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स्नाइपर्स, भूमिगत बंकर, पाइप बम – बस्तर में हवाई हमलों का जवाब देने के लिए नक्सलियों ने बनाई नई रणनीति

मूल रूप से गोंडी में 80 पन्नों का दस्तावेज़, रेखाचित्रों और चित्रों के माध्यम से हवाई हमलों का मुकाबला करने की रणनीतियों का विवरण देता है. सुरक्षा बलों ने पिछले 2 साल में बस्तर में हवाई बमबारी से इनकार किया है.

सुरक्षा बलों का मुकाबला करने के लिए गुरिल्ला रणनीतियों को दर्शाने वाले नक्सली दस्तावेज़ के चित्रों का कोलाज | दिप्रिंट

रायपुर: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक भूमिगत बंकरों के निर्माण से लेकर स्नाइपर दस्ते तैयार करने और विमानों पर हमला करने के लिए पाइप बमों के इस्तेमाल तक, नक्सलियों ने बस्तर में सुरक्षा बलों के संभावित हवाई हमलों का मुकाबला करने के लिए एक लंबी चौड़ी रणनीति तैयार की है.

पिछले दो वर्षों में, सुरक्षा बलों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र, जो कि नक्सलियों का गढ़ है, में हवाई बमबारी की जमीनी रिपोर्टों का लगातार खंडन किया है. कहा जाता है कि दक्षिण बस्तर के कुछ गांवों में अप्रैल और जनवरी में ऐसे हमले हुए.

मूल रूप से गोंडी भाषा में 80 पन्नों का एक हालिया नक्सली दस्तावेज़ में कई रेखाचित्रों और फोटो के माध्यम से विद्रोहियों के सामने आने वाले हवाई खतरे के साथ-साथ इससे निपटने के उनके तरीकों का साफ-साफ विवरण देखने को मिलता है.

प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) के सबसे वरिष्ठ नेताओं द्वारा तैयार और दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किए गए दस्तावेज़ में ‘ड्रोन हमलों से निपटने के तरीके’ शीर्षक वाले एक खंड में कहा गया है कि सुरक्षा बल हेलीकॉप्टर और ड्रोन दोनों के साथ हमारे कर्मचारियों को निशाना बना रहे हैं, लेकिन कैडर खुद के बचाव के लिए किसी तरह के “प्रोटोकॉल का पालन नहीं कर रहे हैं, अगर हम इसका पालन नहीं करेंगे तो हमें नुकसान होगा.”

दस्तावेज़ में कहा गया है, “ड्रोन अब हमारे ऊपर मंडरा रहे हैं, अगर हम ड्रोन देखते हैं, तो हमें समझ लेना चाहिए कि वे या तो हम पर हमला करने वाले हैं या भविष्य के हमले के लिए हमारी टोह ले रहे हैं.”

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विद्रोहियों ने आत्मरक्षा के लिए एक लंबा चौड़ा प्रोटोकॉल तैयार किया है: “कैमुफ्लाज”, “छिपे रहना”, “पेड़ों के नीचे सोना” या “तीन फीट गहरे बंकर में”, “ड्रोन द्वारा टोह लेने के बाद स्थान बदलना”.

चूंकि बस्तर में अब तक नक्सलियों के पास बमुश्किल कोई बंकर है, इसलिए बंकरों के निर्माण पर जोर देना उनकी लड़ाई में एक नया हथियार है.

पुलिस शिविर पर हमला करने के निर्देश दर्शाने वाला आरेख | स्पेशल अरेंजमेंट द्वारा

विद्रोही पिछली बातों को भी स्वीकार करते हैं जब ड्रोन सर्विलांस ने “पुलिस को हमारे घात लगाने वाले दल की जगहों का खुलासा किया”, जिसने खुफिया सूचनाओं से लैस होकर “हम पर मोर्टार दागे लेकिन निशाना चूक गया”.

हालांकि, जनवरी में पोट्टम हुंगी नाम की एक महिला कैडर की मौत को छोड़कर, माओवादियों ने ऐसे हमलों में किसी के हताहत होने की बात स्वीकार नहीं की है. हालांकि सेनाओं ने भी ऐसा कोई दावा नहीं किया है.

नक्सली पिछले एक दशक से भी अधिक समय से स्वदेशी प्रोपेलर और मोर्टार विकसित कर रहे हैं, और कुछ मौकों पर उन्होंने विमानों को भी निशाना बनाया है, लेकिन मानव रहित हवाई वाहनों (यूएवी) और हेलीकॉप्टरों के खिलाफ विस्तृत नीति दस्तावेज का यह शायद पहला उदाहरण है.

