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क्यों इस साल गर्मी की फसल में मूंग पर बड़ा दांव लगाने वाले पंजाब के किसानों के बीच है गहरा असंतोष

उत्पादकों का दावा है कि मूंग के लिए निर्धारित एमएसपी ही इसका सीलिंग प्राइस बन गया, क्योंकि निजी व्यापारी इससे अधिक कीमत की पेशकश करने को तैयार नहीं थे. असंतोष का एक अन्य कारण पंजाब सरकार द्वारा काफी कम उपज की एमएसपी पर खरीद करना है.

पंजाब में हंसिया लेकर मूंग के पौधे काटता हुआ किसान । मनीषा मोंडल । दिप्रिंट

जगराओं/लुधियाना : आम आदमी पार्टी (आप) सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (मिनिमम सपोर्ट प्राइस – एमएसपी) पर दलहन की खरीद के वादे से उत्साहित होकर इस साल की गर्मियों में पंजाब में मूंग की खेती का रकबा लगभग दोगुना हो गया था क्योंकि किसानों की नजर इससे होने वाली अतिरिक्त आमदनी पर टिकी थी.

गर्मी की लहर के कारण इस साल गेहूं की फसल के जल्द तैयार होने के साथ किये गए इस वायदे ने जुलाई में धान का मौसम शुरू होने से पहले किसानों को तीसरी फसल उगाने के लिए एक अवसर प्रदान किया था.

उन्होंने सोचा कि वे गेहूं और धान से जो कुछ कमाते हैं, उसके अलावा मूंग की खेती अतिरिक्त आमदनी दिलाएगी. लेकिन, जैसा कि दिप्रिंट के जमीनी आकलन ने जाहिर किया है, पंजाब के उत्पादक किसान अब अपने इस अनुभव को लेकर नाराज हैं.

एक ओर जहां पंजाब राज्य कृषि विपणन बोर्ड के अनुसार राज्य सरकार ने एमएसपी पर कुल उपज का लगभग 11 प्रतिशत ही ख़रीदा, वहीं एक अन्य योजना – जो किसानों को यह आश्वस्त करने के लिए थी कि उन्हें एमएसपी और बाजार की कम कीमतों के बीच के अंतर का भुगतान किया जाएगा – ने स्थिति को और खराब कर दिया.

किसानों की शिकायत है कि इस मुआवजे वाली योजना की घोषणा के बाद व्यापारियों ने बाजार भाव कम कर दिए. कुछ ने यह शिकायत की भी कि वे इस तरह के हस्तक्षेप के बिना ही ज्यादा अच्छे थे.


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मूंग की फसल उगने की बारीकियां 

पंजाब के कुछ हिस्सों में, मूंग को उन आलू उत्पादकों के लिए एक सुरक्षित दांव माना जाता है जो रबी (सर्दियों की फसल) के मौसम में गेहूं की खेती नहीं करते हैं. आम तौर पर आलू की खुदाई मार्च तक कर ली जाती है, जिससे किसानों के पास मूंग की बुआई के लिए पर्याप्त समय बचता है.

बोई गई किस्म के आधार पर, मूंग की फसल 60-90 दिनों में तैयार हो जाती है. यह मानसून के आने से पहले का समय होता है, जो खरीफ के सीजन की शुरुआत का प्रतीक है. दूसरी ओर, गेहूं उगाने वाले किसान आमतौर पर अप्रैल-मई में कटाई समाप्त करने के बाद अपनी जमीन को पड़ता (खाली) छोड़ देते हैं.

लेकिन भीषण गर्मी की वजह से साल 2022 गेहूं की फसल जल्द पकने से हालत थोड़े से अलग हो गए और इसने कुछ गेहूं के किसानों को भी मूंग की बुवाई करने का अवसर प्रदान किया. जब पंजाब सरकार ने 7,275 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी पर मूंग की खरीद का आश्वासन दिया तो पारंपरिक मूंग के किसानों के साथ-साथ वे गेहूं उत्पादक भी और उत्साहित हो गए जिन्होंने गेहूं की फसल के बाद तीसरी फसल के रूप में मूंग बोई थी.

इस प्रकार, राज्य के कृषि विभाग के अनुसार, पंजाब में मूंग की खेती का रकबा पिछले सीजन के 70,000 एकड़ से लगभग दोगुना होकर इस गर्मी में 1.25 लाख एकड़ हो गया है.

