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सुप्रीम कोर्ट ने टाटा-मिस्त्री मामले में एनसीएलएटी के आदेश पर लगाई रोक

कंपनी पंजीयक ने टाटा-मिस्त्री मामले में एनसीएलएटी के आदेश में संशोधन की याचिका दायर की थी. पीठ ने संबंधित पक्षों को इसे लेकर नोटिस जारी किया.

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रतन टाटा, फाइल फोटो.

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कंपनी पंजीयक की याचिका निरस्त करने के राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के आदेश पर शुक्रवार को रोक लगा दी.

कंपनी पंजीयक ने टाटा-मिस्त्री मामले में एनसीएलएटी के आदेश में संशोधन की याचिका दायर की थी.

मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड की अपील पर सुनवाई करने को सहमत हो गयी. पीठ ने संबंधित पक्षों को इसे लेकर नोटिस जारी किया.

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह एनसीएलएटी के फैसले के खिलाफ टाटा संस द्वारा दायर मुख्य याचिका के साथ ही इस मामले की सुनवाई करेगा.

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने साइरस मिस्त्री को पुन: टाटा समूह का कार्यकारी चेयरमैन बनाने के एनसीएलएटी के आदेश पर 10 जनवरी को रोक लगा दी थी.

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रतन टाटा की सुप्रीम कोर्ट में याचिका- मिस्त्री ने सत्ता का केंद्रीकरण और टाटा समूह का नाम खराब किया

इससे पहले टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने साइरस मिस्त्री मामले में खुद उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी और कहा था कि मिस्त्री ने अपने समय में निदेशक मंडल के सदस्यों की शक्तियां अपने हाथों में ले ली थीं तथा ‘टाटा ब्रांड’ की छवि खराब कर रहे थे.

रतन टाटा ने कहा था, ‘मिस्त्री के नेतृत्व में खामियां थीं. वह टाटा संस का चेयरमैन बन जाने के बाद भी समय से खुद को अपने पारिवारिक कारोबार से अलग करने तथा पारिवारिक कारोबार से संबंधित हितों के संभावित टकराव की स्थितियों को दूर करने को तैयार नहीं थे जबकि यह इस पद पर उनकी नियुक्ति की पूर्व शर्त थी.’

उन्होंने कहा, ‘मिस्त्री ने सारी शक्तियां व अधिकार अपने हाथों में ले लिया था. इसके कारण निदेशक मंडल के सदस्य टाटा समूह की ऐसी कंपनियों के परिचालन के मामलों में अलग-थलग महसूस कर रहे थे, जहां टाटा संस का ठीक-ठाक पैसा लगा हुआ था. टाटा संस के निदेशक मंडल ने ऐसे मामलों में लिये गये निर्णयों का विरोध भी किया था.’

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