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नॉर्थकोरियन मीडिया की मुख्य फेक न्यूज — टुकड़े-टुकड़े गैंग

शेहला रशीद ,कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी युवा हुंकार रैली पर | @jigneshmevani80

हमारे ध्रुवीकरण के समय, #टुकडेटुकडेगैंग #नॉर्थकोरियन मीडिया के साथ रण क्षेत्र में है।

तकिया कलाम प्रभावशाली होते है , वे एक ही समय में बहुत सारी भावनाएं और उनके साथ अर्थ पैदा कर सकते हैं।वेयापक तौर असर डालने में मदद करते हैं।

‘टुकड़े टुकड़े गैंग’-आप इस वाक्यांश को पूरे सोशल मीडिया पर अक्सर एक हैशटैग के साथ देखेंगे। इसका इस्तेमाल सभी वामपंथी लोगों द्वारा एक राष्ट्र-विरोधी के रूप में जोड़ने के लिए किया जाता है, जो चाहते हैं कि भारत सचमुच टुकड़ों में बँट जाए। यह उनका एक उपयोगी शॉर्ट-हैंड( हथकंडा) है।

कठुआ पीड़ित के लिए न्याय? टुकड़े-टुकड़े गैंग।

बाल बलात्कारियों के लिए मौत की सजा का विरोध करने वाले लोग? टुकड़े-टुकड़े गैंग।

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गौरी लंकेश के लिए न्याय माँगने वाला? टुकड़े-टुकड़े गैंग।

होली में महिला छात्रों पर गुब्बारे में भरकर फेंका गया तरल पदार्थ वीर्य नहीं बन गया? टुकड़े-टुकड़े गैंग।

क्या न्यायाधीश लोया की हत्या कर दी गई थी? टुकड़े-टुकड़े गैंग।

एक मुठभेड़ में नक्सलियों की मौत टुकड़े-टुकड़े गैंग के लिए एक दुखद दिन होना चाहिए।

कश्मीर में सैनिक शहीद हुए? यह दिन टुकड़े-टुकड़े गैंग के लिए उत्सव का दिन होगा।

एससी / एसटी (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के कमजोर पड़ने के विरोध में नौ लोग मारे गए? निश्चित रूप से यह काम टुकड़े-टुकड़े गैंग का था।

बेमौसम बरसात फसलों को नष्ट कर रही है? टुकड़े-टुकड़े गैंग की साजिश होनी चाहिए।

यह टुकड़े-टुकड़े गैंग कौन है? इसके नेता और सदस्य कौन हैं?

विवरण अस्पष्ट हैं, लेकिन हम जानते हैं कि कार्यकर्ता शेहला राशिद और गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी, एक दलित नेता हैं, जो इस गैंग के अग्रणी हैं।

देश बहस करना चाहता है

टुकड़े टुकड़े गैंग लेबल की उत्पत्ति अरनब गोस्वामी और उनके ‘समाचार’ चैनल, रिपब्लिक से हुई। रिपब्लिक वर्ल्ड की उच्च टीआरपी के बावजूद, जो यह दर्शाती है कि उसे आधा ब्रह्मांड देखता है, बहुत से लोग इस से अनजान प्रतीत होते हैं।
इस साल जनवरी में, अर्नब गोस्वामी ने अपने पत्रकारिता करियर के सुनहरे पलों को दर्शकों को याद दिलाने का फैसला किया, जब उन्हें दो साल पहले कन्हैया कुमार और उमर खालिद के साथ चर्चा के लिए पसंद किया था।

जोश के कारण उन्होंने तारिख तक गलत बता डाली। उन्होंने कहा कि वह जनवरी 2016 की बात थी। लेकिन असल में यह तो फरवरी 2016 की बात थी। इस बात की पुष्टि इस बात से होती है कि 9 फरवरी 2016 को अफजल गुरू की फांसी की तीसरी सालगिरह थी।

ये वे लोग थे जिन्हे लगा कि अफजल गुरू को गलत धाराओं के तहत सजा दी गई और उसे अपनी बेगुनाही साबित करने का या अपनी जान बचाने का आखिरी मौका नहीं दिया गया। और जिन्होंने यह चीज महसूस की वह शायद दिल्ली के मुट्ठी भर वामपंथी हो सकते हैं और यह स्थिति 2001 के संसद हमले का समर्थन नहीं करती है जिसमे उसे हमले के लिये आतंकियों को उत्तेजित करने के लिए दोषी ठहराया गया था । न तो कश्मीरी अलगाववाद या पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों का समर्थन करने के लिए यह चुकाई गई कीमत है ।

9 फरवरी 2016 को, कुछ जेएनयू छात्रों (डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन या डीएसयू के पूर्व सदस्यों) ने अफजल गुरू की फांसी के खिलाफ एक विरोध प्रदर्शन किया था। यह विरोध एक वार्षिक समारोह (annual affair) था और आरएसएस का छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद इससे निपटने के लिए पहले से तैयार थे।

चूंकि अफजल गुरु कश्मीरी थे, कट्टरपंथी कश्मीरी युवा इस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे, जैसे वे दिल्ली में किसी भी कश्मीर से संबंधित कार्यक्रम में पहुचते थे ,उनमें से ज्यादातर छात्र वे थे, जो जेएनयू से संबद्ध नहीं थे।

