होम मत-विमत एएसईआर रिपोर्ट: हिंदी अभी भी आगे, लेकिन अंग्रेजी ज्यादा पीछे नहीं

एएसईआर रिपोर्ट: हिंदी अभी भी आगे, लेकिन अंग्रेजी ज्यादा पीछे नहीं

चित्रण। पिएलीडेजीन

भारतीय ग्रामीण क्षेत्र के लगभग 46% किशोर/किशोरियां अब साधारण अंग्रेजी को समझ सकते हैं और इस भाषाई विजय का स्वागत करने की आवश्यकता है. 

‘प्रथम’ द्वारा प्रस्तुत शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2017, में विशेष रूप से निराशाजनक संख्याओं के समूह में यह एक उल्लेखनीय आंकड़ा है: ग्रामीण इलाकों में 14-18 वर्षीय बच्चों से लिए गये नमूनों में 58 प्रतिशत किशोर/युवा अंग्रेजी का एक साधारण वाक्य पढ़ सकते थे और उनमें से हर पाँच में से चार बच्चे वाक्यों की व्याख्या भी कर सकते थे. इसका मतलब यह है कि कुल में से 46 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जो साधारण अंग्रेजी वाक्यों को सिर्फ पढ़ ही नहीं सकते, बल्कि समझ भी सकते हैं – और यह ग्रामीण भारत में हुआ है.

2001 की जनगणना के साथ इस की तुलना करें तो उस समय केवल 12 प्रतिशत भारतीय ही अंग्रेजी को दूसरी या तीसरी भाषा के रूप में इस्तेमाल करते थे (मातृभाषा या पहली भाषा के रूप में अंग्रेजी का मात्र 0.2 प्रतिशत ही उल्लेख है). हिंदी के बाद केवल अंग्रेजी को दूसरी भाषा के रूप में अपनाया गया और हिंदी को मामूली अन्तर से तीसरी भाषा के रूप में पीछे छोड़ दिया. इन दो श्रेणियों के समूह में कुल 129.3 मिलियन लोग ऐसे थे जो अंग्रेजी के लिए 125.1 मिलियन लोगों की तुलना में दूसरी या तीसरी भाषा के रूप में हिंदी का इस्तेमाल करते थे. हिंदी सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली पहली भाषा थी, लेकिन किसी भी क्षेत्रीय भारतीय भाषा की तुलना में अधिकतर लोग अंग्रेजी में ही बात करते थे.

एएसईआर की गणना या आंकड़े अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर थे और सिर्फ एक विशेष आयु वर्ग के आधार पर प्राप्त किए गए थे जबकि जनगणना के आंकड़े विस्तृत रूप से सभी को शामिल करते हुए प्राप्त किए जाते हैं. इसलिए किसी को भी उन आंकड़ों की तुलना करके कोई निष्कर्ष निकालने से पहले सोचना चाहिए, जिनके स्रोत अलग अलग हों. फिर भी, ये आंकड़े चौकाने वाले हैं क्योंकि 2001 में भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अंग्रेजी समझने या पढ़ने वालों का प्रतिशत 12.2 था, वहीं अब 2017 में 58 प्रतिशत ग्रामीण युवा अंग्रेजी को केवल पढ़ने में ही नहीं बल्कि उसे समझने में भी सक्षम हो गए हैं और यह सब खासकर उस दौरान हुआ है जब अन्य आंकड़े अंग्रेजी भाषा का प्रसार दर्शाते हों.

2016 की पिछली गर्मियों में केपीएमजी और गूगल द्वारा किए गए एक अध्ययन में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 409 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से 175 मिलियन उपयोगकर्ताओं ने अंग्रेजी में वेब पेजों को खोजा है. यह पूरे आंकड़ों का 43 प्रतिशत था जो 2001 में 12.8 प्रतिशत अंग्रेजी पढ़ने या समझने वालों की तुलना में काफी अधिक था.

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इसमें कोई शक नहीं है कि इंटरनेट पर अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग भी तेजी से बढ़ रहा है और यह भी एक तथ्य है कि इससे अंग्रेजी भाषा के उपयोग का प्रतिशत कम हो जाएगा. लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि पिछले पाँच सालों में इंटरनेट पर अंग्रेजी उपयोगकर्ताओं का प्रतिशत 150 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है जो 2011 में 68 मिलियन था और यह लगातार बढ़ता ही रहेगा, भले ही इसके कुल उपयोगकर्ताओं की हिस्सेदारी का आंकड़ा कम होता चला जाय.

एक भाषा के वास्तविक ज्ञान के लिए पूर्व परीक्षण – अर्थात समाचार पाठकों – के माध्यम से ज्ञात होता है कि अंग्रेजी को अभी लंबा रास्ता तय करना है. 2017 के भारतीय पाठक सर्वेक्षण ने गुरुवार को एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कुल 409 मिलियन आबादी का सिर्फ 7 प्रतिशत हिस्सा, लगभग 28 मिलियन पाठक ही अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित अखबार पढ़ते हैं. इंटरनेट पर गैर-अंग्रेजी समाचार पाठकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. ऐसा प्रतीत होता है कि अंग्रेजी भाषा का बुनियादी ज्ञान उल्लेखनीय गति के साथ पूरे देश में फैल गया है, भाषा के साथ असली परिचितता और सुविधा अभी भी कुछ मील की दूरी पर है.

राजनैतिक रूप से कभी भी अंग्रेजी को बढ़ावा नहीं दिया गया, अंग्रेजी भाषा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए क्योंकि इस भाषा में खराब प्रदर्शन आपके कैरियर में रुकावट पैदा कर सकता है. अब कोई भी दूसरी भाषा अंग्रेजी भाषा की जगह नहीं ले सकती है. अंग्रेजी व्यावसायिक शिक्षा की प्रमुख भाषा है जो आपके उज्ज्वल भविष्य का एक महत्वपूर्ण साधन है. यह मध्यम और बड़ी कंपनियों की प्रभावशाली भाषा है, जिस क्षेत्र में अधिकांश युवा काम करना चाहते हैं और यह भाषा सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में भी विशेष महत्व रखती है.

अगर आपको अच्छी अंग्रेजी बोलनी और समझनी नहीं आती है, तो यह समस्या आपके जीवन की संभावनाओं और विकल्पों, विशेष रुप से विदेश जाने की आपकी इच्छाओं को गंभीर रूप से ध्वस्त करती है. यही कारण है जो बताता है कि मुंबई नगरपालिका निगम को पिछले कुछ वर्षों के दौरान दर्जनों मराठी माध्यमिक विद्यालयों को क्यों बंद करना पड़ा है जिसके कारण उन्होंने, अंग्रेजी को एक अतिरिक्त प्रथम भाषा में लागू करने के साथ, हाल ही में 57 स्कूलों को द्विभाषी स्कूलों में बदल दिया है.

राज्य सरकारों द्वारा आंशिक रूप से और पूरी तरह से अंग्रेजी की शिक्षा को समाप्त करने का प्रयास किया गया, लेकिन अब इसके कुछ अनुकूल कदम उठाए गए हैं. इन राज्यों के पास अपनी मातृ भाषा को बचाने और प्रोत्साहित करने का प्रत्येक कारण वाजिब है लेकिन यह समय के साथ साथ बहुत स्पष्ट होता चला आ रहा है कि यह अच्छे अंग्रेजी शिक्षण की कीमत के एवज में नहीं हो सकता है.

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