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शाह महमूद कुरैशी को फिलिस्तीन युद्धविराम के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दें, उनका CNN इंटरव्यू भूल जाएं

अगर कुरैशी की पूर्व में राष्ट्रीय टेलीविजन पर मौजूदगी को देखा जाए तो सीएनएन को फिर भी पाकिस्तानी विदेश मंत्री का सबसे अच्छा वर्जन देखने को मिला है.

पिछले हफ्ते अमेरिका यात्रा के दौरान नजर आए पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी, फाइल फोटो | Twitter | @SMQureshiPTI

चुम्बन, कंबल और ‘अभद्र’ गतिविधियों को दरकिनार कर दें तो जितना हम जानते हैं यह हवाई जहाज से यात्रा की सफलता की एक कहानी है. नहीं, यह सिर्फ अमेरिका से पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की वापसी की उड़ान भर नहीं थी. बल्कि इसलिए खास है कि इस हफ्ते के शुरू में उनका एक शानदार नायक की तरह स्वागत किया गया. क्यों? उन्होंने ‘डीप पॉकेट्स’ वाली अपनी टिप्पणी से देश का मनोबल बढ़ाया था और अब वायरल हो चुके सीएनएन को दिए उसी इंटरव्यू में उन्होंने यह दावा भी किया था कि ‘वे (इजरायल) मीडिया को नियंत्रित करते हैं.’ फिर उसी साक्षात्कार में उनकी टिप्पणी को यहूदी विरोधी कहा गया. तब भी वह अपनी चिरपरिचित कृत्रिम मुस्कान और ठहाके लगाने से बाज नहीं आए, जिस पर इस समय काफी मीम बन रहे हैं.

हमेशा ही आवेश में रहने वाले कुरैशी ने सीएनएन पर 10 मिनट के कार्यक्रम के दौरान उस समय तो मानो बाजी ही मार ली जब उन्होंने न्यूज एंकर की गलती सुधारी कि वह विदेश मंत्री हैं, कोई राजदूत नहीं. वह सही थे, कौन जाने कि वह उन्हें अगले पल कुछ और भी बुला सकती थी—अमेरिका का राष्ट्रपति?—उस समय कुछ भी संभव लग रहा था. पश्चिमी मीडिया को आईना दिखाने की जिम्मेदारी विदेश मंत्री ने खुद अपने ऊपर ले ली थी. विडंबना भी कितनी अजीब है. पश्चिम को आप लेक्चर दे रहे हैं, जबकि यहां अपने देश में मीडिया को व्यापक स्तर पर सेंसरशिप का सामना करना पड़ता है, पत्रकारों पर हमले होते हैं, और प्रेस की स्वतंत्रता को हर दिन बाधित किया जाता है.

उइगर मुसलमानों पर चुप्पी

जब चीन में उइगर मुसलमानों के नरसंहार पर सवाल किया गया, तो कुरैशी का स्पष्ट रुखा था कि ‘हम अपने राजनयिक चैनल इस्तेमाल करते हैं. हम हर बात पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं करते.’ जो हकीकत में सही भी है, क्योंकि प्रधानमंत्री इमरान खान कहते हैं कि वह स्पष्ट तौर पर इस बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं. पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भी सौ फीसदी स्पष्ट राय है कि उइगर कोई ‘मुद्दा नहीं’ है और देश को इसे लेकर कोई चिंता नहीं है. क्या कोई शून्य चिंता वाले इस विषय पर विदेश मंत्री के साथ कोई नोट साझा नहीं करता है?


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सीएनएन को दिए इंटरव्यू में कुरैशी ने दोहराया कि वह ‘कभी यहूदी विरोधी नहीं रहे हैं और…कभी होंगे भी नहीं.’ लेकिन जब आप विवादास्पद बयानों—जैसे ‘महमूद गजनवी की तरह मैं भी सोमनाथ मंदिर को नष्ट करने निकला हूं.’—से भावनाएं भड़काने और उस पर लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट सुनने के आदी हो जाते हैं तो फिर आप यह भूल जाते हैं कि यह सीएनएन है या कोई स्थानीय जलसा.

