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बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को नवाजी कैबिनेट बर्थ ‘महाराज’ उड़ान भरने को तैयार

भाजपा आलाकमान ने अपने राजनीतिक करियर के सबसे महत्वपूर्ण दौर में कांग्रेस के खिलाफ बगावत करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया से बार-बार कहा है कि उनके विकास की कोई सीमा नहीं है.

एक चुनावी रैली में ज्योतिरादित्य सिंधिया/पीटीआई

पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने माधव राव सिंधिया के बारे में कभी कहा था कि अगर 2004  में माधव राव सिंधिया जीवित होते तो  प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नहीं, बल्कि माधव राव सिंधिया प्रधानमंत्री होते. सोनिया गांधी माधव को पीएम बनातीं .

ज्योतिरादित्य सिंधिया के 2020 में कांग्रेस छोड़ने पर राहुल गांधी ने कहा था, ‘कांग्रेस में ज्योतिरादित्य रहते तो समय के साथ मुख्यमंत्री भी बन जाते पर बीजेपी कभी उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी.’ बीजेपी में शामिल होने के 13 महीने बाद सिंधिया को उसी मंत्रालय का ज़िम्मा दिया गया है जो तीस साल पहले उनके पिता माधव राव सिंधिया नरसिम्हा राव की सरकार में संभालते थे . नागरिक उड्डयन मंत्रालय वो भी कैबिनेट मंत्री के रूप में.

क्रिकेट के शौक़ीन, हावर्ड से पढ़े सिंधिया का शौक़ केवल राजनीति नहीं बल्कि पिता माधव राव की तरह ही क्रिकेट रहा है. सिंधिया शुरुआती बैंकर रहे हैं.  इसे महज़ संयोग कहेंगे कि जिन बीजेपी महासचिव कैलाश विजवर्गीय को मध्य प्रदेश कंट्रोल बोर्ड के चुनाव में उन्होंने धूल चटाई उन्हीं की मदद से उन्हें बीजेपी में आने के बाद अपने समर्थक सहयोगी तुलसी सिलावट को उपचुनाव में जिताने में भी मदद लेनी पड़ी. सिंधिया 16 महीने के इंतज़ार के बाद पिता माधवराव की तरह उड़ान को तैयार हैं. इसलिए दिप्रिंट के न्यूजमेकर हैं ज्योतिरादित्य  सिंधिया

अपने पिता के जन्मदिन 11 मार्च को बीजेपी में शामिल होने के बाद सिंधिया के लिए पिछले 16 महीने धैर्य की अग्निपरीक्षा से कम नहीं था.

पहले उपचुनाव में कांग्रेस से टूटकर आए समर्थक विधायकों  को जिताकर अपने वजूद को साबित करने की चुनौती, फिर उन्हें शिवराज सरकार में सम्मानजनक मंत्रालय दिलवाना किसी लड़ाई लड़ने से कम नहीं था.

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क्योंकि बीजेपी के मध्यप्रदेश के कई नेता चाहते थे सिंधिया फेल हो जाएं ताकि उनका चैप्टर पार्टी में खुलने से पहले ही बंद हो जाए. पर उनकी इस लड़ाई में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी हाई कमान साथ था. क्योंकि चौहान को अपना मुख्यमंत्री पद बचाना था और बीजेपी हाईकमान को राज्य में सरकार.


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असीमित संभावनाएं

महत्वाकांक्षाओं से लबरेज़ करियर के सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव  पर कांग्रेस से बगावत कर चुके सिंधिया को अमित शाह से लेकर बीजेपी हाईकमान ने बार बार अहसास कराया कि बीजेपी में  उनके आसमान में उड़ने की सीमाएं नहीं हैं. जब धर्मेन्द्र प्रधान ,पीयूष गोयल ,स्मृति ईरानी कैबिनेट मंत्री हैं वहीं हेमंता ,विप्लव कुमार देव जैसे युवा मुख्यमंत्री बन चुके हैं  ,तो प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी ,प्रखर वक्ता,ग्वालियर चंबल इलाक़े में वचर्स्व रखने वाले ग्वालियर घराने के पूर्व महाराज के पोते ज्योति राजे सिंधिया के लिए बीजेपी में संभावनाएं असीमित हैं.

