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ईद हिंसा के बाद जोधपुर में बेचैनी: ‘पवित्र हिंदू-मुस्लिम रिश्तों में आएगी खटास, जीवन भर के लिए डर’

2-3 मई को हुई हिंसा से प्रभावित इलाक़ों में अभी भी संदेह और चिंता का माहौल बना हुआ है. जोधपुर की सड़कें शांत और मोर्चाबंद हैं और बाज़ार अभी भी बंद हैं.

झड़प के बाद जोधपुर के जालोरी गेट पर पुलिसवाले । फोटोः सूरज सिंह बिष्ट । दिप्रिंट

जोधपुर: 20 वर्षीय दीपक सिंह परिहार बृहस्पतिवार को जोधपुर के एक अस्पताल के बिस्तर पर पेट के बल लेटा है और अपनी पीठ में लगे छुरे के घाव से उबर रहा है.

उसके दो दोस्त उसे कंपनी देने के लिए उसके साथ हैं और उसे पूरे शहर की ख़बरें लाकर देते हैं. दिन में किसी समय उससे मिलने आया एक रिश्तेदार उसे एक सीसीटीवी वीडियो दिखाता है जो उसे शहर की पुलिस से मिली है.

दो मिनट के वीडियो में परिहार एक भगवा रंग की शर्ट पहने है और 3 मई 2022 को ईद-उल-फित्र के दिन सुबह के समय अपने एक कज़िन की बाइक पर बैठा हुआ है. दोनों लोग एक हथियारबंद भीड़ के पास से गुज़रते दिख रहे हैं. अचानक सफेद क़मीज़ पहने हुए एक शख़्स जिसने अपने चेहरे को स्कार्फ से ढका हुआ है, बाइक के पीछे दौड़ता है और परिहार की पीठ में छुरा मार देता है.

जोधपुर के मथुरा दास माथुर हॉस्पिटल में इलाज कराते हुए दीपक परिहार । फोटोः सूरज सिंह बिष्ट । दिप्रिंट

परिहार उन तीस लोगों में है जो जोधपुर में सोमवार रात और मंगलवार दोपहर को हुई हिंसा में घायल हुए थे.

उसके चाचा विजय परिहार ने दिप्रिंट को बताया कि पीठ में छुरा लगे हुए ही उसे मथुरा दास अस्पताल ले जाया गया. चाचा ने कहा कि सौभाग्य से छुरे से उसके किसी ऑर्गन को नुक़सान नहीं पहुंचा. पुलिस ने कहा कि हमलावर की अभी तक पहचान नहीं हो पाई है.

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पुलिस रिकॉर्ड्स के अनुसार हिंसा के सिलसिले में अभी तक क़रीब 150 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है. अधिकारियों का कहना है कि स्थिति अभी नियंत्रण में है, लेकिन शहर वासियों को डर है कि इस हिंसा का शहर के सामाजिक ताने-बाने पर एक स्थायी असर पड़ेगा.

परिहार उन तीन लोगों में था जो अभी भी अस्पतालों में अपने घावों का इलाज करा रहे थे. बृहस्पतिवार को उसने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे बहुत सारे मुसलमान दोस्त हैं लेकिन मुझे डर है कि इस घटना से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच रिश्तों में हमेशा के लिए खटास आ सकती है, जो बरसों से बिना किसी झगड़े के शहर में रहते आए हैं’.

हिंसा से प्रभावित इलाक़ों में अभी भी इस तरह के संदेह और चिंता का माहौल बना हुआ है.

घटना के दो दिन बाद आम तौर से व्यस्त रहने वाली शहर की सड़कें असामान्य रूप से शांत हैं, मुख्य सड़कों पर नाकाबंदी है और बाज़ार अभी भी बंद हैं. हिंसा भड़कने के तुरंत बाद लगा दिया गया कर्फ्यू शुक्रवार तक चलेगा.


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बेचैन सन्नाटा

बृहस्पतिवार को जब पुलिस उन इलाक़ों में अपना तलाशी अभियान चला रही थी जहां अभी भी कर्फ्यू लगा हुआ था तो शहर में एक बेचैन सन्नाटा पसरा हुआ था.

