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जम्मू-कश्मीर में इतने सारे ज़िलों के प्रशासनिक प्रमुख क्यों बने हुए हैं ग़ैर-आईएएस अधिकारी

जम्मू-कश्मीर के आंकड़ों के अनुसार, केंद्र-शासित क्षेत्र के 20 ज़िला मजिस्ट्रेट्स में से, 9 कश्मीर प्रशासनिक सेवा से हैं.

जम्मू और कश्मीर के नागरिक सचिवालय की फाइल फोटो/प्रवीण जैन/दिप्रिंट

नई दिल्ली: पिछले महीने लोकसभा ने जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक,2021, को पारित कर दिया, जिसने जम्मू-कश्मीर काडर की अखिल भारतीय सेवाओं का, जिनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस), और भारतीय वन सेवा (आईएफएस), के अधिकारी शामिल हैं, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मिज़ोरम, और यूनियन टैरिटरी (अगमुट) काडर के साथ विलय कर दिया.

इसका अर्थ है कि इन सेवाओं के अधिकारी, जो केंद्र-शासित क्षेत्रों तथा तीन उल्लिखित राज्यों में तैनात हैं, अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ में तैनात किए जा सकते हैं, और इसका उलट भी हो सकता है.

चूंकि जेएंडके अब एक केंद्र-शासित क्षेत्र है, इसलिए ये अध्यादेश एक तार्किक क़दम था. लेकिन, एक अपेक्षा ये भी है कि इस क़दम से, एक और समस्या भी हल हो सकती है, जिससे ये पूर्व सूबा दशकों से जूझ रहा है- नौकरशाहों की भारी कमी.

पूर्व काडर की निर्धारित संख्या 137 आईएएस अधिकारियों की थी, लेकिन केवल 58 अधिकारी सेवारत थे. इन अधिकारियों में कम से कम नौ, प्रतिनियुक्ति पर केंद्र सरकार में हैं.

इसलिए इस क़िल्लत की वजह से, शासन के सामने चुनौतियां रहती थीं- जेएंडके में हर अधिकारी कई कई विभाग संभालता है- जोकि नियमों के खिलाफ है.

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अखिल भारतीय सेवा नियमों के अनुसार, किसी भी ज़िले में ज़िला मजिस्ट्रेट का पद एक काडर पोस्ट है, जिसका मतलब है कि इसपर कोई ऐसा आदमी नहीं बैठ सकता, जो आईएएस अधिकारी नहीं है.

लेकिन, दिप्रिंट द्वारा देखे गए आंकड़ों के अनुसार, जेएंडके में अधिकारियों की तंगी को देखते हुए, कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) के अधिकारी, आईएएस में पदोन्नत हुए बिना, आईएएस के लिए आरक्षित इन पदों पर बैठते रहे हैं.

डेटा से पता चला कि केंद्र-शासित क्षेत्र में, कुल 20 में से नौ डीएम, कश्मीर प्रशासनिक सेवा (केएएस) के अधिकारी हैं.

हालांकि एआईएस नियमों में इसका प्रावधान है, जैसा कि आईएएस के अधिकारियों की कमी, लेकिन आईएएस (काडर) रूल्स,1954, के अनुसार, ‘अपवाद’ अल्प-कालिक उपाय होने चाहिएं, जिनके लिए राज्य सरकार को पहले से, केंद्र सरकार की बाक़ायदा मंज़ूरी लेनी होती है.

लेकिन, पिछले साल, केंद्र सरकार ने डीएम के काडर पदों पर ‘अवैध’ तरीक़े से, राज्य सेवा के अधिकारियों को नियुक्त करने के लिए, नागालैण्ड सरकार की खिंचाई की थी.

लेकिन, अधिकारियों का कहना है, कि कश्मीर में आईएएस और आईपीएस के काडर पदों पर, ग़ैर-आईएएस और ग़ैर-आईपीएस अधिकारियों की नियुक्ति, आमतौर पर की जाती रही है.

दिप्रिंट ने लिखित संदेशों और कॉल्स के ज़रिए, जेएंडके सरकार के अधिकारिक प्रवक्ता रोहित कंसल, और कार्मिक एवं प्रक्षिक्षण विभाग के प्रवक्ता शंभू चौधरी से, टिप्पणी के लिए संपर्क किया, लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक, उनका कोई जवाब हासिल नहीं हुआ था.

