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दिल्ली-NCR का दो डेवलपमेंट प्लान 2 साल से अटका हुआ है. यहां जानिए कि इसे होल्ड पर क्यों रखा गया है

रीजनल प्लान-2041 का ड्राफ्ट एनसीआर के विकास के लिए एक विज़न दस्तावेज़ है. जबकि दिल्ली के विकास के लिए मास्टर प्लान-2041 सिर्फ राजधानी के नियोजित विकास के लिए है.

कनॉट प्लेस की तस्वीर | फाइल फोटो: ANI

नई दिल्ली: दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के लिए दो महत्वपूर्ण डेवलपमेंट प्लान- दिल्ली के लिए मास्टर प्लान-2041 (MPD-2041) और रीजनल प्लान-2041 (RP-2041)- लगभग दो साल से लटकी हुई है.

दिप्रिंट को पता चला है कि केंद्रीय आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय (एमओएचयूए) विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों और स्टेकहोल्डर्स द्वारा कई आपत्तियां उठाए जाने के बाद दोनों प्लान के कुछ प्रावधानों, खासकर पर्यावरण और भूमि प्रबंधन से संबंधित प्रावधानों की समीक्षा कर रहा है.

MoHUA के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, दोनों योजनाएं अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं और अगले दो-तीन महीनों में इसके लिए नोटिस जारी किया जाएगा.

ड्राफ्ट RP-2041- जो NCR में सतत विकास के लिए एक विजन डॉक्यूमेंट है- 2021 के अंत में एनसीआर योजना बोर्ड (एनसीआरपीबी) द्वारा सार्वजनिक जांच के लिए रखा गया था.

MPD-2041, जो दिल्ली के नियोजित विकास के लिए है और जिसमें राष्ट्रीय राजधानी को 24 घंटे का शहर बनाने का प्रस्ताव है, को जून 2020 में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा सार्वजनिक डोमेन में रखा गया था.

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मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “जनता और स्टेकहोल्डर्स से मिले फीडबैक के आधार पर, योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है और इसके लिए आवश्यक बदलाव किए जा रहे हैं.”

रीजनल प्लान-2041, रीजनल प्लान-2021 का जगह लेगी, जो 2005 में लागू हुई थी.

55,083 वर्ग किलोमीटर में फैले एनसीआर में अभी दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के 24 जिले शामिल हैं. RP-2041 के मुताबिक एनसीआर का क्षेत्रफल पंजाब, उत्तराखंड, केरल और सिक्किम समेत कई राज्यों से बड़ा है.

अन्य बातों के अलावा, योजना में एनसीआर के क्षेत्र को फिर से परिभाषित करने और इसे दिल्ली में राजघाट के आसपास 100 किमी के दायरे तक सीमित करने का प्रस्ताव दिया गया है.

लेकिन ड्राफ्ट में प्रस्तावित पर्यावरण संबंधी बदलाव विवादों में आ गए हैं, क्योंकि पर्यावरणविदों का कहना है कि इसके परिणामस्वरूप अरावली में निर्माण कार्य शुरू हो सकता है, जो RP-2021 के तहत संरक्षित हैं.

पर्यावरणविदों का कहना है कि ड्राफ्ट RP-2041 में अरावली, नदियों, अन्य जल निकायों आदि की रक्षा के लिए बनाए गए प्रमुख नियमों को हटा दिया गया है.

RP-2041 की तरह, MPD-2041 में भी देरी हो गई है क्योंकि मंत्रालय और डीडीए लैंड पूलिंग और हरित विकास क्षेत्र जैसी महत्वपूर्ण नीतियों से संबंधित प्रावधानों पर फिर से काम कर रहे हैं. ये दोनों ग्रीनफील्ड क्षेत्रों में विकास से संबंधित हैं और जोन में विकास को विनियमित कर रहे हैं.

यह पूछे जाने पर कि दोनों योजनाओं के लिए कब नोटिस जारी किया जाएगा, मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “एनसीआरपीबी योजना को लगभग अंतिम रूप दे दिया गया है और इसे एनसीआरपीबी की अगली बोर्ड बैठक में पेश किया जाएगा, जो अगले दो महीनों के भीतर होगी. जहां तक ​​MPD-2041 का सवाल है, इसके त्वरित कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए लैंड-पूलिंग नीति से संबंधित आवश्यक बदलाव किए जा रहे हैं. योजनाओं को लेकर जल्द ही नोटिस जारी किया जाएगा.”

दिप्रिंट ने व्हाट्सएप द्वारा इसपर टिप्पणी के लिए एनसीआरपीबी, डीडीए और एमओएचयूए के प्रवक्ताओं से संपर्क किया, लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

‘कुछ MPD-2041 प्रावधानों पर फिर से काम किया जा रहा है’

MPD-2041 अगले दो दशकों के लिए राष्ट्रीय राजधानी के विकास का एक रोड मैप है.

डीडीए के वरिष्ठ अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि MPD-2041 को अभी भी मंजूरी का इंतजार है क्योंकि कई तथ्यों पर दोबारा से विचार किया जा रहा है.

