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विवादित बल्लारी भाइयों की वापसी से मालूम होता है कर्नाटक के लिए कितनी बेक़रार है भाजपा

चित्रण। पिएलीडेजीन

भाजपा को उम्मीद है कि जनार्दन रेड्डी अपने क्षेत्र की 23 सीटों में से अधिकतम सीटों पर जीत दिलवाएंगे जो कि राज्य विधानसभा की 10 प्रतिशत ताकत हैं। जनार्दन रेड्डी पर अधिकतर राजनेताओं की तुलना में सबसे ज्यादा आरोप हैं।

र्नाटक 2018 स्वयं को इबारतों की यात्रा के रूप में खुद को प्रस्तुत नहीं करता है। दशकों से अब तक मैंने जितने भी चुनाव देखे हैं किसी भी चुनाव को मैंने इतने कम प्रदर्शन के साथ नहीं देखा, न कोई पोस्टर, न बैनर, न ही झंडे और न ही होर्डिंग या बिल्ले। यह सब आपको तब तक नहीं दिखाई देंगे जब तक आप इस चुनावी राज्य में राजमार्गों और राज्य के अंदरूनी हिस्सों में लगभग 2000 किलोमीटर की ड्राइविंग करने के बाद आंध्र प्रदेश की सीमा से लगे बल्लारी (पहले बेल्लारी) के उत्तर-पूर्वी भाग में नहीं पहुँच जाते ।

एक पतली और बहुत ही बेहतरीन पक्की सड़क  (कर्नाटक की अधिकांश सड़कों की तरह) मोलकाल्मुरु गाँव की ओर ले जाती है। मोड़ पर नजर रखने के लिए केन्द्रीय अर्धसैनिक बल की चेकपोस्ट है। वे अंदर जाने वालों के बजाय बाहर निकलने वालों पर अधिक ध्यान देते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं, हम इसका पता लगाएंगे।

रास्ते पर कुछ सौ मीटर चलने के बाद यह कड़क सूखा रास्ता दाईं ओर हरियाली में बदल जाता है। सबसे जरूरी बात तो यह है कि यहाँ पर आपको वह जगह मिलती है जो आप मिस कर रहे हैं– होर्डिंग्स और कट-आउट। जो आपके सामने एकटक देख रहे हैं वह हैं भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी. एस. येदियुरप्पा और साथ में हैं अमित शाह। अमित शाह उस “फार्महाउस” के निवासी से किसी भी प्रकार की संगति करने से बचते रहे हैं, कोई बात नहीं । इन दोनों के पीछे के पीछे ताकतवर तेलुगू फिल्म स्टार की तरह फ्रेम में श्रीरामुलू हैं,जो बादामी में वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ भाजपा के उम्मीदवार हैं।बादामी यहाँ से करीब चार घंटे की दूरी पर है। इस घर के दो बहुत रौबदार भाई इन चुनावों में भाग ले रहे हैं। लेकिन आप देख सकते हैं कि दशकों से उनका सबसे अच्छा दोस्त ही उनका पसंदीदा व्यक्ति है।

मोलकालमुरु भाजपा का एक होर्डिंग जिसमें (बाएं से दाएं) बी श्रीरामुलु, प्रधानमंत्री मोदी, पार्टी चीफ अमित शाह और कर्नाटक सीएम के उम्मीदवार बी एस येदियुरप्पा हैं | फोटो शेखर गुप्ता द्वारा

गली जनार्दन रेड्डी इस चुनाव में मुख्य आकर्षण का केन्द्र हैं, जो कि बल्लारी के महाराज हैं और बेंगलुरु में किंग मेकर हैं। भाजपा को उम्मीद है कि वो व्यक्ति जिस पर बाकी राजनेताओं के मुकाबले सबसे ज़्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं, अपने क्षेत्र में सबसे अधिक 23 सीटों पर जीत हासिल करवाएगा जो विधानसभा की कुल सीटों का 10% है । जीतने की छटपटाहट ने भाजपा को संगठित राजनीतिक अपराध और भ्रष्टाचार करने वालों से समझौता करने पर मजबूर कर दिया है।

