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UP के चित्रकूट में आशा कार्यकर्ताओं की कमी के कारण COVID के दौरान घर पर डिलीवरी की संख्या मे हुई वृद्धि

जिले के स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त आंकड़ों से पता चलता है कि संस्थागत (अस्पतालों में होने वाले) प्रसव की संख्या मे गिरावट आई है. अधिकारी इसके लिए कोविड महामारी, लॉकडाउन और टीकाकरण अभियान को मुख्य कारण बताते हैं.

यूपी के चित्रकूट में अपने नवजात शिशु के साथ राधा | फोटो: ज्योति यादव/ दिप्रिंट

चित्रकूट : 9 जुलाई के तड़के सुबह 23 वर्षीय राधा देवी को प्रसव पीड़ा होने लगी और उसके परिवारवालो ने बड़ी व्यग्रता के साथ आशा कार्यकर्ता को फ़ोन किए लेकिन वे उपलब्ध नहीं थी.

जिला स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के करवी ब्लॉक में रहने वाली राधा जिले की उन 55 महिलाओं में से एक हैं जिन्हें इस साल जुलाई में संस्थागत प्रसव की सुविधा नहीं मिल पायी.

स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, इन 55 महिलाओं में से 23 के पास प्रसव के दौरान कुशल परिचारिका अथवा किसी तरह की कोई चिकित्सा किट तक उपलब्ध नहीं थी. इसका मतलब यह हुआ कि प्रसव के दौरान या तो किसी रिश्तेदार या स्थानीय दाई ने इन महिलाओं की सहायता की.

राधा के मामले में जिस आशा कार्यकर्ता, सोनी त्रिपाठी, से उनके परिवारवालों ने संपर्क किया था, उन्होने बताया कि उस दिन वह एक अन्य गर्भवती महिला के साथ टीकाकरण के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जा रही थीं.

त्रिपाठी ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने मुझे फोन किया था और मैंने उन्हें आश्वासन दिया था कि मैं दोपहर 2 बजे तक इस काम से मुक्त हो जाउंगी, लेकिन उन्हें (राधा को) अत्यधिक प्रसव पीड़ा हो रही थी. जब तक मैंने दोबारा उनसे संपर्क किया तब तक उन्होंने घर पर हीं एक बच्ची को जन्म दे दिया था.’

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अपने बरामदे में एक खाट पर अपनी एक महीने के बच्ची के बगल में बैठी राधा कहती है, ‘हमने एक दाई को बुलाया क्योंकि एम्बुलेंस भी समय पर नहीं आई थी.’

संस्थागत प्रसव में गिरावट

दिप्रिंट के पास उपलब्ध चित्रकूट जिले के स्वास्थ्य अधिकारियों से प्राप्त आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस जिले में मई 2019 में 1,179 संस्थागत प्रसव के मामले दर्ज किए गये थे. लेकिन मई 2020 में यह संख्या घटकर 1,086 हो गई. 2021 में इसी महीने यह संख्या और भी कम होकर 1,016 हो गई.

जून महीने के आंकड़े भी संस्थगत् प्रसव के मामलों में इसी तरह की गिरावट दिखाते हैं. जून 2019 में, 1,420 संस्थागत प्रसव हुए थे, जो 2020 में घटकर 1,342 और 2021 में 1,232 हो गए.

इस साल अप्रैल से जून तक, जब कोविड की दूसरी लहर अपने चरम पर थी, चित्रकूट में घर पर प्रसव के 196 मामले दर्ज किए गए. 2020 में पूरे साल के लिए यह आंकड़ा 955 और 2019 में 965 था.

जिला स्वास्थ्य अधिकारी संस्थागत प्रसव में आई इस गिरावट के पीछे कोविड महामारी, लॉकडाउन और टीकाकरण अभियान का हवाला देते हैं.

चित्रकूट के डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम मैनेजर (जिला कार्यक्रम प्रबंधक) राम किशोर करवरिया ने दिप्रिंट को बताया, ‘उस समय पूरी तरह से लॉकडाउन लगा था और हमारा सारा-का-सारा कार्यबल कोविड के प्रबंधन में लगा हुआ था. कभी-कभी एम्बुलेंस भी देर से पहुंचती थी. साथ ही, प्रसव पीड़ा शुरू होने के बाद भी, परिवारवाले आशा कार्यकर्ता या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों या जिला अस्पतालों से संपर्क करने के लिए अंतिम समय तक प्रतीक्षा करते रहते हैं. यह चीजों को और मुश्किल बना देता है.’


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संस्थागत प्रसव में आई इस गिरावट ने जिला प्रशासन में खतरे की घंटी बजा दी है. 2 अगस्त को हुई एक समीक्षा बैठक के दौरान, जिला स्वास्थ्य अधिकारियों ने आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से इस तरह की गिरावट के कारण का पता लगाने और उन परिवारों की पहचान करने को कहा जहाँ घर पर बच्चों को जन्म दिया गया है.

किसी तरह की नियमित जांच अथवा मातृत्व लाभ उपलब्ध नहीं

राधा के घर से करीब-करीब दो किलोमीटर की दूरी पर 32 वर्षीया सावित्री देवी ने इस 10 जुलाई को अपने चौथे बच्चे को जन्म दिया. वे अपने पति गोरे लाल, जो बाहर काम करने वाले मजदूर है, के साथ मई में पंजाब से लौटी थीं.

