नई दिल्लीः गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण पर रोक लगाने की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल खारिज कर दिया है. अब मामले पर सुनवाई 16 जुलाई को होगी. कोर्ट में संविधान संशोधन को लागू करने को लेकर चुनौती दी गई है.
मामले में न्यायमूर्ति एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ 16 जुलाई को यह फैसला करने के लिए दलीलों की सुनवाई करेगी कि क्या सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10% आरक्षण के संविधान संशोधन को लागू करने को अंतरिम आदेश पारित किया जाना चाहिए या नहीं.
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मोदी सरकार ने बिल संसद में पेश किया है
बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 चुनाव से पहले मोदी सरकार ने 8 जनवरी को बिल संसद में पेश किया था. जिसमें सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाना है. सदन में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने संशोधन विधेयक को पेश किया था. बिल का सपा, बसपा व अन्य दलों ने समर्थन किया था.
गहलोत ने संसद में कहा था कि सामान्य वर्ग के लिए ऐतिहासिक फैसले की जरूरत है, हमने जो किया वह आगे भी करेंगे. अब सारे गरीब आरक्षण के दायरे में आयेंगे. मुस्लिम धर्मावलंंबी, ईसाई, सभी धर्मों के गरीब इस प्रावधान के दायरे में होंगे.
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सवर्ण गरीबों के आरक्षण पर बोलते हुए अरुण जेटली ने कहा था कि इस मुद्दे पर मौलिक अधिकार बिल में संशोधन के लिए राज्यों के पास जाने की जरूरत नहीं. अगर हम सभी खुद को थोड़ी देर के लिए राजनीति से अलग कर लें तो यह कहूंगा कि आरक्षण का मुद्दा संविधान से पैदा नहीं हुआ. आरंभिक संविधान में सोशलिस्ट शब्द नहीं था. धर्म, जाति के आधार पर आरक्षण का कोई जिक्र नहीं था. हम सभी को अवसरों में बराबरी देंगे ऐसी बात की गई थी.
आर्टिकल 15, जिसके जरिये सामाजिक व शैक्षणिक आधार पर पिछड़े लोगों को खास अवसर की व्यवस्था की गई. बावजूद इसके ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है की गई है कि एससी एसटी व पिछड़े जितनी भी तरक्की कर लें वे जातीय भेदभाव से बाहर निकल पायें. जैसा कि आंबेडकर कहते थे कि एससी व एसटी के लोग चाहे जितनी तरक्की कर लें वे जातीय भेदभाव से बाहर नहीं आ पायेंगे.