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जनार्दन अपने तीनों भाइयों में से सबसे छोटे हैं, करूणाकर और सोमशेखर उनके बड़े भाई हैं। पिछली येदियुरप्पा सरकार में यह दोनों और श्रीरामुलु प्रमुख विभागों (सभी महत्वपूर्ण राजस्व और इन्फ्रास्ट्रक्चर, पर्यटन,स्वास्थ्य और कल्याण) के साथ पूर्ण मंत्री थे। उनके वंश द्वारा शासित व ‘रिपब्लिक ऑफ़ बल्लारी’ के नाम से मशहूर क्षेत्र में सीटों की संख्या के अनुरूप इन तीनों रेड्डी-बल्लारी मंत्रियों को राज्य विधानसभा में ठीक 10 प्रतिशत पदों के लिए उत्तरदायी माना जाता था। चौथे, सोमशेखर को कर्नाटक दुग्ध संघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था जिनको मेरी सहकर्मी  ‘पैसों से समृद्ध दुधारू गाय’ कहती हैं।

जनार्दन रेड्डी का फार्महाउस | फोटो शेखर गुप्ता द्वारा

इन चारों में से तीन ने कानून के साथ खिलवाड़ किया था। अदालत ने जनार्दन को इस शर्त पर रिहा किया था कि वे बल्लारी जिले में प्रवेश नहीं कर सकते। यही कारण है कि उन्होंने मोलकाल्मुरु में अपना डेरा डाल लिया है और इसीलिए पुलिस अंदर जाने वालों की बजाय बाहर आने वालों पर कड़ी नजर रखती है। पुलिस जनार्दन के किसी भी वाहन को उनकी राजधानी बल्लारी की ओर मुड़ने की अनुमति नहीं देती है। हालांकि यह बात उनके लिए कुछ विशेष मायने नहीं रखती है।

ल्लारी में घूमते हुए आपको फिल्म शोले के कई अमर डॉयलागों में से एक डायलॉग याद आ सकता है। यह जेलर असरानी का शेखी बघारने वाला डायलॉग:“हमारे आदमी चारों तरफ फैले हुए हैं” था। आज जनार्दन रेड्डी भी यह डायलॉग मार सकते हैं। वे बल्लारी नहीं जा सकते लेकिन उनके आदमी, सेनाबल और भाई सब वहाँ मौजूद हैं।

हम सोमशेखर को बल्लारी के सत्यानाराणपेट इलाके में घर-घर जाकर चुनाव प्रचार करते हुए पाते हैं। यह एक ऐसी सांठ-गाँठ है जिसे आप केवल कर्नाटक जैसे विविध और दिलचस्प राज्य में दिखेगी । यहाँ पर पीछे की पंक्ति में एकत्रित ‘जंगम’ समुदाय के करीब 70 सदस्यों का एक छोटा सा जनसमूह है जो अनुसूचित जाति का दर्जा माँग रहा है,जिसका रेड्डी तत्परता से समर्थन करते हैं । लेकिन यह जंगम हैं कौन? वे लिंगायत हैं? वे लिंगायतों के पुजारी है जिनको “गुरू” के रूप में वर्णित किया जाता है। चूंकि उनकी जाति प्रदत्त भूमिका है,बाकी सब को धर्म का उपदेश देना और धर्म का पाठ पढ़ाना इसलिए वे काम नहीं करते हैं और भक्तों द्वारा दिए गए दान पर जीवनयापन करते हैं। वे दावा करते हैं कि भीख माँग कर उनकी आजीविका चलती है इसलिए उनको भी अनुसूचित जाति में होना चाहिए। अब हम यहाँ क्या पाते हैं कि- एक उच्च जाति के भीतर उच्च प्रतिष्ठा रखने वाले लोग अनुसूचित जाति में शामिल होने की माँग कर रहे हैं। तब, सिद्धारमैया ने सभी लिंगायतों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का वादा किया है। इसका मतलब समझिए। उत्तर प्रदेश और बिहार में जाति आधारित राजनीति की अंकगणित कर्नाटक के बीजगणित की तुलना में काफी सरल है।

हम सोमशेखर से अवैध खनन मामलों के बारे में पूछते हैं। वे निर्दोषिता, प्रतिद्वंदियों और कांग्रेस द्वारा उत्पीड़न का दावा करते हैं लेकिन दृढ़ता से – लगभग आत्म-न्यायपरायण रूप से – अवैध खनन को रोकने और खदानों की नई नीलामी के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि “दस लाख लोग अपनी नौकरी खोकर रोड पर आ गए हैं।“ लेकिन आपराधिक मामलों में वे रटी रटाई पंक्तियों को दोहराते हैं कि अदालत को फैसला करने दें इंसाफ की जीत होगी। लेकिन वे जोर देते हैं कि बल्लारी में जो हुआ है वह ’अत्यधिक खनन तो है, लेकिन अवैध खनन नहीं’ है।

फिर मैंने उनसे उनके परिवार के बारे में पूछा। घर के मुखिया कौन हैं, जो इन सब कार्यों का संचालन करते हैं तो उन्होंने कहा कि “वह जनार्दन हैं।“