पंजाब मंडी बोर्ड का अनुमान है कि इस साल 31 अगस्त तक पंजाब के थोक बाजार में लगभग 5 लाख टन मूंग आ चुकी थी, जिसमें से 87 प्रतिशत से अधिक को एमएसपी से कम कीमतों पर बेचा गया था.

लुधियाना जिले के मलक गांव में रहने वाले किसान सतवंत सिंह, जिन्होंने 17 एकड़ खेत में मूंग की खेती की थी, ने बताया कि उन्हें जगराओं मंडी में उनकी उपज के लिए लगभग 6,000 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान किया गया था. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारी उपज एमएसपी पर नहीं बेची जा सकी. नई नीति के बिना भी हमने भाव को 6,500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचते देखा है. लेकिन इस बार, निजी व्यापारियों ने अधिक कीमत की पेशकश नहीं की. उन्होंने मनमाने ढंग से मूंग की कीमत तय की.‘

मलक गांव के एक अन्य किसान लखविंदर सिंह, जिन्होंने 11 एकड़ खेत में मूंग की फसल उगाई थी, ने कहा, ‘खरीद के शुरुआती दिनों में कीमत लगभग 6,000-6,200 रुपये प्रति क्विंटल थी, लेकिन बाद में मूंग की आपूर्ति बढ़ने से कीमतें गिरकर लगभग 4,500-5,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गईं.‘

हालांकि, जगराओं मंडी में किसानों को उनकी उपज बेचने में मदद करने वाले कमीशन एजेंटों ने दावा किया कि मूंग की फसल के एमएसपी पर नहीं बेचे जा सकने की वजह मुख्य रूप से ‘उनकी गुणवत्ता से जुड़ी चिंता’ थी. उन्होंने कहा कि एमएसपी पर केवल ‘ए-ग्रेड’ गुणवत्ता वाली मूंग ही खरीदी गई, जिससे किसानों को अपनी फसल निजी व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ा.

कोठे जिवे दे गांव जगराओं मंडी से ज्यादा दूर नहीं है और यहां के सरपंच चरणप्रीत सिंह पिछले कई वर्षों से अपनी जमीन पर आलू और गेहूं दोनों अलग-अलग उगा रहे हैं. 2022 से पहले, चरणप्रीत का गेहूं का खेत चावल (धान) की बुवाई तक खाली पड़ा रहता था, लेकिन इस साल, उन्होंने अपने 50 एकड़ के गेहूं के खेत में से आधे पर मूंग लगाने का फैसला किया था.

आमतौर पर, पंजाब में मूंग की खेती की लागत लगभग 3,000-4,000 रुपये प्रति क्विंटल होती है, जो सबसे अच्छी गुणवत्ता की उपज हेतु आरक्षित 7,275 रुपये के एमएसपी की तुलना में राज्य के बाजारों में 5,000-6,500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेची जाती है.

अगर किसानों की समूची मूंग की उपज को एमएसपी पर खरीदा गया होता, तो उन्हें 36,375 रुपये प्रति एकड़ (एक एकड़ में पांच क्विंटल की उपज के आधार पर) तक की कमाई की उम्मीद थी, लेकिन कुछ ही लोग यह मुनाफा कमाने में कामयाब रहे.

चरणप्रीत ने दिप्रिंट को बताया, ‘उनकी [फसल की खरीद के लिए नोडल एजेंसी मार्कफेड की] मशीनों ने हमारी फसल का 70-80 प्रतिशत अस्वीकार कर दिया. निजी व्यापारी पूरे लॉट के लिए 5,900-6,200 रुपये प्रति क्विंटल की पेशकश कर रहे थे. इसी कारण से किसान के लिए निजी बाजारों में उपज को बेचना स्वाभाविक था.’


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असफल वादा

चरणप्रीत ने कहा कि इस साल, पुदीना, गेहूं और आलू सहित कई जिंस ‘बाजार में अधिक कीमत पर बेचे गए.’

