रीटमेंट में हो रही बढ़ोतरी, डॉक्टरों की अपर्याप्त ट्रेनिंग और अनियमित इंडस्ट्री को पहचानना चाहिए.

उदाहरण के लिए, भारतीय क्लिनिकल मेडिकल काउंसिल (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम 2002 के अनुसार हेयर ट्रांसप्लांट को एक सर्जिकल प्रक्रिया माना जाता है. वैध मेडिकल लाइसेंस के साथ दवा और सर्जरी में डिग्री वाले केवल योग्य विशेषज्ञ ही इन्हें करने के लिए अधिकृत हैं. इसके अलावा, इन प्रक्रियाओं को आवश्यक बुनियादी ढांचे और चिकित्सा सुविधाओं से सुसज्जित लाइसेंस प्राप्त अस्पतालों या क्लीनिकों में किया जाना चाहिए. हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए लाइसेंस प्राप्त क्लीनिक नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एनएबीएच) और ज्वाइंट कमीशन इंटरनेशनल (जेसीआई) द्वारा निर्धारित एक कठोर मान्यता प्रक्रिया से गुजरते हैं. ये एसोसिएशन मरीजों की सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करते हैं और सुरक्षा को लेकर न्यूनतम मानकों की गारंटी देते हैं.

लेकिन अभी इसको लेकर चल रहे भारतीय प्रणाली में पहला दोष है: हेयर ट्रांसप्लांट न केवल गैर-चिकित्सा पेशेवरों द्वारा किया जा रहा है, बल्कि ऐसे तकनीशियनों द्वारा भी किया जा रहा है जिनके पास कोई मेडिकल बैकग्राउंड भी नहीं है. इसके अलावा महंगे सैलून और सौंदर्यशास्त्री किसी भी सेंसरशिप का सामना करने की चिंता किए बिना, हेयर ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए आकर्षक विज्ञापन देते रहते हैं. इसे रोकने के लिए एक नेशनल मेडिकल रजिस्टर की स्थापना करना होगा, जिसमें हेयर ट्रांसप्लांट प्रक्रियाओं को करने में सक्षम योग्य त्वचा विशेषज्ञों और प्लास्टिक सर्जनों की लिस्ट हो. यह रोगी जागरूकता और इसकी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा.

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इसी तरह, जो सैलून नए जमाने के उपचार जैसे ‘वैम्पायर फेशियल’ (ग्राहक के प्लाज्मा का उपयोग करके पीआरपी थेरेपी) और अन्य फेशियल की पेशकश करते हैं, उन्हें सुरक्षित और साफ सुथरी प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने के लिए सौंदर्य विशेषज्ञों से प्रशिक्षण और शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता होती है. एक त्वचा विशेषज्ञ के रूप में, मैं उन मरीजों की संख्या भूल गई हूं जिन्होंने अपनी उपस्थिति में सुधार करने के लिए ट्रीटमेंट की मांग की लेकिन शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की क्षति हुई.


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ग्रे एरिया

क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट त्वचा विशेषज्ञों के लिए राहत की सांस था. यह सुनिश्चित करने की दिशा में पहला कदम था कि स्पेशल ट्रीटमेंट करने वाले क्लीनिक अपने मरीजों के लिए देखभाल और सुरक्षा के न्यूनतम मानक बनाए रखें. इसका मतलब यह होगा कि तकनीकी जानकारी की आवश्यकता वाली कोई भी प्रक्रिया केवल त्वचा विशेषज्ञ या प्लास्टिक सर्जन द्वारा ही की जा सकती है, जिससे त्वचा विशेषज्ञ के स्थान पर किसी तकनीशियन के आने की संभावना सीमित हो जाएगी, जो कि कुछ क्लीनिकों में आम बात है.

ब्यूटी इंडस्ट्री में एक अस्पष्ट क्षेत्र बना हुआ है. मुंहासे का लेजर ट्रीटमेंट, लेजर हेयर रिमूवल, ब्लैकहैड या व्हाइटहेड हटाने आदि जैसे ट्रीटमेंट के लिए विशेषज्ञता और समझ के स्तर की जरूरत होती है जिसे केवल एक चिकित्सा पेशेवर द्वारा ही पूरा किया जा सकता है. हालांकि, एक नियामक संस्था की अनुपस्थिति के कारण, पर्याप्त पूंजी और विज्ञापन वाला कोई भी ब्यूटी पार्लर अपने ग्राहकों को ऐसी प्रक्रियाओं में फंसा सकता है. इसमें इस बात का खतरा रहता है कि अगर इस प्रक्रिया के दौरान कोई गलती हो गई तो स्थायी ज़ख्म का खतरा हो सकता है. न केवल ट्रीटमेंट के लिए, बल्कि इस तरह के उपकरण की खरीद और उपयोग के संबंध में भी एक उचित लिस्ट बनाई जानी चाहिए, जिसमें खरीद के लिए त्वचा विशेषज्ञ या प्लास्टिक सर्जन के वैध चिकित्सा लाइसेंस की आवश्यकता होती है.

अंतरिक्ष में बड़ी प्रगति करने वाले देश के लिए, हमने पृथ्वी पर जरूरी चीजों को बुरी तरह नजरअंदाज कर दिया है. क्लीनिकों में उपयोग की जाने वाली मशीनें या तो चीन में बनाई जाती हैं या वहां असेंबल की जाती हैं, भले ही घरेलू मशीनरी उद्योग की क्षमता का दोहन नहीं हुआ है. हालांकि, उन्नत मशीनरी के साथ भी, हमें यह सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखना चाहिए कि उनका उपयोग केवल प्रशिक्षित और प्रमाणित व्यक्तियों द्वारा ही किया जाएगा. इस अंतर को पाटने का एक तरीका सौंदर्यशास्त्रियों और तकनीशियनों को प्रशिक्षित करने के लिए सरकार द्वारा एक मानकीकृत प्रमाणन पाठ्यक्रम स्थापित करना होगा, जिससे उन्हें त्वचा उपचार करने और संबंधित जोखिमों को समझने में मदद मिलेगी.

जब तक हम किसी भी पार्लर या क्लिनिक में बिना किसी जांच के की जाने वाली प्रक्रियाओं की अनियमित बाढ़ पर रोक नहीं लगाते, तब तक हम उन महिलाओं और पुरुषों के दिल दहलाने वाले किस्से सुनते रहेंगे जो आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए आते हैं लेकिन अपने जीवन में भारी बदलाव के साथ बाहर निकलते हैं. यह जानते हुए भी कि इसे रोका जा सकता है, अगर हमने यह सुनिश्चित कर लिया होता कि लोगों की सुरक्षा और भलाई से समझौता करने वाला कोई भी व्यक्ति इससे बच नहीं सकता.

(डॉ दीपाली भारद्वाज एक त्वचा विशेषज्ञ, एंटी-एलर्जी विशेषज्ञ, लेजर सर्जन और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षित एस्थेटीशियन हैं. उनका एक्स हैंडल @dermatdoc है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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