कश्मीरियों और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं ने एक दूसरे को उकसाया। कश्मीरी समर्थकों ने चिल्लाते हुए आजादी के लिए नारे लगाए और एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने भी चिल्लाते हुए कश्मीर के बारे में नारे लगाए जो कि भारत का एक अभिन्न हिस्सा है।

नारों में शायद कश्मीरी छात्र भारत को टुकड़ों में तोड़ने के बारे में चिल्ला रहे थे – भारत के टुकड़े। प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि घटना के तीन आयोजकों – खालिद, बानोज्योत्सना लहरी और अश्वथी – ने कश्मीरी छात्रों को ऐसे नारे लगाने से रोकने की कोशिश की थी।

फेक न्यूज ऑपरेशन

दिल्ली पुलिस और कुछ न्यूज टीवी चैनल वाले वहाँ पहले से ही मौजूद थे, क्योंकि एबीवीपी ने इससे कोई बड़ा मुद्दा बनाने का फैसला किया था। इसका कोई प्रत्यक्षदर्शी लेखा नहीं था लेकिन वीडियो जो कि उसका सबूत बन गए जो कुछ वहाँ हुआ था। वीडियो, जिससे बाद में छेड़छाड़ की गई थी, जिसमें खालिद और जेएनयू छात्रों के संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार और अन्य को भारत विरोधी नारों का जिक्र करते हुए और कश्मीर के लिए अजादी की मांग करते और भारत को टुकड़ों में तोड़ने का वादा करते हुए दिखाया गया।

खालिद और कन्हैया कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उतनी ही उत्सुकता से, दिल्ली पुलिस, एबीवीपी और अन्य न्यूज चैनलों सहित टाइम्स नाउ और फिर गोस्वामी ने भी कभी उन कश्मीरी छात्रों के बारे में कुछ नहीं पूछा। कश्मीरी छात्रों को छिपकर रहने के लिए कहा गया, क्योंकि उन्हें गिरफ्तार करने से कश्मीर में तनाव बढ़ सकता था। इससे जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा होगा।

“जेएनयू राष्ट्रवाद विवाद”जैसा कि यह ज्ञात हुआ, एबीवीपी के संयुक्त सहयोग के साथ यह एक संपूर्ण नकली समाचार ऑपरेशन था, जिसमे समाचार चैनल जैसे जी न्यूज था साथ में ही दिल्ली पुलिस, जिसने लोगों को छेड़छाड़ किए गए वीडियो के आधार पर पकड़ा।

इस घटना ने राष्ट्र विरोधी तत्वों विशेषकर जेएनयू और वामपंथियों को अपने रंग में रंगने का काम किया। भारत के जाली खबरों के इतिहास में “टुकड़े-टुकड़े गैंग” एक बिलकुल झूठी खबर है।

कन्हैया कुमार के जेल से वापस आने और जेएनयू में एक हीरो के जैसा स्वागत होने पर यह हवा एक बार फिर से वापस लौट आती है। पुलिस को कन्हैया के खिलाफ कोई भी साक्ष्य नहीं मिला। लेकिन दो साल बाद, अर्नब गोस्वामी ने “टुकड़े-टुकड़े गैंग” को फिर से हवा दे दी है। यह है मशहूर कहावतों (तकिया कलाम) और हैशटैग की शक्ति।

संयुक्त राष्ट्र से उत्तरी कोरिया तक

जेएनयू कांड के पाँच माह बाद, गुजरात में मरी हुई गायों की खाल उतारने के मामले में दलितों की पिटाई का मामला सामने आया था, मृत पशुओं की खाल उतारना इन गुजराती दलितों का जातीय कार्य है। लेकिन असल में उनको गाँव से बेदखल करने के लिए ऐसा किया गया था। इस मामले को लेकर गुजरात के दलितों ने सप्ताह भर विरोध प्रदर्शन किया था। इस विरोध प्रदर्शन ने जिग्नेश मेवानी के रूप में देश को दलित आंदोलन का एक नया चेहरा प्रदान किया।

जेएनयू मामले को फिर से हवा देते हुए अर्नब गोस्वामी ने जिग्नेश मेवानी को भी “टुकड़े-टुकड़े गैंग” में घसीट लिया, भले ही 2016 में जेएनयू कांड पर कवरेज कर रहे टीवी चैनलों ने जिग्नेश मेवानी का नाम तक न सुना हो।

भले ही अर्नब गोस्वामी अपने शब्दों के माध्यम से अपने आलोचकों को परेशान करने की कला जानते हों, लेकिन इसी चाल को आसानी से दूसरों के द्वारा भी उपयोग किया जा सकता है। जून 2017 में एनडीटीवी को दिए जा रहे एक साक्षात्कार में शौरी ने मीडिया के एक वर्ग को “दक्षिण कोरियाई मीडिया” के रूप में परिभाषित किया था। हालांकि यह वाक्यांश अटक गया है – आप इसे अक्सर सोशल मीडिया पर देखते होंगे।

हमारे धुव्रीकृत समय में #टुकड़े-टुकड़े गैंग # नॉर्थकोरियन मीडिया के साथ युद्ध कर रहा है। पॉपकॉर्न कहां है?

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