पिछले साल लैंड-पूलिंग नीति जैसे मुख्य कारण के चलते MPD-2041 को बीच में ही रोक दिया गया था. सूत्रों ने कहा कि नीति के प्रावधानों को जमीन पर उनके प्रभावी कार्यान्वयन के बारे में संदेह पर बदलाव की आवश्यकता देखी गई.

डीडीए के सूत्रों ने कहा कि लैंड-पूलिंग के संबंध में एक आम सहमति बन गई है.

जुलाई में, उत्तरी और मध्य दिल्ली में बड़े पैमाने पर बाढ़ आई, जिससे यमुना का जल स्तर 207.49 मीटर तक पहुंच गया जो पिछले कई सालों में सर्वाधिक है.

भारी बारिश के साथ-साथ हथनीकुंड बैराज से छोड़े गए पानी के चलते और शहर के आईटीओ क्षेत्र में स्थित एक महत्वपूर्ण बैराज पर अतिक्रमण और गेट जाम होने के कारण यमुना का जल स्तर रिकॉर्ड 208.66 मीटर तक पहुंच गया था, जो खतरे के निशान 205.33 मीटर से काफी ऊपर है.

केंद्र सरकार ने बाद में निर्देश दिया कि ज़ोन ‘ओ’ को फिर से परिभाषित करने से संबंधित प्रावधानों- विनियमित विकास की अनुमति देने के लिए, खासकर पिछले चार दशकों में बनी 76 अनधिकृत कॉलोनियों में- की समीक्षा की जाए.

MPD-2041 के ड्राफ्ट में डीडीए ने जोन ‘ओ’ के 9933.36 हेक्टेयर क्षेत्र को दो भागों में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया था, जिसमें नदी क्षेत्र (सक्रिय बाढ़ क्षेत्र) और नदी तट (विनियमित) शामिल है. नदी क्षेत्र 6,295 हेक्टेयर और विनियमित नदी तट 3,638 हेक्टेयर में फैलाया जाना था.

डीडीए सूत्रों ने कहा कि MPD-2041 के इन-सीटू स्लम पुनर्वास (ISR) घटक में प्रावधानों की समीक्षा भी चल रही है.

डीडीए के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, “दिल्ली में, आईएसआर वास्तव में शुरू नहीं हुआ है और केंद्र का मानना ​​है कि आईएसआर पहलू के लिए MPD-2041 में प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए अधिक चीजों की जरूरत है.”


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उन्होंने कहा, “डीडीए को ‘मुंबई मॉडल’ को देखने के लिए कहा गया है, क्योंकि झुग्गी पुनर्वास ने वहां काम किया है, और इस विषय पर एक प्रस्तुति संभवतः प्रधानमंत्री कार्यालय को दी जाएगी.”

सूत्र ने कहा कि पिछले साल के दौरान, डीडीए आईएसआर परियोजनाओं के लिए जारी की गई बोलियों को लेकर संघर्ष कर रहा है, क्योंकि बिल्डर अधिक वित्तीय व्यवहार्यता की मांग कर रहे हैं.

डीडीए के पूर्व आयुक्त (योजना) ए.के. जैन ने दिप्रिंट को बताया कि MPD-2041 का बार-बार आना काफी हद तक “बहुत कमजोर योजना” होने के कारण है.

उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी खामी यह थी कि योजना का डिजिटलीकरण नहीं किया गया था. खासकर सुरक्षा मामले में. उदाहरण के लिए, जब कोई ऐसी घटना होती है जहां किसी इमारत में आग लग जाती है, तो संबंधित शहरी स्थानीय निकाय इमारत के इतिहास पर बुनियादी डेटा तक पहुंचने के लिए संघर्ष करता है और तो क्या इसमें इसको लेकर आवश्यक प्रावधान थे.

जैन ने कहा कि डीडीए की लैंड-पूलिंग नीति 2013 में पहली बार नोटिस जारी होने के बाद से काम नहीं कर रही है, लेकिन एजेंसी इस योजना के तहत आवेदन आमंत्रित करना जारी रखती है, जिसे उन्होंने “आश्चर्यजनक” कहा.

जैन ने कहा, “मास्टर प्लान को अधिक समावेशी होना होगा, और अगले दो दशकों के लिए योजना बनाने की इस अवधारणा को ख़त्म करना होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि इससे जवाबदेही खत्म हो जाती है. इसके बजाय, योजनाओं को पांच साल की अवधि के लिए तैयार किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, उपराज्यपाल और संबंधित सरकार के कार्यकाल के साथ मेल खाएगा और स्वाभाविक रूप से उन्हें जवाबदेही लेनी होगी.”

एनसीआर के विकास के लिए ‘रीजनल प्लान’ महत्वपूर्ण

रीजनल प्लान-2041 का ड्राफ्ट, जिसे अक्टूबर 2021 में एनसीआरपीबी द्वारा मंज़ूरी दी गई थी, ने एनसीआर के भीतर सुपर-फास्ट ट्रेनों के माध्यम से “30 मिनट की कनेक्टिविटी” की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए, अधिक कॉम्पैक्ट विकास के लिए एनसीआर क्षेत्र के परिसीमन का प्रस्ताव दिया.

