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भारत बन गया विश्वगुरू, ट्रंप को लगा दी जॉर्ज पंचम की आंख

मरी हुई यमुना में शुद्ध जल बहने लगा है और गरीबी को एक दीवार में चुन दिया गया है. एक सप्ताह के अंदर इतिहास, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और समाज पर ऐसा नियंत्रण किसी देश ने किया होगा क्या?

द्विपक्षीय वार्ती के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रतीकात्मक तस्वीर /फाइल फोटो-एएनआई

भारत विश्वगुरू बन चुका है. लेकिन पोटस यानी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को ये बात पता नहीं. ट्रंप तो खुद को सोशल मीडिया पर विश्वगुरू ही समझते हैं क्योंकि उनको सबसे ज्यादा लोग फॉलो करते हैं. वो कह रहे हैं कि मार्क जुकरबर्ग ने उन्हें खुद बताया है वो फेसबुक पर नंबर वन हैं. इसलिए वो अपने गुमान में हैं. लोग बता रहे हैं कि पोटस को आमंत्रित करने के लिए देश के निजाम से फोन पर बात हुई तो पोटस ने पूछा था- मेरे साथ क्या सुलूक करोगे? तो हुक्मरान ने जवाब दिया था- वही सुलूक करूंगा जो एक विश्वगुरू दूसरे विश्वगुरू के साथ करता है. ये सुनकर ट्रंप ने ट्रेड डील पर रोक लगा दी थी कि इस पर बाद में चर्चा करेंगे.

सच ये है कि भारत ने उनको पीछे छोड़ दिया है. यहां सोशल मीडिया नहीं, वास्तविक जीवन में इतने फॉलोवर हैं कि ट्रंप गिनती भूल जाएंगे. उनको तो बस सत्तर लाख लोगों के खड़े होने पर ही अचंभा हो गया है. जबकि यहां तो रातों-रात करोड़ों-लोगों के जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन ला दिया गया है.

मरी हुई यमुना में शुद्ध जल बहने लगा है और गरीबी को एक दीवार में चुन दिया गया है. एक सप्ताह के अंदर इतिहास, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और समाज पर ऐसा नियंत्रण किसी देश ने किया होगा क्या? ट्रंप को इसका अंदाजा भी नहीं होगा.

हालांकि सुनने में आया है कि दीवार में चुने जाने से पहले गरीबी ने आला हुक्मरान से कहा था कि वो कनीज हिंदुस्तान के बादशाह को अपना खून मुआफ करती है. हुक्मरान ने उससे पूछा था कि ऐ नाचीज बता, तेरी आखिरी ख्वाहिश क्या है. गरीबी ने पहले आंसुओं से तर-बतर अपना चेहरा नीचे किया और फिर धृष्टता से कहा- मुझे आपके उस दोस्त को देखना है जिससे आप तू-तड़ाक करते हैं. हुक्मरान ने क्या कहा, किसी को नहीं पता. पर अगले दिन इस बात का ढिंढोरा जरूर पीट दिया गया कि हिंदुस्तान से गरीबी मिट गई है.

कमलेश्वर ने एलिजाबेथ का रेफरेंस देकर ”जॉर्ज पंचम की नाक” नाम से कहानी लिखी थी. इस कहानी में जॉर्ज पंचम की मूर्ति की नाक खोजी जा रही होती है. मूर्तिकार करोड़ों लोगों में से किसी जीवित आदमी की नाक लाने का प्रस्ताव देता है. आज कमलेश्वर होते तो ”जॉर्ज पंचम की आंख” नाम की कहानी लिखते. आज के मूर्तिकार ने करोड़ों लोगों की आंख पर पर्दा डाल दिया है. यही नहीं, उसने ट्रंप की आंख पर भी पर्दा डाल दिया है.

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ऑस्कर वाले भी बिना मतलब साउथ कोरिया की फिल्म पैरासाइट को अवॉर्ड दे रहे हैं, बेस्ट कहानी, बेस्ट डायरेक्टर का. बार-बार गुणगान कर रहे हैं कि ये क्लास डिफरेंस और क्लास स्ट्रगल पर बेस्ट कहानी बनी है. उन लोगों को ये नहीं पता है कि विश्वगुरू हिंदुस्तान में बेस्ट कहानी, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट वीएफएक्स, बेस्ट सेट सबका अवॉर्ड एक ही व्यक्ति को जाएगा. क्लास डिफरेंस को कैसे मिटाना है, इसके लिए हार्वर्ड से पढ़कर आने की जरूरत नहीं है. हार्ड वर्क करो, एक दीवार खड़ी करो, क्लास डिफरेंस खत्म. ऑस्कर वालों को ये परफॉर्मेंस अच्छी नहीं लगी? क्या वो इस बात से जलते हैं कि एक साधारण सा देश विश्वगुरू कैसे बन गया?

पोटस अभी भी खुद के अकेले विश्वगुरू होने के गुमान में होंगे. उनको लग रहा होगा कि वो दुनिया के पहले ऐसे नेता हैं जो विदेश में अपने लिए इतनी बड़ी रैली कर रहे हैं जितनी उनके देश में भी नहीं होती. पर उन्हें ये मुगालता है. सच ये है कि पोटस हिंदुस्तान के हुक्मरान के लिए इतनी बड़ी रैली कर रहे हैं जो आनेवाले सारे चुनावों से पहले प्रतिष्ठा का शंखनाद है. ये एक विश्वगुरू की दूसरे विश्वगुरू से दोस्ती का ऐलान है. इस दोस्ती की चमक में गरीबी का अंधेरा और यमुना का प्रदूषण दोनों छुप जाएंगे. जॉर्ज पंचम की आंख से देखिए, नहीं दिखेगा ये सब.

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