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श्रीलंका में राजपक्षे की मजबूत सरकार के साथ रिश्ते बढ़ाने के लिए कई प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाएगा भारत

संसदीय चुनावों में राजपक्षे की भारी बहुमत से जीत ऐसे समय पर हुई है जब श्रीलंका रणनीतिक रूप से भारत, चीन यहां तक कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के लिए भी महत्वपूर्ण बन गया है.

श्रीलंका के पीएम महिंदा राजपक्षे और भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी | फोटो: एएनआई

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते हुए संसदीय चुनावों में, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे की श्रीलंका पदुजना पेरामुना पार्टी के भारी बहुमत से जीतने के बाद, भारत श्रीलंका में अपनी बहुत सी विकास परियोजनाओं को, आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है- जिनमें कुछ व्यवसायिक और कुछ अनुदान पर आधारित हैं.

राजपक्षे ने, जो द्वीप राष्ट्र के पूर्व राष्ट्रपति भी हैं, फिर से प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है और भारत सरकार के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया, कि राजपक्षे ने एक ‘मज़बूत संकेत’ दिया है कि कोलंबो पर अब एक ‘मज़बूत और स्थाई’ सरकार का राज है.

एक शीर्ष अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘श्रीलंका के साथ हमारा एक अनोखा रिश्ता है…चल रहे प्रोजेक्ट्स के अलावा, हमारे पास परियोजनाओं की एक और बड़ी लिस्ट है, जिसमें व्यवसायिक और अनुदान पर आधारित, दोनों तरह की योजनाएं हैं, जो हम नई सरकार के साथ शुरू करना चाहते हैं’.


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मज़बूत रिश्ता बनाए रखना ज़रूरी

संसदीय चुनावों में राजपक्षे की भारी जीत ऐसे समय पर आई है, जब हिंद महासागर में स्थित ये द्वीप राष्ट्र, रणनीतिक रूप से न सिर्फ अपने बड़े पड़ोसी देशों- भारत और चीन, बल्कि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के लिए भी महत्वपूर्ण बन गया है, चूंकि वो महत्वपूर्ण एशिया-प्रशांत रणनीति को आकार देते हैं.

भारत सरकार के सूत्रों ने कहा कि भारत के लिए अब ये और भी अहम हो गया है कि श्रीलंका के साथ आपसी रूप से और मज़बूत फायदेमंद, राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक द्विपक्षीय रिश्ते बनाकर रखे जाएं, इस बात को ध्यान में रखते हुए कि अपनी बहुत सी लाभप्रद विकास परियोजनाओं के साथ, चीन वहां अपना प्रभाव बढ़ा रहा है.

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आखिरकार, राष्ट्रपति के रूप में ये महिंदा राजपक्षे का ही कार्यकाल था, जिसमें कोलंबो का चीन की तरफ झुकाव हुआ था. पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद, महिंदा के छोटे भाई गोटाबाया राजपक्षे अब श्रीलंका के राष्ट्रपति हैं. दिसम्बर 2017 में, श्रीलंका को मजबूरन रणनीतिक रूप से अहम अपना हम्बनटोटा पोर्ट, 99 साल की लीज़ पर चीन के हवाले करना पड़ा क्योंकि वो भारी क़र्ज में आ गया था.

पूर्व राजनयिक राजीव भाटिया, जो गेटवे हाउस में एक डिस्टिंगुइश्ड फैलो हैं, ने कहा, ‘अब ये बात सबको स्पष्ट हो गई है कि श्रीलंका के पास एक बहुत स्थाई सरकार है. राजपक्षे बंधु वहां फिर से सबसे शक्तिशाली बन गए हैं और वो चीन समर्थक के तौर पर जाने जाते हैं. लेकिन उन्हें अब भारत के साथ भी डील करना पड़ेगा. भारत को अब अपने रिश्तों को अच्छे से संभालना होगा क्योंकि श्रीलंका के साथ हमारे मतभेद भी हैं और झुकाव भी है. हमें इस खेल में दिखना है’.