उन्होंने पूरा मामला समझाते हुए कहा, ‘इस के आधार पर, हम मूंग की फसल से लगभग 8,000-9,000 रुपये प्रति क्विंटल कमाने की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन एमएसपी, फ्लोर प्राइस (आधार मूल्य)  बनने के बजाय, सीलिंग प्राइस (उच्चतम मूल्य) बन गया क्योंकि निजी व्यापारी इस बार अधिक पेशकश करने को तैयार नहीं थे. ‘

फिर मूंग उत्पादकों ने विरोध प्रदर्शन कर शुरू किया, जिससे पंजाब सरकार को जुलाई में मूल्य में आये अंतर् का भुगतान करने की योजना की घोषणा करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

इस योजना के तहत, एमएसपी से कम कीमत पर अपनी उपज बेचने वाले किसानों को 1,000 रुपये प्रति क्विंटल तक मुआवजा दिया जाना था.

हालांकि, चरणप्रीत ने दावा किया कि इस योजना की घोषणा के बाद निजी व्यापारियों ने मूंग के बाजार मूल्य में 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की और कमी कर दी.

उन्होंने बताया, ‘जब हमने उन्हें [निजी व्यापारियों] कहा कि हमने एक सप्ताह पहले इसी फसल को अधिक कीमत पर बेचा हुआ है, तो उन्होंने हमें बताया कि ‘अब तो आपको बोनस भी मिल रहा है, इसलिए वह बोनस और यह दर ले लो.’

दिप्रिंट ने कई किसानों से बात की, जिन्होंने कहा कि उन्हें मुआवजे का दावा करने के लिए कागजी कार्रवाई करनी पड़ी और वे अभी भी अपना भुगतान प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. इसके अलावा, किसानों का यह भी कहना था कि कागजी कार्रवाई में उनकी मदद करने के लिए पर्याप्त पटवारी (स्थानीय राजस्व अधिकारी) उपलब्ध नहीं थे.


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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

किसानों को मूंग की खेती के लिए ‘मूल्य प्रोत्साहन’ देने के पीछे का विचार उन्हें चावल की ऐसी किस्मों की ओर ले जाना था जो कम पानी की खपत करती हैं. केवल वही किसान जिन्होंने पीआर 126 या बासमती किस्म के धान की फसल बोई थी, एमएसपी पर अपनी मूंग की उपज बेचने के पात्र थे.

लेकिन पंजाब में किसानों द्वारा इस खरीफ सीजन में धान के बजाय मूंग उगाने के बावजूद राज्य सरकार ने कथित तौर पर इस तरह के किसी भी बदलाव का प्रयास नहीं किया.

लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में अनुसंधान (बागवानी और खाद्य विज्ञान) के अतिरिक्त निदेशक अजमेर सिंह दत्त ने कहा, ‘चावल का अर्थशास्त्र खरीफ सीजन में किसी अन्य फसल को इसके साथ प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति नहीं देता है. अधिक उपज, मूल्य में स्थिरता, उचित कीमत मिलने का आश्वासन और मौसम की स्थिति एवं कीटों की मार से भी बचाये रखने की इसकी क्षमता किसानों के लिए चावल (धान) की उपज से कहीं और स्विच (बदलाव) करना मुश्किल बना देती है. मिट्टी के संवर्धन और फसल विविधीकरण के साथ मूंग के अपने फायदे हैं, लेकिन अर्थशास्त्र इसे पंजाब में धान का विकल्प बनने की अनुमति नहीं देता है.’

यदि धान को एमएसपी पर बेचा जाता है, तो किसान मूंग के लिए मिलने वाले 36,000 रुपये प्रति एकड़ के मुनाफे की तुलना में कम से कम 51,000 रुपये प्रति एकड़ कमा सकते हैं.

कृषक समाज के अध्यक्ष अजय वीर जाखड़ के अनुसार, ‘भगवंत मान सरकार की मूंग एमएसपी नीति ‘बेबुनियाद, गलत समय पर और खराब तरीके से लागू की गई’ थी.’

जाखड़, जो पंजाब किसान आयोग के पूर्व प्रमुख भी हैं, ने कहा, ‘सरकार ने दबाव के आगे झुककर कम गुणवत्ता वाले मूंग की खरीद की, जो  नेफेड [एक केंद्रीय खरीद एजेंसी] द्वारा समर्थित नहीं था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसका राज्य के ऊपर अप्रत्याशित वित्तीय प्रभाव पड़ा और भविष्य में दालों की खरीद के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे. इसके अलावा, इससे [मूल उद्देश्य] फसल विविधीकरण में भी कोई मदद नहीं मिली.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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