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अगर कुरैशी की पूर्व में राष्ट्रीय टेलीविजन पर मौजूदगी को देखा जाए तो सीएनएन को अब भी पाकिस्तानी विदेश मंत्री का सबसे अच्छा वर्जन देखने को मिला है. ‘डीप पॉकेट्स’ हमेशा से ही उनकी चिंता रही है. ‘डीप पॉकेट्स’ वालों को देखते हुए इसे सीधे-साधे कैरियर वालों के लिए एक व्यावसायिक खतरा माना जाना चाहिए. इसमें कुछ भी यहूदी-विरोधी नहीं है, है कि नहीं? कुरैशी ने एक बार एक न्यूज एंकर को यह कहते हुए हड़का लिया था कि क्या वह किसी के ‘एजेंडे’ पर काम कर रहे हैं, क्योंकि उसने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में कश्मीर पर पेश एक प्रस्ताव के बारे में मंत्री से सवाल करने की हिमाकत की थी. उनके खुद के बयान और प्रधानमंत्री के इस ट्वीट पर खासा जोर दिए जाने पर कि पाकिस्तान को इस प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र के 50 से अधिक सदस्यों का समर्थन प्राप्त है, कुरैशी बिफर पड़े और एंकर से बार-बार उनका ट्वीट दिखाने को कहने लगे, ‘अभी निकलो, अभी निकलो, मैं अपना ट्वीट देखना चाहता हूं.’

कुरैशी का मानो या न मानो

शीर्ष राजनयिक के नाते यदि कुरैशी किसी दिन आपसे कहे कि अनुच्छेद 370 भारत का एक आंतरिक मामला है और पाकिस्तान को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है, तो भरोसा करे. क्योंकि वह दो दिन बाद आपको बताएंगे कि उनके कहने का आशय यह नहीं था, जब उन्होंने कहा था तो क्या कहा था. उस पर भी भरोसा कीजिए. यही बात उनके इस स्पष्टीकरण पर भी लागू होती है कि ‘क्या हम भारत से बात कर रहे हैं, नहीं ना?’ एक बैक चैनल है लेकिन यह औपचारिक चैनल नहीं है क्योंकि सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोग स्थिति पर एक-दूसरे को सिर्फ अपडेट कर रहे हैं. यह वास्तव में कुछ ऐसा लगता है जैसे भारत-पाकिस्तान कोविड क्वारांटाइन के दौरान अपने-अपने घर में रहते हुए डेटिंग कर रहे हैं.

हर बार आपको यही बताया गया है कि पाकिस्तान को भारत से वार्ता में कोई जल्दबाजी नहीं है और संयुक्त अरब अमीरात की मदद से कोई गोपनीय वार्ता नहीं हो रही है, यकीन कीजिए यह सब सच है.

वे ‘एक चाय की प्याली में तूफान उठाते हैं,’ अब तक तो सब लोग जान ही चुके हैं कि सारे विवादों के पीछे भारत का ही हाथ होता है. यहां तक कि उनमें भी जिसमें प्रधानमंत्री भारतीय दूतावासों की सक्रियता को देखकर पाकिस्तानी राजनयिकों को फटकार लगाते हैं या फिर जब विदेश मंत्री अपने रूसी समकक्ष की यात्रा के दौरान अपनी छतरी खुद नहीं पकड़ते हैं. छतरी कूटनीति एक नई धुन है, लेकिन यह सबके लिए नहीं है.

चिढ़ने वाले तो चिढ़ते रहेंगे लेकिन हाल की यात्रा एक बड़ी कूटनीतिक जीत रही है, पूरे ब्रह्मांड में किसी की पहुंच वहां तक नहीं है, जहां तक पहुंचने में विदेश मंत्री कुरैशी ने सफलता हासिल की है. पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के नेताओं और वफादारों ने भले ही विदेश मंत्री को सिर्फ माला पहनाई हो, लेकिन हकीकत यह है कि वह नोबेल शांति पुरस्कार से कम के हकदार नहीं है. आपको और क्या लगता है कि इजरायली प्रधानमंत्री युद्धविराम के लिए क्यों राजी हुए है? कुरैशी का अपने समर्थकों के साथ ‘मैं फ्यूरर’ का खिताब जीतना. हमने विदेश मंत्री के लिए जो होते देखा, वो सार्वजनिक तौर पर स्नेह जताने का अच्छा तरीका था- लाल गुलाब और शबाशी. आखिरकार, यह उनकी नाटकीयता ही है जिसके वजह से शो चलता रहता है और कूटनीतिक जीत हासिल होती रहती है.

लेखिका पाकिस्तान की स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nalainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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