 

मैंने दिखावटी आश्चर्य करते हुए कहा कि “वे तो सबसे छोटे हैं।“ “नहीं सर, वह सबसे ज्यादा होशियार हैं”, बड़ा भाई ख़ुशी से छोटे भाई का समर्थन करता है। यहाँ पर भाई-भाई में विरोध वाली कोई बात नहीं है। जरा याद करिए, पिछली येदियुरप्पा सरकार में भी जनार्दन के पास सबसे प्रमुख विभाग थे। करूणाकर और भाई से भी बढ़कर दोस्त श्रीरामुलु मंत्री थे लेकिन सोमशेखर को भी कर्नाटक दुग्ध संघ, जिसे एटीएम कहा जाता है, का कार्यभार दिया था।

खनन की शिकस्त को समझने के लिए, हमने जनता दल (सेक्युलर), या देव गौड़ा के उम्मीदवार होथूर मोहम्मद इकबाल के साथ एक घंटा व्यतीत किया। वे एक सभ्य उर्दू भाषी मुस्लिम परिवार के मुखिया हैं  जो तीन बड़ी खानों के मालिक थे। वे कहते हैं कि वर्ष 2000 तक ना कोई धनी था और ना ही कोई समस्या थी। उस समय एक टन खुदाई की कीमत 150 रूपए पड़ती थी और  250 रूपए में बेचा जाता था। 16.50 रूपए का भुगतान राज्य को रॉयल्टी के रूप में करना पड़ता था। तो यह एक मामूली से मुनाफे वाला व्यवसाय था। बल्लारी का अयस्क भी ख़राब श्रेणी का था। फिर चीनी उछाल आया। तब कीमतें इस तरह बढ़ीं कि पहले 600 उसके बाद 1000 और फिर तो कमाल ही हो गया कीमतें 6000 तक बढ़ गईं। इसके द्वारा की गई कमाई के बारे में सोचें। ज़्यादातर कमाई अवैध और काले धन से हुई; ये वो आपको बिलकुल नहीं बताएंगे । लेकिन तब ये जीवनशैली और माफियाओं के अति की शुरुआत थी।उसके बाद आया सम्पूर्ण बैन और नए तरीके से नीलामी; दोनों को उन्होंने तर्कहीन कहा।

आपको यहाँ विशाल, रेत के टीले सी ऊंची और लौह अयस्क से लदी हुई “दीवारों” का अध्ययन करने की जरूरत है। एक स्टील विशेषज्ञ मुझे बताते हैं कि कुछ के बीच में ये गहरी पट्टियाँ मैंगनीज को भी दर्शाती हैं। यह सब बल्लारी का संसाधनअभिशाप है। प्रतिबंध तक नि:शुल्क आधार सभी को इस पर खनन करने दिया गया था। कोई भी किसी भी प्रकार के परमिट के साथ इसके चारों तरफ कुछ भी हथिया सकता था। हर किसी ने अपने हक़ से ज्यादा खनन किया,और यदि आपके पास ताकत थी तो आप अपने पड़ोसियों पर आसानी से अतिक्रमण कर सकते थे। तब वहां कोई सरकार नहीं थी। केवल रेड्डी ब्रदर्स का खासकर जनार्दन का हुक्म चलता था। जैसा कि लोकायुक्त (जस्टिस संतोष हेगड़े) की रिपोर्ट ने काफी विस्तार से बताया, रेड्डीयों की ओबुलापुरम खान आंध्र की तरफ थी और उसमें कुछ अयस्क दबे थे। उन्होंने बस प्रत्येक व्यक्ति से शेयर, या हफ्ता, या सुरक्षा धन एकत्रित किया। स्थानीय अनुमान कहते हैं कि उन उछाल के वर्षों में प्रति दिन 100 करोड़ रुपये से ऊपर की कमाई की गई होगी।

लोगों का यह कहना है कि ज्यादा खनन करने के लिए रेड्डी ने अपनी खानों के आस-पास राज्य की सीमा को 5 कि.मी. तक बढ़ा दिया था। बाकी के लिए, कृपया यहां 466 पेज की संतोष हेगड़े की रिपोर्ट देखें।उन्होंने अनुमान लगाया कि 2006 से 2010 के बीच अवैध रूप से खनन से प्राप्त और निर्यात अयस्क का कुल मूल्य 1 लाख 22 हजार करोड़ रुपये था (तालिका देखें)।