लेकिन, उक्त अधिकारी ने कहा, ‘हम भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय संबंधों को, प्रतिस्पर्धा के चश्मे से नहीं देखते. हमने श्रीलंकाई अथॉरिटीज़ के साथ उनके देश में, बहुत सारी विकास परियोजनाएं शुरू की हुई हैं, जिनमें संघर्ष के बाद उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका का मुकम्मल पुनर्निर्माण शामिल है’.

पीएम नरेंद्र मोदी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अंतिम जीत होने से पहले ही, राजपक्षे को कॉल करके बधाई दे दी थी. मोदी ने ट्वीट किया था, ‘द्विपक्षीय सहयोग के सभी क्षेत्रों में और आगे बढ़ने के लिए, हम साथ मिलकर काम करेंगे और अपने विशेष रिश्तों को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे’.

अन्य लोगों के अलावा राजपक्षे के पास चीनी राष्ट्रपति शी जिम्पिंग, जापानी प्रधानमंत्री शिंज़ो एबे, ऑस्ट्रेलियन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से भी, बधाई के कॉल्स आएं.

शनिवार को, श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले उनसे मिलने गए और बाद में कहा, ‘प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को मिला भारी बहुमत, दोनों देशों को एक नया अवसर देता है, अपने द्विपक्षीय रिश्तों को बढ़ाने का, जिसमें कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल आर्थिक प्रभावों को कम करना भी शामिल है’.


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परियोजनाएं जो ज़मीन पर हैं और पाइपलाइन में भी

उत्तरी और दक्षिणी श्रीलंका में एक विशाल आवासीय योजना के अलावा, भारत उत्तर-मध्य प्रांत में एक बहु-जातीय स्कूल के विकास में भी शामिल है. उत्तर क्षेत्र के जाफना में भारत एक सांस्कृतिक केंद्र और 3,000 रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी विकसित कर रहा है. भारत वहां 27 स्कूलों का नवीनीकरण भी करा रहा है.

भारत कुछ प्रमुख परियोजनाओं में तेज़ी लाने की योजना भी बना रहा है, जैसे कि उत्तरी श्रीलंका में कंकेसनथुराई (केकेएस) हार्बर का विकास, जिसके लिए नई दिल्ली ने 4.5 करोड़ डॉलर तक के कर्ज़ को मंज़ूरी दी है.

इसके अलावा, भारत 25.7 करोड़ डॉलर के कर्ज़ के तहत पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी श्रीलंका में जल आपूर्ति परियोजनाएं भी विकसित कर रहा है.

भारत को ये भी उम्मीद है कि श्रीलंका में, भविष्य के लिए बनाई गईं कुछ योजनाओं में भी कुछ गति आएगी, जैसे कि कोलम्बो पोर्ट पर जापान के सहयोग से 50 करोड़ डॉलर के खर्च से एक कंटेनर डिपो का विकास. राष्ट्रपति गोटाबाया इस प्रोजेक्ट की समीक्षा कर रहे हैं.

पिछले महीने रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने एक समझौते को अंतिम रूप दिया, जिसके तहत सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका को 40 करोड़ डॉलर की मुद्रा की अदला-बदली की सुविधा दी जाएगी, जो नवम्बर 2022 तक उपलब्ध रहेगी.

भारत अब श्रीलंका के साथ 1.1 अरब डॉलर का एक और मुद्रा विनिमय समझौता करने पर गौर कर रहा है ताकि वो अपने कर्ज़ चुका सके. पिछले साल राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के दौरे के दौरान, उन्होंने ही 1.1 अरब डॉलर के मुद्रा विनिमय समझौते के लिए अनुरोध किया था. उसी समय उन्होंने भारत से एक अरब डॉलर के, उस कर्ज़ की वसूली को स्थगित करने के लिए भी कहा था, जो श्रीलंका को उसे अदा करना है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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