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लॉकडाउन में पलायन करने वाले मजदूरों की मदद से बिहार के पश्चिमी चंपारण में कैसे शुरू हुआ ‘स्टार्ट अप जोन’

पश्चिमी चंपारण में जिला प्रशासन ने एक स्टार्ट-अप जोन स्थापित किया है जिसे वो प्रवासी मजदूर चला रहे हैं जो पिछले साल कोविड लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हो गए थे.

पश्चिमी चंपारण के स्टार्ट अप जोन में मशीन की जांच करता एक कर्मचारी, राजीव कुमार | साजिद अली | दिप्रिंट

चनपटिया: 38 वर्षीय संतोष मिश्रा को अब भी यह विश्वास नहीं हो पा रहा है कि उनके पास अपने गृह जिले में नौकरी है और वह काम करने के साथ-साथ अपने परिवार के साथ भी रह पा रहे हैं.

बिहार के पश्चिमी चंपारण में नौकरियों के अभाव में वह पिछले 18 सालों से लुधियाना (पंजाब) में काम करते रहे हैं. वह अब चनपटिया ब्लॉक में जिला प्रशासन द्वारा स्थापित ‘स्टार्ट-अप जोन ’ में ट्रैक सूट बनाने वाली एक इकाई में लाइन मास्टर के रूप में काम करते हैं.

स्टार्ट-अप जोन पिछले साल शहरों से प्रवासियों के पलायन के जवाब में जिला प्रशासन की पहल का हिस्सा है, जिसने हजारों बेरोजगार लोगों को बिहार के दूरवर्ती इलाकों तक उनके घरों के पास काम दिलाया है. इसके पीछे विचार यह था कि पलायन करने वाले इन श्रमिकों के कौशल का इस्तेमाल करके उन्हें उनके घर के करीब ही रोजगार मुहैया कराया जाए.

यह सब जिला प्रशासन की तरफ से क्वारेंटाइन सेंटर में रह रहे प्रवासी श्रमिकों के कौशल के बारे में लेखा-जोखा तैयार करने का आदेश दिए जाने के साथ शुरू हुआ, जहां शहरों से लौटने वाले तमाम प्रवासी श्रमिकों को रखा जाता था. इस मैपिंग से पता चला कि ये प्रवासी कई तरह की प्रतिभाओं के धनी है और अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने में कुशल हैं.

मौजूदा समय की बात करें तो स्टार्ट-अप जोन में 27 यूनिट हैं, जिन्हें विभिन्न उद्यमियों की तरफ से स्थापित किया गया है. इस काम में उन्हें जिला प्रशासन की तरफ से कर्ज और मशीनरी उपलब्ध कराने में मदद मुहैया कराई गई है.

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राज्य खाद्य निगम के खाली पड़े गोदामों से स्थापित की गईं ये यूनिट शर्ट, लोअर, सैनिटरी पैड और जैकेट से लेकर क्रॉकरी और क्रिकेट बैट तक कई तरह के सामान बनाती हैं. पिछले एक साल में 7 करोड़ रुपये की वस्तुओं की बिक्री हुई है, यहां तक कि निर्यात भी किया गया है.

मिश्रा लिसो नाम के एक क्लोदिंग ब्रांड के साथ काम करते हैं, जिसके मालिक बेतिया निवासी 29 वर्षीय मृत्युंजय शर्मा हैं.

29 वर्षीय मृत्युजय शर्मा ने इस स्टार्ट अप की शुरुआत की है | साजिद अली | दिप्रिंट

शर्मा ने कोरोनावायरस की पहली लहर के दौरान दूरसंचार क्षेत्र में एक इंजीनियर के तौर पर दिल्ली में अपनी नौकरी गंवा दी थी. अपना ब्रांड स्थापित करने में उन्हें 35 लाख रुपये से अधिक खर्च करने पड़े, जिसके उत्पाद अब दिल्ली, मुजफ्फरपुर, सिवान और पश्चिमी चंपारण के पड़ोसी जिलों में जाते हैं.


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आपदा में अवसर

जिला प्रशासन के अनुमानों के मुताबिक, केंद्र सरकार की तरफ से मार्च 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा किए जाने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से 1.20 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक लौटकर पश्चिमी चंपारण आए थे.

लौटकर आने वाले मजदूरों के कारण उनके गृह नगर में कोविड न फैले इसके मद्देनजर जिला प्रशासन ने उन्हें कुछ समय आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था के तहत 418 क्वारेंटाइन सेंटर स्थापित किए थे. करीब 80,000 श्रमिकों को इन केंद्रों में रखा गया था जबकि अन्य को उनके घरों पर आइसोलेट किया गया था.

डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रेशन एंड काउंसलिंग सेंटर के मैनेजर शैलेश कुमार पांडे ने दिप्रिंट को बताया, ‘क्वारेंटाइन के बाद हमने उन्हें कुछ काम दिलाने के बारे में सोचा. इसलिए, हमने सभी केंद्रों में स्किल-मैपिंग कराने का फैसला किया. हमारे अधिकांश श्रमिक सूरत, लुधियाना, दिल्ली, मुंबई और देश के अन्य हिस्सों में कपड़े के कारोबार से जुड़े रहे हैं.’

अप्रैल 2020 में की गई स्किल मैपिंग खासी सफल रही क्योंकि प्रशासन को बहुत सारे कुशल श्रमिकों के बारे में जानकारी मिली जो कारोबार की बारीकियों को बहुत अच्छी तरह समझते थे.

जिला मजिस्ट्रेट कुंदन कुमार ने कहा, ‘हमने पाया कि लौटने वाले ज्यादातर मजदूर अपने-अपने काम में माहिर हैं. वे प्रोडक्शन चेन के बारे में हर तरह की जानकारी रखते हैं. वे कम्प्यूटराइज्ड कढ़ाई और लेजर तकनीक तक जानते है.’

स्किल-मैपिंग की कवायद के बाद प्रशासन ने स्थानीय स्तर पर स्टार्ट-अप स्थापित करने के लिए इन मजदूरों की मदद ली.

कुमार ने कहा, ‘चनपटिया ब्लॉक में राज्य खाद्य निगमों के बड़े-बड़े गोदाम बिना इस्तेमाल के पड़े थे, इसलिए हमने उनसे संपर्क किया और उन्होंने हमें उनका इस्तेमाल करने दिया.’

प्रशासन ने शुरुआत में न केवल उद्यमियों को मशीनरी और कच्चा माल खरीदने में मदद की, बल्कि विभिन्न बैंकों से कर्ज भी दिलाया.

बंद पड़ी फूड कार्पोरेशन की जगह जहां स्टार्ट अप की शुरुआत की गई है | साजिद अली | दिप्रिंट

कुमार ने कहा, ‘मुझे लगता है कि पश्चिमी चंपारण को प्रोडक्शन हब बनाने का हमारा सपना साकार हो रहा है क्योंकि सभी उद्यमी बहुत मेहनत कर रहे हैं.’

जिला प्रशासन के मुताबिक, लगभग सभी इकाइयों के मालिकों को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए 25 लाख से 50 लाख रुपये के बीच कर्ज मिला है.

आधिकारिक तौर पर अगस्त 2020 में पहली यूनिट लासानी गारमेंट्स शुरू हुई थी. इसे शोएब ताहिर ने शुरू किया था, जो लुधियाना में काम करते थे. हालांकि, जिला प्रशासन इसकी पहली सालगिरह 27 जून को मनाएगा, जिस दिन योजना को जमीनी स्तर पर उतारने के लिए पहली बैठक हुई थी.


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स्टार्ट-अप क्षेत्र का भविष्य

स्टार्ट-अप जोन की यूनिट अपने उत्पादों को स्पेन निर्यात कर चुकी है और उन्हें और अधिक देशों में भेजने की दिशा में काम जारी है.

सूरत में काम कर चुके अरुण कुमार कहते हैं, ‘मेरा इरादा सिर्फ खुद को स्थापित करने का नहीं है. बल्कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को मौका देने का है, ताकि हम पश्चिमी चंपारण को अगला सूरत या लुधियाना बना सकें.’

वकील अहमद, जोन में बनी जैकेट को दिखाते हुए | साजिद अली | दिप्रिंट

एडीआर शर्ट्स के मालिक नवनीत ने बताया, ‘अपने ब्रांड को लेकर बिहार, यूपी और दिल्ली के खुदरा विक्रेताओं के साथ नियमित संपर्क में हूं. मेरी योजना 2024 तक 25 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न करने की है.’

पश्चिमी चंपारण में इस पहल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तरफ से काफी सराहा भी गया है, जिन्होंने पिछले साल दिसंबर में इस क्षेत्र का दौरा किया था.

बताया जाता है कि नीतीश कुमार ने बिहार में अन्य जिला अधिकारियों को भी इसी तरह की पहल करने के निर्देश दिए हैं ताकि राज्य के कार्यबल को अन्य स्थानों पर पलायन न करना पड़े.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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