होम देश मानव तस्करी से निपटने के लिए समग्र कानून को लेकर इंतजार बढ़ा

मानव तस्करी से निपटने के लिए समग्र कानून को लेकर इंतजार बढ़ा

(उज्मी अतहर)

नयी दिल्ली, 17 अगस्त (भाषा) देह व्यापार, श्रम और अंगों समेत सभी तरह की मानव तस्करी से निपटने के लिए एक कड़ा समग्र कानून, पूर्ण पुनर्वास की आस और लांछन के खिलाफ जंग के लिए एक ढांचा उपलब्ध कराना…। तस्करों के चंगुल से बचाये गये भारतीय लोगों की उम्मीदों की यह सूची दशकों से अधर में है।

उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह संसद का एक और सत्र समाप्त हो गया लेकिन मानव तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक 2022 को पेश नहीं किया जा सका। ऐसे में उस कानून का इंतजार लंबा हो गया है जो उन्हें अपने जीवन की कुछ बाधाओं को दूर करने में मदद करेगा।

तस्करों के चंगुल से बचाए गए एक 27 वर्षीय श्रमिक सुनील लाहिड़ी ने कहा कि मानव तस्करी के मामलों में कड़ी कार्रवाई करने को लेकर पूछे जाने पर अधिकारियों की ओर से अक्सर कहा जाता है कि ‘‘कहां लिखा है? दिखाओ हमें’’। लाहिड़ी 16 साल के थे, जब उनके माता-पिता ने एक साहूकार से कर्ज लिया था। माता-पिता के कर्ज चुकाने में असमर्थ रहने पर उन्हें छत्तीसगढ़ के चंपा से हरियाणा के रोहतक में ईंट भट्ठे पर काम करने के लिए ले जाया गया।

श्रम तस्करी को अपराध के रूप में शामिल किए जाने की पैरवी करने वाले लाहिड़ी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मैंने मुआवजा और न्याय पाने के लिए लंबी और कड़ी लड़ाई लड़ी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।’’

लाहिड़ी ने तस्करों के चंगुल से बचाए गए सभी लोगों के लिए एक साझा पुनर्वास नीति पर भी जोर दिया। उदाहरण के लिए देह व्यापार से बचाई गईं वयस्क महिलाओं और बच्चों को पुनर्वास के लिए संस्थागत देखभाल व्यवस्था में भेजा जाता है, लेकिन श्रम तस्करी के मामले में बचाये गये लोगों के लिए एक रिहाई प्रमाणपत्र प्राप्त करने और इसे प्रशासनिक अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रोटोकॉल है। इसके बाद श्रम तस्करी से बचाये गये लोगों को पुनर्वास संबंधी बिना किसी समर्थन के अपने समुदाय में वापस जाने की अनुमति दे दी जाती है।

वर्ष 2013 तक मानव तस्करी के अपराध को दंडित करने वाला एकमात्र कानून अनैतिक तस्करी रोकथाम अधिनियम था। मानव तस्करों के चंगुल से छुड़ाए गए एक पीड़ित की ओर से कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील कौशिक गुप्ता ने कहा कि यह कानून केवल देह व्यापार से निपटता है। कौशिक बचाये गये लोगों की तरफ से मुआवजे और पुनर्वास के मुद्दों पर पक्ष रख रहे थे।

कौशिक ने कहा, ‘‘वर्ष 2013 में भारतीय दंड संहिता की धारा 370 में संशोधन किया गया था और इसके विभिन्न रूपों में तस्करी की परिभाषा को शामिल किया गया था। लेकिन आज तक हमारे पास एक समग्र कानून नहीं है जो मानव तस्करी, इसकी रोकथाम, पुन: एकीकरण, पुनर्वास, जांच और मुआवजे से संबंधित हो।’’

गैर सरकारी संगठन ‘सेंटर डायरेक्ट’ के कार्यकारी निदेशक सुरेश कुमार कहते हैं कि मानव तस्करी से बचाये गये लोगों के लिए समयबद्ध तरीके से मदद मुहैया कराने की जरूरत है, जिसका मौजूदा कानून में प्रावधान नहीं है।

बचाई गई एक 23 वर्षीय महिला ने कहा कि बचाए गये लोगों को उनका पेशा चुनने की आजादी दी जाए, ना कि राज्य संचालित सिमित कौशल प्रशिक्षण में भाग लेने के लिए मजबूर किया जाए। महिला ने कहा कि आश्रय गृहों में केवल सिलाई या ब्यूटिशियन का काम सिखाया जाता है, लेकिन कोई प्रमाणपत्र नहीं दिया जाता।

देह व्यापार गिरोह के चंगुल से छह महीने बाद निकलने में कामयाब रही एक 26 वर्षीय महिला ने कहा कि पुलिस के अलावा अन्य माध्यम से बचाये गये लोगों को भी मुआवजा प्रदान करने की जरूरत है।

हाल ही में समाप्त हुए मॉनसून सत्र में जिस मानव तस्करी रोधी विधेयक के मसौदे को पेश किया जाना था, उसमें तस्करी के दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को कम से कम सात साल जेल का प्रावधान है, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है। दोषी पर एक लाख से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

भाषा संतोष नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

Exit mobile version