सिंधिया ने भी बीजेपी में आने के बाद से पार्टी को कभी एहसास नहीं होने दिया है कि वो ‘महाराज’ के वारिस हैं. मध्य प्रदेश से लेकर दिल्ली के सत्ता के गलियारों में उन्हें लोग अभी भी महाराज से कम नहीं मानते. संसद में अभी भी सांसद उनके पैर छूते हैं. सिंधिया गुरूवार को पदभार ग्रहण करने के बाद सबसे पहले  बीजेपी मुख्यालय बीजेपी सांगठनिक महासचिव बी एल एस संतोष से मिलने पहुंचे. क्योंकि वे जानते हैं कि सत्ता की सुई के एक केन्द्र बीएल संतोष हैं जिनके ज़रिये  सत्ता के असली पावर हाउस आरएसएस तक सूचनाएं पहुंचती है. सिंधिया ने  सादगी के साथ बीजेपी कार्यालय में पदाधिकारियों से भी मिलने में कोताही नहीं की.

आगे राहें और भी हैं

चार बार के सांसद रहे सिंधिया ने कांग्रेस में 18 साल बिताए और मनमोहन सरकार में संचार मंत्रालय से लेकर ऊर्जा मंत्रालय के रूप में काम किया. पर संचार मंत्री के रूप में देश भर के पोस्ट आफ़िस को आम आदमी के लिए घरेलू ज़रूरतों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने.वाले एकीकृत सेंटर के रूप शुरू की गई योजना ने उन्हें एक कामयाब और भविष्य देखने वाले मंत्री के रूप में स्थापित किया.

मोदी सरकार के शुरू किए गए कॉमन सर्विस सेंटर की योजना का प्रारूप लगभग वही है जो सिंधिया ने शुरू की थी.  ऊर्जा मंत्रालय में लंबित पड़े पावर प्रोजेक्ट से जुड़े सभी पक्षों को एक टेबल पर बिठाकर समाधान निकालने के कंपनी के सीईओ की तरह की कांउसिल बनाने की पहल भी  सिंधिया ने ही की थी.

केन्द्रीय कैबिनेट में उड्डयन मंत्रालय मिलने की वजह भी बीजेपी नेताओं के मुताबिक़ उनके सीइओ स्टाइल में काम करना है. उनके सामने नागरिक उड्डयन मंत्रालय एक चुनौती से कम नहीं है और पीएम चाहते थे कोई ऊर्जावान व्यक्ति नई ऊर्जा इस मंत्रालय में फूंके .

एयर इंडिया एक ऐसा हाथी है जिसे अब तक कोई मंत्री खिसका नहीं पाया है चाहे वो टीडीपी से मोदी सरकार में मंत्री गणपति राजू हो या सुरेश प्रभु या फिर हरदीप पुरी . कोविड के कारण वर्ष 2020 में उड्डयन क्षेत्र सबसे अधिक आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. खर्चे बरकरार हैं.

हवाई जहाज़ बिना पूरी क्षमता के उड़ रहे हैं जो उनके घाटा को दिनोंदिन बढ़ा रहा है. एयरपोर्ट के निजीकरण, उड़ान स्कीम जो पीएम के दिल के क़रीब है उन्हें सफल बनाना बड़ी चुनौतियों में से एक है.  पर सिंधिया जानते हैं अगर थोड़ी सफलता भी उन्होंने नागरिक उड्डयन मंत्रालय में पा ली तो मुख्यमंत्री बनने का सपना उनके पिता ने अर्जुन सिंह से लड़ते हुए पूरा नहीं कर पाए वो आसानी से बीजेपी में कर सकते हैं. शिवराज के बाद बी डी शर्मा और कैलाश विजयवर्गीय और नरोत्तम मिऋा सिंधिया का मुक़ाबला नहीं कर सकते हैं और उस रोल में तैयार होने और पीएम मोदी का विश्वासपात्र बनने के लिए उनके पास तीन साल का समय है .

राशिद किदवई ने अपनी किताब ‘महाराजा ऑफ सिंधिया’ में लिखा है कि उनके पिता माधव राव सिंधिया की राजीव मंत्रीमंडल में रहते हुए रेल मंत्री के रूप में शताब्दी ट्रेन चलाने के बाद, मध्यम वर्ग के वे हीरो बन गए थे.  शास्त्री भवन के उनके ऑफिस में हजारों की संख्या में लोग अपनी शिकायत लेकर पहुंचते और अपने साथ लोग गुलदस्ता, इत्र और रूमाल गिफ्ट स्वरूप भेजते थे…जिसमें लिखा होता था आम आदमी के महाराज. ज्योतिरादित्य सिंधिया को एम पी में लोकप्रियता का सबक मामा शिवराज से नहीं बल्कि अपने पिता से ही सीखने जरूरत है.

यहां व्यक्त विचार निजी है


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