अपनी रणनीति के बारे में बताते हुए, नक्सली कहते हैं कि चूंकि प्रत्येक पुलिस शिविर अब ड्रोन से लैस है, इसलिए “पता लगाने से बचने” के लिए “हमें कैमुफ्लाज किट तैयार करनी चाहिए” और “पेड़ों के पीछे छिपना” चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बम जंगल में गिरें और अप्रभावी हो जाएं.

सबसे हिंसक नक्सली हमले गर्मियों के दौरान होते हैं, जैसे 25 मई 2013 को दरभा में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर घात लगाकर हमला किया गया था, लेकिन यही वह समय होता है जब जंगल की सघनता कम हो जाती है जिसकी वजह छिपकर गतिविधियां करना मुश्किल हो जाता है.

नक्सली कहते हैं, “सबसे बड़ी चुनौती ठंड के समय और गर्मियों के दौरान होती है जब ड्रोन हमें आसानी से पहचान लेते हैं.” उन्होंने आगे कहा, “हालांकि बारिश के दौरान छिपना आसान होता है, लेकिन हमें यह नहीं मानना चाहिए कि बारिश के दौरान ड्रोन हम पर हमला नहीं करेंगे.”

ऐसा माना जाता है कि मानसून के दौरान फोर्स, ऑपरेशन करने से बचते हैं क्योंकि बस्तर की नदियां उफान पर होती हैं और जंगली उस दौरान काफी सघन हो हो जाते हैं. नक्सली अब अपने कैडरों को बारिश के दौरान भी सतर्क रहने की चेतावनी दे रहे हैं.

दिप्रिंट ने बस्तर पुलिस और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को नक्सलियों की तैयारियों के बारे में एक प्रश्नावली भेजी. बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) सुंदरराज पी ने कहा, “हमें खतरे की जानकारी है. हमारी सेनाएं इससे निपटने के लिए तैयार हैं.”

जबकि सीआरपीएफ की आधिकारिक प्रतिक्रिया का इंतजार है, सीआरपीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे पास ड्रोन हमले की क्षमता नहीं है. हमारे पास केवल निगरानी के उद्देश्य से ड्रोन हैं.

घटनाक्रम पर चिंता जताते हुए छत्तीसगढ़ के पूर्व डीजीपी आर.के. विज ने कहा: “ये उनकी (नक्सल) रणनीति में नए और गंभीर खिलाड़ी हैं. स्नाइपर्स बलों के लिए बहुत निराशाजनक हो सकते हैं. इसका मतलब है कि गैर-अलर्ट गार्ड अब सुरक्षित नहीं हैं. पुलिस शिविरों के आसपास के क्षेत्रों की अब बेहतर सुरक्षा की जरूरत है. दूसरा, विमान को मार गिराने पर उनका ध्यान चिंताजनक है. यदि वे उचित पोज़ीशन लेने में सक्षम हैं, खासकर पहाड़ियों पर, तो वे विमान को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं.

हवाई जवाबी रणनीति

यदि एक पहलू आत्मरक्षा है, तो दूसरा विमान को नुकसान पहुंचाना है, दस्तावेज़ कई चित्रों के माध्यम से एक रणनीति का वर्णन करता है. यह देखते हुए कि बम अपेक्षाकृत “कम ऊंचाई” से गिराए जाते हैं, नक्सली प्लाटून को “डिप” सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है. ड्रोनों पर हमला करने के लिए पहाड़ी की चोटी पर टीमों की तैनाती”, और “हेलीकॉप्टरों और ड्रोनों पर हमला करने के लिए 1-2 मीटर लंबे पाइप बम” का उपयोग करें.

नक्सली दस्तावेज़ का एक पृष्ठ जिसमें हेलीकॉप्टरों को निशाना बनाने के लिए बमों का उपयोग करने के निर्देश लिखे हुए हैं | दिप्रिंट

नक्सली स्नाइपर्स के विशेष दस्तों पर भी जोर देते हैं जो “हेलीकाप्टरों पर हमला करने के लिए बेहद उपयोगी” हैं. दस्तावेज़ में कहा गया है, “अपने आप को ज़मीन पर रखें और हेलीकॉप्टर के ब्लेड या ईंधन टैंक पर प्रहार करें,” यह रेखांकित करते हुए कि “स्नाइपर्स को रात में दूरबीनों का उपयोग करना चाहिए”, साथ ही “विमान के मजबूत धातु आवरण” को भेदने के लिए खास डायमेंशन की गोलियों का भी उपयोग करना चाहिए.

पिछले एक दशक में नक्सलियों ने कुछ मौकों पर सुरक्षा बलों के विमानों को निशाना बनाया है. दिसंबर 2011 में सुकमा के अंदरूनी जंगलों में ऑपरेशनल उड़ान के दौरान भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के एक हेलीकॉप्टर पर नक्सलियों ने हमला कर दिया था.

