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आइए ग्रेटा थनबर्ग पर निहाल हों ताकि सानंद को भूला जा सके, सत्ता भी यही चाहती है, सब यही चाहते हैं

ग्रेटा का गुणगान चौतरफा है और होना भी चाहिए, आखिर उन्होंने दुनिया के लाखों स्कूली बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बना दिया.

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ग्रेटा थनबर्ग और प्रो. जीडी अग्रवाल की फोटो । दिप्रिंट

ग्रेटा थनबर्ग के समर्थन में खड़ा होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप यहां भारत में किसी को भी नाराज करने से बच जाते हैं. यानी पर्यावरण की रक्षा भी हो गई और गंगा सफाई जैसे मामूली सवालों से भी बच गए. सभी राष्ट्रीय पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान यह है कि ग्रेटा का समर्थन कीजिये, हमारा शीर्ष नेतृत्व भी यही कर रहा है.

वैसे तो ग्रेटा का गुणगान चौतरफा है और होना भी चाहिए, आखिर उन्होंने दुनिया के लाखों स्कूली बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक बना दिया. भारतीय सरकार और भारत का समाज करोड़ों खर्च करके भी अपने बच्चों को जो बात नहीं समझा पा रहा था, वह ग्रेटा और उन्हें मिले मीडिया सपोर्ट ने समझा दी.

लेकिन, बच्चों से इतर राष्ट्रवाद के जश्न में डूबे भारतीयों को ग्रेटा एक अदद मौके के रूप में नजर आई. यह वो वर्ग है जो खुलकर सवाल पूछने और उस पर चर्चा करने से पहले जात-धर्म-वाद पर विचार करता है, फिर राष्ट्रहित में उस सवाल को टाल देता है.


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पिछले साल इसी समय एक मौन ने दस्तक दी थी. नारों का कोलाहल कुछ समय के लिए थम गया था. 11 अक्टूबर 2018 को खबर आई प्रो जीडी अग्रवाल (ज्ञानस्वरूप सानंद) नहीं रहे. अपने स्मार्ट फोन पर माकूल दुनिया लेकर चलने वाले लोग सर्च करने लगे कि जीडी अग्रवाल कौन है ? पता चला, एक संत 112 दिन अनशन करने के बाद चला गया. वो गंगा की अविरलता चाहते थे, वे चाहते थे गंगा बचे, ताकि पर्यावरण बचे, अध्यात्म बचे, धर्म भी बचे और अंत में भारत बचे. उनकी मौत से हड़बड़ाई सरकार ने तुरंत ही गंगा पर न्यूनतम पर्यावरणीय फ्लो का नोटिफिकेशन जारी कर दिया.

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हालांकि, इसे जारी करने की नीयत सिर्फ लोगों का ध्यान भटकाना था. इसलिए इसे कभी लागू नहीं किया जा सका.

बड़े पर्यावरणीय पुरस्कार ग्रहण करने वाली सरकार ने गंगा के संबंध में उनकी चार मांगों में से एक को भी नहीं माना. वैसे विकासपरक समाज सिर्फ आगे देखना पसंद करता है फिर भी एक नजर उन मांगों पर डाल लीजिए.

1- वे चाहते थे. गंगा पर सरकार एक एक्ट बनाए. सरकार भी यही कहती है कि गंगा पर एक एक्ट लाया जाएगा. यह एक्ट आज कहां है कोई नहीं जानता.

2- जो बांध बन गए, वे बन गए लेकिन गंगा अब कोई बांध ना बनाया जाए यानी सभी निर्माणाधीन और प्रस्तावित परियोजनाओं को निरस्त किया जाए. (इन्हें निरस्त करना तो दूर सरकार गंगा के मुहाने पर बनने वाली लोहारी नागपाला को दोबारा शुरु करने पर विचार कर रही है.)


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3- गंगा से सटे जंगलों को काटने और नदी में खनन पर रोक.

4. एक गंगा-भक्त परिषद गठन, जिसमें सरकारी अधिकारी भी शामिल होंगे जो गंगा से जुड़े अहम फैसले लेगी.

जीडी अग्रवाल को गए एक साल हो गया. मातृसदन का दबाव बढ़ता देख नए मंत्री ने कुछ समय मांगा है. शिवानंद जी ने नवंबर तक समय दिया है. उसके बाद फिर कोई संत अपनी जान की बाजी लगाएगा. शिवानंद जी मातृसदन के प्रमुख है, यही आश्रम हैं जिनके तीन संत अब तक गंगा के लिए जान दे चुके है. सानंद से पहले संत निगमानंद 2011 में 115 दिन अनशन करते हुए अपने प्राण त्याग चुके हैं. और उनसे भी पहले 2003 में संत गोकुलानंद भी गंगा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर चुके है.

ग्रेटा ने इन नामों को नहीं सुना होगा, स्वाभाविक है, लेकिन भारतीयों ने ग्रेटा का नाम सुना है और गंगा के लिए जीवन देने वालों को नहीं जानते और सिर्फ यही नहीं हम अनुपम मिश्र से लेकर मेधा पाटकर तक किसी को नहीं जानते. इनके नाम में वो अंग्रेजियत वाली किक नहीं मिलती जो ग्रेटा पर बात कर मिलती है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)

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