लोकायुक्त ने यह भी दिखाया किरेड्डी ब्रदर्स के पास केवल आंध्रा में एक खदान थी, लेकिन जो भी अयस्क उन्होंने “निर्यात” किए वे सभी कर्नाटक मूल के थे,जहाँ उनके पास कोई भी पट्टा नहीं था। ये मामले सीबीआई ने चुनाव की पूर्व संध्या पर साक्ष्य और अधिकार क्षेत्र की कमी का हवाला देते हुए वापस ले लिए थे ।

मैंने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी से पूछा कि क्या यहां खनन माफिया धनबाद की तरह ही हैं? उन्होंने कहा, हाँ, लेकिन इनमें एक महत्वपूर्ण अन्तर है। यहाँ किसी की हत्या नहीं होती। कुछ पीटे जाते हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों में, चूँकि पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने समझौता किया था, यदि कोई आपको आपका हिस्सा (रिश्वत) नहीं देता तब आप खनन रोकने के लिए इनका इस्तेमाल करते। या, यदि कोई जिद्दी होता, तो उसके खिलाफ हत्या के प्रयास सहित एक गंभीर आईपीसी धारा के तहत मामला दर्ज करा देते। तब उन्हें कुछ दिन हवालात में बंद कर दिया जाता और सिर्फ वही नहीं साथ में बाकियों को भी सजा दी जाती। लोकायुक्त ने जिले में 650 से अधिक भ्रष्टाचारी अधिकारियों की पहचान की। इनमें से 53 प्रमुख अधिकारियों को बाहर कर दिया गया। बाद में क्या हुआ वह अच्छी तरह से दर्ज किया गया है। रेड्डी ने येदियुरप्पा के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई, अपने वफादार विधायकों को एक रिसॉर्ट में ले गये, येदियुरप्पा पर हमला करते हुए उनको एक वीडियो में रिकॉर्ड किया। बीजेपी हाई कमांड एक समझौता चाहता था। कीमत: अधिकारी धीरे-धीरे वापिस बुलाए जाएँ, रेड्डी अपने विभागों को अपने पास रखें और शोभा करंदलाजे, जो मुख्यमंत्री की करीबी मानी जाती थीं, इस्तीफा दें। आप जानते हैं कि येदियुरप्पा क्यों कहते रहते हैं कि रेड्डी पुनर्वास हाई कमांड का निर्णय है, न कि उनका। तिरस्कार तड़पाता है|

धन की अधिकता अपराध और जीवनशैली के अतिरेक का कारण बनी। नीचतापूर्ण तरीके से गरीब बल्लारी अचानक फैंसी कारों, निजी विमानों और हेलीकॉप्टरों से भर गया क्योंकि इसके नए अरबपति बहुत ही विलासी हो गए थे।अब बहुत कुछ चला गया है। कांग्रेस उम्मीदवार अनिल लाड के पास दो हेलीकॉप्टर थे, जो अब बेच दिए गए हैं। उन्होने कहा वह लक्ज़री नहीं थे बस सहूलियत के लिए थे। क्योंकि 20 टन के ट्रक 50 टन अयस्क के साथ लोड किए जाते थे और राजमार्गों को तोड़ देते थे। अब सोचिए, आप अवैध रूप से अत्यधिक खनन करते हैं, अवैध रूप से ओवरलोड करते हैं और सड़कों को बर्बाद कर देते हैं और स्वयं की सुविधा के लिए व्यक्तिगत हेलीकॉप्टरों में यात्रा करते हैं। ज्यादातर निजी विमान अब बेचे जा चुके हैं। सिवाए जनार्दन के, जिनके पास अब भी 2 हेलीकॉप्टर हैं ।

मैं भारत के सबसे ज्यादा संसाधन-शापित क्षेत्र इबारतों का अंदाज लगाने की कोशिश करता हूँ। यहां सभी तीन उम्मीदवार पूर्व खनिक हैं। सबसे पहले (जेडी-एस) अपनी तीन खानों में से दो खो चुके हैं, दूसरा, कांग्रेस, सभी खानों को खो चुके हैं और तीसरे भाजपा के जिन्होंने विशेष रूप से खदानों को खोया नहीं है क्योंकि शायद ही उनके पास किसी खदान का स्वामित्व था। सिर्फ उन सभी ने अपनी खदानों को खोया जो कथित तौर पर उन्हें अपनी खदानों से हिस्सा देते थे। वे सभी उम्मीद कर रहे हैं कि चुनाव परिणाम किसी न किसी तरह अच्छा समय वापस लाएंगे। वैश्विक कीमतें फिर से बढ़ रही हैं।

Read ‘Writings on the Wall’ in English : Return of the Ballari brothers shows how desperate BJP is for Karnataka

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