जनवरी 2013 में, विद्रोहियों की गोलीबारी में आने के बाद एक एमआई-17 बस्तर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. भारतीय वायु सेना (आईएएफ) के चालक दल ने हेलीकॉप्टर को छोड़ दिया और सुरक्षा के लिए सीआरपीएफ शिविर में चले गए, और छत्तीसगढ़ पुलिस के वायरलेस ऑपरेटर यम लाल साहू को पीछे छोड़ दिया, जो हमले में घायल हो गए थे.

जबकि वायु सेना ने कहा था कि उनके चालक दल ने “बंधक की स्थिति से बचने के लिए साहू को छोड़ दिया”, पुलिस ने इसे “दुर्भाग्यपूर्ण” और “असंवेदनशील” करार दिया था. डॉक्टरों ने कहा था कि “इलाज में देरी के कारण, साहू में हेमोडायनामिक अस्थिरता विकसित हुई जिसके कारण लकवा का दौरा पड़ा”.


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स्नाइपर दस्ते

सबसे बड़ा ध्यान स्नाइपर दस्तों को बढ़ाने और मजबूत करने पर लगता है. पहले नक्सलियों के पास विभिन्न प्रकार की सैन्य इकाइयां थीं – बटालियन, प्लाटून, स्थानीय गुरिल्ला दस्ते, त्वरित कार्रवाई दल. ऐसा प्रतीत होता है कि स्नाइपर्स अपने वर्ग में एक नए खिलाड़ी हैं.

सटीक राइफलों से लैस, स्नाइपर छिपकर अकेले हमला करने वाले हैं. चूंकि नक्सली टीमों द्वारा घात लगाकर हमला करना कठिन होता जा रहा है, इसलिए वे व्यक्तियों को पहाड़ी चोटियों, पेड़ों और बंकरों से हमला करने के लिए प्रशिक्षित कर रहे हैं. स्नाइपर्स युद्ध के मोर्चों पर महत्वपूर्ण साबित हुए हैं और जंगल युद्ध में उनके महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

दस्तावेज़ में कहा गया है, “स्नाइपर हमलों से, हम एक दिन में एक पुलिस कर्मी को मार सकते हैं और उनके सहयोगी  कर्मियों में डर पैदा कर सकते हैं,” यह बातें यह बताती हैं कि “अगर हम ऐसा डर पैदा करने में सक्षम हैं,” तो सेनाएं “अपने शिविरों से बाहर आने को लेकर आशंकित होंगी.”

दस्तावेज़ में एक आरेख यह दर्शाता है कि स्नाइपर हेलीकॉप्टर और ड्रोन को कैसे निशाना बना सकते हैं | विशेष व्यवस्था द्वारा

दस्तावेज़ यह भी बताता है कि स्नाइपर्स के प्रशिक्षण को अब तक बहुत कम सफलता मिली है. “स्नाइपर कॉमरेड में फिटनेस, कड़ी मेहनत और योजना की कमी है. दस्तावेज़ में कहा गया है, ”उन्हें रोज़ाना या सप्ताह में कम से कम 2-3 बार इसका अभ्यास करना चाहिए.”

‘कार्पेट सिक्युरिटी’ से निपटना

नक्सली बस्तर में सेना की बढ़ती तैनाती और नए कैंपों को लेकर भी चिंतित हैं. “बलों ने हमें चारों तरफ से घेर लिया है. वे भारी संख्या में मार्च कर रहे हैं,” दस्तावेज़ में कहा गया है, यह देखते हुए कि दूर के जंगलों में ये नए शिविर “बलों को हम पर तत्काल हमला करने की अनुमति देते हैं”. कार्पेट सिक्युरिटी के कारण, हमें छोटे-मोटे हमलों का भी मौका नहीं मिल रहा है. कभी-कभी, हमारे घात का पता बहुत पहले चल जाता है.”

नक्सली विद्रोहियों के लिए पुलिस के कई शिविरों पर घात लगाने की योजना | विशेष व्यवस्था द्वारा

चित्रों के माध्यम से, नक्सलियों ने सुरक्षा शिविरों से भरी जगह पर हमला करने के लिए प्रोटोकॉल निर्धारित किए हैं: कैडरों को “पेड़ों से रॉकेट लॉन्च करने” और कई तरफ से शिविरों पर हमला करने के लिए प्रशिक्षित करना. तस्वीरों से पता चलता है कि नक्सली कई सौ सुरक्षाकर्मियों की मेजबानी वाले छह शिविरों पर एक साथ हमले की तैयारी कर रहे हैं.

नक्सलियों के बीच प्रसारित, रणनीति दस्तावेज़ अब उनके प्रशिक्षण शिविरों का हिस्सा है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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