ख़ासकर उन इलाक़ों में जहां कर्फ्यू लगाया गया है पुलिस के तलाशी अभियान से कुछ बेचैनी ज़रूर हो सकती है, लेकिन शहरवासियों को ज़्यादा चिंता इस बात की है कि आगे क्या हो सकता है.

राजबीर सिसोदिया ने कहा, ‘हम अपनी ज़िंदगी में कभी डरे नहीं हैं लेकिन अब ये होने लगा है’. उनका इलाक़ा जो कबूतरों का चौक कहलाता है उन क्षेत्रों में से हैं जहां पर हिंसा देखी गई. ‘सोमवार और मंगलवार को हमने जो देखा, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. अब इसके बाद से हर चीज़ को भुलाकर आगे बढ़ना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि अंदर से हमें मालूम है कि ये समरसता वास्तविक नहीं है.’

ये एक ऐसी भावना है जिसकी गूंज दोनों ओर सुनाई पड़ती है.

ईद के दिन झड़प के बाद बंद दुकानें । फोटोः सूरज सिंह बिष्ट । दिप्रिंट

हिंसा से प्रभावित एक और बस्ती सुनारों का बांस के रहने वाले वाजिद चौहान ने दिप्रिंट से कहा, ‘इस घटना से यक़ीनन हिंदू-मुस्लिम समीकरण बदल जाएंगे, और उससे न सिर्फ सामाजिक बल्कि आर्थिक मामलों में भी समस्याएं पैदा हो जाएंगी. अब एक सामूहिक बेचैनी का माहौल है. किसी को नहीं मालूम कि आने वाले दिनों में चीज़ों में क्या बदलाव आएगा.’

2011 की जनगणना के अनुसार जोधपुर की आबादी में मुसलमान 11 प्रतिशत हैं. कुछ पॉकेट्स को छोड़ दें तो हिंसा से प्रभावित ज़्यादातर इलाक़ों में हिंदू और मुसलमान दोनों के घर हैं. इसका मतलब है एक दूसरे पर आर्थिक निर्भरता. हैण्डलूम और अभूषणों से लेकर मसालों, चमड़े, और अनाज के व्यापार तक, शहर की संकरी गलियों में हिंदू और मुसलमान दोनों के व्यवसाय हैं. निवासियों का कहना है कि इसकी वजह से व्यावसियों के ग्राहक और कर्मचारी हिंदू और मुसलमान दोनों हैं.

हालांकि हिंसा का ये स्तर पहले कभी नहीं देखा गया, लेकिन कुछ निवासियों का कहना है कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बढ़ते तनावों को देखते हुए, इस हिंसा पर उन्हें ज़्यादा हैरानी नहीं है.

जालोरी गेट इलाक़े के एक 25 वर्षीय मुसलमान इंजीनियर ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता था, बताया कि किस तरह जालोरी गेट गोलचक्कर- जो ईद हिंसा का केंद्र था- कुछ समय से ‘हिंदू चौक’ कहा जाने लगा था, जिस शब्द को उसके अनुसार कुछ हिंदू समूहों ने लोकप्रिय बना दिया था.

जैसा कि दिप्रिंट ने पहले ख़बर दी थी इस चौक को हमेशा सेक्युलर समझा जाता था, जहां दोनों समुदाय अपने अपने त्योहारों पर सजावट करते थे. ये स्वतंत्रता सेनानी बालमुकुंद बिस्सा की प्रतिमा लगे हुए गोलचक्कर पर सजावट ही थी, जिस पर शुरू हुए झगड़े ने अंत में हिंसा का रूप ले लिया.

जोधपुर हिंसा ने अप्रैल में हुए हिंदू-मुस्लिम टकरावों के सिलसिले में इज़ाफा कर दिया- जो मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गोवा, उत्तराखंड और महाराष्ट्र में देखे गए. हालिया हिंसा से बमुश्किल एक महीना पहले ही राजस्थान के करौली में एक बाइक रैली पर हुए हिंदू-मुस्लिम झगड़ों में कम से कम 35 लोग घायल हुए थे.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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