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नहीं रहे बनारस के पिकासो, आर्थिक तंगी और बीमारी ने ले ली जान

मूर्तिकार डा.चालम वर्ष 2000 से महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (विश्वविद्यालय) में गेस्ट लेक्चरर के रूप में कार्यरत थे.

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डा विजय चालम द्वारा बनायीं गयी मूर्ति। फोटो : रिज़वाना तबस्सुम

बनारस के ‘पिकासो’ कहे जाने वाले मूर्तिकार डा.विजय चालम बुधवार को इस दुनिया से चल बसे. अपनी ज़िंदगी के अंतिम दिनों में विजय चालम बीएचयू के ट्रामा सेंटर के एक बिस्तर पर बेसुध पड़े रहे. घोर अभाव, आर्थिक तंगी और बीमारी ने ना सिर्फ इनकी जान ले ली बल्कि इनके परिवार को बुरी तरह से तोड़कर रख दिया है. विजय चालम पिछले कई दिनों से ट्रामा सेंटर के न्यूरो सर्जरी विभाग के बेड नंबर 11 पर भर्ती थे. कुछ दिन पहले इनके ब्रेन की सर्जरी हुई थी. मूर्तिकार विजय चालम अपने पीछे पत्नी राजेश्वरी और दो बेटे लक्ष्य और श्रेय को छोड़ गए हैं.

पिछले 20 सालों से महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से जुड़े थे

मूर्तिकार डा.चालम वर्ष 2000 से महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (विश्वविद्यालय) में गेस्ट लेक्चरर के रूप में कार्यरत थे. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन्हें मई महीने में बतौर परीक्षक अपने एनटीपीसी कैंपस स्थित ललित कला विभाग में भेजा था. लौटते समय अहरौरा (जगह का नाम) के पास बस एक्सिडेंट में जख्मी हो गए. दुर्घटना में सिर पर चोटी लगी और वो बेहोश हो गए. आर्थिक तंगी के चलते उन्होंने अपना इलाज तक नहीं कराया और मरहम-पट्टी से ही अपना काम चला लिया. दो महीने पहले उन्हें चलने-फिरने में तकलीफ़ हुई. फिर बिस्तर पर ऐसे गिरे कि उठ ही नहीं पाए.

चंदा इकट्ठा करके किया गया इलाज

दुर्घटना के बाद विश्वविद्यालय से उनकी सेवाएं खत्म कर दी गई, बताया जाता है इसका विजय चालम की सेहत पर काफी असर पड़ा और वो गंभीर रूप से बीमार हो गए. विश्वविद्यालय के एक पूर्व अध्यापक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पहले तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने चालम की मदद करने से यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि वो स्थायी सेवा में नहीं थे. लेकिन, जब सोशल मीडिया पर अभियान चलाया गया तो अध्यापक संघ और कुलपति ने मदद भेजी. इतना ही नहीं पूर्व अध्यापक बताते हैं कि अलग-अलग लोगों की मदद से लगभग दो लाख रुपए इकट्ठा हुए, जिससे विजय चालम का इलाज हुआ. हालांकि, वो बच नहीं पाये.

शारीरिक रूप से कमजोर बच्चे नहीं उठा सके पिता की अर्थी

विजय चालम अपने पीछे 20 और 22 साल के दो बच्चों के अलावा एक पत्नी को छोड़ गए हैं. विजय चालम के घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब है. बच्चे शारीरक रूप से इतने कमजोर हैं कि पिता की अर्थी भी नहीं उठा सके. मूर्तिकार के पढ़ाये हुए बच्चे पार्थिव शरीर को उनके घर से हरिश्चंद्र घाट (शमशान स्थान) तक ले गए. अंतिम क्रिया क्रम के दौरान विजय चालम के पढ़ाये हुए कुछ बच्चे, विश्वविद्यालय के कुलपति, चीफ प्रोक्टर के अलावा करीबी और परिवार वाले मौजूद रहे.

डा चालम अस्पताल में अपनी पत्नी के साथ । रिज़वाना तबस्सुम

पांच किलोमीटर पैदल चलकर जाते थे विश्वविद्यालय

विजय चालम की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, वो अपने घर से विश्वविद्यालय पैदल चलकर जाते थे. जिसकी दूरी पांच किलोमीटर से भी ज्यादा है. आपको बता दें कि विजय चालम का निवास स्थान खोजवां (वाराणसी) है और विश्वविद्यालय सिगरा रोड पर हैं.

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बीएचयू से की थी पढ़ाई

प्रतिभाशाली मूर्तिकार चालम बीएचयू के ललित कला विभाग से एमएफए थे. नेट क्वालीफाई करने के बाद ललित कला विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष और जाने-माने शिल्पी बलबीर सिंह कट्ट के साथ काम कर रहे थे. कट्ट के अचानक गायब हो जाने के बाद उन्होंने विद्यापीठ का रूख किया और इस साल दुर्घटना के बाद भी विश्वविद्यालय को अपनी सेवाएं देते रहे.

इसलिए हमेशा आर्थिक रूप से रहे कमजोर

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार और जनसंदेश टाइम्स के एडिटर विजय विनीत बताते हैं कि विजय चालम हमेशा से आर्थिक रूप से कमजोर रहे. इनके रहस्य बने रहने की एक वजह यह भी रही कि उन्हें अपनी इन कृतियों से बेहद प्यार था, जिन्हें वे बेचने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं रहते थे. वो लंबे समय तक अपनी शिल्पकृतियों को जनता के सामने लाने के लिए राजी नहीं थे, इसलिए उनके इस काम का समग्र रूप से दस्तावेजीकरण भी नहीं हो सका.

दुनियाभर में फैली हैं विजय चालम की कृतियां

डा.विजय चालम के बहुत करीबी और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व प्रोफेसर रुद्रानंद तिवारी बताते हैं कि चालम ऐसे मूर्तिकार हैं. जिनकी कृतियां श्रीलंका, नेपाल समेत दुनियाभर के कला प्रेमियों की गैलरियों की शोभा बढ़ा रही हैं रुद्रानंद तिवारी कहते हैं कि इनकी कलाकृतियों पर बनारस भले ही नहीं रीझी, लेकिन दुनिया की मशहूर बिजनेसमैन की पत्नी नीता अंबानी इनकी मूर्तियों की दीवानी रही हैं। विजय चालम अपने गुरु बलवीर सिंह कट्ट के साथ डा.विजय चालम ने अंबानी के घर एंटीलिया में कई महीने तक अनूठी और अद्भुत कृतियां गढ़ी हैं।

(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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