होम देश भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की गौतम नवलखा की...

भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की गौतम नवलखा की जमानत याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने तीन मार्च को नवलखा की उस जमानत याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जवाब मांगा था, जिसमें दावा किया गया था कि मामले में आरोपपत्र तय समयसीमा में दायर नहीं किया गया.

news on social culture
मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, सुप्रीम कोर्ट, फाइल फोटो

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में कार्यकर्ता गौतम नवलखा की जमानत याचिका बुधवार को खारिज कर दी.

न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति केएम जोसफ की एक पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ नवलखा की याचिका खारिज कर दी. उच्च न्यायालय ने मामले में नवलखा को जमानत देने से इनकार कर दिया था.

न्यायमूर्मि जोसेफ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अदालत नवलखा कि याचिका खारिज कर रही है. शीर्ष अदालत ने नवलखा की जमानत याचिका पर 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रखा था.

उच्चतम न्यायालय ने तीन मार्च को नवलखा की उस जमानत याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जवाब मांगा था, जिसमें दावा किया गया था कि मामले में आरोपपत्र तय समयसीमा में दायर नहीं किया गया और इसलिए वह जमानत के हकदार हैं.

नवलखा के खिलाफ जनवरी 2020 को दोबारा प्राथमिकी दर्ज की गई थी और पिछले साल 14 अप्रैल को ही उन्होंने एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. वह 25 अप्रैल तक 11 दिन के लिए एनआईए की हिरासत में रहे और उसके बाद से ही नवी मुंबई के तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत में हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

पुलिस के अनुसार, कुछ कार्यकर्ताओं ने 31 दिसम्बर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में कथित रूप से उत्तेजक और भड़काऊ भाषण दिया था, जिससे अगले दिन जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़की थी.

यह भी आरोप है कि इस कार्यक्रम को कुछ माओवादी संगठनों का समर्थन प्राप्त था.

उच्च न्यायालय ने आठ फरवरी को यह कहते हुए नवलखा की याचिका खारिज कर दी थी कि ‘उसे विशेष अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नजर नहीं आता, जो पहले ही जमानत याचिका खारिज कर चुका है.’

नवलखा ने उनकी जमानत याचिका खारिज करने के 12 जुलाई, 2020 के एनआईए अदालत के आदेश को पिछले साल उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. उच्च न्यायालय ने पिछले साल 16 दिसम्बर को नवलखा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें इस आधार पर वैधानिक जमानत मांगी गयी थी कि वह 90 दिनों से ज्यादा समय से हिरासत में हैं लेकिन अभियोजन पक्ष इस दौरान आरोपपत्र दाखिल नहीं कर पाया.

एनआईए ने दलील दी थी कि यह याचिका विचार योग्य नहीं है तथा उसने आरोपपत्र दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने की मांग की थी.

इसके बाद, विशेष अदालत ने नवलखा तथा उनके सह आरोपी डॉ. आनंद तेलतुम्बडे के विरुद्ध आरोप पत्र दाखिल करने के लिए समयावधि 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन करने का एनआईए का अनुरोध स्वीकार कर लिया था.


यह भी पढ़ेंः ‘सरकार गिराने के लिए माओवादियों के साथ मिलकर साजिश रची’, स्टेन स्वामी की याचिका अदालत ने क्यों खारिज की


 

Exit mobile version