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सपा-बसपा गठबंधन: सिर्फ नेता एकजुट हुए हैं या कार्यकर्ता भी?

दोनों दलों के कार्यकर्ता बोले- जमीन पर सभी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को होना चाहिए एकजुट. समर्थकों ने कहा, गठबंधन फायदेमंद साबित होगा.

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लखनऊ में लगे एक बैनर में अखिलेश मायावती और नीचे कांशीराम मुलायम के गठबंधन वाली तस्वीर | प्रशांत श्रीवास्तव

लखनऊ: नब्बे के दशक में जब मुलायम- कांशीराम एकजुट हुए थे तो एक नारा दिया गया था- ‘मिले मुलायम-कांशीराम हवा हो गए जय श्रीराम’. आज फिर यूपी की सियासत का रुख फ्लैश बैक में ले जाता दिख रहा है. बीजेपी को हराने के लिए अखिलेश-मायावती एकजुट हो गए हैं. सपा व बसपा कार्यालय के बाहर दोनों के बैनर-पोस्टर भी दिखने लगे हैं, लेकिन एक सवाल तमाम लोगों के मन में उठ रहा है कि दोनों दलों के नेता तो एक हो गए, लेकिन क्या कार्यकर्ता भी एकजुट हुए हैं…इसी बात का पता लगाने हम दोनों दलों के समर्थकों के बीच पहुंचे.

राजधानी लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित सपा कार्यालय के बाहर इन दिनों अखिलेश- मायावती के तमाम पोस्टर्स लगे हैं. ‘मिले माया-अखिलेश हवा में उड़ गए जुमलेबाज़’, ‘बसपा-सपा आई है नई क्रांति लाई है’ जैसे तमाम स्लोगन इन पोस्टर्स पर लगे हैं. तमाम जिला कार्यालयों के पास भी ऐसे ही पोस्टर लगाए जा रहे हैं.

सपा-बसपा समर्थकों की राय

पिछले एक दशक से सपा से जुड़े सुलतानपुर के संजय श्रीवास्तव ने बताया कि कार्यकर्ताओं के बीच भी एकजुट होने का संदेश पहुंचा दिया गया है. सपा व बसपा दोनों के कार्यकर्ता बीजेपी से त्रस्त हैं. ये भी एक अहम कारण है कि उन्हें एकजुट होना पड़ेगा. सपा के जिला सचिव (लखनऊ) विनोद कुमार यादव कहते हैं कि कार्यकर्ता आलाकमान के निर्देशों का पालन करेंगे. चाहे सपा के कैंडिडेट को टिकट मिले या बसपा का कैंडिडेट उतरे पूरा समर्थन किया जाएगा.

बसपा समर्थक तारकेश्वर मौर्य का कहना है कि पुराने मतभेद भूल देशहित में दोनों दलों के समर्थकों को एकजुट हो जाना चाहिए. बीजेपी का मुकाबला करने के लिए दोनों दलों का एकजुट होना जरूरी है. वहीं जौनपुर के रहने वाले श्रेयत बौद्ध का, विवेक का भी कहना है सपा-बसपा गठबंधन से दोनों दलों को लाभ मिलेगा. पिछड़ा व दलित वर्ग आरक्षण से मजबूत हुआ है और अब गठबंधन से और ज्यादा मजबूत होगा. दोनों दलों को लाभ मिलेगा.

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इतनी आसान नहीं राह!

हालांकि कई जानकारों का कहना है कि बसपा के अधिकतर समर्थक तो ‘बहन जी’ के आदेश पर सपा उम्मीदवार को वोट कर सकते हैं, लेकिन क्या सपा समर्थक बसपा को वोट करेंगे. हालांकि इसको लेकर भी दो मत हैं. युवा समर्थक जो खासतौर से अखिलेश के फैन हैं उन्हें बसपा उम्मीदवार को समर्थन करने में कोई परहेज नहीं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े पुराने सपाई अभी खुलकर कुछ बोलने से बच रहे हैं. गोंडा के रहने वाले राम सेवक यादव कहते हैं कि जब तक उम्मीदवार नहीं तय हो जाते कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. गांव में कई सपा-बसपा समर्थकों के बीच पुरानी रंजिश भी है.

बीजेपी नेता ने भी इसको लेकर तंज कसने शुरू कर दिए हैं. प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने मायावती के जन्मदिन पर केक को मची लूट को लेकर दोनों दलों पर तंज कसते हुए एक ट्वीट किया.

उनका ये भी कहना है कि 2017-2012 के बीच में जब मायावती की सरकार थी तब सपा राजभवन इस शिकायत को लेकर जाती थी कि यादवों पर जान बूझकर हरिजन एक्ट लगाया जा रहा है. ऐसे में अब दोनों के समर्थक कैसे एकजुट होंगे.

बाराबंकी में पत्रकार अनिरुद्ध का कहना है कि दोनों दलों ने तैयारी तो शुरू कर दी है, लेकिन ये कहना अभी इतना आसान नहीं है. कैंडिडेट पर भी काफी कुछ निर्भर करेगा. बरेली के पत्रकार देश दीपक का भी यही कहना है कि दोनों दल के वरिष्ठ नेता तो एकजुट हो गए, लेकिन अभी कार्यकर्ता व समर्थकों का एकजुट दिखना बाकी है. खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में ये इतना भी आसान नहीं.

लखनऊ विश्वविद्यालय के पाॅलिटिकल साइंस के प्रोफेसर कविराज का कहना है कि अभी तो यही लग रहा है कि ये गठबंधन काफी मजबूत है. अगर मायावती और अखिलेश संयुक्त रैली करेंगे तो इसका असर कार्यकर्ताओं पर भी देखने को मिलेगा.

‘पिछड़ा शोषित दलित समाज बना के एका करेगा राज’

दोनों दलों के समर्थकों ने ऐसे तमाम नारे भी तैयार कर लिए हैं. दोनों नेताओं के एक साथ तस्वीर वाली टी-शर्ट भी जल्द ही मार्केट में बिकेंगी.

सपा-बसपा के पोस्टर बैनर पर गठबंधन की झलक | प्रशांत श्रीवास्तव

यूपी की राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल का कहना है कि जब सभी सीटों पक प्रत्याशी तय हो जाएंगे तो उसके बाद ही इसका अंदाजा लग पाएगा कि दोनों दलों के कार्यकर्ता व समर्थक भी एकजुट हैं या नहीं. कई नेता तो एकजुटता दिखा देते हैं, लेकिन जमीन पर एकजुटता उतारना आसान नहीं. 1993 के गठबंधन में आज के गठबंधन में फर्क है.. तब बैकवर्ड के नेता मुलायम सिंह थे. अब पिछड़े वर्ग में खास तौर से गैर-यादव वर्ग में नरेंद्र मोदी की भी अपनी पैठ है. ऐसे में गठबंधन को कार्यकर्ताओं के बीच जमीन पर उतारना इतना भी आसान नहीं होगा.

अखिलेश- माया की रणनीति

बसपा सुप्रीमो मायावती व सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी इस चुनौती को समझते हैं. इसी कारण अब हर मंडल में दोनों नेताओं की साझा रैली की प्लानिंग की जा रही है. इसके अलावा जिला स्तर पर कार्यकर्ताओं की मीटिंग भी आयोजित की जाएंगी.

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