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सरोगेट मां का नहीं, बल्कि सरोगेट बच्चे का होना चाहिए माता पिता से जेनेटिक संबंध: मोदी सरकार

पिछले साल दायर जनहित याचिका के जवाब में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए एक लिखित बयान में, सरोगेसी अधिनियम के प्रावधानों के तहत सरोगेट मां कौन हो सकती है, इसकी परिभाषा में 'अस्पष्टता' को स्पष्ट किया.

चित्रण : अरिंदम मुख़र्जी | दिप्रिंट

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि एक सरोगेट मां को सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करने की चाहत रखने वाले जोड़े या एक अकेली महिला से आनुवंशिक रूप से संबंधित होने की आवश्यकता नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सौंपे गए एक लिखित बयान में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सरोगेसी अधिनियम की धारा 2(1) (जेडजी) की व्याख्या पर गलफहमी को दूर कर दिया, जिसमें कहा गया है कि बच्चे या सरोगेट मां को नहीं बल्कि उस दंपतिसरोगेट मां का नहीं, बल्कि सरोगेट बच्चे का होना चाहिए माता पिता से जेनेटिक संबंध: मोदी सरकार
या महिला को आनुवंशिक रूप से होना चाहिए, जो सरोगेट बच्चा पैदा करना चाहती थी.

कानून एक अकेले आदमी को सरोगेट बच्चा पैदा करने से रोकता है.

मंत्रालय की दलील पिछले साल दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में आई थी, जिसमें कानून के कई अन्य प्रावधानों के अलावा व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध को चुनौती दी गई थी.

जनहित याचिका में उठाए गए तर्कों में से एक सरोगेसी अधिनियम की धारा 2(1) (जेडजी) के तहत ‘सरोगेट मदर’ की परिभाषा में अस्पष्टता के संबंध में था.

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धारा 2(1) (जेडजी) में कहा गया है: सरोगेट मां’ का अर्थ है एक महिला जो अपने गर्भ में भ्रूण की मदद से सरोगेसी के माध्यम से एक बच्चे को जन्म देने के लिए सहमत है (जो आनुवंशिक रूप से इच्छुक जोड़े या इच्छुक महिला से संबंधित है) और शर्तों को पूरा करती है. धारा 4 के खंड (iii) के उप-खंड (बी) में दिया गया.

एक सरोगेट मां, कानून के अनुसार, एक ऐसी महिला होनी चाहिए जो सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करने की इच्छुक हो, विवाहित हो और उसका खुद का एक बच्चा हो.

केंद्र के लिखित सबमिशन के अनुसार, सरोगेसी अधिनियम ‘यह अनिवार्य करता है कि सरोगेट माँ सरोगेसी के माध्यम से पैदा होने वाले बच्चे से आनुवंशिक रूप से संबंधित नहीं हो सकती है’.

जनहित याचिका दायर करने वाली अधिवक्ता मोहिनी प्रिया ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र का नवीनतम बयान उस अस्पष्टता को दूर करता है जो एक सरोगेट मां को परिभाषित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के कारण धारा में उत्पन्न हुई थी. उनके अनुसार, इसने भ्रम पैदा कर दिया था कि सरोगेट मदर कौन हो सकती है.

प्रिया कहती हैं, ‘अधिनियम कहीं भी उल्लेख नहीं करता है कि एक सरोगेट माँ एक करीबी रिश्तेदार या अपने खुन की होनी चाहिए. लेकिन जिस तरह से धारा 2 (1) (जेडजी) में उसकी व्याख्या इस तरह की गई थी कि केवल एक करीबी रिश्तेदार या दंपति के रक्त संबंधी या सरोगेट बच्चा पैदा करने वाली महिला ही सरोगेट मां हो सकती है.’

उन्होंने आगे कहा कि कई सरोगेसी समझौतों में एक करीबी रिश्तेदार को सरोगेट मां होने का सेक्सन शामिल किया गया था और यह परिवारों में चिंता का एक प्रमुख कारण बन रहा था क्योंकि इससे पारिवारिक संबंध टूटने का खतरा था.

उपरोक्त स्पष्टीकरण केंद्र सरकार और राष्ट्रीय सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी और सरोगेसी बोर्ड (‘नेशनल बोर्ड’) के बीच विचार-विमर्श के बाद, सरकारी वकील और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने मंगलवार को न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत की पीठ को बताया.


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‘बच्चा पिता के स्पर्म और मां की ओवरी से होना चाहिए’

तीसरे पक्ष के शुक्राणु या अंडाशय कोशिका दाताओं को अनुमति देने के लिए जनहित याचिका में एक अन्य मांग के संबंध में, केंद्र ने मौजूदा कानूनी स्थिति को दोहराया कि कोई भी महिला अपने स्वयं के युग्मक (अंडाशय कोशिकाएं जो ओवा बनाती हैं) प्रदान करके सरोगेट मां के रूप में कार्य नहीं करेगी.

सरकार का कहना है कि इच्छुक दंपत्ति के लिए सरोगेसी के जरिए पैदा होने वाला बच्चा पिता के शुक्राणु और मां की अंडाशय कोशिकाओं से होना चाहिए.

एक अविवाहित महिला के लिए, उसके सरोगेट बच्चे को उसके ओसाइट्स (अंडाशय कोशिकाओं) और पुरुष दाता के शुक्राणुओं से बनना चाहिए.

प्रिया कहती हैं, ‘सरकार का यह रुख सरोगेसी के उद्देश्य को विफल करता है और असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 के विपरीत है, एक नियामक और कानूनी ढांचा जो इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन या आईवीएफ जैसी सहायक प्रजनन तकनीकों को नियंत्रित करता है.’

‘जोड़े सीधे सरोगेसी के लिए नहीं जाते हैं. वे सरोगेसी का चुनाव करने से पहले आईवीएफ के कई असफल प्रयासों से गुजरते हैं. आईवीएफ में, जोड़ों को तीसरे पक्ष के शुक्राणु या अंडे का उपयोग करने की अनुमति होती है. सरोगेसी में इसकी अनुमति नहीं देने का कोई तर्क नहीं है.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘केंद्र सरकार ने जनवरी में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (एआरटी) और सरोगेसी क्लीनिक या बैंकों के पंजीकरण के लिए दिए गए निर्देशों के बारे में भी अदालत को सूचित किया. इसमें कहा गया है कि क्लिनिक/बैंक जिन्होंने पंजीकरण के लिए आवेदन नहीं किया है या ‘जिनके आवेदन अधूरे हैं या कम हैं, उन्हें परामर्श और एआरटी या सरोगेसी प्रक्रियाओं को रोकने का आदेश दिया गया है.’

इसके अलावा, सरकार ने पीठ को बताया कि राष्ट्रीय सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी और सरोगेसी बोर्ड, जैसा कि सरोगेसी अधिनियम और एआरटी अधिनियम के तहत अनिवार्य है, बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गठित किया गया है.

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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