जेएंडके सचिवालय में एक वरिष्ठ अधिकारी ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा, ‘इस समय, आईएएस अधिकारियों की काफी कमी है, जिसकी वजह से सरकार डीएम स्तर पर, केएएस अधिकारियों की नियुक्ति का सहारा लेती है’. उन्होंने आगे कहा, ‘आंकड़े सामने हैं जिन्हें हर कोई देख सकता है’.


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कश्मीर की राजनीतिक विशेषताएं

अधिकारियों की कमी के अलावा, दिप्रिंट से बात करने वाले अधिकारियों ने कहा, कि कश्मीर की राजनीतिक व्यवस्था ने सक्रिय रूप से, मुख्य पदों पर बिठाने के लिए, केएएस के अधिकारियों को तरजीह दी है, क्योंकि लोगों की नज़र में उन्हें काफी हद तक, ‘अंदर के आदमी’ माना जाता था.

ऐसा माना जाता था कि वो कश्मीर प्रशासन, और सुरक्षा स्थिति की बारीकियों को, आईएएस अधिकारियों से बेहतर समझते थे, जो हमेशा कश्मीरी नहीं होते.

सूबे के एक पूर्व आईएएस अधिकारी, वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा, ‘इस प्रथा का कारण बताया ये जाता है, कि राज्य में पर्याप्त आईएएस अधिकारी नहीं हैं, लेकिन अस्ली वजह हमेशा ये रही है, कि अहम पदों पर हमेशा कश्मीरी अधिकारियों को बिठाया जाए’.

एक सेवारत अधिकारी भी इससे सहमत थे. ‘सभी सूबाई सरकारों में एतिहासिक रूप से, यही इच्छा रही है कि स्टेट काडर में, ज़्यादा से ज़्यादा ‘अंदर के लोग’ रखे जाएं. कश्मीर में, राजनीतिक और सुरक्षा स्थितियों की वजह से, ये प्रवृत्ति और भी ज़्यादा रही है, भले ही कश्मीर में केएएस अधिकारियों का आईएएस में प्रमोशन कोटा 50 प्रतिशत था, जबकि देश के बाक़ी हिस्सों के लिए, ये 33 प्रतिशत है…लेकिन फिर भी, आईएएस में पदोन्नत किए बिना, केएएस अधिकारियों को सीधे डीएम के पदों पर नियुक्त करके, नियमों का उल्लंघन किया गया’.

अधिकारी ने ये भी समझाया कि कश्मीर में, केएएस अधिकारियों का प्रदर्शन बेहतर माना जाता है, क्योंकि उन्हें यहां की अच्छी समझ होती है.

इसके अलावा, जेएंडके में चल रहे वरिष्ठता के विवाद और क़ानूनी लड़ाइयों के चलते, 2012 के बाद से केएएस का कोई भी अधिकारी, आईएएस में नहीं लिया गया है, जिसके नतीजे में आईएएस अधिकारियों का पूल और भी सिकुड़ गया है.

जहां हर राज्य में 37 प्रतिशत कोटा, राज्य सेवा के अधिकारियों के लिए आरक्षित होता है, जिन्हें आईएएस और आईपीएस में प्रोन्नत किया जाता है, वहीं जेएंडके में धारा 370 हटाए जाने तक, ये कोटा 50 प्रतिशत रहा था.

इस मुद्दे को मुख़ातिब करते हुए, गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में संसद में कहा, ‘ये अनुपात (राज्य सेवा अधिकारियों व एआईएस का) पूरे देश के लिए एक समान है. कश्मीर के लिए ये अलग क्यों होना चाहिए? क्या कश्मीर देश का हिस्सा नहीं है?’

लेकिन, ऊपर हवाला दिए गए अधिकारी ने कहा, कि जेएंडके में चूंकि आईएएस अधिकारियों की भारी क़िल्लत की वजह से, केएएस अधिकारियों को बिना प्रमोशन के, आईएएस पदों पर बिठाया जा रहा है, इसलिए ज़्यादा आईएएस अधिकारियों को लिए बिना, जो कश्मीर में सेवा दे सकें, उनके कोटे में कमी करने से, राज्य में शासन की मुसीबतें और बढ़ जाएंगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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