जब दिप्रिंट उनसे मिलने पहुंचा तो सावित्री अपने नवजात शिशु को गोद में लिए और अपनी तीनों बेटियों से घिरी हुई थी. सावित्री ने हमें बताया कि वह पंजाब या यूपी के किसी भी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में मातृत्व लाभ प्राप्त करने के लिए अपना नाम नहीं लिखवा सकीं.

गोरे लाल ने कहा, ‘हमें बिल्कुल नहीं पता था कि उसका नाम पंजाब में कैसे दर्ज कराया जाए. लॉकडाउन के कारण मेरी नौकरी चली गई थी और मुझे वापस घर लौटना पड़ा. यहां भी उनका नाम दर्ज करवाने के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं थी.’

किसी कुशल परिचारिका की अनुपस्थिति में सावित्री के परिवारवालों ने एम्बुलेंस को बुलाने का प्रयास किया. लेकिन एम्बुलेंस आई हीं नहीं और आखिरकार उसने अस्पताल के बिल के क़ारण वहां होने वाले खर्चे के डर से वहां भी भर्ती न होने का फैसला किया.

सावित्री बताती हैं, ‘मेरी सभी बेटियों का जन्म पंजाब के एक अस्पताल में हुआ था, लेकिन हमें वहां कुछ पैसे का भुगतान करना पड़ा. इस साल हमने अपना काम-धंधा खो दिया था. इसलिए मैंने अस्पताल जाने से इनकार कर दिया.’ सावित्री और उनके पति दोनों पंजाब में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते थे.

किसी भी आशा कार्यकर्ता अथवा ऑग्जिलरी नर्स मिडवाइफ (एएनएम) द्वारा निगरानी के आभाव में सावित्री किसी भी तरह नियमित जांच और आयरन एवं कैल्शियम की गोलियों से भी वंचित रहीं. उनके नवजात बेटे को जन्म के 24 घंटे के भीतर ओपीवी-0, हेप-बी और बीसीजी के इंजेक्शन भी नहीं दिए गए. राधा की बेटी को भी ये टीके नहीं लगाए गए थे.

राधा ने बताया था कि वे भी गर्भावस्था के दौरान अपनी चौथी नियमित जांच नहीं करा पाईं थीं, क्योंकि उनकी एएनएम टीकाकरण अभियान में व्यस्त थीं.

उनका मातृत्व एवम् शिशु प्रतिरक्षा (मदर आंड चाइल्ड प्रोटेक्शन) कार्ड यह दिखाता है कि उनकी पिछले 13 मार्च, 10 अप्रैल और 5 मई को नियमित जांच की गयी थी. स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार हर गर्भवती महिला की चार नियमित जांच अनिवार्य हैं.

इस बीच, इसी गांव की रहने वाली 23 वर्षीय सुमन अपने गर्भावस्था के नौवें महीने में है, लेकिन वह केवल दो बार – 12 जून और 10 जुलाई को – अनिवार्य जांच के लिए जा सकी है. उसकी प्रसव के लिए अपेक्षित नियत तारीख 17 सितंबर है, लेकिन अभी तक किसी भी आशा या एएनएम कार्यकर्ता द्वारा उसकी काउंसलिंग नहीं की गई है.

सावित्री अपने बेटे के साथ | फोटो: ज्योति यादव/ दिप्रिंट

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मुझे मिलने वाला पोषाहर भी अनियमित रहता है. मेरे जांच में देरी हो रही है.’

स्वास्थ्य अधिकारियों के सामने पेश आ रहीं चुनौतियों के बारे में बात करते हुए, करवरिया ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में हमने संस्थागत प्रसव में लगातार वृद्धि देखी है. चित्रकूट में लगभग 70% प्रसव संस्थागत रूप से होते हैं. हां, महामारी के दौरान इसमें गिरावट आई है और इनकी घटी हुई संख्या चिंताजनक है. हमारे आशा, एएनएम और आंगनवाड़ी कार्यबल के टीकाकरण अभियान के बोझ तले दबे होने के कारण नियमित जांच में भी चूक हुई है.’

एक भी महिला स्त्री रोग विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं

लगभग 9.91 लाख की आबादी वाले चित्रकूट जिले में एक भी सरकारी स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं है. जिला अस्पताल में कार्यरत एकमात्र स्त्री रोग विशेषज्ञ, जो स्वयं एक पुरुष हैं, पर अक्सर काम का अतिरिक्त भार रहता है.

इस जिले में 910 आशा कार्यकर्ता, 959 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और 134 एएनएम हैं. इन आंकड़ो के आधार पर प्रत्येक 5,000 महिलाओं के लिए केवल एक एएनएम और प्रत्येक 1,000 महिलाओं के लिए केवल एक आशा कार्यकर्ता उपलब्ध है.

जिले में 2019 में 11 और 2020 में 18 मैटरनल डेथ (मातृ मृत्यु) देखी गयी. इस साल जुलाई तक जिले में पांच ऐसी मौतें दर्ज की गई हैं.

एक जिला स्वास्थ्य अधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘ यह हमारा आशा कैडर है जो किसी भी गर्भवती महिला को सही सलाह-मशविरा देता है और उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) या सदर अस्पताल आने के लिए प्रेरित करता है. संस्थागत प्रसव हमारी प्राथमिकता है लेकिन कोरोनावायरस के फैलाव के कारण हमारा यह अहम कार्यबल कोविड प्रबंधन में लगा हुआ था.’

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