इसमें प्राकृतिक क्षेत्रों के संरक्षण से संबंधित प्रावधानों में प्रमुख संशोधन का भी प्रस्ताव है.

पर्यावरण संबंधी इन संशोधनों के कारण ही यह योजना लगभग दो सालों से लटकी हुई है. जबकि NCRPB को जनवरी 2022 तक सभी सुझाव/आपत्तियां प्राप्त हो गई थीं, लेकिन ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.

एनसीआरपीबी के एक अधिकारी के अनुसार, “प्राप्त सुझावों/आपत्तियों के आधार पर संशोधनों के बाद, ड्राफ्ट को पहले एनसीआरपीबी की बैठक में मंजूरी दिया जाना चाहिए, जिसमें सभी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के अधिकारियों के सदस्य शामिल हैं, इससे पहले कि इसे भेजा जाए.”

वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, एनसीआरपीबी ने अक्टूबर 2021 से कोई बोर्ड बैठक नहीं की है. हालांकि,  रीजनल प्लान पर चर्चा के लिए पिछले साल 5 जुलाई को एक बैठक बुलाई गई थी, लेकिन इसे रद्द कर दिया गया था.

MoHUA के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, योजना के नोटिस को लेकर बड़ी बाधा यह है कि मुख्य मुद्दा ‘प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र’ में संशोधन से संबंधित प्रावधान हैं, जिसका रीजनल प्लान-2021 में उल्लिखित है.

RP-2021 के तहत क्षेत्र को इस प्रकार सीमांकित किया गया है, “पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में पहचानी जाने वाली प्रमुख प्राकृतिक विशेषताएं, राजस्थान, हरियाणा और एनसीटी-दिल्ली में अरावली रिज का विस्तार, वन क्षेत्र, यमुना, गंगा, काली, हिंडन और साहिबी नदियां, अभयारण्य, प्रमुख झीलें और जल निकाय जैसे कि हरियाणा उप-क्षेत्र में बड़खल झील, सूरज कुंड, दमदमा और राजस्थान में सिलीसेढ़ झील आदि शामिल हैं.

ड्राफ्ट RP-2041 ‘प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र’ को ‘प्राकृतिक क्षेत्र’ से बदलने का प्रयास करता है और इसे इस प्रकार परिभाषित किया गया है: “एनसीआर में प्रमुख प्राकृतिक विशेषताएं जो पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील हैं, उन्हें प्राकृतिक क्षेत्र (एनजेड) के रूप में पहचाना जाना है. प्राकृतिक क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें प्रकृति की क्रिया द्वारा निर्मित पहाड़ और पहाड़ियां, नदियां और जल निकाय जैसी कोई भी प्राकृतिक विशेषताएं शामिल होती हैं. ड्राफ्ट में अरावली में निर्माण गतिविधि पर प्रतिबंध को भी हटा दिया है.”

पर्यावरण के लिए काम करने वाले लोग और संस्था अरावली को प्राकृतिक क्षेत्र से हटाने और इस प्रकार इसके भीतर निर्माण का विरोध कर रहे हैं.

गुरुग्राम स्थित पर्यावरणविद् चेतन अग्रवाल ने कहा, “रीजनल प्लान-2041 के ड्राफ्ट में योजना में ‘प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र’ को बदलकर ‘प्राकृतिक क्षेत्र’ कर दिया गया है. अरावली का कोई उल्लेख नहीं है और प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र में निर्माण को 0.5 प्रतिशत तक सीमित करने वाले प्रावधान को हटा दिया गया है.”

उन्होंने कहा, “अगर इस योजना के लिए नोटिस जारी किया गया तो इसके परिणामस्वरूप अरावली में बड़े पैमाने पर निर्माण होगा. इस क्षेत्र को संरक्षित किया जाना चाहिए. हम चाहते हैं कि सरकार RP-2021 में उल्लिखित प्रावधान को बहाल करे.”

जबकि रीजनल प्लान को लेकर अभी तो कोई भी नोटिस जारी नहीं हुई है, एनसीआरपीबी ने पर्यटन, विरासत, स्वास्थ्य, शिक्षा और डिजिटल एनसीआर क्षेत्रों जैसे विभिन्न पहलुओं के लिए कार्यात्मक योजनाएं तैयार करने के लिए बोलियां आमंत्रित करना शुरू कर दिया है.

कार्यात्मक योजनाओं की तैयारी के लिए जारी किए गए दस्तावेज़ के अनुसार, जो एनसीआरपीबी की वेबसाइट पर उपलब्ध है, “यह उम्मीद की जाती है कि कार्यात्मक योजनाएं रणनीति, दृष्टिकोण, मार्गदर्शक सिद्धांत, लागत अनुमान के साथ पहचानी गई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की सूची,  विवरण की समग्र नीतियों और प्रस्तावों के अनुरूप होगी.”

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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