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जातिगत गणना: बिहार सरकार ने विवाद के बाद बदला फैसला, ट्रांसजेंडर्स दर्ज करा सकेंगे अपनी जाति

बिहार सरकार ने सर्वे में 214 जातियों को शामिल किया था और हर जाति को एक अलग कोड दिया गया है.

बिहार में गणनाकारों द्वारा जातिगत जनगणना के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला 17-कॉलम का फॉर्म | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
बिहार में गणनाकारों द्वारा जातिगत जनगणना के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला 17-कॉलम का फॉर्म | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

नई दिल्ली: बिहार सरकार ने एक आदेश जारी कर अधिकारियों/गणनाकारों को निर्देश दिया है कि वे राज्य में चल रही जातिगत जनगणना में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को अपनी जाति चुनने का अधिकार दें.

यह आदेश “ट्रांसजेंडर” को जनगणना प्रश्नावली में एक जाति के रूप में वर्गीकृत किए जाने के विवाद के बाद आया है. ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट रेशमा प्रसाद ने इस संबंध में पटना हाई कोर्ट में एक हफ्ते पहले जनहित याचिका (पीआईएल) भी दायर की थी.

सर्वेक्षण में जातियों को 214 विभिन्न समूहों में वर्गीकृत किया गया है, जिन्हें जाति के आधार पर कोड दिया गया है. जनगणना में राज्य सरकार ने पहले “किन्नर/कोथी/हिजड़ा/ट्रांसजेंडर” को एक जाति कोड – ‘22’ दिया गया था.

सरकार ने जनगणना में प्रश्न संख्या 5 और 8 के संबंध में नए दिशानिर्देश जारी किए हैं, जो क्रमशः लिंग और जाति की पहचान करने से संबंधित हैं. इस संबंध में आदेश 25 अप्रैल 2023 को जारी किया गया था.

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आदेश में कहा गया है, “प्रश्न संख्या-5 के क्रम में यदि किसी व्यक्ति द्वारा विकल्प संख्या-03 अंकित कराया जाता है तो वे प्रश्न संख्या-8 जाति कॉलम के अंतर्गत वे जाति सूची के अधीन या अन्य में प्रावधानानुसार जिस जाति के हो उसका विकल्प उनके अनुसार अंकित किया जा सकेगा.”

जाति आधारित गणना के लिए नोडल बॉडी सामान्य प्रशासन विभाग के उप-सचिव रजनीश कुमार ने इस सरकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर इसे सभी जिलों के जिलाधिकारियों को इसे लागू करने को कहा है.

सरकारी आदेश में कहा गया है कि प्रश्न 5 के तहत अगर कोई खुद को ‘अन्य’ चुनता है, तो उसे प्रश्न संख्या 8 के तहत अपनी जाति चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए.

बिहार में जातिगत जनगणना का पहला चरण इस साल जनवरी से शुरू हुआ था, जबकि इसका दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू हुआ है.


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‘एक अच्छी पहल’

32-वर्षीय ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट प्रसाद ने जनगणना में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को “जाति” के रूप में वर्गीकृत किए जाने पर आपत्ति जताते हुए इसे संविधान के तहत दिए गए उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया था और इस संबंध में 18 अप्रैल को पटना हाई कोर्ट में एक पीआईएल दायर की थी.

सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए प्रसाद ने दिप्रिंट से कहा,“सरकार ने सुधार कर अच्छा काम किया है. मेरा मानना है कि पीआईएल के बाद सरकार ने अपना फैसला बदल दिया, लेकिन हमने जनहित याचिका में दो मांगें रखी थीं, जिनमें से अब तक केवल एक ही पूरी हुई है.”

उन्होंने कहा, “पीआईएल में हमने ट्रांसजेंडर समुदाय को अलग आरक्षण देने की भी मांग की है लेकिन इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है.”

रेशमा प्रसाद केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए बने वैधानिक निकाय राष्ट्रीय परिषद की सदस्य भी हैं.

प्रसाद ने कहा कि वे लंबे समय से ट्रांसजेंडर्स के लिए अलग आरक्षण की मांग कर रहे थे. उन्होंने कहा, “हमें ओबीसी के तहत क्यों गिना जा रहा है? हमें अलग से आरक्षण दिया जाना चाहिए.”

बता दें कि अभी तक पटना हाई कोर्ट ने इस पर अभी तक सुनवाई नहीं की है.

प्रसाद के वकील विवेक राज ने दिप्रिंट को बताया, “इस मसले पर प्रशासनिक आदेश जारी हुआ है. अभी तक हाई कोर्ट ने कोई निर्देश नहीं दिया है.”

बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक बिहार में ट्रांसजेंडर्स की आबादी लगभग 40 हज़ार थी.

अदालत के समक्ष दायर रेशमा की याचिका में कहा गया है, “ट्रांसजेंडरों को एक जाति के रूप में वर्गीकृत करना असंवैधानिक और मनमाना है क्योंकि यह अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 (1) (ए) और 21 के साथ-साथ राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य (2014) 5 एससीसी 438 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तहत असंवैधानिक है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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